इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण गर्भस्थ शिशु के चारों ओर वाले ऊतकों, जैसे कि गर्भस्थ शिशु के चारों और मौजूद फ़्लूड (एम्नियोटिक फ़्लूड), गर्भाशय, गर्भस्थ शिशु के चारों ओर की झिल्लियों या उनके संयोजन के कारण होने वाला संक्रमण और जलन है।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण से गर्भवती महिला और गर्भस्थ शिशु में समस्याओं का जोखिम बढ़ जाता है।
महिलाओं को आमतौर पर बुखार होता है और अक्सर पैल्विक दर्द और योनि स्राव होता है।
आमतौर पर, डॉक्टर शारीरिक परीक्षण करके संक्रमण का निदान कर सकते हैं, लेकिन कभी-कभी एम्नियोटिक द्रव का विश्लेषण किया जाना अनिवार्य होता है।
महिलाओं को शरीर के तापमान को कम करने के लिए एंटीबायोटिक्स और दवाएँ दी जाती हैं और डिलीवरी का समय जितनी जल्दी हो सके निर्धारित किया जाता है।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण के लिए जोखिम के कारक
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण आमतौर पर तब विकसित होता है, जब बैक्टीरिया योनि से गर्भाशय ग्रीवा में चले जाते हैं और गर्भस्थ शिशु के आस-पास के ऊतकों को संक्रमित कर देते हैं। कई अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया आमतौर पर योनि में ही रहते हैं। आमतौर पर इनकी वजह से योनि में संक्रमण नहीं होता है, लेकिन अगर वे गर्भाशय तक फैल जाएँ, तो उनके कारण यूटेरिन में संक्रमण हो सकता है। आम तौर पर, गर्भाशय ग्रीवा में श्लेष्मा, भ्रूण के आसपास की झिल्ली और प्लेसेंटा बैक्टीरिया को संक्रमण पैदा करने से रोकते हैं। हालांकि, कुछ स्थितियां बैक्टीरिया के लिए इन बचावों को तोड़ना आसान बना सकती हैं।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण होने की अधिक संभावना भी है यदि
गर्भस्थ शिशु के आस-पास की झिल्लियाँ बहुत जल्दी फट जाती है (जिसे झिल्लियों का समय से पहले फटना कहा जाता है)।
झिल्ली के फटने और बच्चे के प्रसव के बीच लंबी देरी है। देरी जितनी अधिक होगी, इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण विकसित होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी।
प्रसव पीड़ा जल्दी शुरू होता है (समय से पहले प्रसव)।
एम्नियोटिक द्रव में मेकोनियम होता है (गहरे हरे रंग का मल जो जन्म से पहले भ्रूण द्वारा निर्मित होता है और जिसे आमतौर पर जन्म के बाद ही निष्कासित किया जाता है)।
संक्रमण पैदा करने वाले बैक्टीरिया जननांग पथ में हैं। महिलाओं को यह नहीं पता होगा कि ये बैक्टीरिया मौजूद हैं, खासकर अगर उनकी नियमित प्रसव पूर्व देखभाल नहीं हुई है, जब इन जीवाणुओं के लिए परीक्षण किए गए होंगे।
डॉक्टर या दाइयाँ फटी हुई झिल्ली वाली महिलाओं में कई पैल्विक परीक्षाएं करती हैं। ऐसी परीक्षाएं योनि और गर्भाशय में बैक्टीरिया होने का परिचय दे सकती हैं।
प्रसव पीड़ा लंबे समय तक चलती है।
शायद ही कभी, संक्रमण होता है तब भ्रूण की आंतरिक निगरानी की जाती है। इस प्रक्रिया के लिए, डॉक्टर महिला की योनि से होकर एक इलेक्ट्रोड (एक तार से जुड़ा एक छोटा गोल सेंसर) अंदर डालकर गर्भस्थ शिशु की निगरानी करते हैं जो गर्भस्थ की खोपड़ी से जुड़ा होता है।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण की जटिलताएं
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण भ्रूण या नवजात शिशु में निम्नलिखित समस्याओं के जोखिम को बढ़ा सकता है:
समय से पहले डिलीवरी या झिल्लियों का समय से पहले अपरिपक्व स्थिती में फट जाना (गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पहले झिल्लियों का फटना)
प्रसव के समय रक्त में बहुत कम ऑक्सीजन
संक्रमण, जैसे कि पूरे शरीर में संक्रमण (सेप्सिस), निमोनिया, या मेनिन्जाइटिस
मौत
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण समय से पहले प्रसव या झिल्ली के समय से पहले फटने का कारण हो सकता है और साथ ही उसके परिणामस्वरूप हो सकता है।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण महिला में इन समस्याओं का जोखिम बढ़ा सकता है:
सिज़ेरियन प्रसव की आवश्यकता
प्रसव के बाद रक्तस्राव (प्रसवोत्तर रक्तस्राव)
गर्भाशय के चारों ओर पस (मवाद) का संग्रह
प्रसव के दौरान किए गए चीरों का संक्रमण
शायद ही कभी, अगर एक इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण का इलाज नहीं किया जाता है, तो महिलाओ में सेप्टिक शॉक (संक्रमण के प्रति शरीर की गंभीर प्रतिक्रिया के कारण जान को जोखिम में डालने वाला निम्न रक्तचाप), डिस्सेमिनेटेड इंट्रावैस्क्यूलर कोएग्युलेशन (रक्त के थक्के का एक विकार जो रक्त के थक्के और रक्तस्राव का कारण बनता है), और तीव्र श्वसन संकट सिंड्रोम विकसित हो सकते हैं।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण के लक्षण
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण आमतौर पर बुखार का कारण बनता है और अक्सर पेट में दर्द और योनि से डिस्चार्ज होता है जो बदबूदार हो सकता है। माँ और गर्भस्थ शिशु के दिल की धड़कन बढ़ी हुई हो सकती है। हालांकि, कुछ महिलाओं में विशिष्ट लक्षण नहीं होते हैं।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण का निदान
एक डॉक्टर का मूल्यांकन
पूर्ण रक्त गणना परीक्षण
कभी-कभी एम्नियोसेंटेसिस
डॉक्टर शारीरिक परीक्षण और पूर्ण रक्त गणना (जिसमें सफेद रक्त कोशिका की गिनती शामिल है) करते हैं।
एक इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण का संदेह तब होता है जब महिलाओं को बुखार होता है और कम से कम एक अन्य विशिष्ट लक्षण, जैसे कि भ्रूण में तेज़ हृदय गति या महिला में दुर्गंधयुक्त निर्वहन या असामान्य रूप से उच्च सफेद रक्त कोशिका की गिनती होती है। यदि निदान अभी भी अस्पष्ट है, तो डॉक्टर एम्नियोटिक द्रव का एक नमूना निकाल सकते हैं और इसका विश्लेषण कर सकते हैं (एम्नियोसेंटेसिस).
अगर समय से पहले प्रसव पीड़ा या झिल्ली का समय से पहले फटना होता है, तो डॉक्टर संक्रमण की संभावना पर विचार करते हैं, भले ही महिलाओं में खास लक्षण न हों।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण का उपचार
एंटीबायोटिक्स
शरीर के तापमान को कम करने के लिए दवाएँ
प्रसव
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण वाली महिलाओं को अंतःशिरा रूप से एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं। उन्हें शरीर के तापमान को कम करने के लिए दवाएँ (प्रसव से पहले अधिमानतः एसिटामिनोफेन) भी दी जाती हैं।
एक बार निदान होने के बाद प्रसव में देरी नहीं होनी चाहिए।
अगर प्रसव के दौरान पीड़ा शुरू नहीं हुई है, तो प्रसव की पीड़ा को कृत्रिम रूप से शुरू किया (प्रेरित किया) जा सकता है।
तत्काल सिज़ेरियन प्रसव आमतौर पर आवश्यक नहीं है यदि मां और भ्रूण की स्थिती स्थिर है और यदि प्रसव पीड़ा प्रेरित होने परकिए जाने के दौरान एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं।
इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण की रोकथाम
अगर महिलाओं में झिल्लियों का समय से पहले फटना होता है, तो डॉक्टर आवश्यक होने पर ही पेल्विक जाँच करते हैं।
डॉक्टर आमतौर पर इन महिलाओं को एंटीबायोटिक्स दवाएँ नस के माध्यम से और मुंह से देते हैं जिसकी मदद से गर्भावस्था लंबे समय तक चले और गर्भस्थ शिशु में समस्याओं का जोखिम कम किया जा सके।
डॉक्टर गर्भावस्था के 35 से 37 सप्ताह में मरीज़ों में ग्रुप B स्ट्रेप्टोकोकस के लिए स्क्रीनिंग करते हैं। जिन लोगों की स्क्रीनिंग पॉज़िटिव आती है उन्हें प्रसव के दौरान एंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं।