चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम

(चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम)

इनके द्वाराJames Fernandez, MD, PhD, Cleveland Clinic Lerner College of Medicine at Case Western Reserve University
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्तू॰ २०२४

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम, बहुत ही कम मामलों में होने वाला इम्यूनोडिफिशिएंसी का आनुवंशिक विकार है, जिसमें बैक्टीरिया से होने वाले, श्वसन तंत्र से सबंधित और दूसरे इंफ़ेक्शन और बालों, आँखों और त्वचा में पिगमेंट की कमी (एल्बीनिज़्म) की विशेषता होती है।

  • चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की त्वचा आमतौर पर पीली, बाल हल्के रंग के या सफ़ेद और आंखें, गुलाबी या हल्के नीले-भूरे रंग की होती हैं।

  • डॉक्टर, असामान्यताओं की जांच के लिए रक्त के सैंपल्स की जांच करते हैं और इसके निदान की पुष्टि करने के लिए आनुवंशिक जांच करते हैं।

  • उपचार में संक्रमण को रोकने के लिए एंटीबायोटिक्स, प्रतिरक्षा प्रणाली की बेहतर तरीके से कार्य करने में मदद के लिए दूसरी दवाएँ और अगर संभव हो तो स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन शामिल होता है।

(इम्यूनोडिफ़िशिएंसी डिसऑर्डर का ब्यौरा भी देखें।)

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम, प्राइमरी इम्यूनोडिफ़िशिएंसी डिसऑर्डर है। आमतौर पर यह ऑटोसोमल (सेक्स-लिंक्ड नहीं) रिसेसिव डिसऑर्डर के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी होता है। इसका मतलब यह है, कि विकार के लिए 2 जींस, माता-पिता प्रत्येक से एक जीन की ज़रूरत होती है।

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम से पीड़ित लोग इन्फेक्शन के प्रति ज़्यादा संवेदनशील होते हैं क्योंकि फैगोसाइट्स (सफेद रक्त कोशिकाएं के प्रकार, जिनमें न्यूट्रोफिल, इओसिनोफिल, मोनोसाइट और मैक्रोफ़ेज शामिल हैं) सामान्य रूप से काम नहीं करते हैं। फैगोसाइट्स, ऐसी सैल्स होती हैं, जो माइक्रोऑर्गेनिज़्म को निगल लेती हैं और मार देती हैं।

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम के लक्षण

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम में, बहुत कम पिगमेंट मेलेनिन बनता है या फिर कोई भी पिगमेंट मेलेनिन नहीं बनता है (जिसे एल्बीनिज़्म कहा जाता है)। मेलेनिन से त्वचा, आंखों और बालों को उनका रंग मिलता है। आमतौर पर, त्वचा का रंग पीला होता है, बाल हल्के रंग के या सफ़ेद होते हैं, और आंखें गुलाबी या हल्के नीले-भूरे रंग की हो सकती हैं।

डिसऑर्डर की वजह से नज़र से जुड़ी समस्याएं भी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए, नज़र की स्पष्टता (तीक्ष्णता) कम हो सकती है, और प्रकाश के प्रति आँखों की संवेदनशीलता (फ़ोटोसेंसिटिविटी) में कमी हो सकती हैं। निस्टैग्मस, जिसकी वजह से नज़र धुंधला हो सकता है, होना आम है। निस्टैग्मस में, आंखें बार-बार तेज़ी से एक ही दिशा में घूमती हैं, इसके बाद धीरे-धीरे वापस अपनी मूल स्थिति में लौट आती हैं।

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम की वजह से भी आमतौर पर मुंह के छाले, मसूड़े की सूजन और पेरियोडोंटल बीमारी होती है।

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम से पीड़ित लोगों में बहुत से इन्फेक्शन भी होते हैं। इन्फेक्शन में आमतौर पर श्वसन तंत्र, त्वचा और मुंह की लाइनिंग की मेम्ब्रेन से जुड़े इन्फेक्शन शामिल होते हैं।

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम लगभग 80% लोगों में बढ़ता जाता है, जिसकी वजह से बुखार, पीलिया (त्वचा और आंखों का रंग पीला हो जाना), लिवर और स्प्लीन का आकार बढ़ने, लिम्फ नोड्स में सूजन आने और तुरंत खून बहने और चोट लगने की प्रवृत्ति होती है। डिसऑर्डर से तंत्रिका तंत्र भी प्रभावित हो सकता है, जिससे कमज़ोरी, गड़बड़ी, चलने में परेशानी और दौरे आ सकते हैं। इन लक्षणों के होने के बाद, आमतौर पर सिंड्रोम 30 महीनों के अंदर जानलेवा हो जाता है।

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम का निदान

  • रक्त के सैंपल्स की जांच

  • आनुवंशिक जांच

इसमें रक्त का सैंपल निकाला जाता है और माइक्रोस्कोप के अंतर्गत उसकी जांच की जाती है। सफेद रक्त कोशिकाएं में कुछ असामान्यताओं से चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम का संकेत मिलता है।

इसके निदान की पुष्टि, रक्त के सैंपल्स का इस्तेमाल करके आनुवंशिक जांच से की जा सकती है।

चूंकि यह डिसऑर्डर बहुत कम होता है, इसलिए परिवार के सदस्यों की जांच, सिर्फ़ तभी की जाती है जब उनमें चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम का संकेत देने वाले लक्षण मौजूद हों।

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम का इलाज

  • एंटीबायोटिक्स इन्फेक्शन को रोकने के लिए

  • इंटरफ़ेरॉन गामा और कभी-कभी कॉर्टिकोस्टेरॉइड

  • स्टेम सैल ट्रांसप्लांटेशन

चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम के उपचार में संक्रमण को रोकने में सहायता के लिए एंटीबायोटिक्स और प्रतिरक्षा प्रणाली की बेहतर ढंग से काम करने में सहायता के लिए इंटरफेरॉन गामा (ऐसी दवा, जो प्रतिरक्षा प्रणाली में बदलाव करती है) शामिल होती है।

कॉर्टिकोस्टेरॉइड और स्प्लीन (स्प्लेनेक्टॉमी) को निकाल देने से कभी-कभी लक्षणों से थोड़े समय के लिए राहत मिलती है।

हालांकि, स्टेम सैल ट्रांसप्लांटेशन नहीं किए जाने पर, 7 साल की उम्र तक ज्यादातर लोगों की मृत्यु इन्फेक्शन से हो जाती है। समान प्रकार के टिशू वाले डोनर की स्टेम सैल के ट्रांसप्लांटेशन से वे ठीक हो सकते हैं। आमतौर पर, बच्चों को ट्रांसप्लांट की गई कोशिकाओं की अस्वीकृति के जोखिम को कम करने के लिए ट्रांसप्लांटेशन (प्रीट्रांसप्लांट कंडीशनिंग कीमोथेरेपी) से पहले कीमोथेरेपी एजेंट दिया जाता है। लगभग 60% बच्चे ट्रांसप्लांटेशन के 5 साल बाद तक जीवित रहते हैं।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की सामग्री के लिए मैन्युअल उत्तरदायी नहीं है।

  1. Immune Deficiency Foundation: Chronic granulomatous disease and other phagocytic cell disorders: प्रभावित लोगों के लिए निदान और इलाज से लेकर जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने तक के लिए चेडियाक-हिगाशी सिंड्रोम सहित प्राइमरी इम्यूनोडिफ़िशिएंसी के बारे में विस्तृत जानकारी

quizzes_lightbulb_red
अपना ज्ञान परखेंएक क्वज़ि लें!
मैनुअल'  ऐप को निः शुल्क डाउनलोड करेंiOS ANDROID
मैनुअल'  ऐप को निः शुल्क डाउनलोड करेंiOS ANDROID
अभी डाउनलोड करने के लिए कोड को स्कैन करेंiOS ANDROID