सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (SLE)

(डिसेमिनेटेड ल्यूपस एरिथेमेटोसस या ल्यूपस)

इनके द्वाराKinanah Yaseen, MD, Cleveland Clinic
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया नव॰ २०२४

सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस, एक क्रोनिक सिस्टेमिक रूमैटिक रोग है, जिसमें जोड़, किडनियां, त्वचा, श्लेष्मा झिल्लियां, और रक्त वाहिकाएं प्रभावित हो सकती हैं।

  • जोड़ों, तंत्रिका तंत्र, खून, त्वचा, किडनियों, गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल तंत्र, फेफड़े, और अन्य ऊतकों और अंगों में समस्याएँ विकसित हो सकती हैं।

  • जांच के लिए खून के परीक्षण और कभी-कभी दूसरे परीक्षण किए जाते हैं।

  • ल्यूपस से पीड़ित सभी लोगों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन की आवश्यकता होती है, और ऐसे लोगों को, जिन्हें ल्यूपस क्षति पहुंचाना जारी रखता है (सक्रिय ल्यूपस), कॉर्टिकोस्टेरॉइड और वे दूसरी दवाइयां लेने की आवश्यकता होती है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाती हैं।

महिलाओं, आमतौर पर बच्चे को जन्म देने की उम्र की महिलाओं, को पुरुषों की तुलना में सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (ल्यूपस) विकसित होने का अधिक जोखिम होता है। हालांकि, बच्चे (ज़्यादातर लड़कियां), वृद्ध पुरुष और महिलाएं, और यहां तक कि नवजात शिशु भी प्रभावित हो सकते हैं। ल्यूपस संसार के सभी भागों में होता है और श्वेत लोगों की तुलना में अश्वेत लोगों और एशियाई लोगों में अधिक आम और गंभीर होता है।

ल्यूपस का कारण आमतौर पर ज्ञात नहीं है, लेकिन इसे ऑटोइम्यून विकार माना जाता है। एक ऑटोइम्यून विकार, जिसमें शरीर द्वारा बनाई जाने वाली एंटीबॉडीज़ या कोशिकाएं शरीर के अपने ऊतकों पर ही हमला करती हैं। कभी-कभी, कुछ खास दवाइयों (जैसे कि हाइड्रालाज़ाइन और प्रोकैनामाइड, जिनका उपयोग हृदय के रोगों के उपचार में किया जाता है, और आइसोनियाज़िड, जिसका उपयोग ट्यूबरक्लोसिस के उपचार में किया जाता है) के उपयोग के कारण ल्यूपस हो सकता है। दवाइयों के कारण हुआ ल्यूपस, आमतौर पर दवाई बंद करने पर चला जाता है।

जब ल्यूपस सक्रिय रूप से लक्षण उत्पन्न करता है, तो इसे फ़्लेयर-अप के रूप में जाना जाता है। ल्यूपस के दौरे, धूप के संपर्क में आने पर, संक्रमण या सर्जरी होने पर या गर्भावस्था के दौरान पड़ सकते हैं।

क्यूटेनियस ल्यूपस

ल्यूपस के कुछ रूप मुख्य रूप से त्वचा को प्रभावित करते हैं।

डिस्कॉइड ल्यूपस एरिथेमेटोसस (DLE) ल्यूपस का वह रूप है, जो केवल त्वचा को प्रभावित करता है।

DLE में, उठे हुए, गोल, लाल चकत्ते हो जाते हैं, कभी-कभी बढ़ने पर प्रभावित क्षेत्र में खरोंचें होने और बाल गिरने के साथ-साथ त्वचा की हानि होती है। प्रकाश के संपर्क में रहने वाले त्वचा के क्षेत्रों जैसे चेहरा, खोपड़ी, और कानों पर चकत्तों के समूह होते हैं। कभी-कभी चकत्ते या खरोंच म्यूकस झिल्लियों को भी प्रभावित करते हैं, विशेषकर मुंह की झिल्लियों को।

DLE से पीड़ित कुछ लोगों में सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस के लक्षण भी विकसित हो जाते है, जैसे कि जोड़, किडनी और मस्तिष्क की समस्याएं।

सबएक्यूट क्यूटेनियस ल्यूपस एरिथेमेटोसस (SCLE) ल्यूपस का ऐसा रूप है, जो ज्यादातर त्वचा को प्रभावित करता है।

SCLE में, विभिन्न प्रकार के, व्यापक चकत्ते होते हैं। ये चकत्ते आ सकते हैं और जा सकते हैं और धूप के संपर्क में आने से बदतर हो सकते हैं। बाहों, चेहरे, और धड़ पर लाल और छल्ले जैसे आकार वाले या सोरियसिस-जैसे धब्बे बन सकते हैं।

SCLE, DLE से अलग होता है क्योंकि SCLE दुर्लभ रूप से ही खरोंचे पैदा करता है।

SCLE से पीड़ित कुछ लोगों में सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस विकसित हो सकता है।

ल्यूपस के लक्षण

ल्यूपस के लक्षण अलग-अलग लोगों में अलग-अलग होते हैं। लक्षण एकदम से बुखार से शुरू हो सकते हैं, जो अचानक हुए संक्रमण के जैसे लगते हैं। या लक्षण कई महीनों या सालों में धीरे-धीरे उत्पन्न होते हैं और बीच-बीच (जिसे फ्लेयर-अप कहा जाता है) में बुखार, अच्छा न लगना या नीचे बताए गए कोई भी लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं और इनके बीच में ऐसा समय भी रहता है, जब लक्षण मौजूद नहीं होते हैं या कम से कम होते हैं। ल्यूपस से पीड़ित अधिकांश लोगों में मुख्यतः त्वचा और जोड़ों को प्रभावित करने वाले हल्के लक्षण होते हैं। हालांकि, ये लक्षण किसी भी अंग तंत्र को प्रभावित कर सकते हैं।

जोड़ों की समस्याएँ

जोड़ों के लक्षण, जिनमें बीच-बीच में जोड़ों में होने वाले दर्द (अर्थ्रेल्जिया) से लेकर कई जोड़ों में अचानक होने वाली सूजन (एक्यूट पॉलिअर्थराइटिस), लगभग 90% लोगों को होते हैं और अन्य लक्षणों के उभरने से पहले कई सालों तक बने रहते हैं। लंबे समय तक चलने वाले रोग में, जोड़ों में ढीलापन और वे विकृति आ सकती है, जिसे जैकौड अर्थराइटिस या जैकौड अर्थ्रोपैथी कहा जाता है, लेकिन ऐसा होना दुर्लभ है। हालांकि, अधिकांश पॉलिअर्थराइटिस रुक-रुककर होता है और आमतौर पर जोड़ों को नुकसान नहीं पहुंचाता।

त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली की समस्याएँ

त्वचा की समस्याओं में पूरी नाक और पूरे गालों पर उभरे हुए, लाल चकत्ते (इन्हें मालार रैश या बटरफ्लाई रैश कहा जाता है), पतली त्वचा के उभार या पैच, और चेहरे और गर्दन, ऊपरी छाती और कोहनी के खुले हुए भागों पर सपाट या उभरे हुए लाल क्षेत्र शामिल होते हैं। फफोले और त्वचा पर होने वाले छाले (घाव) कम ही मामलों में होते हैं, लेकिन छाले अक्सर श्लेष्मा झिल्ली पर, ख़ासतौर पर मुंह के अंदर ऊपरी भाग में, गाल के अंदर, मसूड़ों पर या नाक के अंदर उत्पन्न होते हैं।

सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (बटरफ्लाई रैश)
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यह उभरा हुआ, हमेशा बने रहने वाला लाल चकत्ता, चेहरे की धूप के संपर्क में आने वाली त्वचा पर विकसित होता है। इस बटरफ़्लाई पैटर्न में नाक का ब्रिज, गाल और भौहों के ऊपर की धूप के संपर्क में रहने वाली त्वचा शामिल होती है। महत्वपूर्ण बात यह है कि नाक के साइड की त्वचा की तहें इससे प्रभावित नहीं होती हैं।
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फ़्लेयर-अप के दौरान पूरे सिर से या सिर के कुछ हिस्सों से बालों का झड़ने (एलोपेसिया) की समस्या हो सकती है।

हथेलियों की साइड में और अंगुलियों के ऊपरी हिस्से पर लाल चकत्ते बन जाते हैं, नाखूनों पर लालिमा और सूजन आ जाती है और अंगुलियों की अंदरूनी सतह पर अंगुलियों के जोड़ों में लाल बैंगनी धब्बे उत्पन्न हो जाते हैं। रक्त में प्लेटलेट्स की कमी के कारण, त्वचा में रक्तस्राव होने पर बैंगनी धब्बे (पर्प्यूरा) बन सकते हैं।

ल्यूपस से पीड़ित कुछ लोगों में, खास तौर पर गोरी त्वचा वाले लोगों में, धूप में रहने (फ़ोटोसेंसिटिविटी) के कारण, लंबे समय तक बने रहने वाले चकत्ते उत्पन्न हो जाते हैं।

ल्यूपस से पीड़ित जिन लोगों को रेनॉड सिंड्रोम होता है, उनकी हाथों और पैरों की अंगुलियाँ सर्दी में पीली या नीली पड़ जाती हैं।

फेफड़ों की समस्या

ल्यूपस से पीड़ित लोगों को अक्सर गहरी सांस लेने पर दर्द महसूस होता है। यह दर्द फेफड़ों के चारों ओर की थैली में बार-बार होने वाली सूजन (प्लूरिसी) के कारण होता है, जिसमें इस थैली के अंदर फ़्लूड (इफ़्यूज़न) हो भी सकता है और नहीं भी।

फेफड़ों में जलन (ल्यूपस न्यूमोनाइटिस), जिसमें सांस फूलने लगती है, बहुत कम मामलों में होती है, लेकिन फेफड़ों की कार्यक्षमता में हल्की फुल्की असामान्यता आना सामान्य होता है।

फेफड़ों में जानलेवा रक्तस्राव बहुत ही कम मामलों में होता है। रक्त के थक्कों के कारण फेफड़ों की धमनियों में ब्लॉकेज (थ्रॉम्बॉसिस) भी हो सकता है।

हृदय की समस्याएं

ल्यूपस से पीड़ित लोगों में हृदय को घेरे रहने वाले कोश में जलन होने के कारण छाती में दर्द हो सकता है (पेरिकार्डाइटिस)। हृदय पर होने वाले ज़्यादा गंभीर लेकिन दुर्लभ प्रभाव हैं, कोरोनरी धमनी की दीवारों पर जलन होना (कोरोनरी आर्टरी वैस्कुलाइटिस), जिसके कारण एनजाइना हो सकता है और हृदय की मांसपेशी में जलन होना (मायोकार्डाइटिस), जिसके कारण हृदयाघात हो सकता है। बहुत कम मामलों में हृदय के वाल्व भी इनसे प्रभावित हो सकते हैं और उन्हें सर्जरी से ठीक करना पड़ सकता है। लोगों को कोरोनरी धमनी रोग का जोखिम ज़्यादा होता है।

अगर किसी नवजात शिशु की माँ को ल्यूपस है और उसमें एक खास तरह की एंटीबॉडी (एंटी-Ro/SSA एंटीबॉडी) है, तो वह हार्ट ब्लॉक की समस्या के साथ जन्म ले सकता है।

लसीका ग्रंथि और स्प्लीन की समस्याएँ

लसीका ग्रंथियों का व्यापक रूप से बड़ा हो जाना आम बात है, खास तौर पर बच्चों, युवा वयस्कों और सभी उम्र के अफ़्रीकी अमेरिकी लोगों में।

स्प्लीन का बढ़ना (स्प्लेनोमेगाली) हो सकता है।

तंत्रिका तंत्र की समस्याएँ

मस्तिष्क के प्रभावित होने पर (न्यूरोसाइकिएट्रिक ल्यूपस) सिरदर्द, सोचने की क्षमता में थोड़ी कमी, व्यक्तित्व में बदलाव, आघात, सीज़र्स, गंभीर मानसिक विकार (साइकोसिस) हो सकते हैं, या ऐसी स्थिति हो सकती है, जिसमें मस्तिष्क में कई शारीरिक बदलाव आ सकते हैं।

स्पाइनल कॉर्ड या शरीर के किसी भी हिस्से की तंत्रिकाएँ भी क्षतिग्रस्त हो सकती हैं।

किडनी की समस्याएं

किडनी के प्रभावित होने की संभावना कम होती है और उसके प्रभावित होने पर या तो कोई लक्षण नहीं दिखते हैं या हो सकता है कि लक्षण बढ़ते जाएँ और जानलेवा हो जाएं। लोगों की किडनी खराब हो सकती हैं और उन्हें डायलिसिस की ज़रूरत पड़ सकती है। किडनियां किसी भी समय प्रभावित हो सकती हैं और हो सकता है कि ल्यूपस (जिसे ल्यूपस नेफ़्राइटिस कहा जाता है) से प्रभावित होने वाला वह एकमात्र अंग हो।

किडनी के खराब होने के कारण आम तौर पर हाई ब्लड प्रेशर हो जाता है और पेशाब में प्रोटीन आने लगता है, जिसके कारण पैरों में सूजन (एडिमा) आ जाती है।

रक्त की समस्याएँ

लाल रक्त कोशिकाओं, श्वेत रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स की संख्या में कमी आ सकती है। प्लेटलेट्स रक्त का थक्का बनाने में सहायक होती हैं, इसलिए इनकी संख्या में कमी आने पर, रक्तस्राव हो सकता है।

इसके साथ ही, और अन्य कारणों से, रक्त बहुत आसानी से क्लॉट हो सकता है, जो ऐसी समस्याओं के लिए जिम्मेदार होता है, जो अन्य अंगों को प्रभावित कर सकती हैं (जैसे कि आघात और फेफड़ों में ब्लड क्लॉट या बार-बार गर्भपात)।

गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल ट्रैक्ट की समस्याएँ

लोगों को मतली, दस्त और पेट की अन्य समस्याएँ हो सकती हैं। इन लक्षणों का उभरना, ल्यूपस के दौरे की पूर्व-चेतावनी हो सकता है।

गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल ट्रैक्ट के कई हिस्सों में रक्त की आपूर्ति बाधित होने के कारण पेट में तेज़ दर्द, लिवर या पैन्क्रियाज़ में खराबी (पैन्क्रियाटाइटिस) या गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल ट्रैक्ट में ब्लॉकेज या छेद (छिद्रण) हो सकता है।

गर्भधारण की समस्याएँ

गर्भवती महिलाओं में बार-बार, देरी से गर्भपात होने और मृतजन्म का सामान्य से अधिक जोखिम होता है। गर्भावस्था के दौरान फ्लेयर-अप आम होते हैं और ख़ासतौर पर प्रसव के तुरंत बाद (गर्भावस्था में सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस भी देखें)।

डॉक्टर उन महिलाओं को गर्भ धारण नहीं करने की सलाह देते हैं, जिनका ल्यूपस पिछले 6 से 12 महीनों में नियंत्रित नहीं हुआ हो।

ल्यूपस का निदान

  • डॉक्टर की जांच

  • प्रयोगशाला परीक्षण

डॉक्टर, संपूर्ण शारीरिक जांच के दौरान, मुख्य रूप से व्यक्ति के लक्षणों के आधार पर, ख़ासतौर पर युवा महिलाओं में, ल्यूपस का संदेह करते हैं।

ल्यूपस की पुष्टि करने के लिए, डॉक्टर कई प्रयोगशाला जांच करते हैं। हालांकि, ऐसी कोई एक निश्चित प्रयोगशाला जांच नहीं है, जिससे ल्यूपस के निदान की पुष्टि हो सके, लेकिन डॉक्टर ये जांचें अन्य सिस्टेमिक रूमैटिक रोग की आशंका को खारिज करने के लिए करते हैं। डॉक्टर अपने द्वारा एकत्रित की गई पूरी जानकारी, जैसे लक्षणों, शारीरिक जांच के परिणामों और सभी परीक्षणों के परिणामों के आधार पर ल्यूपस का पता लगाते हैं। डॉक्टर इस जानकारी का उपयोग यह पता लगाने के लिए करते हैं कि क्या लोग ल्यूपस की पुष्टि के लिए उपयोग किए जाने वाले पहले से तय निश्चित मापदंड को पूरा करते हैं। फिर भी, लक्षणों की विस्तृत शृंखला के कारण, ल्यूपस और इससे मिलते-जुलते रोगों में अंतर करना और निदान करना मुश्किल हो सकता है।

प्रयोगशाला परीक्षण

हालांकि रक्त के परीक्षण की मदद से डॉक्टर ल्यूपस का पता लगा सकते हैं, लेकिन सिर्फ़ इसी से ल्यूपस की पुष्टि नहीं की जा सकती, क्योंकि कभी-कभी इससे पता चलने वाली असामान्यताएँ स्वस्थ लोगों में या अन्य विकारों से पीड़ित लोगों में भी मौजूद होती हैं।

रक्त के परीक्षण से एंटीन्यूक्लियर एंटीबॉडीज़ (ANA) का पता चल सकता है, जो ल्यूपस से पीड़ित लगभग सभी लोगों में पाई जाती हैं। हालांकि, ये एंटीबॉडीज़ अन्य रोगों में भी पाई जाती हैं। इसलिए, अगर ANA पाए जाते हैं, तो डबल स्ट्रैंड वाले DNA के खिलाफ प्रतिक्रिया करने वाली एंटीबॉडीज़ की जांच और साथ ही अन्य ऑटोइम्यून एंटीबॉडीज़ (ऑटोएंटीबॉडीज़) की जांच की जाती है। DNA के विरुद्ध बनी इन एंटीबॉडीज़ की अधिक मात्रा, ल्यूपस की पुष्टि करती है, लेकिन ल्यूपस से पीड़ित सभी लोगों में ये एंटीबॉडीज़ नहीं होती हैं।

प्रयोगशाला परीक्षण

रक्त की अन्य जांचें, जैसे कि कॉम्प्लीमेंट प्रोटीन (बैक्टीरिया को मारने की क्षमता जैसी विभिन्न प्रतिरोधक क्षमताओं वाले प्रोटीन) के स्तर को मापना आदि भी की जाती हैं और ये रोग की गतिविधि की निगरानी करने और उपचार की आवश्यकता को निर्धारित करने में सहायक सिद्ध हो सकती हैं।

ल्यूपस से पीड़ित ऐसी महिलाएँ, जिन्हें बार-बार गर्भपात होता है या जिनमें रक्त के थक्के बनने की समस्याएँ होती हैं, उनके लिए एंटीफ़ॉस्फ़ोलिपिड एंटीबॉडीज़ का परीक्षण किया जाना चाहिए। गर्भनिरोधक तरीकों या गर्भाधान की योजना बनाते समय यह परीक्षण बहुत महत्वपूर्ण होता है। रक्त का यह परीक्षण, जो फ़ॉस्फ़ोलिपिड्स की एंटीबॉडीज़ का पता लगाता है, यह भी पता लगा सकता है कि किन लोगों को रक्त के थक्के बार-बार बनने का खतरा हो सकता है। जिन महिलाओं में फ़ॉस्फ़ोलिपिड के विरुद्ध एंटीबॉडीज़ होती हैं, उन्हें एस्ट्रोजन वाली गर्भनिरोधक दवाएँ नहीं खानी चाहिए, इसके बजाय उन्हें परिवार नियोजन के अन्य उपाय अपनाने चाहिए।

रक्त के परीक्षण, लाल रक्त कोशिकाओं की कम संख्या (एनीमिया), श्वेत रक्त कोशिकाओं की कम संख्या या प्लेटलेट्स की कम संख्या की जानकारी भी दे सकते हैं। जिन लोगों को एनीमिया होता है, उन्हें कूम्ब्स परीक्षण करवाना पड़ता है। इस परीक्षण का उपयोग लाल रक्त कोशिकाओं की सतह से चिपकी और उनको नष्ट कर सकने वाली, मतलब एनीमिया उत्पन्न कर सकने वाली कुछ एंटीबॉडीज़ की बढ़ी हुई मात्रा का पता लगाने के लिए किया जाता है।

प्रयोगशाला के अतिरिक्त परीक्षण, पेशाब में प्रोटीन या लाल रक्त कोशिकाओं की मौजूदगी (यूरिनेलिसिस) या रक्त में क्रिएटिनिन की बढ़ी हुई मात्रा का पता लगाने के लिए किए जाते हैं। इन परिणामों से पता चलता है कि किडनी की रक्त को फ़िल्टर करने वाली संरचना (ग्लोमेरुली) में जलन है, इस स्थिति को ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस कहा जाता है। कभी-कभी किडनी की बायोप्सी (जांच और परीक्षण के लिए ऊतक को निकालना) की जाती है, ताकि डॉक्टर आगे के उपचार की योजना बना सके। ल्यूपस से पीड़ित लोगों में किडनी की क्षति की जांच बार-बार की जानी चाहिए, भले ही उनमें कोई लक्षण न दिखाई दे रहा हो (किडनी फ़ंक्शन टेस्ट देखें)।

प्रयोगशाला परीक्षण

ल्यूपस का उपचार

  • सभी प्रभावित लोगों के लिए हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन (एक एंटीमलेरियल)

  • हल्के रोग के लिए बिना स्टेरॉइड वाली एंटी-इन्फ़्लैमेटरी दवाएँ (NSAID) और एंटीमलेरियल

  • हल्के से मध्यम रोग के लिए NSAID, एंटीमलेरियल, कभी-कभी कॉर्टिकोस्टेरॉइड और कभी-कभी बेलिमुमैब

  • गंभीर रोग के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड, अन्य इम्यूनोसप्रेसेंट और एंटीमलेरियल

ल्यूपस का उपचार इस बात पर निर्भर करता है कि उससे कौन-से अंग प्रभावित हैं और जलन कितनी सक्रिय है। ज़रूरी नहीं है कि ल्यूपस में अंगों की क्षति और जलन की गतिविधि बराबर ही हो। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि ल्यूपस ने पहले जो जलन उत्पन्न की थी, उससे कुछ अंग हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त और खराब हो गए हों। ऐसी क्षति को “गंभीर” कहा जाता है, भले ही ल्यूपस सक्रिय न हो (मतलब कि वह इस समय कोई जलन या क्षति नहीं कर रहा है)। उपचार का लक्ष्य ल्यूपस की गतिविधि को कम करना—मतलब जलन कम करना होता है, जिससे नई और आगे की क्षति रुक जाती है।

ल्यूपस से पीड़ित सभी लोगों को एंटीमलेरियल हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन मुंह से दी जाती है, भले ही उनका रोग हल्का हो या गंभीर, क्योंकि इससे रोग के प्रकोप में कमी आती है और मृत्यु का जोखिम कम हो जाता है। यह उन लोगों में भी समस्याओं को कम कर सकता है, जिनका रक्त बहुत आसानी से या अक्सर क्लॉट हो जाता है। हालांकि, हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन उन लोगों को नहीं दी जाती, जिनमें नकारात्मक दुष्प्रभाव होता है। यह उन लोगों को दी जा सकती या नहीं भी दी जा सकती है, जिनमें G6PD की डेफ़िशिएंसी होती है (G6PD वह एंज़ाइम है, जो लाल रक्त कोशिकाओं को कुछ खास विषैले रसायनों से बचाता है), क्योंकि उनमें यह दवा, लाल रक्त कोशिकाओं को तेज़ी से खत्म कर सकती है।

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन लेने वाले लोगों को अपनी आँखों का परीक्षण वार्षिक रूप से करवाना चाहिए, क्योंकि इस दवाई को कई वर्षों तक लेने पर, इससे आँखों के पिछले हिस्से को क्षति पहुंचने का जोखिम थोड़ा-सा बढ़ जाता है।

हल्के से लेकर मध्यम ल्यूपस

अगर ल्यूपस ज़्यादा एक्टिव नहीं है और जोड़ों या त्वचा पर हल्के लक्षण ही दिखाई दे रहे हैं, तो उपचार का तीव्र होना ज़रूरी नहीं होता है। बिना स्टेरॉइड वाली एंटी-इन्फ़्लेमेटरी दवाएँ (NSAID) अक्सर जोड़ों के दर्द से राहत देती हैं, लेकिन इन्हें लगातार लंबे समय तक नहीं लिया जाना चाहिए। एंटीमलेरियल, जैसे कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन, क्लोरोक्विन या क्विनाक्रिन, त्वचा और जोड़ों के लक्षणों में राहत देने और प्रकोप की आवृत्ति कम करने में मदद करती हैं।

जिन लोगों को चकत्ते या घाव हों, उन्हें सीधी धूप में जाने से बचना चाहिए और बाहर जाने पर स्ट्रॉन्ग सनस्क्रीन (कम से कम 50 सन प्रोटेक्शन फ़ैक्टर वाली) लगानी चाहिए। चकत्तों का उपचार कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम या ऑइंटमेंट या टेक्रोलिमस नामक दवाई वाले ऑइंटमेंट से भी किया जा सकता है।

अगर कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम या ऑइंटमेंट और हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन से त्वचा के लक्षणों में राहत न मिले, तो लोगों को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन और क्विनाक्रिन का संयोजन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन और डेप्सन, मीथोट्रेक्सेट, माइकोफ़ेनोलेट मोफ़ेटिल या एज़ेथिओप्रीन का संयोजन दिया जा सकता है।

जिन लोगों के लक्षण अन्य दवाइयों से नियंत्रित नहीं होते या जिन्हें बार-बार प्रकोप होता है, उन्हें बेलिमुमैब भी दी जा सकती है, यह ऐसी दवाई है, जो ल्यूपस वाले लोगों में ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया में शामिल कुछ खास तरह की श्वेत रक्त कोशिकाओं की गतिविधि में कमी लाती है। डॉक्टर समय-समय पर लोगों में डिप्रेशन की जांच करते हैं, क्योंकि यह दवाई डिप्रेशन को शुरू कर सकती है या बदतर बना सकती है, या मृत्यु के बारे में विचार और धारणाएं उत्पन्न कर सकती है, विशेष रूप से आत्महत्या के बारे में।

गंभीर ल्यूपस

जिन लोगों को ऐसा गंभीर, सक्रिय ल्यूपस है, जो किडनी, हृदय, या मस्तिष्क को प्रभावित कर रहा है, या जिसके कारण फेफड़ों में रक्तस्राव हो रहा है, तो उनका उपचार तुरंत किया जाता है और आम तौर पर उन्हें शिरा के ज़रिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड मेथिलप्रेडनिसोलोन दिया जाता है (देखें कॉर्टिकोस्टेरॉइड: उपयोग और दुष्प्रभाव)। फिर लोगों को कॉर्टिकोस्टेरॉइड प्रेडनिसोन खाने के लिए दिया जाता है। उपचार की खुराक और अवधि इस बात पर निर्भर करती है कि रोग से कौन-से अंग प्रभावित हुए हैं। शरीर के ऑटोइम्यून हमले को दबाने के लिए इम्यूनोसप्रेसेंट साइक्लोफ़ॉस्फ़ामाइड भी दिया जाता है। माइकोफ़ेनोलेट मोफ़ेटिल, किडनी को प्रभावित करने वाले गंभीर ल्यूपस के लिए आमतौर पर उपयोग की जाने वाली एक वैकल्पिक दवा है, क्योंकि यह आमतौर पर साइक्लोफ़ॉस्फ़ामाइड के बराबर ही प्रभावी और उससे कम विषैली होती है। कुछ लोगों में बेलिमुमैब, वोक्लोस्पोरिन या ऐनिफ़्रोलुमैब जैसे अन्य इम्यूनोसप्रेसेंट भी ल्यूपस के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं।

जिन लोगों में इस रोग की किडनी की आखिरी स्टेज वाली स्थिति होती है, उनमें डायलिसिस की जगह किडनी प्रत्यारोपण भी किया जा सकता है।

जिन लोगों में कुछ खास तरह की रक्त समस्याएं होती हैं, उन्हें कॉर्टिकोस्टेरॉइड की मध्यम से लेकर उच्च खुराक मुंह से, किसी इम्यूनोसप्रेसेंट, जैसे कि एज़ेथिओप्रीन या माइकोफ़ेनोलेट मोफ़ेटिल के साथ दी जाती है। उन्हें शिरा के ज़रिए इम्यून ग्लोब्युलिन (एक ऐसा पदार्थ जिसमें कई एंटीबॉडीज़ की बड़ी मात्रा होती है) दिया जा सकता है। जिन लोगों को इन उपचारों से मदद नहीं मिलती, उन्हें इम्यूनोसप्रेसेंट रिटक्सीमैब दी जा सकती है।

जिन लोगों को तंत्रिका तंत्र की समस्याएँ होती हैं, उन्हें शिरा के ज़रिए साइक्लोफ़ॉस्फ़ामाइड या रिटक्सीमैब दिया जा सकता है।

जिन लोगों में ब्लड क्लॉट बनते हैं, उन्हें हैपेरिन, वारफ़ेरिन या अन्य एंटीकोग्युलेन्ट (इन दवाइयों को कभी-कभी रक्त पतला करने वाली भी कहा जाता है) दिए जाते हैं।

गंभीर ल्यूपस से पीड़ित लोग अक्सर पाते हैं कि उपचार के 4 से 12 सप्ताह बाद उनके लक्षण कम हो गए हैं।

रखरखाव की दवाइयां

शुरुआती सूजन नियंत्रित हो जाने के बाद, डॉक्टर कॉर्टिकोस्टेरॉइड और सूजन को नियंत्रित करने वाली ऐसी अन्य दवाइयों (जैसे एंटीमलेरियल और इम्यूनोसप्रेसेंट) की न्यूनतम खुराक निर्धारित करते हैं, जिसकी आवश्यकता सूजन को लंबे समय के लिए नियंत्रित करने के लिए होती है। आमतौर पर जब लक्षण नियंत्रित होते हैं और प्रयोगशाला परीक्षण के परिणाम सुधार दिखाते हैं, तब प्रेडनिसोन की खुराक धीरे-धीरे कम कर दी जाती है। इस प्रक्रिया के दौरान रिलैप्स या फ़्लेयर-अप हो सकते हैं। ल्यूपस से पीड़ित अधिकतर लोगों के लिए, प्रेडनिसोन की खुराक को अंततः कम या बंद किया जा सकता है। चूंकि कॉर्टिकोस्टेरॉइड की उच्च खुराकों का लंबे समय तक उपयोग किए जाने के कारण कई दुष्प्रभाव होते हैं, इसलिए जिन लोगों को लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड की उच्च खुराकें लेने की आवश्यकता होती है, उन्हें वैकल्पिक दवाई, जैसे कि एज़ेथिओप्रीन, मीथोट्रेक्सेट, या माइकोफ़ेनोलेट मोफ़ेटिल दी जाती है।

जो लोग कॉर्टिकोस्टेरॉइड लेते हैं उनकी समय-समय पर जांच की जानी चाहिए और, यदि आवश्यक हो, तो ऑस्टियोपोरोसिस का इलाज किया जाना चाहिए, जो लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉइड के उपयोग से हो सकता है। जो लोग लंबी अवधि के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड की उच्च खुराकें लेते हैं, उन्हें कैल्शियम और विटामिन D सप्लीमेंट दिए जाते हैं और कभी-कभी, रोकथाम के लिए, ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार में उपयोग की जाने वाली दवाइयां दी जाती हैं, भले ही उनकी हड्डी का घनत्व सामान्य हो।

इम्यूनोसप्रेसेंट ले रहे लोगों को संक्रमणों, जैसे कि न्यूमोसिस्टिस जीरोवेकिआय फंगस से होने वाले संक्रमण को रोकने के लिए दवाइयां (देखें कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में निमोनिया की रोकथाम) और सामान्य संक्रमणों, जैसे कि निमोनिया, इन्फ़्लूएंज़ा और कोविड-19 के खिलाफ़ टीके दिए जाते हैं।

अन्य चिकित्सकीय स्थितियाँ और गर्भावस्था

हृदय रोग के लिए डॉक्टर द्वारा सभी लोगों की करीबी निगरानी की जानी चाहिए। कोरोनरी धमनी के रोग (उदाहरण के लिए, अधिक ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, और कोलेस्ट्रॉल का उच्च स्तर) के लिए आम जोखिम के कारकों को जितना अच्छे से हो सके नियंत्रित किया जाना चाहिए।

उन लोगों के लिए सर्जिकल प्रक्रिया और गर्भावस्था अधिक जटिल हो सकती है जिन्हें ल्यूपस है, और उन्हें करीबी चिकित्सकीय देखभाल की आवश्यकता होती है। यदि गर्भवती हों, तो स्त्रियों को उनकी गर्भावस्था के पूरे समय तक हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन पर बने रहना चाहिए और उन्हें एस्पिरिन की छोटी खुराक भी दी जा सकती है। वे गर्भवती स्त्रियाँ जिन्हें खून के क्लॉट होने का जोखिम हो उन्हें हैपेरिन दी जा सकती है। गर्भावस्था के दौरान गर्भपात और फ्लेयर-अप आम होते हैं।

फ्लेयर-अप के दौरान स्त्रियों को गर्भवती होने से बचना चाहिए। चूँकि माइकोफ़ेनोलेट मोफ़ेटिल जन्म दोषों का कारक बन सकती है, इसलिए स्त्रियों को गर्भवती होने के लिए तब तक इंतज़ार करना चाहिए जब उनकी बीमारी को 6 महीने या उससे लंबे समय तक अच्छे से नियंत्रित रखा गया हो (गर्भावस्था के दौरान ल्यूपस देखें)। वे महिलाएं, जो रोगमुक्त होने की स्थिति में हों और जो गर्भवती होने के बारे में सोच रही हों, लेकिन उन्हें रखरखाव की दवाइयां लेते रहने की आवश्यकता हो, उन्हें आमतौर पर, गर्भधारण के कम से कम 6 महीने पहले माइकोफ़ेनोलेट मोफ़ेटिल को बदल कर एज़ेथिओप्रीन दी जाती है।

ल्यूपस के लिए पूर्वानुमान

ल्यूपस क्रोनिक होता है और बार-बार लौटकर आता है, इसमें अक्सर कुछ बार (लौटकर आने पर) कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं और ऐसी अवधि कई साल की हो सकती है। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में ल्यूपस के दौरे कम पड़ते हैं।

पहले की तुलना में अब काफ़ी ज़्यादा लोगों में ल्यूपस का पता जल्दी चल जाता है और उनको ल्यूपस हल्का की होता है और अब इसका बेहतर उपचार उपलब्ध है। नतीजतन, उन देशों में, जहां लोगों को अच्छी स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच उपलब्ध है, वहां निदान किए जाने के बाद लगभग 90% लोग कम से कम 10 वर्षों तक जीवित रहते हैं। लेकिन, चूँकि ल्यूपस में आगे क्या होगा, यह निश्चित नहीं होता है, इसलिए प्रॉग्नॉसिस काफ़ी अलग-अलग होती है। आमतौर पर, अगर सूजन का पहला दौर नियंत्रित कर लिया जाए, तो लंबे समय का पूर्वानुमान अच्छा रहता है। हालांकि, बेहतर उपचार और मृत्यु दर कम होने के बावजूद, ल्यूपस से पीड़ित लोग, बिना ल्यूपस वाले लोगों जितने समय तक जीवित नहीं रह सकते, क्योंकि उन लोगों को हृदय रोग, किडनी का अंतिम चरण का रोग और संक्रमण का अधिक जोखिम होता है।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की सामग्री के लिए मैन्युअल उत्तरदायी नहीं है।

  1. Lupus Foundation of America: ल्यूपस के साथ जीवन जीने और चल रहे ल्यूपस शोध के बारे में जानकारी प्रदान करता है

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