प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस

इनके द्वाराYedidya Saiman, MD, PhD, Lewis Katz School of Medicine, Temple University
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अग॰ २०२३

प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस प्रगतिशील स्कारिंग तथा लिवर के अंदर और बाहर पित्त नलियों के संकुचन के साथ एक सूजन होती है। अंत में, नलियां अवरूद्ध हो जाती हैं तथा फिर गायब हो जाती हैं। सिरोसिस, लिवर की विफलता, तथा कभी-कभी पित्त नली कैंसर हो जाता है।

  • लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं और इसमें थकान, खुजली का बदतर होना तथा बाद में पीलिया हो जाता है।

  • इमेजिंग से निदान की पुष्टि हो सकती है।

  • इलाज में लक्षणों से राहत दिलाने पर ध्यान दिया जाता है, लेकिन सिर्फ़ लिवर ट्रांसप्लांटेशन से ही उत्तरजीविता बढ़ सकती है।

पित्त वह तरल है जिसे लिवर द्वारा तैयार किया जाता है और यह पाचन में सहायक होता है। पित्त का परिवहन छोटी नलियों (बाइल डक्ट्स) द्वारा किया जाता है, जो पित्त को लिवर से लेकर और फिर लिवर से पित्ताशय और छोटी आंत तक ले जाती हैं। (पित्ताशय और पित्त की नली के विकार का विवरण और चित्र लिवर और पित्ताशय का अवलोकन भी देखें।)

प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस में पित्त नली में सूजन आ जाती है, जिसके परिणामस्वरूप पित्त नलियों और लिवर ऊतकों की स्कारिंग बढ़ती है, और अंतत: बहुत ही गंभीर हो जाती है (एक कंडीशन जिसे सिरोसिस कहा जाता है)। स्कार ऊतक सिकुड़ जाते हैं और बाइल डक्ट्स को अवरोधित कर देते हैं। परिणामस्वरूप, पित्त साल्ट, जो शरीर की फैट के अवशोषण में मदद करते हैं, उनका सामान्य स्राव नहीं होता है। यह विकार प्राइमरी बाइलरी कोलेंजाइटिस जैसा नज़र आता है, सिवाए कि इसमें लिवर के बाहर और साथ ही लिवर के अंदर की पित्त नलियां प्रभावित होती हैं। कारण ज्ञात नहीं है, लेकिन संभावित रूप से यह ऑटोइम्यून होता है (जब प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के ही ऊतकों को नष्ट करने लगती है)।

प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस से अक्सर युवा पुरूष प्रभावित होते हैं और इसका निदान 40 वर्ष की औसत आयु में किया जाता है। आमतौर पर यह सूजनकारी आंत रोग, विशेष रूप से अल्सरेटिव कोलाइटिस से पीड़ित लोगों में होता है। यह रोग आनुवंशिक रोग की तरह होता है, जिसका मतलब है कि इसमें जीन शामिल हो सकते हैं। ऐसे लोग जिनमें इस रोग के होने की संभावना उनमें मौजूद जीन के कारण होती है, उनमें पित्त नलियों के संक्रमण या चोट के कारण इस विकार की शुरूआत हो सकती है।

प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस के लक्षण

आमतौर पर लक्षणों की शुरुआत धीरे-धीरे होती है, जिसमें थकान तथा खुजली बदतर होती चली जाती है। पीलिया (त्वचा का पीला पड़ना और आंखों का सफेद होना) बाद में होने की संभावना होती है।

कभी-कभी पित्त नलियों की संक्रमण और बार-बार संक्रमण हो जाता है (जीवाणु कोलेंजाइटिस)। जीवाणु कोलेंजाइटिस के कारण पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होता है, पीलिया तथा बुखार हो जाता है।

क्योंकि पित्त साल्ट सामान्य रूप से स्रावित नहीं होते हैं, इसलिए लोग पर्याप्त मात्रा में फैट्स तथा फैट-सोल्युबल विटामिन (A, D, E तथा K) का अवशोषण नहीं कर पाते हैं। इस प्रकार के विकृत पित्त स्राव के कारण ऑस्टियोपोरोसिस, आसानी से खरोंच लगना तथा रक्तस्राव हो जाता है, तथा मल ग्रीस युक्त तथा बदबूदार हो जाता है (स्टीटोरिया)। प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस से पीड़ित लगभग तीन चौथाई लोगों में पित्ताशय की पथरी तथा पित्त नली पथरी पैदा हो जाती है। लिवर और स्प्लीन बढ़ सकते हैं।

जैसे-जैसे विकार आगे बढ़ता है, सिरोसिस के लक्षण विकसित हो जाते हैं। उन्नत सिरोसिस के कारण निम्नलिखित होता है:

कुछ लोगों में विकार के उन्नत होने तक और सिरोसिस के मौजूद रहने के बावजूद कोई लक्षण नहीं होते हैं। 10 वर्षों तक लक्षण दिखाई नहीं दे सकते हैं।

पित्त नली का कैंसर (कोलेंजियोकार्सिनोमा) प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस से पीड़ित लगभग 10 से 15% लोगों में विकसित हो जाता है।

आमतौर पर, प्राइमरी स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस धीरे-धीरे बढ़ते हुए लिवर की खराबी में बदल जाता है।

प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस का निदान

  • लिवर का रक्त परीक्षण

  • अल्ट्रासोनोग्राफ़ी, जिसके बाद इमेजिंग परीक्षण किए जाते हैं

इस विकार का संदेह उस समय भी होता है जब वार्षिक शारीरिक जांच या किसी असम्बद्ध कारण की वजह से लिवर परीक्षणों के परिणाम असामान्य पाए जाते हैं। फिर, सबसे पहले, खास तौर पर अल्ट्रासोनोग्राफ़ी की जाती है ताकि लिवर के बाहर पित्त नली में अवरोध की जांच की जा सके। निदान की पुष्टि करने वाले परीक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • मैग्नेटिक रीसोनेंस कोलेंजियोपैनक्रिएटोग्राफ़ी (Magnetic resonance cholangiopancreatography, MRCP): मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) का इस्तेमाल पित्त नलियों तथा अग्नाशय नली की छवियां लेने के लिए किया जाता है। इस परीक्षण से प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस की पुष्टि करने और पित्त नली के अवरोध के अन्य कारणों की संभावना को दूर करने में मदद मिलती है।

  • एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंजियोपैनक्रिएटोग्राफ़ी (Endoscopic retrograde cholangiopancreatography, ERCP): रेडियोपैक कंट्रास्ट एजेन्ट, जिसे एक्स-रे में देखा जा सकता है, उसे एंडोस्कोप के द्वारा पित्त नलियों में दिए जाने के बाद एक्स-रे किए जाते हैं (चित्र एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंजियोपैनक्रिएटोग्राफ़ी को समझना भी देखें)। MRCP की तुलना में ERCP कम वांछनीय होती है, क्योंकि ERCP ज़्यादा आक्रामक होती है और उसके लिए कंट्रास्ट एजेंट के इंजेक्शन की ज़रूरत होती है और इससे तब तक बचा जाना चाहिए जब तक कि विकार की जटिलताओं का इलाज करने की ज़रूरत न हो।

पित्त नलियों तथा लिवर ऊतकों के कैंसर की जांच करने के लिए नियमित रूप से रक्त परीक्षण तथा MRCP किए जा सकते हैं।

जब लोगों को निदान प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस से किया जाता है, तो उनकी बायोप्सी के साथ कोलोनोस्कोपी भी की जाती है, ताकि यह तय किया जा सके कि क्या उनको सूजनकारी पित्त रोग भी है।

प्राथमिक स्क्लेरोसिंग कोलेंजाइटिस का उपचार

  • लक्षणों और जटिलताओं का उपचार

  • कभी-कभी लिवर प्रत्यारोपण

यदि लोगों को कोई लक्षण नहीं होते हैं, तो किसी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन, कम से कम वर्ष में दो बार, उनको शारीरिक जांच और रक्त परीक्षण करवाने चाहिए ताकि विकार की प्रगति की निगरानी की जा सके।

उर्सोडियोक्सीकोलिक एसिड तथा कोलेस्टाइरामीन दवाओं के प्रयोग से खुजली में राहत मिल सकती है। बार-बार होने वाले जीवाणु कोलेंजाइटिस का उपचार एंटीबायोटिक्स द्वारा किया जाता है। अवरूद्ध नलियों को चौड़ा करने (विस्तारित) के लिए ERCP किया जाता है। कभी-कभी नलियों को खुला रखने के लिए ट्यूब (स्टेंट) भी अस्थाई रूप से डाले जाते हैं।

लिवर ट्रांसप्लांटेशन ही एकमात्र उपचार है जिससे उत्तरजीविता को बढ़ाया जा सकता है और इससे उपचार संभव हो सकता है। सिरोसिस और संबंधित गंभीर जटिलताओं से पीड़ित लोगों में लिवर ट्रांसप्लांटेशन की ज़रूरत हो सकती है, ऐसे लोगों में हो सकती है जिनको पुनरावृत्त जीवाणु कोलेंजाइटिस है, या ऐसे लोग जिनकी पित्त की नली या लिवर में कैंसर है।

यदि पित्त नलियों का कैंसर विकसित हो जाता है, तथा कैंसर को हटाने के लिए सर्जरी संभव नहीं है, तो एंडोस्कोप के ज़रिए स्टेंट डाले जा सकते हैं तथा उन पित्त नलियों में डाला जा सकते जो कैंसर के कारण अवरूद्ध हो गई हैं। ये स्टेंट नलियों को खोल देते हैं, पीलिया में सुधार कर सकते हैं, और बार-बार होने वाले संक्रमणों की रोकथाम कर सकते हैं। यदि पित्त नली का कैंसर लिवर के निचले हिस्से तक सीमित है (जहां पर लिवर के बार के पित्त की नलियां, लिवर के अंदर की पित्त की नलियों से जुड़ती हैं), तो लिवर ट्रांसप्लांट एक उपचारात्मक विकल्प हो सकता है।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी भाषा के संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इन संसाधनों की सामग्री के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।

  1. इंटरनेशनल फाउंडेशन फ़ॉर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर्स (IFFGD): एक विश्वसनीय स्रोत जो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार से पीड़ित लोगों की अपने स्वास्थ्य की देखरेख करने में सहायता करता है।

  2. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डायबिटीज एण्ड डाइजेस्टिव एण्ड किडनी डिजीज़ (NIDDK): पाचन प्रणाली किस तरह से काम करती है, से संबंधित व्यापक जानकारी तथा संबंधित विषयों जैसे शोध और उपचार विकल्पों के लिंक।

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