सिलिका (क्वॉर्ट) डस्ट को सांस के साथ अंदर लेने से फेफड़ों पर हुई परमानेंट स्कारिंग को सिलिकोसिस कहते हैं।
लोगों को गतिविधि करने के दौरान सांस लेने में परेशानी होती है जो कभी-कभी आराम करते समय सांस लेने की तकलीफ़ तक बढ़ जाती है।
कुछ लोगों को ऐसी खांसी भी होती है जिसके साथ थूक निकल सकता है और नहीं भी निकल सकता।
रोग का निदान करना चेस्ट एक्स-रे या चेस्ट कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी स्कैन और सिलिका के संपर्क में आने के इतिहास पर आधारित होता है।
डॉक्टर सांस लेने में मदद के लिए दवाइयाँ दे सकते हैं।
(पर्यावरण तथा पेशे संबंधी फेफड़ों के रोग का विवरण भी देखें।)
सिलिकोसिस एक्यूट या क्रोनिक हो सकता है। एक्यूट सिलिकोसिस कुछ हफ़्तों या सालों तक संपर्क में रहने के बाद विकसित हो सकता है। क्रोनिक सिलिकोसिस सबसे आम रूप है और आमतौर पर दशकों तक एक्सपोज़र होने के बाद ही विकसित होता है।
सिलिकोसिस होने की वजहें
सिलिका धरती के क्रस्ट में पाया जाता है और यह सबसे ज़्यादा मिलने वाले मिनरल्स में से एक है और यह प्रकृति में व्यापक रूप से फैला हुआ है। सिलिकोसिस क्रिस्टलाइन सिलिका के छोटे-छोटे कणों (आमतौर पर क्वार्ट्ज़) को सांस से अंदर लेने की वजह से होता है। सबसे बड़े जोखिम में वे कर्मचारी हैं जो चट्टान और रेत को एक जगह से दूसरी जगह ले जाते हैं या विस्फोट करते हैं (खनिक, खदान श्रमिक, पत्थर काटने वाले, निर्माण श्रमिक) या जो सिलिका वाली चट्टान या सैंड अब्रेसिव (सैंड ब्लास्टर्स, कांच बनाने वाले, ढलाई कारखाने, रत्न, और चीनी मिट्टी के कारीगर, कुम्हार) का इस्तेमाल करते हैं। हाल ही में इंजीनियर्ड स्टोन उद्योग के श्रमिकों में गंभीर सिलिकोसिस के प्रकोप की पहचान की गई है।
सिलिकोसिस की घटना और गंभीरता को प्रभावित करने वाले कारकों में शामिल हैं
संपर्क की अवधि और तीव्रता
सिलिका कणों का रूप और सतह की विशेषताएं
एमॉरफस सिलिका, जैसे कि ग्लास या डायटोमेसियस अर्थ, में क्रिस्टलाइन संरचना नहीं होता है और इसकी वजह से सिलिकोसिस नहीं होता।
जब सांस ली जाती है, सिलिका डस्ट फेफड़ों में चली जाती है और स्केवेंजर सेल, जैसे कि मैक्रोफ़ेज इसे घेर लेती हैं (इम्यून सिस्टम का विवरण देखें)। स्कैवेंजर सेल्स द्वारा छोड़े गए एंज़ाइम फेफड़ों के ऊतकों को जख्मी कर देते हैं और गांठें बना देते हैं। कम तीव्रता या अल्पकालिक जोखिम में, ये गांठें अलग रहती हैं और फेफड़ों के कामों में छेड़छाड़ नहीं करती। उच्च-तीव्रता या ज़्यादा लंबे समय तक संपर्क में रहने पर, ये गांठें आपस में जुड़ जाती हैं (एक साथ आ जाती हैं) और प्रगतिशील फ़ाइब्रोसिस और फेफड़ों के डिस्फ़ंक्शन का कारण बनते हैं या कभी-कभी बड़े समूह का निर्माण करते हैं (जिसे प्रोग्रेसिव मैसिव फ़ाइब्रोसिस कहा जाता है)।
सिलिकोसिस के लक्षण
सिलिकोसिस एक्यूट या क्रोनिक हो सकता है। क्रोनिक सिलिकोसिस ज़्यादा आम होता है।
एक्यूट सिलिकोसिस से पीड़ित लोगों को सांस लेने में तकलीफ़, वज़न घटने और तेज़ी से बढ़ने वाली थकान का अनुभव होता है। श्वसन तंत्र का नाकाम होना आम बात है।
क्रोनिक सिलिकोसिस से अक्सर सालों तक कोई लक्षण नहीं होता, लेकिन यह ज़्यादा गंभीर रोग में बदल सकता है। क्रोनिक सिलिकोसिस से पीड़ित कई लोगों को समय के साथ सांस लेने में तकलीफ़ और खांसी होने लगती है। फेफड़ों की क्षति से रक्त में ऑक्सीजन का स्तर कम हो सकता है और हृदय के दाहिने हिस्से पर भी दबाव पड़ सकता है। यह तनाव एक प्रकार के हार्ट फेलियर का कारण बन सकता है जिसे कॉर पल्मोनेल कहा जाता है, जो घातक हो सकता है।
जटिलताएँ
सिलिकोसिस से पीड़ित लोगों को दूसरे विकार होने का खतरा होता है:
ट्यूबरक्लोसिस (TB)
क्रोनिक अवरोधक फुप्फुस रोग (COPD)
फेफड़ों का कैंसर
सिस्टेमिक रूमैटिक (ऑटोइम्यून) विकार
सिलिकोसिस से पीड़ित लोगों में सूक्ष्मजीवी संक्रमण, जैसे कि ट्यूबरक्लोसिस विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है।
सिलिका के संपर्क में आना क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (जैसे कि एम्फ़सिमा या क्रोनिक ब्रोंकाइटिस) के बढते जोखिम से जुड़ा होता है।
सिलिकोसिस से पीड़ित लोगों में फेफड़े का कैंसर बढ़ने का जोखिम होता है। क्रिस्टलाइन सिलिका को इंटरनेशनल एजेंसी फ़ॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) द्वारा ग्रुप 1 ह्यूमन लंग कार्सिनोजन के रूप में पहचाना गया है।
क्रिस्टलाइन सिलिका के संपर्क में आना कई सिस्टेमिक रूमैटॉइड रोगों से भी जुड़ा होता है, जिनमें रूमैटॉइड अर्थराइटिस और सिस्टेमिक स्क्लेरोसिस शामिल हैं।
सिलिकोसिस का निदान
सिलिका के संपर्क में आने का इतिहास
चेस्ट इमेजिंग (कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी या एक्स-रे)
डॉक्टर आमतौर पर सिलिकोसिस को इस आधार पर पहचानते हैं कि उन्हें उन लोगों के चेस्ट एक्स-रे या कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) पर क्या दिखता है जिनका सिलिका के संपर्क में आने का इतिहास रहा है। सिलिकोसिस का पता लगाने और रोग के बढ़ने की निगरानी करने के लिए, चेस्ट CT, चेस्ट एक्स-रे से ज़्यादा संवेनदशील है।
चेस्ट इमेजिंग पर, कई विकार क्रोनिक सिलिकोसिस की तरह हो सकते हैं। उनमें सार्कोइडोसिस, क्रोनिक बेरिलियम रोग, हाइपरसेंसिटिविटी निमोनाइटिस, कोल वर्कर न्यूमोकोनियोसिस, मिलियरी ट्यूबरक्लोसिस, फ़ंगल पल्मोनरी रोग और फेफड़ों में फैलने वाला कैंसर शामिल है। सिलिकोसिस को इन अन्य विकारों से अलग करने के लिए डॉक्टर और भी टेस्ट करते हैं।
सिलिकोसिस का इलाज
अतिरिक्त संपर्क से हटाना
लक्षणों का प्रबंधन (उदाहरण के लिए, ब्रोंकोडाइलेटर्स और सांस से अंदर लिए गए कॉर्टिकोस्टेरॉइड के साथ)
जटिलताओं का प्रबंधन
आगे संपर्क होने से रोकना ज़रूरी है।
एक्यूट या क्रोनिक सिलिकोसिस का कोई भी सिद्ध, विशिष्ट उपचार नहीं है। उपचार मुख्य रूप से सहायक है।
जिन लोगों को सांस लेने में कठिनाई होती है, उन्हें वायुमार्ग को खुला और म्युकस से मुक्त रखने वाली दवाइयों, मतलब ब्रोंकोडाइलेटर्स से फ़ायदा हो सकता है। डॉक्टर सिलिकोसिस से पीड़ित लोगों के खून में कम ऑक्सीजन स्तर की निगरानी करते हैं और ज़रूरत पड़ने पर उनका इलाज करते हैं। पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन लोगों को दैनिक जीवन की गतिविधियों को पूरा करने में मदद कर सकता है। फेफड़े को ट्रांसप्लांट करने की सलाह उन लोगों के लिए दी जाती है जो गंभीर रूप से प्रभावित हैं।
जटिलताओं को ज़रूरत के मुताबिक प्रबंधित किया जाता है। उदाहरण के लिए, संक्रमण, जिनमें ट्यूबरक्लोसिस शामिल है, उनका इलाज तुरंत किया जाता है।
सिलिकोसिस की रोकथाम
रोकथाम के मुख्य उपायों की शुरुआत संपर्क को खत्म करने या उसे कम करने से होती है। सबसे प्रभावी मुख्य रोकथाम है सिलिका के सीमित संपर्क में आने के लिए इंजीनियरिंग नियंत्रणों (वातावरण का नियंत्रण) का क्रियान्वयन है। सही तरीके से लगाए गए रेस्पिरेटर से अतिरिक्त सुरक्षा मिलती है।
जटिलताओं की रोकथाम करने के उपायों में धूम्रपान बंद करना और न्यूमोकोकी, कोविड और इन्फ़्लूएंज़ा के टीके लगवाना शामिल है। चूंकि जो लोग सिलिका के संपर्क में आ चुके हैं उनमें ट्यूबरक्लोसिस और मिलते-जुलते मायकोबैक्टीरियल संक्रमण होने का जोखिम रहता है, इसलिए उन्हें नियमित रूप से ट्यूबरक्लोसिस की स्क्रीनिंग करवाते रहना चाहिए।
सिलिकोसिस के बने रहने की वजह से, अमेरिका व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रशासन (OSHA) ने 2016 में एक अपडेटेड रेस्पिरेबल सिलिका स्टैंडर्ड जारी किया था। स्टैंडर्ड अनुमत एक्सपोज़र सीमा (PEL) को कम करता है और सिलिका के संपर्क में आए श्रमिकों की रोज़गार से पहले और रोजगार के बीच समय-समय पर चिकित्सा निगरानी की आवश्यकता होती है। चिकित्सा निगरानी में प्रश्नावली, फेफड़े के कार्य परीक्षण और समय-समय पर छाती का एक्स-रे शामिल हैं।
अधिक जानकारी
निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।
व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रशासन [OSHA]। रेस्पिरेबल क्रिस्टलाइन सिलिका। 2016। रेगुलेशन (स्टैंडर्ड-29 CFR 1926.1153)।