डाउन सिंड्रोम (ट्राइसॉमी 21)

(डाउन सिंड्रोम; ट्राइसॉमी G)

इनके द्वाराNina N. Powell-Hamilton, MD, Sidney Kimmel Medical College at Thomas Jefferson University
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया नव॰ २०२३

डाउन सिंड्रोम एक क्रोमोसोम विकार है जो अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 होने के कारण होता है। इसके कारण बौद्धिक अक्षमता और शारीरिक असामान्यताएं हो सकती हैं।

  • डाउन सिंड्रोम अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 होने के कारण होता है।

  • डाउन सिंड्रोम से प्रभावित बच्चों का बौद्धिक और शारीरिक विकास धीमे-धीमे होता है और चेहरे और सिर की बनावट अक्सर छोटी होती है।

  • जन्म से पहले, डाउन सिंड्रोम का पता अल्ट्रासोनोग्राफ़ी या माँ के खून के नमूने की जांच करके लगाया जा सकता है और इसकी पुष्टि कोरियोनिक विलस सैंपलिंग और/या एम्नियोसेंटेसिस का इस्तेमाल करके की जा सकती है।

  • जन्म के बाद, बच्चे की शारीरिक बनावट देखकर जांच की जाती है और आमतौर पर खून के नमूने की जांच करके अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 का पता लगाकर इसकी पुष्टि की जाती है।

  • डाउन सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है लेकिन सिंड्रोम की वजह से होने वाले कुछ विशिष्ट लक्षणों और समस्याओं का इलाज हो सकता है।

  • डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त अधिकतर बच्चे वयस्क होने तक जीवित रहते हैं।

(क्रोमोसोम और जीन संबंधी विकारों का विवरण भी देखें।)

क्रोमोसोम कोशिकाओं के अंदर की संरचनाओं को कहते हैं जिनमें DNA और कई जीन होते हैं। जीन, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) के सेगमेंट हैं और इनमें एक खास प्रोटीन का कोड होता है, जो शरीर में एक या इससे ज़्यादा तरह के सेल्स में काम करता है। जीन में वे निर्देश होते हैं, जो निर्धारित करते हैं कि शरीर कैसा दिखाई देगा और कैसे काम करेगा। (आनुवंशिकी के बारे में चर्चा के लिए जीन और क्रोमोसोम देखें।)

एक समान क्रोमोसोम के जोड़े में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम होने, मतलब तीन क्रोमोसोम होने को ट्राइसॉमी कहते हैं।

नवजात में सबसे आमतौर पर ट्राइसॉमी 21 (एक अतिरिक्त क्रोमोसोम 21, जो सबसे छोटा इंसानी क्रोमोसोम है) पाया जाता है। भ्रूण में किसी भी क्रोमोसोम की ट्राइसॉमी होना संभव है; हालांकि, बड़े क्रोमोसोम में से एक के अतिरिक्त होने से गर्भपात या मृत बच्चे का जन्म होने की संभावना ज़्यादा होती है।

डाउन सिंड्रोम के 95% मामलों की वजह ट्राइसॉमी 21 ही है। इसलिए डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त अधिकतर लोगों में 46 की जगह 47 क्रोमोसोम होते हैं। हालांकि, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित करीब 4% लोगों में 46 क्रोमोसोम होते हैं, लेकिन अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 दूसरे क्रोमोसोम से जुड़ा होता है, जिससे एक असामान्य, लेकिन अतिरिक्त नहीं, क्रोमोसोम बनता है। इस असामान्य अटैचमेंट को ट्रांसलोकेशन कहा जाता है।

डाउन सिंड्रोम: ट्राइसॉमी 21
विवरण छुपाओ
डाउन सिंड्रोम में क्रोमोसोम 21 के जोड़े में एक अतिरिक्त क्रोमोसोम होता है, जिससे एक ही क्रोमोसोम के तीन प्रतिरूप बन जाते हैं।

अतिरिक्त क्रोमोसोम आमतौर पर मां से आता है और किसी युगल को अतिरिक्त क्रोमोसोम वाला बच्चा पैदा होने का जोखिम मां की उम्र के साथ धीरे-धीरे बढ़ता जाता है। चूंकि अधिकतर महिलाएं कम उम्र में माँ बन जाती हैं, डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त केवल 20% नवजात बच्चे, 35 से ज्यादा की उम्र की महिलाओं को होते हैं।

जिन महिलाओं को डाउन सिंड्रोम होता है, 50% संभावना होती है कि उनके बच्चों को भी डाउन सिंड्रोम हो। हालांकि, प्रभावित भ्रूण के गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है। अगर केस मोज़ेक डाउन सिंड्रोम का न हो, तो डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त पुरुष आमतौर पर बच्चे पैदा करने में सक्षम नहीं होते। मोज़ेक डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों में दो तरह की कोशिकाओं का मिश्रण होता है। कुछ कोशिकाओं में सामान्य 46 क्रोमोसोम होते हैं और कुछ कोशिकाओं में 47 क्रोमोसोम होते हैं। जिन कोशिकाओं में 47 क्रोमोसोम होते हैं, उनमें एक अतिरिक्त क्रोमोसोम 21 होता है।

डाउन सिंड्रोम की परेशानियां

डाउन सिंड्रोम शरीर के कई हिस्सों को प्रभावित करता है। हर व्यक्ति में सभी परेशानियाँ नहीं पाई जातीं।

डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त 50% बच्चों में हृदय दोष होता है, सबसे आम है वेंट्रिक्युलर सेप्टल डिफ़ेक्ट और एट्रियोवेंट्रिक्युलर सेप्टल डिफ़ेक्ट

लगभग 6% बच्चों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याएं होती हैं। प्रभावित बच्चों में हिर्स्चस्प्रुंग रोग और सीलिएक रोग भी आम है।

सबसे ज़्यादा प्रभावित लोगों को सुनाई देना कम हो जाता है और कान के संक्रमण होना बहुत ही आम बात है।

प्रभावित लोगों में से करीब 60% को आँखों की समस्याएं जैसे कि मोतियाबिंद, ग्लूकोमा और तिरछी आँखें (भेंगापन) होती हैं।

गर्दन के जोड़ अस्थिर हो सकते हैं जिससे स्पाइनल कॉर्ड दबती है, इससे उनके चलने में, बाँहों और हाथों के इस्तेमाल में, पेट या ब्लैडर की समस्याएं और कमजोरी हो सकती है।

डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त कई लोग थायरॉइड संबंधी बीमारियों (जैसे हाइपोथायरॉइडिज़्म) और डायबिटीज से भी पीड़ित रहते हैं।

उनमें संक्रमण होने और ल्यूकेमिया होने का खतरा ज्यादा होता है और ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया होने का बहुत ज्यादा खतरा होता है।

टेबल
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डाउन सिंड्रोम के लक्षण

डाउन सिंड्रोम में शारीरिक और बौद्धिक विकास आमतौर पर देरी से होता है। डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे अक्सर कद में छोटे होते हैं और उन्हें मोटापा होने का खतरा होता है।

शारीरिक विकास

डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त नवजात बच्चे शांत और गंभीर रहते हैं और बहुत कम रोते हैं। कई नवजात हृदय और गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल दोषों के साथ जन्म लेते हैं और उनकी मांसपेशियाँ थोड़ी कमजोर होती हैं। उनका सिर छोटा और चेहरा चौड़ा और चपटा होता है और नाक छोटी होती है। गर्दन के पीछे की ओर अतिरिक्त चमड़ी हो सकती है। हालांकि, कुछ नवजात शिशुओं में जन्म के समय चेहरे की स्पष्ट विशिष्ट विशेषताएं नहीं होती हैं और फिर शैशवावस्था के दौरान चेहरे की स्पष्ट विशिष्ट विशेषताएं विकसित होती हैं।

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की आम शारीरिक विशेषताओं में ये शामिल हैं:

  • आँखें किनारों से ऊपर की ओर उठी हुई होती हैं और ऊपरी पलक की त्वचा आँख के अंदरूनी कोने (एपिकैन्थल फ़ोल्ड) को ढंक लेती है।

  • जीभ कभी-कभी बड़ी होती है। बड़ी जीभ और चेहरे की कम मांसपेशियों के कारण अक्सर बच्चों का मुंह खुला रहता है।

  • कान छोटे, गोल और सिर पर नीचे की ओर होते हैं।

  • हाथ आमतौर पर छोटे और चौड़े होते हैं और हथेली पर एक शिकन होती है। उंगलियां छोटी होती हैं और पाँचवीं उंगली में अक्सर तीन के बजाय दो खंड होते हैं और इनके घुमाव अंदर की ओर होते हैं।

  • पहली और दूसरी उंगली के बीच की जगह भी थोड़ी ज्यादा हो सकती है (चप्पल पहनने वाली उंगलियां)।

डाउन सिंड्रोम की विशिष्ट शारीरिक विशेषताएं
डाउन सिंड्रोम (गर्दन के पीछे की ओर अतिरिक्त चमड़ी)
डाउन सिंड्रोम (गर्दन के पीछे की ओर अतिरिक्त चमड़ी)

इस फ़ोटो में डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चे की गर्दन के पीछे की ओर अतिरिक्त चमड़ी दिखाई गई है।

© Springer Science+Business Media

हथेली में एक शिकन
हथेली में एक शिकन

इस फ़ोटो में एक नवजात की हथेली में एक ही शिकन दिखाई दे रही है।

राल्फ़ सी. ईगल, जूनियर/SCIENCE PHOTO LIBRARY

डाउन सिंड्रोम (चेहरे के हाव-भाव)
डाउन सिंड्रोम (चेहरे के हाव-भाव)

इस फ़ोटो में डाउन सिंड्रोम का एक मरीज़ दिखाया गया है जिसकी नाक चपटी, आँखें भेंगी और आँखों के अंदरूनी किनारों की चमड़ी लटकी हुई है।

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© Springer Science+Business Media

संज्ञानात्मक (बौद्धिक) विकास

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों का इन्टेलिजन्स कोशंट (IQ) अलग-अलग हो सकता है, लेकिन औसतन करीब 50 होता है, जबकि सामान्य बच्चों का IQ 100 होता है।

डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों को अक्सर मांसपेशियों की मदद से किए जाने वाले काम करने और बोलने में दिक्कत आती है, लेकिन यह सब बच्चों में अलग-अलग होता है।

बचपन में ध्यान की कमी/अति सक्रियता विकार भी अक्सर देखने को मिलता है। डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में ऑटिस्टिक व्यवहार होने का जोखिम भी बहुत ज्यादा होता है, खासकर वे बच्चे जिनमें गंभीर बौद्धिक अक्षमता होती है।

वयस्कों में डिप्रेशन और बच्चों में डिप्रेशन का खतरा भी ज्यादा रहता है।

डाउन सिंड्रोम का निदान

  • जन्म से पहले भ्रूण का अल्ट्रासोनोग्राफ़ी या माँ के खून की जांच

  • जन्म से पहले, कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग, एम्नियोसेंटेसिस या दोनों

  • जन्म के बाद नवजात कैसा दिखता है, इसके आधार पर और खून की जांच के आधार पर

(यह भी देखें: अगली पीढ़ी की क्रमण की तकनीकें।)

जन्म से पहलेभ्रूण के अल्ट्रासाउन्ड या गर्भधारण के पहले 15 या 16 हफ़्तों के दौरान माँ के खून में कुछ प्रोटीन या हार्मोन के असामान्य स्तरों के आधार पर डाउन सिंड्रोम का पता लगाया जा सकता है। डॉक्टर माँ के खून में भ्रूण के डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक (DNA) का पता लगाने के लिए एक टेस्ट कर सकते हैं और इस DNA का इस्तेमाल डाउन सिंड्रोम के बढ़े हुए जोखिम का पता लगाने के लिए कर सकते हैं। इस टेस्ट को नॉनइनवेसिव प्रीनेटल स्क्रीनिंग (NIPS) या सेल-फ़्री फ़ीटल DNA एनालिसिस कहते हैं।

अगर डॉक्टर को इन स्क्रीनिंग टेस्ट के आधार पर डाउन सिंड्रोम का संशय होता है, तो वे अक्सर कोरियोनिक विल्लस सैंपलिंग, एम्नियोसेंटेसिस या दोनों का इस्तेमाल करके निदान कर सकते हैं।

महिलाएं चाहे किसी भी उम्र की हों, गर्भधारण के 20 हफ़्ते पहले डाउन सिंड्रोम की स्क्रीनिंग और जांच की सलाह दी जाती है।

प्रयोगशाला परीक्षण

जन्म के बाद, डाउन सिंड्रोम वाले एक नवजात में अगर शारीरिक लक्षण दिखाई देते हैं, तो भी जांच की सलाह दी जाती है। नवजात के खून की जांच करके डॉक्टर आमतौर पर निदान की पुष्टि कर लेते हैं।

निदान करने के बाद, डॉक्टर डाउन सिंड्रोम से जुड़ी असामान्यताओं की स्क्रीनिंग के लिए दूसरे टेस्ट करते हैं। ऐसी असामान्यताओं का इलाज करने पर अक्सर उनका स्वास्थ्य बेहतर बनाया जा सकता है। ये टेस्ट निश्चित अंतरालों पर किए जाते हैं और इनमें ये शामिल होते हैं:

  • हृदय की अल्ट्रासोनोग्राफ़ी

  • रक्त की जाँच

  • थायरॉइड परिक्षण

  • नज़र के टेस्ट

  • श्रवण क्षमता जांच

  • डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बच्चों के लिए खास तौर पर बनाए गए ग्रोथ चार्ट का इस्तेमाल करके, हर बच्चे की लंबाई, वज़न और सिर का घेरा मापा जाता है

  • ऑब्सट्रक्टिव स्लीप ऐप्निया का मूल्यांकन

जिन बच्चों को गर्दन या तंत्रिका (नसों) में दर्द, कमजोरी या अन्य न्यूरोलॉजिक लक्षण होते हैं, उनमें अस्थिरता की जांच करने के लिए उनकी गर्दन के हड्डी वाले जोड़ों का एक्स-रे भी निकाला जाना चाहिए। जिन बच्चों या वयस्कों को स्पेशल ओलंपिक या अन्य किसी खेल में भाग लेना है, उन्हें गर्दन के हड्डी वाले जोड़ों का एक्स-रे करवाना पड़ सकता है।

डाउन सिंड्रोम से पीड़ित बड़े किशोरों और वयस्कों को डाउन सिंड्रोम से जुड़े इन रोगों के लिए निश्चित अंतराल पर स्क्रीनिंग करवानी चाहिए:

  • मधुमेह

  • अधोसक्रिय थायरॉयड ग्रंथि (हाइपोथायरायडिज्म)

  • अल्ज़ीमर रोग

डाउन सिंड्रोम का इलाज

  • जटिलताओं और इनसे जुड़े रोगों के लिए स्क्रीनिंग

  • विशिष्ट लक्षणों और समस्याओं का इलाज

  • आनुवंशिक सलाह

डाउन सिंड्रोम का कोई इलाज नहीं है। हालांकि सिंड्रोम से होने वाले कुछ खास लक्षणों और समस्याओं का इलाज हो सकता है। डॉक्टर कुछ दिल की कुछ बीमारियों और गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल समस्याओं का सर्जरी से इलाज कर सकते हैं। दूसरे रोग (जैसे कि हाइपोथायरॉइडिज़्म, सीलिएक रोग, डायबिटीज और ल्यूकेमिया) का इलाज ज़रूरत के मुताबिक किया जाता है।

डाउन सिंड्रोम वाले लोगों की देखभाल में परिवार की आनुवंशिक काउंसलिंग, सामाजिक सहायता और शैक्षणिक कार्यक्रम भी शामिल होने चाहिए, जो उनके बौद्धिक स्तर के अनुरूप हों (देखें बौद्धिक अक्षमता का इलाज)। शैक्षणिक और अन्य सेवाओं की मदद से शुरुआती सालों में अगर ध्यान दिया जाए तो डाउन सिंड्रोम वाले बच्चों में सुधार लाया जा सकता है।

डाउन सिंड्रोम के लिए पूर्वानुमान

अतिरिक्त क्रोमोसोम, जैसे ट्राइसॉमी 18 या ट्राइसॉमी 13 से होने वाले अन्य विकारों की तुलना में डाउन सिंड्रोम का प्रॉग्नॉसिस बेहतर है।

उम्र बढ़ने की प्रक्रिया तेज़ हो जाती है, लेकिन डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त अधिकतर बच्चे वयस्क होने तक ज़िंदा रहते हैं। जीवन संभावना 60 साल तक की होती है और कुछ प्रभावित लोग 80 साल तक भी जीवित रह सकते हैं। डिमेंशिया के लक्षण, जैसे कि याददाश्त कम होना, बौद्धिक स्तर का और भी कम होना तथा व्यक्तित्व में बदलाव शुरुआती उम्र में हो सकते हैं। हृदय की असामान्यताएं अक्सर दवाइयों या सर्जरी से ठीक हो सकती हैं। डाउन सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों की मौत का बड़ा कारण हृदय रोग, संक्रमण और ल्यूकेमिया है।

हालिया खोजों से पता चला है कि डाउन सिंड्रोम से ग्रसित अश्वेत लोगों का जीवनकाल, डाउन सिंड्रोम से पीड़ित श्वेत लोगों से कम होता है। हो सकता है कि इन खोजों की वजह यह रही हो कि चिकित्सा, शिक्षा और अन्य सेवाओं तक इनकी पहुँच बहुत सीमित है।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी भाषा के संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इन संसाधनों की सामग्री के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।

रिसर्च और फंडिंग से लेकर प्रोफेशनल और सामान्य लोगों की ट्रेनिंग, शैक्षणिक सामग्री और संबंधित विषयों के लिंक के लिए ये वेबसाइटें देखें:

  1. National Down Syndrome Congress (NDSC)

  2. National Down Syndrome Society (NDSS)

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