लिवर का सिरोसिस

इनके द्वाराTae Hoon Lee, MD, Icahn School of Medicine at Mount Sinai
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया जन॰ २०२४

लिवर की आंतरिक संरचना के विस्तृत रूप से विकार को सिरोसिस कहा जाता है और ऐसा उस समय होता है जब बड़ी मात्रा में सामान्य लिवर ऊतक को स्थाई रूप से गैर-कार्यशील स्कार ऊतकों से प्रतिस्थापित कर दिया जाता है। स्कार ऊतक उस समय विकसित होते हैं जब लिवर बार-बार या निरन्तर क्षतिग्रस्त होता है। सिरोसिस को एक समय लाइलाज माना जाता था, लेकिन अब कुछ मामलों में यह सामान्य हो रहा है।

  • अल्कोहल का अत्यधिक क्रोनिक उपयोग, क्रोनिक वायरल हैपेटाइटिस, और मेटाबोलिक डिस्फ़ंक्शन-एसोसिएटेड स्टेटोहैपेटाइटिस (MASH) जिसे पहले नॉन-अल्कोहोलिक स्टेटोहैपेटाइटिस (NASH) (जिस फैटी लिवर का कारण अल्कोहल नहीं होता है) के रूप में जाना जाता था, सिरोसिस के सबसे आम कारण हैं।

  • लक्षण, जब होते हैं, उनमें भूख न लगना, वजन कम होना, थकान तथा बीमार का सामान्य अहसास शामिल है।

  • अनेक गंभीर जटिलताएं जैसे पेट में तरल का संचयन (एसाइटिस), पाचन तंत्र में रक्तस्राव और मस्तिष्क के कार्य का बदतर होना विकसित हो सकता हैं।

  • निदान लक्षणों तथा शारीरिक परीक्षण के परिणामों, रक्त परीक्षणों, इमेजिंग अध्ययनों, तथा कभी-कभी बायोप्सी पर निर्भर करता है।

  • डॉक्टर जटिलताओं का उपचार करते हैं, लेकिन सिरोसिस के कारण होने वाली क्षति अक्सर स्थाई होती है।

  • ऐसे लोग जिनको सिरोसिस होता है, उनको लिवर कैंसर का जोखिम होता है, इसलिए यदि ज़रूरत होती है, तो नियमित रूप से कैंसर की जांच करने के लिए अल्ट्रासोनोग्राफ़ी, मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) या कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) तथा रक्त परीक्षण किए जाते हैं।

सिरोसिस दुनिया भर में मौत का एक आम कारण है और 2019 में दुनिया भर में मौत का 16वां प्रमुख कारण था।

विभिन्न विकार, दवाएँ या विष वाले पदार्थ लिवर को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यदि क्षति अचानक (एक्यूट) और सीमित है, तो लिवर द्वारा नई लिवर कोशिकाओं को तैयार करके और कनेक्टिव ऊतक (आंतरिक संरचना), जो लिवर कोशिकाओं के मरने के बाद शेष रहती है, के वेब के साथ उन्हें अटैच करके आमतौर पर स्वयं की मरम्मत कर ली जाती है। यदि लोग लंबे समय तक जीवित रहते हैं, तो ही मरम्मत तथा पूर्ण रिकवरी संभव होती है। लेकिन, बार-बार होने वाली क्षति के कारण, लिवर द्वारा जब क्षतिग्रस्त ऊतक को प्रतिस्थापित और मरम्मत करने की कोशिश की जाती है, तो इसके परिणामस्वरूप स्कारिंग (लिवर फ़ाइब्रोसिस) हो जाता है। स्कार ऊतक कोई काम नहीं करते हैं। जब फ़ाइब्रोसिस बहुत अधिक फैल जाता है और गंभीर होता है, पूरे लिवर में स्कार ऊतक के बैंड बन जाते हैं, और लिवर की आंतरिक संरचना को नष्ट कर देते हैं और ये लिवर की रिजेनेरेट करने की योग्यता तथा कार्य करने की क्षमता को विकृत कर देते हैं। इस प्रकार की गंभीर स्कारिंग को सिरोसिस कहा जाता है।

क्योंकि लिवर कार्य विकृत हो चुका होता है, इसलिए, लिवर

  • दवाओं, विष तथा शरीर में बनने वाले अपशिष्ट पदार्थों को तोड़कर हटाता है

  • बाइल को प्रोसेस नहीं कर पाता

  • ऐसे प्रोटीन को कम तैयार कर पाता है जिससे रक्त के थक्के बनाने में सहायता मिलती है (क्लॉटिंग कारक)

  • एल्बुमिन तैयार करना (एक प्रोटीन जिससे रक्त वाहिकाओं में से फ़्लूड के रिसाव में सहायता मिलती है)

लिवर अनेक दवाओं, विष तथा शरीर के अपशिष्ट उत्पादों को प्रोसेस करता है। इसके द्वारा उन्हें ऐसे तत्वों में विभाजित किया जाता है जो कम हानिकारक होते हैं और/या जिन्हें शरीर से बाहर निकालना आसान होता है। लिवर पदार्थों को पित्त में निष्कासित करके बाहर निकालता है, जो कि एक हरा सा पीला पाचक फ़्लूड होता है जिसे लिवर में कोशिकाओं द्वारा तैयार किया जाता है। जब लिवर इन तत्वों को कम प्रोसेस कर पाता है, तो ये रक्तधारा में संचित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, अनेक दवाओं और विषाक्तताओं के प्रभाव, जिनमें कुछ गंभीर दुष्प्रभाव भी शामिल हैं, वे बढ़ जाते हैं। ऐसे दुष्प्रभाव उस समय भी विकसित हो सकते हैं जब लोग ऐसी खुराक लेते हैं, जिसके कारण पहले कोई दुष्प्रभाव नहीं होता था। दवाओं को रोकने की आवश्यकता पड़ सकती है या उनकी खुराक कम करके और अधिक सावधानी से उनका इस्तेमाल करना पड़ सकता है। कुछ उदाहरणों में ओपिओइड्स तथा चिंता और अनिद्रा का उपचार करने के लिए प्रयुक्त कुछ दवाएं शामिल हैं।

बिलीरुबिन शरीर का एक महत्वपूर्ण अपशिष्ट उत्पाद है जिसे लिवर द्वारा प्रोसेस किया तथा हटाया जाता है। यदि लिवर द्वारा बिलीरुबिन को पर्याप्त शीघ्रता से नहीं हटाया जा सकता है, तो यह रक्त में संचित हो जाता है तथा त्वचा में जमा हो जाता है। परिणाम पीलिया होता है (आंख तथा त्वचा का पीला होना)।

लिवर के भीतर, बाइल छोटे चैनलों (बाइल डक्ट्स) में मूव करता है जो बड़े डक्ट्स से जुड़ जाते हैं। अंतत: ये बड़े डक्ट्स लिवर से बाहर निकल जाते हैं तथा पित्ताशय (जिसमें बाइल को स्टोर किया जाता है) या छोटी आंत से जुड़ जाते हैं। बाइल द्वारा आंतों में फैट्स के अवशोषण को आसान बनाया जाता है तथा यह विषाक्त तथा अपशिष्ट तत्वों को आंत में वहन करके ले जाते हैं तथा इस तरह से उनको मल के माध्यम से बाहर निकाल दिया जाता है। जब स्कार ऊतकों द्वारा बाइल डक्ट्स के माध्यम से बाइल फ़्लो को अवरूद्ध कर दिया जाता है, जिसमें फैट-सोल्युबल विटामिन (A, D, E तथा K) को अच्छे से अवशोषित नहीं किया जाता है। इसके अलावा, शरीर से कम विषाक्तताओं तथा अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से बाहर निकाला जाता है।

सामान्य रूप से, बाइल (बाइल सॉल्ट्स) की बड़ी मात्रा को आंत से रक्त की धारा में पुन: अवशोषित कर लिया जाता है और फिर से इसे लिवर में भेज दिया जाता है। लिवर बाइल साल्ट को एक्सट्रैक्ट करता है और उनका फिर से इस्तेमाल करता है। लेकिन, सिरोसिस में, लिवर सामान्य रूप से बाइल साल्ट को एक्सट्रैक्ट नहीं करता है। परिणामस्वरूप, लिवर उतना पित्त का उत्पादन नहीं कर पाता है, जिससे पाचन और विषाक्त पदार्थों और अपशिष्ट उत्पादों के निष्कासन और फैट और फैट में सॉल्युबल विटामिन के अवशोषण में बाधा आती है।

लिवर कार्य के साथ हस्तक्षेप करने के साथ-साथ, स्कार ऊतक पोर्टल शिरा (जो आंत से लिवर में रक्त ले जाती है) से लिवर में रक्त के प्रवाह को बाधित कर सकते हैं। इस अवरोध के कारण पोर्टल शिरा में उच्च रक्तचाप हो जाता है (पोर्टल हाइपरटेंशन)। पोर्टल हाइपरटेंशन से पोर्टल शिरा से जुड़ी शिराओं में हाई ब्लड प्रेशर हो जाता है, जिसमें पेट, इसोफ़ेगस, स्प्लीन और मलाशय की शिराएं शामिल हैं।

घाव बढ़ने के साथ, लिवर सिकुड़ जाता है और कठोर हो जाता है।

क्या आप जानते हैं...

  • सिरोसिस के कारण त्वचा तथा आँखें पीली हो सकती हैं।

सिरोसिस के कारण

अमेरिका तथा अन्य विकसित देशों में सिरोसिस के सर्वाधिक आम कारण निम्नलिखित हैं

मेटाबोलिक डिस्फ़ंक्शन-एसोसिएटेड स्टेटोहैपेटाइटिस (MASH) आम तौर पर उन लोगों में होता है जो अधिक वज़न वाले होते हैं, डायबिटीज या प्रीडायबिटीज और/या हाई कोलेस्ट्रोल वाले होते हैं।

कोई विकार, दवा या विषाक्तता जिसके कारण फ़ाइब्रोसिस हो सकता है (तालिका कुछ दशाएं और दवाएं जो लिवर फ़ाइब्रोसिस का कारण बन सकती हैं देखें) से सिरोसिस हो सकता है। कुछ खास कारणों में कुछ वंशानुगत मेटाबोलिक विकार जैसे आयरन ओवरलोड (हीमोक्रोमेटोसिस), कॉपर ओवरलोड (विल्सन रोग), और अल्फ़ा-1 एंटीट्रिप्सिन की कमी तथा ऐसे विकार जो पित्त की नालियों को क्षति पहुंचाते हैं, जैसे प्राइमरी बाइलरी कोलेंजाइटिस (PBC) और प्राइमरी स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस (PSC) शामिल हैं।

एशिया तथा अफ्रीका के अनेक हिस्सों में, अक्सर सिरोसिस की उत्पत्ति का कारण होता है

सिरोसिस के लक्षण

सिरोसिस से पीड़ित अनेक लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं और वे कई वर्षों तक ठीक नज़र आते हैं। लगभग एक तिहाई में कभी भी लक्षण विकसित नहीं होते हैं।

अन्य थकान महसूस करते हैं और आमतौर पर अस्वस्थ रहते हैं, उनको भूख नहीं लगती और उनका वज़न कम हो जाता है:

  • उनके फिंगरटिप्स बड़े हो जाते हैं (जिसे क्लबिंग कहा जाता है)।

  • पीलिया हो सकता है, जिसके कारण त्वचा और आंख का सफेद हिस्सा पीला नज़र आने लगता है और पेशाब कोला की तरह डार्क नज़र आता है।

  • जब फैट तथा फैट-सोल्युबल विटामिन का उचित अवशोषण नहीं होत है, तो मल हल्के रंग की, नरम, बल्की, तैलीय, और आमतौर पर बदबूदार होती है (जिसे स्टीटोरिया कहा जाता है)।

अनेक लोग कुपोषित होते हैं और उनका वजन कम हो जाता है क्योंकि उनको भूख नहीं लगती और क्योंकि फैट्स तथा विटामिन को खराब अवशोषण होता है। त्वचा में छोटी रक्त वाहिकाओं से रक्तस्राव के कारण लोगों को छोटे डॉट्स या बड़े छींटों जैसे लाल बैंगनी दाने हो सकते हैं।

यदि लिवर की कार्यप्रणाली लंबे समय से खराब है, तो लोगों को पूरे शरीर में खुजली हो सकती है।

यदि सिरोसिस, अल्कोहल के क्रोनिक उपयोग के कारण होता है या लोगों को क्रोनिक लिवर विकार है, तो अन्य लक्षण भी विकसित हो सकते हैं:

  • मांसपेशियों में कमजोरी पैदा हो जाती है (एट्रॉफी)।

  • हथेली लाल हो जाती है (जिसे पामर एरिथेमा कहा जाता है)।

  • हाथ की कंडराएं सिकुड़ जाती हैं, जिसके कारण उंगलियां मुड़ जाती हैं (जिसे डुपिट्रान कंट्रैक्चर कहा जाता है)।

  • त्वचा पर छोटी मकड़ी जैसी रक्त वाहिकाएं विकसित हो जाती हैं (स्पाइडर एंजियोमास)।

  • गालों में लार ग्रंथियां बड़ी हो जाती हैं।

  • मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड के बाहर की तंत्रिकाएं (परिधीय तंत्रिकाएं) दुष्क्रिया करने लगती हैं (जिसे परीधीय न्यूरोपैथी कहा जाता है)।

  • पुरूषों में स्तन बड़े हो सकते हैं (गाइनेकोमैस्टिया) और वृषणकोष सिकुड़ (टेस्टीकुलर एट्रॉफी) सकते हैं, क्योंकि क्षतिग्रस्त लिवर एस्ट्रोजन (महिला हार्मोन) को सामान्य तरीके से तोड़ नहीं पाता है। बगल (कांख) से बाल कम हो जाते हैं।

सिरोसिस की जटिलताएं

उन्नत सिरोसिस के कारण अतिरिक्त समस्याएं हो सकती हैं।

पोर्टल हाइपरटेंशन

पोर्टल हाइपरटेंशन (पोर्टल शिरा में हाई ब्लड प्रेशर), सर्वाधिक गंभीर जटिलता होती है। जब इसके कारण इससे जुड़ी शिराओं में रक्त वापस जाने लगता है, तो ये शिराएं बड़ी हो सकती है और मुड़ सकती हैं (जिसे वेरिकोज़ शिरा कहा जाता है)। वेरिकोज़ वेन इसोफ़ेगस के निचले सिर में विकसित हो सकती हैं (जिसे इसोफ़ेजियल वेरिसेस कहा जाता है), पेट में (गैस्ट्रिक वेरिसेस), या मलाशय (जिसे रेक्टल वेरिसेस कहा जाता है)। वेरिकोज़ वेन कमज़ोर होती हैं और इनमें रक्तस्राव की संभावना रहती है। यदि इसोफ़ेजियल या गैस्ट्रिक वेरिसेस में रक्तस्राव होता है, तो लोगों को बड़ी मात्रा में रक्त की उलटी हो सकती है (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रक्तस्राव देखें)। यदि रक्तस्राव धीमा तथा निरन्तर होता रहता है, तो इससे एनीमिया हो सकता है। यदि रक्तस्राव तेजी से और अधिक गंभीर है, तो इसके कारण शॉक और मौत हो सकती है।

पल्मोनरी हाइपरटेँशन

पोर्टल हाइपरटेंशन से फेफड़ों की धमनियों में उच्च रक्तचाप हो सकता है (जिसे पोर्टोपल्मोनरी हाइपरटेंशन कहा जाता है)। इस समस्या के कारण हृदय की विफलता के लक्षण हो सकते हैं, जैसे सांस लेने में कठिनाई, खासतौर पर लेटते समय, और थकान।

एसाइटिस

पोर्टल हाइपरटेंशन के साथ लिवर कार्य की विकृति से पेट में तरल का संचय हो जाता है (एसाइटिस)। परिणामस्वरूप, पेट फूल जाता है और सख्त महसूस हो सकता है। साथ ही, पेट के भीतर का तरल संक्रमित हो सकता है (जिसे स्पानटेनेइयस बैक्टीरियल पेरिटोनाइटिस कहा जाता है)।

फैट्स और विटामिन का खराब अवशोषण

समय बीतने के साथ-साथ, फैट्स, खास तौर पर फैट-सोल्युबल विटामिन के खराब अवशोषण से, अनेक समस्याएं पैदा हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, जब विटामिन D का खराब अवशोषण होता है, ऑस्टियोपोरोसिस विकसित हो सकता है। जब विटामिन K (जिससे रक्त की क्लॉटिंग में मदद मिलती है) का खराब अवशोषण होता है, तो लोगों में आसानी से रक्तस्राव हो सकता है।

रक्तस्राव संबंधी अनियमितताएं

सिरोसिस के कारण अन्य समस्याएं पैदा होती हैं जिसके कारण रक्त के थक्के बनने में समस्याएं पैदा होती हैं (विकृत रक्त क्लॉटिंग)। कुछ समस्याओं के कारण लोगों में रक्तस्राव की संभावना बढ़ जाती है। उदाहरण के लिए स्प्लीन बड़ी हो सकती है। बढ़ी हुई स्प्लीन रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स को ट्रैप कर सकती है। इस प्रकार, रक्त की धारा में प्लेटलेट्स (जिनसे रक्त के थक्के बनने में मदद मिलती है) कम हो जाते हैं। साथ ही, क्षतिग्रस्त लिवर उन प्रोटीन की उत्पत्ति करने में कम सक्षम होता है जिससे रक्त के थक्के बनने होते है (क्लॉटिंग फैक्टर्स)।

लेकिन, लिवर की कुछ समस्याओं के कारण रक्त के थक्के बनने में बढ़ोतरी होती है। उदाहरण के लिए, क्षतिग्रस्त लिवर द्वारा ऐसे तत्वों को पैदा करने की कम संभावना होती है, जो रक्त की बहुत अधिक क्लॉटिंग की रोकथाम करते हैं। इस प्रकार, रक्त की क्लॉटिंग हो सकती है, विशेष रूप से लिवर में प्रवेश करने वाली रक्त वाहिकाओं में (पोर्टल शिरा या स्प्लेनिक शिरा)।

संक्रमण का बढ़ा हुआ जोखिम

सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो सकती है (जिसे ल्यूकोपीनिया कहा जाता है) क्योंकि बढ़ी हुई स्प्लीन उन्हें ट्रैप कर लेती है। जब सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या कम होती है और संक्रमणों का सामना करने वाले प्रोटीन का सिंथेसिस लिवर द्वारा कम हो जाता है, तो संक्रमणों का जोखिम बढ़ जाता है।

गुर्दे की विफलता

लिवर की विफलता के परिणामस्वरूप किडनी की विफलता हो जाती है—एक दशा जिसे हैपेटोरेनल सिंड्रोम कहा जाता है। इस सिंड्रोम में, शरीर में पेशाब की कम मात्रा का उत्पादन होता है और कम मात्रा में पेशाब शरीर से बाहर निकलता है, जिसके परिणामस्वरूप शरीर में विषाक्त तत्व एकत्रित हो जाते हैं। अंत में, हैपेटोरेनल सिंड्रोम से पीड़ित लोगों को सांस लेने में कठिनाई होती है। किडनी की समस्या इतनी गंभीर हो सकती है जिसके लिए डायलिसिस की ज़रूरत पड़ सकती है।

मस्तिष्क के कार्य का खराब होना

लिवर की विफलता के कारण मस्तिष्क कार्य खराब हो सकता है (जिसे हैपेटिक एन्सेफैलोपैथी कहा जाता है) क्योंकि क्षतिग्रस्त लिवर रक्त से अब विषाक्त तत्वों को बाहर निकालने में सक्षम नहीं होता है। फिर ये विषैले पदार्थ खून के बहाव में बहने लगते हैं और मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।

लिवर का कैंसर

सिरोसिस से पीड़ित लोगों में लिवर कैंसर (हैपेटोसेलुलर कार्सिनोमा, या हैपेटोमा) विकसित हो सकता है। जब सिरोसिस विकसित हो जाता है तो लिवर कैंसर निगरानी, जिसे सतर्क रहना भी कहा जाता है (समय-समय पर किए जाने वाला आकलन), की ज़रूरत होती है, क्योंकि समय रहते लिवर के कैंसर के पता लगाने से उसे ठीक करने के लिए उपचार किया जाना संभव हो जाता है।

टेबल

सिरोसिस का निदान

  • रक्त परीक्षण, जिसमें लिवर परीक्षण शामिल होते हैं

  • कभी-कभी इमेजिंग परीक्षण (उदाहरण के लिए अल्ट्रासाउंड)

  • कभी-कभी लिवर बायोप्सी

आमतौर पर डॉक्टर को व्यक्ति के लक्षणों, शारीरिक जांच के परिणामों, तथा सिरोसिस के लिए जोखिम कारकों जैसे अल्कोहल के क्रोनिक उपयोग के इतिहास के आधार पर सिरोसिस का संदेह होता है। अक्सर शारीरिक जांच के दौरान, डॉक्टर ऐसी समस्याओं को देख पाता है जो खास तौर पर सिरोसिस से उत्पन्न होती हैं, जैसे बढ़ी हुई स्प्लीन, फूला हुआ पेट (जो एसाइटिस का संकेत देता है), पीलिया, चकत्ता, जो त्वचा में रक्तस्राव की ओर इशारा करता है। डॉक्टर दूसरी दशाओं की भी जांच करते हैं जिनकी कारण ऐसे ही लक्षण हो सकते हैं।

प्रयोगशाला परीक्षण

लिवर का मूल्यांकन करने के लिए रक्त परीक्षण किये जाते हैं। अक्सर परिणाम सामान्य होते हैं क्योंकि ये परीक्षण सापेक्षिक रूप से असंवेदनशील होते हैं तथा क्षति के बावजूद लिवर लंबे समय तक काम कर सकता है। यदि लिवर का कार्य 80% तक कम भी हो जाता है, तो भी लिवर द्वारा अनिवार्य कार्यों को किया जा सकता है। एनीमिया, निम्न प्लेटलेट गणना, तथा अन्य रक्त असामान्यताओं की जांच करने के लिए पूर्ण रक्त गणना (complete blood count, CBC) की जाती है। हैपेटाइटिस तथा अन्य संभावित कारणों की जांच करने के लिए रक्त परीक्षण किए जाते हैं।

लिवर इमेजिंग परीक्षण

इमेजिंग परीक्षणों से उन्नत सिरोसिस का पता लगाया जा सता है, लेकिन प्रारम्भिक सिरोसिस की अक्सर पहचान नहीं हो पाती है।

  • अल्ट्रासोनोग्राफ़ी, कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT), या मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) में यह देखा जा सकता है कि क्या लिवर सिकुड़ गया है या इसकी अवसंरचना असामान्य है, जो सिरोसिस का संकेत हो सकता है। इस परीक्षणों से पोर्टल हाइपरटेंशन तथा एसाइटिस का पता लग सकता है।

  • विशिष्ट इमेजिंग परीक्षणों (ट्रांसिएंट इलास्टोग्राफ़ी, मैग्नेटिक रीसोनेंस इलास्टोग्राफ़ी, तथा अकुस्टिक रेडिएशन फोर्स इम्प्लस इमेजिंग) से प्रारम्भिक अवस्था में सिरोसिस का पता लगाने में सहायता मिल सकती है।

लिवर बायोप्सी

यदि निदान अभी भी अनिश्चित है, तो लिवर बायोप्सी (माइक्रोस्कोप में जांच करने के लिए ऊतक का नमूना निकालना) की जाती है ताकि इसकी पुष्टि की जा सके। बायोप्सी तथा कभी-कभी रक्त परीक्षणों से भी डॉक्टर को सिरोसिस के कारण को तय करने में मदद मिलती है।

निगरानी

यदि सिरोसिस की पुष्टि हो जाती है, तो रक्त परीक्षण के साथ या उसके बिना लिवर ट्यूमर का संकेत देने वाली अल्ट्रासोनोग्राफ़ी (अल्फा फेटोप्रोटीन) को लिवर कैंसर की जांच करने के लिए हर 6 महीने पर किया जाता है। यदि अल्ट्रासोनोग्राफ़ी में ऐसी असामान्यताएं नज़र आती हैं जिनसे कैंसर का पता लगता है, तो डॉक्टर कंट्रास्ट एजेंट का इंजेक्शन लगा कर मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) या CT करते हैं।

जब सिरोसिस की पुष्टि हो जाती है, तो वेरिसेस की जांच के लिए ऊपरी पाचन तंत्र की एंडोस्कोपी (एक लचीली देखने वाली ट्यूब डालना) की आवश्यकता पड़ सकती है, खासकर जब रक्त और इमेजिंग परीक्षणों में पोर्टल हाइपरटेंशन के संकेत मिलते हैं और ऐसे रोगी का पोर्टल हाइपरटेंशन दवाई से कम नहीं होता है। यह एंडोस्कोपी जांच हर 2 से 3 वर्ष में दोहराई जाती है। यदि वेरिसेस का पता लगता है, तो इसे अधिक अक्सर किया जाता है।

लिवर का आकलन करने वाले रक्त परीक्षण नियमित रूप से किए जाते हैं।

सिरोसिस का उपचार

सिरोसिस का कोई इलाज नहीं है। लिवर लगभग हमेशा स्थाई रूप से क्षतिग्रस्त हो जाता है तथा इस बात की संभावना नहीं होती कि यह सामान्य हो जाएगा।

इलाज में ये शामिल हैं

  • कारण को सही करना या उपचार करना, जैसे अल्कोहल के क्रोनिक उपयोग, दवा का प्रयोग, विषैले पदार्थ के संपर्क में आना, हीमोक्रोमेटोसिस, या क्रोनिक हैपेटाइटिस

  • जैसे-जैसे जटिलताएं विकसित होती हैं, उनका उपचार करना

  • कभी-कभी लिवर प्रत्यारोपण करना

सबसे अच्छी कार्य प्रणाली तो कारण को ठीक करके या उपचार करके सिरोसिस की प्रारम्भिक चरण पर ही रोकथाम करना होता है। कारण का उपचार करने से आमतौर पर और आगे क्षति नहीं होती तथा कभी-कभी व्यक्ति की दशा में सुधार हो जाता है।

कारणों का उपचार करना

यदि लोगों ने इससे पहले हैपेटाइटिस A और B के टीके नहीं लगवाएं हैं, तो उन्हें ये टीके लगाए जाते हैं। इन वायरसों के कारण लिवर को और अधिक होने वाली क्षति से बचाने के लिए इन टीकों को लगाया जाता है, और यह ऐसी क्षति होती है जिससे उनका सिरोसिस बदतर हो सकता है।

सिरोसिस की प्रगति की रोकथाम करने के लिए, लोगों को पूरी तरह से अल्कोहल का सेवन बन्द कर देना चाहिए, और यहां ऐसा तब भी करना चाहिए जब अल्कोहल उनकी लिवर की समस्या का मुख्य कारण नहीं है (अल्कोहल/उपचार देखें)। जब सिरोसिस रोग पहले से ही हो चुका हो, तो मध्यम मात्रा में भी अल्कोहल का सेवन करना लिवर के लिए बहुत हानिकारक होता है। यदि विदड्रावल लक्षण होते हैं, तो उनका उपचार किया जाता है।

लोगों को अपने डॉक्टर को उन सभी दवाओं की जानकारी देनी चाहिए जिनका वे सेवन करते हैं, जिसमें बिना पर्चे वाली दवाएं, जड़ी-बूटी उत्पाद, आहार अनुपूरक भी शामिल हैं क्योंकि क्षतिग्रस्त लिवर उनका प्रसंस्करण (मेटाबोलाइज़) करने में समर्थ नहीं हो सकता है। यदि लोगों को लिवर द्वारा मेटाबोलाइज़ की जाने वाली दवाओं को लेने की आवश्यकता है, तो लिवर को और अधिक क्षति होने से रोकने के लिए बहुत ही कम मात्रा में खुराकों का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही, संभवत: लोग ऐसी दवाओं का सेवन कर रहे हो सकते हैं जिनसे लिवर को क्षति हो सकती है और इस प्रकार सिरोसिस बदतर हो सकता है। जब भी संभव होता है, ऐसी दवाओं को बंद कर दिया जाता है तथा ज़रूरत होने पर, किसी दूसरी दवा को दिया जाता है।

हीमोक्रोमेटोसिस के लिए, ब्लडलेटिंग (फ़्लेबोटॉमी) सर्वश्रेष्ठ उपचार होता है। विल्सन रोग के लिए, शरीर में कॉपर को बाहर निकालने के लिए दवाई का इस्तेमाल किया जाता है।

मेटाबोलिक डिस्फ़ंक्शन-एसोसिएटेड स्टेटोहैपेटाइटिस (MASH) कहे जाने वाले फैटी लिवर रोग के लिए, वजन कम करना ही उपचार है और डायबिटीज तथा हाई कोलेस्ट्रोल को पूरी तरह से नियंत्रित किया जाना चाहिए।

क्रोनिक वायरल हैपेटाइटिस का उपचार एंटीवायरल दवाओं से किया जाता है और ऑटोइम्यून लिवर रोगों का उपचार कॉर्टिकोस्टेरॉइड या अन्य दवाओं से किया जाता है जो इम्यून तंत्र को प्रभावित करती हैं।

आमतौर पर, उन्नत सिरोसिस से पीड़ित लोगों को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन प्रत्यारोपण का प्रयोग कभी-कभी लिवर रोग के कुछ खास कारणों के उपचार के लिए तब भी किया जाता है जब लिवर सिरोसिस अभी नहीं हुआ होता है।

जटिलताओं का इलाज करना

जटिलताओं के लिए, उपचार में निम्नलिखित शामिल होते हैं

  • पेट में तरल के संचय के लिए (जब सिरोसिस उन्नत हो): आहार में सोडियम का प्रतिबंध क्योंकि अधिक सोडियम से तरल संचय अधिक हो सकता है। पेशाब की मात्रा को बढ़ाकर दवाएं अतिरिक्त तरल को बाहर निकालने में सहायता कर सकती हैं।

  • विटामिन की कमी के लिए: अनुपूरक विटामिन

  • हैपेटिक एन्सेफैलोपैथी के लिए: पेट में (मल में) विषाक्तताओं को रोकने के लिए दवाओं का तथा इन विषाक्तताओं की उत्पत्ति वाली जगह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट में बैक्टीरिया की संख्या को कम करने के लिए एंटीबायोटिक्स का उपयोग होता है

  • पाचन पथ वेरिसेस से रक्तस्राव के लिए: लिवर रक्त वाहिकाओं में ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए बीटा-ब्लॉकर्स और/या रक्तस्राव करने वाली रक्त वाहिकाओं को बंद करने के लिए इलास्टिक बैंड्स का सर्जिकल एप्लिकेशन (जिसे एंडोस्कोपिक बैंडिंग, या लिगेशन कहा जाता है)

बैंड्स को लगाने के लिए, डॉक्टर एक व्यूइंग ट्यूब (एंडोस्कोप) का प्रयोग करते हैं, जिसे मुंह के जरिए अंदर डाला जाता है। यदि बीटा-ब्लॉकर्स या बैंड लिगेशन का प्रयोग नहीं किया जा सकता है अथवा ये असफल रहता है, तो डॉक्टर निम्नलिखित में किसी एक प्रक्रिया का इस्तेमाल कर सकते हैं:

  • एंडोस्कोपिक सियानोक्राइलेट इंजेक्शन: डॉक्टर मुंह के ज़रिए पाचन तंत्र में एक एंडोस्कोप डालते हैं। एंडोस्कोप के साथ काम करते हुए, वे रक्तस्राव करने वाली शिरा में सियानोक्राइलेट (एक ग्लू जैसा तत्व) का इंजेक्शन लगाते हैं। सियानोक्राइलेट रक्त वाहिका को बंद कर देता है और रक्तस्राव बंद हो जाता है।

  • बैलून-ओक्लूडेड रेट्रोग्रेड ट्रांसवीनस ऑब्लिट्रेशन: स्थानिक रूप से एनेस्थेटिक का इंजेक्शन लगाने के बाद, डॉक्टर बड़ी शिरा की त्वचा में एक बड़ा चीरा लगाते हैं, खासतौर पर गर्दन या श्रोणि में ऐसा किया जाता है। फिर वे एक पतली, लचीली ट्यूब (कैथेटर), जिसके सिर पर डिफ्लेटेड बैलून लगा रहता है, को शिरा में डालते हैं तथा रक्तस्राव वाली जगह पर ट्यूब को लपेट दिया जाता है। रक्त का प्रवाह रोकने के लिए बैलून को फुलाया जाता है। फिर एक तत्व जो स्कार ऊतक विकसित करता है, को रक्तस्राव को अवरूद्ध करने या रोकने के लिए शिरा में या उसके समीप इंजेक्शन से लगाया जाता है।

  • ट्रांसजुगुलर इंट्राहैपेटिक पोर्टोसिस्टेमिक शंटिंग (Transjugular intrahepatic portosystemic shunting, TIPS): डॉक्टर गाइडेंस के लिए एक्स-रे का इस्तेमाल करके गर्दन की शिरा में एक कैथेटर डालते हैं, और फिर लिवर में शिराओं पर कैथेटर को थ्रेड कर देते हैं। कैथेटर का इस्तेमाल वह रास्ता (शंट) तैयार करने के लिए किया जाता है जो पोर्टल शिरा (या इसकी किसी शाखा) को सीधे किसी हैपेटिक शिरा के साथ कनेक्ट करता है, जो लिवर से शरीर की सबसे बड़ी शिरा में रक्त को ले जाता है, जो रक्त को हृदय में वापस ले जाता है। इस प्रकार, अधिकांश रक्त जो आमतौर पर लिवर में जाता है, और रि-रूट किया जाता है, ताकि लिवर को बाईपास किया जा सके। इस प्रक्रिया से पोर्टल शिरा में रक्तचाप कम हो जाता है क्योंकि हैपेटिक शिराओं में प्रेशर कम होता है। इस प्रेशर को कम करके, TIPS से पाचन पथ की शिराओं से रक्तस्राव तथा पेट में तरल के संचयन को कम किया जाता है।

लिवर प्रत्यारोपण

उपयुक्त उम्मीदवार के लिए, लिवर प्रत्यारोपण किया जा सकता है। यदि प्रत्यारोपण सफल रहता है, तो प्रत्यारोपित लिवर आमतौर पर सामान्य रूप से काम करता है, तथा सिरोसिस के लक्षण तथा लिवर विफलता अब दूर हो जानी चाहिए। ऐसे लोग जिनको उन्नत सिरोसिस या लिवर का कैंसर है, उनके लिए लिवर प्रत्यारोपण जीवनरक्षक हो सकता है। लिवर प्रत्यारोपण इस बात को ध्यान में रख कर किया जाता है कि यदि लिवर प्रत्यारोपण नहीं किया जाता है, तो लोगों के मरने की कितनी संभावना होगी।

सिरोसिस का पूर्वानुमान

सिरोसिस लगभग हमेशा स्थाई होता है तथा जब तक सिरोसिस के कारण का उपचार नहीं किया जाता है, यह प्रगतिशील हो सकता है। इस बात का पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है कि यह कितनी तेजी से प्रगति करेगा। सिरोसिस से पीड़ित लोगों के लिए भविष्य की संभावनाएं कारण, गंभीरता, अन्य लक्षणों और विकारों की मौजूदगी, तथा उपचार की प्रभाविकता पर निर्भर करती है।

अल्कोहल का हर तरह से सेवन बंद करना लिवर में और आगे स्कारिंग की रोकथाम करता है। यदि लोग अल्कोहल का सेवन जारी रखते हैं—यहां तक की छोटी मात्रा में, तो—सिरोसिस आगे बढ़ता है, जिसके कारण गंभीर जटिलताएं हो सकती हैं।

जब बड़ी जटिलता (जैसे खून की उलटी करना, पेट में तरल का संचय, या मस्तिष्क कार्य का खराब होना) हो जाती है, तो दृष्टिकोण गंभीर हो जाता है।