नवजात शिशुओं में जन्म के समय चोटें

इनके द्वाराArcangela Lattari Balest, MD, University of Pittsburgh, School of Medicine
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया जन॰ २०२४

जन्म के समय चोट लगना, एक ऐसी समस्या होती है, जो प्रसव की प्रक्रिया के दौरान बच्चे को हो सकती है, यह चोट बच्चों को आम तौर पर बर्थ कैनाल से बाहर निकलने के समय लगती है।

  • कई नवजात शिशुओं को प्रसव की प्रक्रिया के कारण सूजन या मामूली चोट लग जाती है।

  • ज़्यादातर चोटें बिना उपचार के ठीक हो जाती हैं।

  • कुछ मामलों में, चोट अधिक गंभीर हो सकती है, जैसे कि तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंच सकता है या हड्डी टूट सकती है।

जन्म के समय लगने वाली चोटें आमतौर पर, प्रवस पीड़ा और प्रसव के दौरान प्राकृतिक बलों के कारण होती हैं।

कठिन प्रसव के दौरान चोट लगने की संभावना अधिक होती है, जो गर्भस्थ शिशु के आकार, उसकी स्थिति, चिमटी या वैक्यूम से किए जाने वाले प्रसव या अन्य कारणों से लग सकती है।

बच्चे का आकार बहुत बड़ा होने पर उसे जन्म के समय चोट लगने का जोखिम अधिक होता है। जब यह अनुमान लगाया जाता है कि शिशु का वज़न 11 पाउंड (जब मां को डायबिटीज हो तो 10 पाउंड से अधिक) से अधिक है, तो डॉक्टर सिजेरियन डिलीवरी (सी-सेक्शन) का सुझाव देते हैं।

चोट लगने की संभावना तब भी अधिक होती है, जब गर्भस्थ शिशु जन्म से पहले गर्भाशय में असामान्य स्थिति में होता है (गर्भस्थ शिशु की स्थिति और प्रेज़ेंटेशन चित्र देखें)।

कुछ प्रसवों में, डॉक्टर चिमटी (घुमावदार किनारों वाला एक सर्जिकल उपकरण, जो गर्भस्थ शिशु के सिर पर फ़िट हो जाता है) या वैक्यूम एक्सट्रैक्टर डिवाइस का उपयोग करते हैं। अगर ठीक से उपयोग किया जाए, तो प्रसव के इन तरीकों से चोट लगने का जोखिम कम होता है।

कुल मिलाकर, पिछले एक दशक की तुलना में अब जन्म के समय चोट लगने की दर काफी कम हो गई है, क्योंकि अल्ट्रासाउंड से प्रसव के पहले बहुत अच्छे आकलन होने लगे हैं, चिमटियों का उपयोग कम हो गया है और डॉक्टर उन मामलों में अक्सर C-सेक्शन करने लगे हैं, जिनमें उन्हें जन्म के समय चोट लगने का जोखिम दिखाई देता है।

(नवजात शिशुओं में सामान्य चोटों का विवरण भी देखें।)

भ्रूण की स्थिति और प्रस्तुति

गर्भावस्था के अंत में, भ्रूण प्रसव के लिए स्थिति में आ जाता है। सामान्य तौर पर, बच्चा वर्टेक्स (सिर नीचे) प्रेज़ेंटेशन में रहता है और उसकी स्थिति ऑसीपुट एंटीरियर (जिसमें गर्भस्थ शिशु का चेहरा गर्भवती महिला की रीढ़ की ओर रहता है) होती है और चेहरा व शरीर एक ओर मुड़ा रहता है और गर्दन झुकी हुई होती है।

असामान्य प्रेज़ेंटेशन में फ़ेस, ब्रो, ब्रीच और शोल्डर शामिल होते हैं। ऑसीपुट पोस्टीरियर स्थिति (जिसमें गर्भस्थ शिशु का चेहरा गर्भवती महिला की जाँघ की हड्डी की ओर रहता है), ऑसीपुट एंटीरियर स्थिति की तुलना में कम आम होती है।

जन्म के समय सिर में चोट लगना

सिर का लंबा होना कोई चोट नहीं होती है, लेकिन माता-पिता को इस बारे में चिंता हो सकती है। मोल्डिंग का मतलब शिशु के सिर के आकार में सामान्य बदलाव से होता है, जिसकी वजह से प्रसव के दौरान सिर पर दबाव होता है। ज़्यादातर जन्मों में, बर्थ कैनाल में प्रवेश करने वाला पहला अंग सिर होता है। चूंकि भ्रूण की खोपड़ी की हड्डियां पोजीशन में कठोरतापूर्वक जुड़ी नहीं होती हैं, और जब सिर को बर्थ कैनाल से पुश किया जाता है, तो यह लंबा और पतला हो जाता है, जिससे भ्रूण अधिक आसानी से निकल आता है। मोल्डिंग से मस्तिष्क प्रभावित नहीं होता और इससे कोई समस्या नहीं होती या इसके लिए किसी उपचार का सुझाव नहीं दिया जाता। अनेक दिनों की अवधि के दौरान, सिर का आकार धीरे-धीरे अधिक गोलाकार हो जाता है।

सिर में मामूली चोट लगना, जन्म के समय लगने वाली सबसे आम चोट होती है। खोपड़ी पर सूजन और खरोंच आदि लगना आम बात है, लेकिन यह गंभीर नहीं होती और आमतौर पर यह कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है। सिर में खरोंच उन उपकरणों (जैसे सिर पर लगाए गए फ़ीटल मॉनिटर जो स्कैल्प से जुडते हैं, जैसे चिमटियाँ या वैक्यूम एक्सट्रैक्टर) से लग सकती है, जिनका उपयोग योनि से होने वाले प्रसव के दौरान किया जाता है।

सिर और खोपड़ी की हड्डियों के बीच रक्त का रिसाव होने से खोपड़ी की हड्डियों के ऊपर पाई जाने वाली मोटी रेशेदार परत (पेरिऑस्टियम) के ऊपर या नीचे रक्त जमा हो सकता है।

खोपड़ी और पेरिऑस्टियम के बीच रक्त जमा होने की स्थिति को सेफ़ेलोहीमाटोमा कहा जाता है। सेफालोहेमाटोमा नर्म महसूस होता है और जन्म के बाद, इसके आकार में बढ़ोतरी हो सकती है। ये कुछ हफ़्तों से लेकर कुछ महीनों में अपने-आप ठीक हो जाते हैं और लगभग कभी भी इनके लिए किसी उपचार की ज़रूरत नहीं पड़ती है। हालांकि, अगर ये लाल हो जांच या इनमें से तरल पदार्थ बहने लगे, तो इनकी जांच बाल रोग चिकित्सक द्वारा करवाई जानी चाहिए। कभी-कभी, कुछ रक्त कठोर हो जाते है (कैल्सिफ़ाई हो जाता है) और खोपड़ी पर एक कठोर गाँठ बन जाती है। इस कैल्शियम युक्त गाँठ को सर्जरी से निकालने की ज़रूरत बहुत ही कम मामलों में पड़ती है।

जब पेरिऑस्टियम और खोपड़ी की हड्डियों के बीच रक्त जमा हो जाता है, तो उसे सबगैलियल हैमरेज कहा जाता है। इस जगह खून फैल सकता है और सेफालोहेमाटोमा की तरह एक ही जगह तक सीमित नहीं रहता है। इसके कारण काफी अधिक मात्रा में रक्त बह सकता है और आघात की स्थिति उत्पन्न हो सकती है और इसके लिए ब्लड ट्रांसफ़्यूजन की ज़रूरत पड़ सकती है। सबगैलियल हैमरेज की उत्पत्ति फ़ोरसेप्स या वैक्यूम एक्स्ट्रेक्टर के इस्तेमाल के कारण हो सकती है या इसकी उत्पत्ति खून के क्लॉटिंग की समस्या के कारण हो सकती है।

खोपड़ी की किसी हड्डी में फ्रैक्चर जन्म की प्रक्रिया से पहले या बाद में हो सकता है। खोपड़ी में फ्रैक्चर होना आम नहीं है। जब तक खोपड़ी के फ्रैक्चर में इंडेंटेशन (डिप्रेस्ड फ्रैक्चर) नहीं होता है, आमतौर पर यह बिना किसी उपचार के तुरंत ठीक हो जाता है।

क्या आप जानते हैं...

  • जन्म के समय ज़्यादातर मामलों में चोटें, प्रसव के दौरान होने वाले दर्द और प्रसव संबंधी प्राकृतिक बलों के कारण लगती हैं।

त्वचा और कोमल ऊतकों में चोट लगना

प्रसव के बाद नवजात शिशु की त्वचा और खास तौर पर सिर में मामूली चोटें हो सकती हैं और ऐसे चोटें उन अंगों पर भी हो सकती हैं, जो संकुचन के दौरान दबाव झेलते हैं या जो प्रसव के दौरान बर्थ कैनाल से सबसे पहले बाहर आते हैं। प्रसव के लिए ज़रूरी इंस्ट्रुमेंट्स जैसे फ़ोरसेप्स से त्वचा पर चोट लग सकती है। जिन प्रसवों में चेहरा पहले बाहर आता है, उनमें आँखों या चेहरे पर और ब्रीच प्रसव में जननांगों पर सूजन और खरोंच हो सकती हैं (देखें फ़ीटल प्रेज़ेंटेशन, स्थिति और लेटा होना (जिसमें ब्रीच प्रेज़ेंटेशन भी शामिल है))। इन चोटों के लिए किसी उपचार की ज़रूरत नहीं होती है।

प्रसव के दौरान उपकरणों के उपयोग से और नवजात शिशु पर दबाव पड़ने से (जैसे कि जन्म के दौरान श्वासावरोध के कारण होता है) त्वचा के नीचे के फैट पर चोट लग सकती है (जिसे नवजात शिशु का सबक्यूटेनियस फैट नेक्रोसिस कहा जाता है)। त्वचा की यह चोट लाल, गहरी, ट्रंक, बाजुओं, कूल्हे या नितम्बों पर उठे हुए हिस्सों की तरह दिखाई दे सकती है। कुछ हफ्तों या महीनों में, इस तरह से चोट आमतौर पर अपने आप ही ठीक हो जाती है।

मस्तिष्क में तथा उसके आसपास रक्त का रिसाव

मस्तिष्क में तथा उसके आसपास खून का रिसाव (इंट्राक्रेनियल हैमरेज) खून की नलियों के फटने के कारण हो सकता है तथा निम्नलिखित के कारण भी ऐसा हो सकता है

  • जन्म के समय चोट लगना

  • नवजात शिशु का बहुत अधिक बीमार होना जिससे दिमाग में खून और ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो जाती है

  • रक्त के थक्के जमने की समस्या

समय-पूर्व प्रसव से भी इंट्राक्रेनियल हैमरेज का जोखिम बढ़ जाता है।

कभी-कभी इंट्राक्रेनियल हैमरेज, अन्यथा स्वस्थ नवजात शिशु में भी सामान्य प्रसव के बाद हो सकता है। इन मामलों में खून के रिसाव का कारण अज्ञात होता है।

निर्धारित समयावधि से बहुत पहले जन्म लेने वाले शिशुओं के दिमाग में खून का रिसाव बहुत ही अधिक आम बात होती है। ऐसे नवजात शिशु जिनको खून के रिसाव संबंधी विकार (जैसे हीमोफ़िलिया) होते हैं, उनके दिमाग मे खून के रिसाव का जोखिम बढ़ जाता है।

रक्तस्राव वाले अधिकांश नवजात शिशुओं में इसका कोई लक्षण नहीं दिखाई देता है। लेकिन कुछ नवजात शिशुओं में इसके लक्षण गंभीर होते हैं और वे सुस्त होते हैं (ज़्यादा सोते हैं), दूध कम पीते हैं और/या उन्हें सीज़र्स आते हैं।

दिमाग में और इसके आसपास के हिस्सों में खून का रिसाव अनेक जगहों पर हो सकता है:

  • सबअरेक्नॉइड हैमरेज मस्तिष्क को कवर करने वाले दो मैम्ब्रेन के इनरमोस्ट पार्ट के नीचे हो सकती है। यह नवजात शिशुओं में होने वाला सर्वाधिक आम इंट्राक्रेनियल हैमरेज होता है, आमतौर पर यह तय समय पर जन्म लेने वाले शिशुओं में होता है। ऐसे नवजात शिशु जिनको सबअरेक्नॉइड हैमरेज होता है, वे जीवन के पहले 2 से 3 दिनों के भीतर कभी-कभी ऐप्निया (ऐसी अवधियां जिनमें वे सांस लेना बंद कर देते हैं), दौरे, या सुस्त रहते हैं, लेकिन आखिरकार सब कुछ ठीक हो जाता है।

  • सबड्यूरल हैमरेज वह खून का रिसाव है जो दिमाग की बाहरी और आंतरिक सतह के बीच में होता है। उन्नत चाइल्डबर्थ तकनीकों के कारण आजकल यह इतना अधिक आम नहीं होता है। सबड्यूरल हैमरेज मस्तिष्क की सतह पर अधिक दबाव डाल सकता है। सबड्यूरल हैमरेज से पीड़ित नवजात शिशुओं में सीज़र्स जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

  • एपिड्यूरल हेमाटोमा, जो मस्तिष्क और खोपड़ी को ढकने वाले ऊतक (मेनिंजेस) की बाहरी परत (ड्यूरा मेटर) के बीच में होता है। खोपड़ी में फ्रैक्चर के कारण एपिड्यूरल हेमाटोमा हो सकता है। यदि हेमाटोमा के कारण मस्तिष्क में दबाव बढ़ता है, तो खोपड़ी की हड्डियों के बीच (फ़ॉन्टानेल्स) में नरम जगह फूल सकती है। एपिड्यूरल हेमाटोमा से पीड़ित नवजात शिशुओं में ऐप्निया या दौरे पड़ सकते हैं।

  • इंट्रावेंट्रिकुलर हैमरेज, वह खून का रिसाव होता है जो दिमाग में सामान्य फ़्लूड वाली जगहों (वैन्ट्रिकल्स) में होता है।

  • इंट्रापेरेन्काइमल हैमरेज दिमाग के ऊतक मे ही होता है।

इंट्रावेंट्रिकुलर हैमरेज और इंट्रापेरेन्काइमल हैमरेज आमतौर पर समय से बहुत पहले जन्म लेने वाले नवजात शिशुओं मे होता है और खास तौर पर, जन्म के समय चोट के बजाए अविकसित दिमाग के कारण होता है। इनमें से अधिकांश हैमरेज के कोई लक्षण नहीं होते है, लेकिन बड़े स्तर पर होने वाले हैमरेज के कारण ऐप्निया या त्वचा की नीली भूरी विवर्णकता हो सकती है, या नवजात शिशु का पूरा शरीर अचानक सामान्य गतिविधियां करना बंद कर देता है। ऐसे नवजात शिशु जिनको बड़े हैमरेज होते हैं, खास तौर पर ऐसे हैमरेज जो पेरेन्काइमा तक पहुंच चुके होते हैं, उनके लिए इस समस्या का पूर्वानुमान बहुत खराब होता है, लेकिन छोटे हैमरेज वाले शिशु आम तौर पर जीवित बच जाते हैं और स्वस्थ रहते हैं।

ऐसे नवजात जिनको हैमरेज होता है, उनको नवजात शिशु गहन देखभाल इकाई (NICU) में इमेजिंग (जैसे CT स्कैन या MRI) और निगरानी, सहायक देखभाल (जैसे वार्म्थ), शिरा के माध्यम से दिए जाने वाले फ़्लूड, और शरीर के अंदर होने वाली गतिविधियों को बनाए रखने के लिए अन्य उपचार के उद्देश्यो से भर्ती किया जाता है।

मस्तिष्क में तथा उसके आसपास रक्त का रिसाव

मस्तिष्क और उसके आसपास के हिस्सों में खून का रिसाव हो सकता है।

तंत्रिकाओं में चोट लगना

प्रसव से पहले और बाद में तंत्रिका को चोट पहुंच सकती है। आमतौर पर, इन चोटों के कारण प्रभावित तंत्रिका द्वारा नियंत्रित मांसपेशियों में कमजोरी आ सकती है। तंत्रिका की चोटों में निम्नलिखित शामिल हो सकते हैं

  • चेहरे की तंत्रिका: चेहरे की टेढ़ी-मेढ़ी अभिव्यक्ति

  • ब्रेकियल प्लेक्सेस: बाजू और/या हाथ की कमजोरी

  • फ्रेनिक तंत्रिका (बहुत कम): सांस लेने में कठिनाई

  • स्पाइनल कॉर्ड (बहुत कम): लकवा

अन्य तंत्रिकाएं जैसे बाजू में रेडियल तंत्रिका, कमर में सायटिक तंत्रिका, टांग में ऑब्टुरेटर तंत्रिका पर भी प्रसव के दौरान चोट लग सकती है। अधिकांश बच्चे इन चोटों से पूरी तरह ठीक हो जाते हैं।

चेहरे की तंत्रिका में चोट लगना

चेहरे की तंत्रिका पर चोट तब दिखती है, जब नवजात शिशु रोता है और चेहरा एक तरफ को टेढ़ा दिखता है (असममित)। चेहरे की तंत्रिका ही वह तंत्रिका होती है जिस पर सबसे ज़्यादा चोट लगती है। यह चोट इसलिए लगती है, क्योंकि निम्नलिखित के कारण तंत्रिका की तरफ दबाव पड़ता है

  • जन्म से पहले गर्भाशय में भ्रूण की पोजीशन के कारण

  • प्रसव के दौरान, तंत्रिका मां की श्रोणि के कारण दब जाती है

  • प्रसव में सहायता के लिए प्रयोग किए गए फोरसेप्स

चेहरे की तंत्रिका पर चोट लगने पर, किसी उपचार की आवश्यकता नहीं होती है और आमतौर पर, मांसपेशी की कमजोरी 2 से 3 महीने की आयु तक ठीक हो जाती है। हालांकि, कभी-कभी चेहरे की तंत्रिका की कमजोरी चोट के बजाए जन्मजात विकार की वजह से होती है और यह ठीक नहीं होती।

ब्रैकियल प्लेक्सस में चोट लगना

ब्रैकियल प्लेक्सस गर्दन और कंधे के बीच वाली बड़ी नसों का एक समूह होता है, जो प्रत्येक भुजा तक जाता है। कठिन प्रसव के दौरान, शिशु की एक या दोनों बाँहें खिंची हुई हो सकती हैं और इससे ब्रैकियल प्लेक्सस की तंत्रिकाओं में चोट लग सकती है (प्लेक्सस के विकार देखें), जिससे बच्चे की पूरी बाँह या हाथ में या उनके कुछ हिस्से में कमज़ोरी आ सकती है या लकवा हो सकता है। कंधे और कोहनी की कमजोरी को एर्ब पाल्सी कहा जाता है, तथा हाथ और कलाई की कमजोरी को क्लम्पके पाल्सी कहा जाता है।

ब्रैकियल प्लेक्सस में चोट लगने के लगभग आधे मामले कठिन प्रसव से संबंधित होते हैं, जिनमें शिशुओं का आकार बड़ा होता है और लगभग आधे शिशुओं के मामले में सामान्य प्रसवों के दौरान होते हैं। सिजेरियन प्रसव (C-सेक्शन) से जन्म लेने वाले शिशुओं में ब्रैकियल प्लेक्सस कम होता है।

तंत्रिकाओं ठीक हो सकें, इसलिए कंधे के बहुत अधिक मूवमेंट्स से बचा जाना चाहिए। कुछ दिनों में अनेक मध्यम चोटें ठीक हो जाती हैं। यदि असामान्यता अधिक गंभीर हो या 1 या 2 सप्ताह तक बनी रहे, तो बाँह को सही स्थिति में रखने और उसके हल्के मूवमेंट के लिए फ़िजिकल थेरेपी या ओक्यूपेशनल थेरेपी का सुझाव दिया जाता है। यदि 1 से 2 महीनों के बीच में कोई सुधार नहीं होता है, तो डॉक्टर विशिष्ट रूप से यह सुझाव देते हैं कि शिशु का मूल्यांकन पीडियाट्रिक स्पेशिएलटी अस्पताल में पीडियाट्रिक न्यूरोलॉजिस्ट और/या ऑर्थोपेडिस्ट द्वारा किया जाना चाहिए, ताकि यह देखा जा सके कि क्या सर्जरी लाभदायक साबित होगी।

शिशु में एर्ब पाल्सी
विवरण छुपाओ
एर्ब पाल्सी से पीड़ित नवजात शिशु की इस फ़ोटो में शिशु का कंधा घूम कर शरीर की ओर मुड़ गया है, कोहनी बाहर की ओर निकल गई है तथा कलाई और उंगलियाँ मुड़ गई हैं।
© स्प्रिंगर सायन्स + बिज़नेस मीडिया

फ़्रेनिक तंत्रिका में चोट लगना

फ्रेनिक तंत्रिका, जो कि तंत्रिका डायाफ़्राम तक जाती है (मांसपेशीय दीवार जो सीने के अंगों को पेट से अलग करती है और सांस लेने में सहायता करती है), उस पर कभी-कभी चोट लग सकती है, और उसी तरफ ही डायाफ़्राम में लकवा कि समस्या आ सकती है।

यह चोट लगने पर नवजात शिशु को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है और उसे सांस लेने के लिए सहायता की ज़रूरत पड़ती है।

फ्रेनिक तंत्रिका की चोट आमतौर पर कुछ ही सप्ताहों में पूरी तरह से ठीक हो जाती है।

स्पाइनल कॉर्ड की चोट

प्रसव के दौरान, ज़रूरत से ज़्यादा खींचने के कारण स्पाइनल कॉर्ड में चोट लगने के मामले बहुत ही कम देखने को मिलते हैं (बच्चों की स्पाइनल कॉर्ड में चोट लगना भी देखें)। इन चोटों के कारण चोट के नीचे वाले हिस्से में लकवा हो सकता है। स्पाइनल कॉर्ड पर चोट की वजह से, आने वाली समस्या अक्सर बनी रहती है।

स्पाइनल कॉर्ड में लगने वाली कुछ चोटें, जो गर्दन के ऊपरी हिस्से में लगती हैं, वे जानलेवा साबित होती हैं, क्योंकि उनकी वजह से नवजात शिशु उचित रूप से सांस नहीं ले पाता।

हड्डी में चोट लगना

प्रसव के सामान्य होने के बावजूद भी, प्रसव से पहले या बाद में हड्डियां टूट सकती हैं (फ्रैक्चर्ड)।

कॉलरबोन (क्लेविकल) का फ्रैक्चर तुलनात्मक रूप से आम होता है, जो 1 से 2% नवजात शिशुओं में होता है। कभी-कभी इन फ्रैक्चर का जन्म के कई दिनों बाद तक पता नहीं लगता है, ऐसे में फ्रैक्चर के आसपास एक गांठ जैसा ऊतक बन जाता है। क्लेविकल फ्रैक्चर से पीड़ित नवजात शिशु कभी-कभी चिढ़चिढ़े होते हैं और हो सकता है कि वे बाँह को प्रभावित हिस्से में न हिला पाएँ। इन फ्रैक्चर के लिए उपचार की ज़रूरत नहीं होती है। कुछ हफ़्तों में यह ठीक हो जाते हैं।

कभी-कभी बाँह के ऊपरी हिस्से की हड्डी (ह्यूमेरस) या पैर के ऊपरी हिस्से की हड्डी (फ़ीमर) में फ्रैक्चर हो जाते हैं। शुरुआती कुछ दिनों में नवजात शिशुओं को पैर हिलाने में दर्द हो सकता है। मूवमेंट को सीमित करने के लिए डॉक्टर्स एक लूज़ स्प्लिंट बांध देते हैं। ये फ्रैक्चर आम तौर पर अच्छी तरह ठीक हो जाते हैं।

कुछ दुर्लभ आनुवंशिक स्थितियों (जैसे कि ऑस्टियोजेनेसिस इम्पर्फ़ेक्टा) में, जिनमें हड्डियाँ बहुत कमज़ोर होती हैं, उन नवजात शिशुओं में एक से अधिक हड्डियों में फ्रैक्चर हो सकते हैं।