विरूपताएँ (डीफ़ॉर्मिटीज़) और अपविकास (डिस्ट्रॉफीज़), इन दोनों शब्दों को कई बार तो डॉक्टरों द्वारा भी अक्सर समानार्थी समझकर प्रयोग कर लिया जाता है। पर, उनके अर्थों में थोड़ा अंतर है।
कुरूपताएं: नाख़ून की आकृति में बदलाव
कुरूपताएं: नाख़ून की सतही बनावट में, रंग में, या दोनों में बदलाव
डॉक्टर विरूपता से अधिक अपविकास शब्द का उपयोग करते हैं। (नाखूनों के विकारों का संक्षिप्त विवरण भी देखें।)
नाखूनों के अपविकास के लगभग 50% मामले किसी फ़ंगल संक्रमण (ओनिकोमाइकोसिस) के कारण होते हैं। बाक़ी मामलों के पीछे विभिन्न कारण होते हैं, जैसे नाखूनों की चोटें, नाखूनों की जन्मजात विरूपताएँ, सोरियसिस, लाइकेन प्लेनस, और कभी-कभी ट्यूमर (कैंसरयुक्त और कैंसर-रहित)। दवाओं, संक्रमणों, और रोगों से नाखूनों का रंग बिगड़ सकता है (क्रोमोनिकिया)। जैसे, स्यूडोमोनास बैक्टीरिया के संक्रमण से नाखूनों का रंग हरा हो सकता है ( देखें ग्रीन नेल सिंड्रोम)।
डॉक्टर किसी फ़ंगस के कारण होने वाले नाख़ून के अपविकास का निदान अक्सर नाखूनों की जांच द्वारा करते हैं। हालांकि, निदान की पुष्टि के लिए डॉक्टरों को फ़ंगल खुरचन को लेकर उनका कल्चर करने की (लैबोरेटरी में जीव उगाने की प्रक्रिया) या फ़ंगस से मिले आनुवंशिक पदार्थ को देखने के लिए पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (PCR) विश्लेषण करने की ज़रूरत पड़ सकती है।
नाखूनों के ऐसे अपविकास जो किसी फ़ंगस के कारण नहीं है, की निदान करने के लिए डॉक्टरों को नेल प्लेट (नाख़ून के कठोर भाग) की या नेल मेट्रिक्स (नाख़ून के आधार पर स्थित जहाँ से नाख़ून की वृद्धि शुरू होती है) की बायोप्सी करनी पड़ सकती है।
यदि मूल विकार के उपचार के बावजूद नाख़ून के स्वरुप में सुधार नहीं होता है, तो मैनिक्यूरिस्ट उपयुक्त कटाई-छँटाई और पॉलिश की मदद से विरूपताओं और कुछ अपविकासों को छिपाने में सफल हो सकते हैं।
नाख़ून की जन्मजात विरूपताएँ
कुछ शिशु बिना नाखूनों के जन्म लेते हैं (एनोनिकिया)। नेल-पटेला सिंड्रोम में, अंगूठों के नाख़ून नहीं होते हैं या बहुत छोटे होते हैं जिनमें गड्ढे और उभरी धारियाँ होती हैं। डैरियर रोग में नाखूनों पर लाल और सफ़ेद धारियाँ पड़ जाती हैं और नाखूनों के सिरों पर V आकृति के खाँचे बन जाते हैं। पैकियोनिकिया कंजेनिटा में, नेल बेड (नाख़ून का वह भाग जो नाख़ून को अंगुली से जोड़ता है) मोटे और बेरंगत हो जाते हैं और एक से दूसरी साइड गोलाई में मुड़ जाते हैं, जिससे पिंसर नाख़ून विरूपता होती है।
दैहिक रोगों से जुड़ीं नाखूनों की विरूपताएँ और अपविकास
कभी-कभी, अन्य अंगों को प्रभावित करने वाले रोग (दैहिक रोग) नाखूनों में भी बदलाव कर सकते हैं, जैसे ये रोग:
आयरन की कमी से नाखूनों की आकृति चम्मच जैसी हो सकती है (कोइलोनिकिया)। यह विरूपता प्लमर-विनसन सिंड्रोम का एक विशेष लक्षण है।
किडनी की खराबी के कारण नाखूनों का निचला आधा भाग सफ़ेद और ऊपरी आधा भाग गुलाबी या धब्बेदार हो सकता है (हाफ़-एंड-हाफ़ नेल या लिंड्से नेल)। यह अपविकास स्वस्थ लोगों में भी हो सकता है।
सिरोसिस के कारण नाख़ून सफ़ेद हो सकते हैं, हालांकि नाखूनों का सबसे ऊपरी भाग थोड़ा गुलाबी सा बना रह सकता है। गहरा सफ़ेद नाख़ून, जिन्हें टेरी नेल भी कहते हैं, न केवल सिरोसिस से ग्रस्त लोगों में बल्कि हृदय की क्रोनिक खराबी या डायबिटीज़ से ग्रस्त लोगों में भी मौजूद हो सकते हैं। रक्त में एल्बुमिन नामक प्रोटीन का लेवल घटने (जो सिरोसिस से ग्रस्त लोगों में हो सकता है) से नाखूनों पर सफ़ेद आड़ी धारियाँ बन सकती हैं। टेरी नेल कभी-कभी सामान्य उम्र बढ़ने के हिस्से के रूप में हो सकते हैं।
कुछ फेफड़ों के रोग, अक्सर लिम्फ़ेडेमा (ऊतकों में लिम्फ़ैटिक फ़्लूड का इकट्ठा होना) के साथ, पीले नेल सिंड्रोम का कारण बन सकते हैं, जिसमें नाखून मोटे, अधिक मुड़े हुए और पीले या पीले-हरे रंग के हो जाते हैं।
रंगीन रेखाएँ, नाख़ून में बनने वाले आड़े खाँचे होते हैं जो नाख़ून की वृद्धि कुछ समय के लिए धीमी पड़ने पर बनते हैं। कभी-कभी ये खाँचे पूरे नाख़ून के आर-पार हो जाते हैं जिससे पूरा नाख़ून टूटकर अलग हो जाता है। वे किसी संक्रमण, चोट, दैहिक रोग, या कीमोथेरेपी के बाद हो सकते हैं।
नाख़ून के किसी भाग के आर-पार सफ़ेद आड़ी रेखाएँ (लूकोनिकिया) किसी चोट के बाद बन सकती हैं। हालांकि, पूरे नाख़ून के आर-पार बनने वाली आड़ी रेखाएँ (मीज़ रेखाएँ), कैंसर या हृदय की खराबी, कीमोथेरेपी, या कुछ विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने वाली अधिक गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी हो सकती हैं, जैसे कि आर्सेनिक, थैलियम, या अन्य भारी धातुएं। यदि इन विषाक्त पदार्थों से संपर्क या कीमोथेरेपी रुक जाए तो नाख़ून सामान्य ढंग से बढ़ सकते हैं।
इस फोटो में आयरन की कमी वाले एनीमिया से ग्रस्त एक व्यक्ति में चम्मच जैसी आकृति वाला नाख़ून देखा जा सकता है।
डॉ. पी. मराज़ी/SCIENCE PHOTO LIBRARY
गहरे सफ़ेद नाख़ून, जिनके बाहरी किनारे पर अक्सर एक पतला, कत्थई से गुलाबी भाग होता है, इन्हें टैरी नेल भी कहते हैं। वे लिवर या किडनी की क्रोनिक विफलता का संकेत होते हैं।
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इस चित्र में यलो नेल सिंड्रोम में नाखूनों की बढ़ी हुई मोटाई और गोलाई देखी जा सकती है। यह दुर्लभ स्थिति अधिकतर ऐसे रोगियों में होती है जो फेफड़ों की कुछ समस्याओं से और ऊतकों में लिम्फ़ैटिक फ़्लूड इकट्ठा होने की समस्या से ग्रस्त होते हैं।
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लंबे समय तक नेल पॉलिश के उपयोग से नाखूनों का रंग बिगड़कर पीला या कत्थई हो सकता है। हालांकि नाख़ून पीले हो सकते हैं, पर यह यलो नेल सिंड्रोम का लक्षण नहीं है।
छवि को थॉमस हबीफ, MD द्वारा उपलब्ध कराया गया।
इस चित्र में कीमोथेरेपी के कई चक्रों से गुज़र रहे एक व्यक्ति में रंगीन लाइनें देखी जा सकती हैं। हर लाइन, उपचार का एक चक्र दर्शाती है।
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नाख़ून को साइड से देखने पर, नेल प्लेट पर मौजूद आड़ी खाँच (रंगीन लाइन) आसानी से देखी जा सकती है। रंगीन लाइनें किसी संक्रमण, चोट, दैहिक रोग, या कीमोथेरेपी के बाद हो सकती हैं।
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इस फोटो में अंगुली के नाख़ून की पूरी चौड़ाई में फैली सफ़ेद लाइनें (तीरों से प्रदर्शित) देखी जा सकती हैं। इन रेखाओं को मीज़ लाइनें कहते हैं। मीज़ लाइनें कैंसर या हृदय की खराबी, कीमोथेरेपी, या कुछ विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने वाली अधिक गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ी हो सकती हैं, जैसे कि आर्सेनिक, थैलियम, या अन्य भारी धातुएं।
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त्वचा रोगों से जुड़ीं विरूपताएँ और अपविकास
कभी-कभी, त्वचा रोग भी नाख़ून को प्रभावित करते हैं और उनके स्वरुप में बदलाव कर सकते हैं। त्वचा रोगों के उपचार की कुछ दवाएँ नेल प्लेट में बदलाव कर सकती हैं। उदाहरण के लिए रेटिनॉइड वर्ग की दवाएँ, जैसे आइसोट्रेटिनॉइन और इट्रेटिनेट, नाखूनों को ख़ुश्क और नाज़ुक बना सकती हैं।
सोरियसिस में नाखूनों में अनियमित गड्ढे (नाख़ून की सतह में नन्हे गड्ढे), तेल के धब्बे (नाख़ून के नीचे पीले-कत्थई धब्बे), नेल प्लेट का उसके बेड से अलग होना (ओनिकोलिसिस), और नेल प्लेट का मोटा और कमज़ोर होना जैसी समस्याएँ हो सकती हैं।
नेल मेट्रिक्स के लाइकेन प्लेनस में शुरुआत में नाख़ून पर उभरी धारियाँ बनती हैं, नाख़ून टूटता है, घाव के निशान पड़ते हैं, और बाद में घाव के निशान और टेरिजियम बन जाते हैं। नाख़ून का टेरिजियम, जो लाइकेन प्लेनस से होता है, नाख़ून के आधार से बाहर की ओर बनने वाला घाव का निशान है जो V की आकृति में बनता है और नाख़ून अलग हो जाने का कारण बनता है।
एलोपेसिया एरिएटा ऐसा विकार है जिसमें बालों के अनियमित गुच्छे अचानक झड़ जाते हैं, जो आम तौर पर गोल होते हैं; इस विकार से ग्रस्त लोगों के नाखूनों में गड्ढे हो सकते हैं जो कोई ज्यामितीय पैटर्न बनाते हैं।
एलोपेसिया एरिएटा, लाइकेन प्लेनस, अटॉपिक डर्माटाईटिस, या सोरियसिस से ग्रस्त लोगों में ट्रैकियोनिकिया हो सकता है (खुरदरे और अपारदर्शी नाख़ून, जिन पर उभरी धारियाँ होती हैं और जो सैंडपेपर जैसे दिखते हैं)। ट्रैकियोनिकिया, अधिकतर बच्चों में होता है।
इस फोटो में सोरियसिस से ग्रस्त एक व्यक्ति में गड्ढे और पीले-कत्थई रंग वाले स्थान (जिन्हें तेल के धब्बे कहते हैं) देखे जा सकते हैं।
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इस फोटो में लाइकेन प्लेनस से ग्रस्त व्यक्ति के अंगूठे के नाख़ून पर लंबाई की दिशा में उभरी धारियाँ देखी जा सकती हैं।
डॉ. पी. मराज़ी/SCIENCE PHOTO LIBRARY
इस फोटो में कई नाखूनों में टेरिजियम (नाख़ून के आधार पर अंदर से बाहर की ओर घाव का निशान बनना जो V की आकृति में होता है) और एट्रॉफी (अपक्षय) देखा जा सकता है, जो लाइकेन प्लेनस से ग्रस्त लोगों में देखने को मिलते हैं।
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इस फ़ोटो में नाख़ून अपारदर्शी हैं और ये देखने में खुरदरे और सैंडपेपर जैसे हैं।
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नाखूनों पर दवाओं का प्रभाव
दवाएँ नाखूनों की अन्य समस्याएँ पैदा कर सकती हैं, जैसे मेलनोनिकिया स्ट्राएटा (कत्थई या काले पिगमेंट वाली रेखाएँ) और ओनिकोलिसिस। कई अलग-अलग दवाओं के कारण नाख़ून बदरंग हो जाते हैं, और दवा के रुकने तथा नाख़ून के बढ़ने पर बदरंगता में आम तौर पर सुधार आता है।
कीमोथेरेपी दवाएँ नेल प्लेट का रंग गहरा बना सकती हैं (हाइपरपिगमेंटेशन)। कुछ कीमोथेरेपी दवाओं से उपचार करवा चुके लोगों में आड़ी, पिगमेंट-युक्त या सफ़ेद पट्टियाँ भी देखने को मिलती हैं।
क्लोरोक्विन नामक दवा पैरासिटिक (परजीवी) संक्रमणों और ऑटोइम्यून रोगों के कुछ प्रकारों के उपचार में प्रयोग होती है; यह दवा नेल बेड का रंग नीला-काला कर सकती है।
चाँदी, जो पेशागत संपर्क के बाद या कोलॉइडल सिल्वर प्रोटीन से युक्त डाइटरी सप्लीमेंट के सेवन के ज़रिए शरीर में पहुँच सकती है, नाखूनों को गहरा नीला-स्लेटी बना सकती है।
सोने का उपयोग दुर्लभ मामलों में रूमैटॉइड अर्थराइटिस के उपचार में होता है; सोना-युक्त दवाएँ नाखूनों को पीला या गहरा कत्थई कर सकती हैं।
टेट्रासाइक्लिन वर्ग की एंटीबायोटिक्स, कीटोकोनाज़ोल, सल्फ़ोनामाइड वर्ग की एंटीबायोटिक्स, फेनिनडायॉन, और फीनोथायज़ीन वर्ग की दवाएँ नाखूनों को नीला या कत्थई बना सकती हैं।
ज़िडोवुडिन (ZDV) नामक दवा का उपयोग ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (HIV) संक्रमण के उपचार में होता है और यह दवा नाखूनों पर लंबाई की दिशा में कत्थई-काली धारियाँ बना सकती है। हालांकि, ये धारियाँ उन लोगों में भी हो सकती हैं, जिन्हें एड्स है पर जो ZDV नहीं ले रहे हैं।
आर्सेनिक विषाक्तता से नाखूनों पर आड़ी सफ़ेद लाइनें बन सकती हैं या नाख़ून कत्थई हो सकते हैं।
मीडियन नेल डिस्ट्रॉफी
मीडियन नेल डिस्ट्रॉफी में, नाख़ून के बीचोबीच में से छोटी-छोटी दरारें किनारों की ओर जाती हैं और आगे चलकर वे किसी सदाबहार पेड़ (जैसे क्रिसमस ट्री) की शाखाओं जैसी दिखने लगती हैं। मीडियन नेल डिस्ट्रॉफी के कुछ मामलों में इसका कारण अज्ञात होता है, पर माना जाता है कि बार-बार चोट लगने, जिसमें कंप्यूटर कीबोर्ड और इसी तरह के दूसरे डिवाइस का अक्सर उपयोग शामिल है, की इस अपविकास में भूमिका होती है। व्यक्ति को नाखूनों को चोट पहुँचाना रोक देना चाहिए। टेक्रोलिमस ऑइंटमेंट द्वारा उपचार से कुछ मामलों में लाभ होता देखा गया है।
मेलनोनिकिया स्ट्राएटा
मेलनोनिकिया स्ट्राएटा नेल प्लेट में बनने वाली स्लेटी, कत्थई, या काली लाइनें हैं जो त्वचा के सामान्य कत्थई पिगमेंट, मेलेनिन से बनती हैं। ये लाइनें नाख़ून के आधार से निकलकर उसके सिरे तक जाती हैं। गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों में, ये लाइनें सामान्य हो सकती हैं जिसके लिए कोई उपचार ज़रूरी नहीं होता है। मेलनोनिकिया स्ट्राएटा के अन्य कैंसर-रहित कारणों में मस्से, HIV संक्रमण, हाइपरथायरॉइडिज़्म, कुछ दवाओं का उपयोग, गर्भावस्था, नाखूनों की चोटें, एडिसन रोग, और कुशिंग सिंड्रोम शामिल हैं।
हालांकि, नाख़ून में या उसके आस-पास इसी तरह की गहरे रंग की रेखाएँ या कुरूपता, कैंसर का विशेष रूप से मेलेनोमा का शुरुआती संकेत हो सकती हैं; मेलेनोमा नाख़ून को बनाने वाले ऊतक (नेल मेट्रिक्स) की पिगमेंट कोशिकाओं से हो सकता है। यदि डॉक्टरों को यह चिंता हो कि कोई कुरूपता कैंसरयुक्त हो सकती है तो वे आम तौर पर नेल मेट्रिक्स की बायोप्सी करते हैं।
ओनिकोलिसिस
ओनिकोलिसिस का अर्थ नेल बेड से नेल प्लेट आंशिक रूप से या पूरी तरह से अलग हो जाने से है। यह इन कारणों से हो सकता है
कोई चोट (जैसे ठीक से फ़िट न होने वाले जूते पहनकर लंबे समय तक हाइकिंग या स्कीइंग)
नाखूनों की अति उत्साह में साफ़-सफ़ाई
पानी, खट्टे फलों, और कुछ रसायनों (जैसे क्लीनिंग एजेंट में मौजूद रसायन) से बार-बार संपर्क
डॉक्सोर्यूबिसिन, कैप्टोप्रिल, प्रैक्टोलॉल, 5-फ़्लोरोयूरेसिल, और रेटिनॉइड वर्ग की दवाओं से उपचार
साथ ही, अन्य दवाएँ जैसे डॉक्सीसाइक्लिन, सोरालेन वर्ग की दवाएँ, और फ़्लोरोक्विनोलोन वर्ग की दवाएँ, नाखूनों का धूप से संपर्क होने पर ओनिकोलिसिस पैदा कर सकती हैं (फोटो-ओनिकोलिसिस)।
ओनिकोलिसिस से ग्रस्त लोगों में यीस्ट और फ़ंगस संक्रमण का जोखिम होता है। नाखूनों को सूखा रखने और एंटीफंगल उत्पाद लगाने से मदद मिल सकती है।
पिंसर नाख़ून विरूपता
पिंसर नाख़ून विरूपता में, आड़ी दिशा में (साइड-से-साइड) नाख़ून की गोलाई बहुत अधिक हो जाती है। यह अधिकतर किसी फ़ंगल संक्रमण (ओनिकोमाइकोसिस), सोरियसिस, नाख़ून के ट्यूमरों, और ठीक से फ़िट न होने वाले जूतों के कारण होती है। यह विरूपता लूपस, कावासाकी रोग, अंतिम चरण के किडनी रोग (गंभीर क्रोनिक किडनी रोग), और कुछ आनुवंशिक सिंड्रोम (जैसे, पैकियोनिकिया कंजेनिटा) से ग्रस्त लोगों में भी हो सकती है। कभी-कभी यह बुज़ुर्गों में और अंगुलियों की अर्थराइटिस से ग्रस्त लोगों में हो जाती है। जहाँ नेल प्लेट गोल होकर अंगुलियों के सिरों को दबाती है वहाँ अक्सर दर्द होता है।