आयुर्वेद भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है, जिसका इतिहास 4,000 साल से भी पुराना है। यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि रोग शरीर की जीवन शक्ति या प्राण के असंतुलन से उत्पन्न होते हैं। इस जीवन शक्ति का संतुलन तीन शारीरिक गुणों के संतुलन से निर्धारित होता है जिन्हें दोष कहा जाता है: वात, पित्त और कफ। अधिकांश लोगों में एक प्रमुख दोष होता है और तीन दोषों के बीच विशिष्ट संतुलन, हर व्यक्ति के लिए अलग-अलग होता है। (इंटीग्रेटिव, कॉम्प्लीमेंटरी और अल्टरनेटिव मेडिसिन का विवरण भी देखें।)
स्वास्थ्य सेवा प्रदाता लोगों की जांच इस आधार पर करते हैं
उनसे लक्षणों, व्यवहार और जीवन-शैली के बारे में पूछताछ करके
आँखों, जीभ और त्वचा सहित उनके पूरे हाल-चाल का अवलोकन करके
उनकी नब्ज़ टटोल कर और उनके पेशाब और मल की जांच करके
दोषों के संतुलन का पता लगाने के बाद, स्वास्थ्य सेवा प्रदाता हर व्यक्ति के लिए अलग से इलाज की रूपरेखा तैयार करते हैं। आयुर्वेद में, आहार, जड़ी-बूटियों, मसाज, मैडिटेशन, योग और आंतरिक सफाई (थेराप्युटिक एलिमिनेशन उन्मूलन) का इस्तेमाल किया जाता है। सफाई में आमतौर पर, शरीर के भीतर और प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखने के लिए, मल त्याग (एनिमा) के लिए मलाशय में तरल पदार्थ को इंजेक्ट करना या नाक को पानी से धोना (नेज़ल लैवेज) शामिल होता है।
आयुर्वेद के औषधीय उपयोग
आयुर्वेद का अध्ययन कई स्थितियों में किया गया है, जिनमें एलर्जिक राइनाइटिस, मानसिक स्वास्थ्य विकार, न्यूरोलॉजिक स्थितियां, दर्द, अर्थराइटिस और डायबिटीज भी शामिल हैं। संपूर्ण चिकित्सा प्रणालियों के अन्य अध्ययनों की तरह ही उच्च गुणवत्ता वाला शोध करना भी कठिन है।
आयुर्वेद के संभावित दुष्प्रभाव
आयुर्वेद में उपयोग किए जाने वाले कुछ बॉटेनिकल संयोजन भारी धातुओं (मुख्य रूप से सीसा, पारा और आर्सेनिक) से संदूषित होते हैं, जिनसे बहुत ज़्यादा धातु विषाक्तता हो सकती है।
अधिक जानकारी
निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।
National Center for Complementary and Integrative Health (NCCIH): आयुर्वेदिक मेडिसिन