माइट्रल स्टीनोसिस में माइट्रल वाल्व का छिद्र संकरा हो जाता है जिससे बायें आलिंद से बायें निलय में रक्त का प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है।
माइट्रल स्टीनोसिस आमतौर से रूमेटिक बुखार के कारण होती है, लेकिन शिशुओं में यह जन्मजात हो सकती है।
माइट्रल स्टीनोसिस तब तक लक्षण पैदा नहीं करती है जब तक कि वह गंभीर नहीं होती है।
डॉक्टर हृदय पर स्टेथस्कोप रखकर एक विशिष्ट हार्ट मर्मर को सुनने के बाद इसका निदान करते हैं, और अधिक विस्तृत निदान करने के लिए इकोकार्डियोग्राफी का उपयोग करते हैं।
उपचार की शुरुआत मूत्रवर्धक दवाइयों और बीटा-ब्लॉकरों या कैल्शियम चैनल ब्लॉकरों से होती है।
वाल्व को एक कैथेटर से खींच कर खोला जाा सकता है, लेकिन कभी-कभार वाल्व को बदलने की जरूरत होती है, जिसके लिए ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है।
(हृदय वाल्वों के विकारों का विवरण और हृदय का वीडियो भी देखें।)
माइट्रल वाल्व बायें आलिंद और बायें निलय के बीच के छिद्र में स्थित होता है। माइट्रल वाल्व बायें निलय को भरने के लिए बायें आलिंद से रक्त को बाहर निकलने देेने के लिए खुलता है और जब बायां निलय संकुचित होता है तो बंद हो जाता है ताकि निलय के द्वारा रक्त को महाधमनी में पंप करने के दौरान बायें आलिंद में वापस न आने पाए। यदि किसी विकार के कारण वाल्व के फ्लैप मोटे और कड़े हो जाते हैं, तो वाल्व का छिद्र संकरा हो जाता है। कभी-कभी कड़ा वाल्व पूरी तरह से बंद नहीं हो पाता है, और माइट्रल रीगर्जिटेशन विकसित हो जाता है।
माइट्रल स्टीनोसिस में, वाल्व के संकरे छिद्र से रक्त का प्रवाह कम हो जाता है। परिणामस्वरूप, बायें आलिंद में रक्त की मात्रा और दबाव बढ़ जाता है, और बायें आलिंद का आकार बड़ा हो जाता है। आकार में बढ़ा हुआ आलिंद अक्सर एक अनियमित पैटर्न में तेजी से धड़कता है (एट्रियल फिब्रिलेशन नामक एक विकार)। परिणामस्वरूप, हृदय की पंपिंग क्षमता कम हो जाती है क्योंकि फिब्रिलेशन वाला आलिंद पंप करने की बजाय कंपन करता है। परिणामस्वरूप, आलिंद के माध्यम से रक्त का प्रवाह फुर्ती के साथ नहीं होता है, और उसके अंदर खून के थक्के बन सकते हैं। यदि कोई थक्का टूट जाता है (और एम्बोलस बन जाता है), तो वह हृदय से बाहर निकल जाता है और किसी धमनी को अवरुद्ध कर सकता है, जिससे स्ट्रोक या अन्य क्षति होने की संभावना होती है।
यदि माइट्रल स्टीनोसिस गंभीर है, तो फेफड़ों की रक्त वाहिकाओं में दबाव बढ़ जाता है (पल्मोनरी हाइपरटेंशन), जिसके कारण फेफड़ों में फ़्लूड भर जाता है और रक्त में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और इस तरह हार्ट फ़ेल हो जाता है। यदि गंभीर माइट्रल स्टीनोसिस वाली महिला गर्भवती हो जाती है, तो हार्ट फेल्यूर तेजी से विकसित हो सकता है।
माइट्रल स्टीनोसिस के कारण
माइट्रल स्टीनोसिस लगभग हमेशा निम्नलिखित के कारण होती है
रूमेटिक बुखार बचपन की एक बीमारी है जो गले में स्ट्रेप्टोकॉकल संक्रमण या स्कैर्लेट बुखार के कुछ अनुपचारित मामलों के बाद होती है। रूमेटिक बुखार अब उत्तरी अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में दुर्लभ है क्योंकि संक्रमण का उपचार करने के लिए एंटीबायोटिक दवाइयों का व्यापक उपयोग किया जाता है। इस तरह से, इन इलाकों में, माइट्रल स्टीनोसिस केवल उन वृद्ध लोगों में होती है जिन्हें उनकी युवावस्था के दौरान रूमेटिक बुखार हुआ था और एंटीबायोटिक दवाइयों का लाभ नहीं मिला था, या उन लोगों में होती है जो उन इलाकों से आए हैं जहाँ एंटीबायोटिक दवाइयों का व्यापक इस्तेमाल नहीं किया जाता है। ऐसे इलाकों में, रूमेटिक बुखार आम है, और वयस्कों, किशोरों, और कभी-कभी बच्चों में भी माइट्रल स्टीनोसिस उत्पन्न करता है। आमतौर से, जब रूमेटिक बुखार माइट्रल स्टीनोसिस का कारण होता है, तो माइट्रल वाल्व के कस्प आंशिक रूप से आपस में जुड़ जाते हैं।
कभी-कभी कुछ बुजुर्ग लोगों में, इसके बजाय वाल्व घिस जाता है और उस पर कैल्शियम जमा हो जाता है। इन लोगों में, माइट्रल स्टीनोसिस कम गंभीर हो सकती है।
दुर्लभ रूप से, माइट्रल स्टीनोसिस जन्म के समय उपस्थित रह सकती है (जन्मजात)। इस विकार के साथ पैदा होने वाले शिशु, यदि उनकी सर्जरी नहीं की जाती है, 2 वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं बचते हैं।
माइट्रल स्टीनोसिस के लक्षण
हल्की माइट्रल स्टीनोसिस के कारण आमतौर पर लक्षण नहीं होते हैं। बाद में यह विकार बढ़ जाता है और लोगों में साँस लेने में परेशानी होने और आसानी से थक जाने जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। एट्रियल फिब्रिलेशन वाले लोगों को धकधकी (धड़कनों का एहसास) महसूस हो सकती है।
लक्षणों के शुरू होने के बाद, लोग लगभग 7 से 9 वर्षों में गंभीर रूप से अक्षम हो जाते हैं। इसके बाद आराम करते समय भी साँस लेने में परेशानी हो सकती है। कुछ लोग आराम से सांस केवल तभी ले सकते हैं जब उन्हें तकियों से सहारा देकर बिठाया जाता है या यदि वे सीधे होकर बैठते हैं। रक्त में ऑक्सीजन की कमी और फेफड़ों में उच्च रक्तचाप वाले लोगों के गालों पर आलूबुखारे के रंग जैसी तमतमाहट हो सकती है (इसे माइट्रल फैसीज़ कहते हैं)। गहरे रंग की त्वचा वाले लोगों में, यह फ़्लश उनकी त्वचा के रंग को और गहरा कर सकता है।
यदि उच्च रक्तचाप के कारण फेफड़े की शिरा या धमनिकाएं फट जाती हैं तो खांसने पर खून (हीमॉप्टिसिस) निकल सकता है। इससे फेफड़ों में होने वाला रक्तस्राव आमतौर पर हल्का सा होता है, किंतु यदि हीमॉप्टिसिस होती है, तो किसी डॉक्टर द्वारा व्यक्ति का तत्काल मूल्यांकन किया जाना चाहिए क्योंकि हीमॉप्टिसिस गंभीर माइट्रल स्टीनोसिस या किसी अन्य गंभीर समस्या का संकेत है।
माइट्रल स्टीनोसिस का निदान
शारीरिक परीक्षण
इकोकार्डियोग्राफी
स्टेथोस्कोप के ज़रिए डॉक्टर हृदय की ऐसी खास ध्वनि (हृदय की असामान्य ध्वनि) को सुन सकते हैं, जो तब उत्पन्न होती है, जब रक्त बाएँ आर्ट्रियम से बाएँ वेंट्रिकल में जाने के लिए संकरे वाल्व से होकर गुज़रने की कोशिश करता है। सामान्य वाल्व के विपरीत, जो चुपचाप खुलता है, असामान्य वाल्व बायें निलय में से रक्त को जाने देने के लिए खुलते समय अक्सर चटकने (स्नैप) की ध्वनि पैदा करता है।
निदान की पुष्टि आमतौर से इकोकार्डियोग्राफी से की जाती है, जिसमें संकरे वाल्व और उसमें से गुजरते रक्त की तस्वीर बनाने के लिए अल्ट्रासाउंड का उपयोग किया जाता है।
इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ECG) और सीने के एक्स-रे भी उपयोगी जानकारी प्रदान करते हैं।
माइट्रल स्टीनोसिस का उपचार
कभी-कभी वाल्व की मरम्मत या प्रतिस्थापन
स्ट्रेप थ्रोट या स्कारलेट फ़ीवर का इलाज तत्काल एंटीबायोटिक्स से करके अगर रूमैटिक फ़ीवर को होने से रोक दिया जाए, तो माइट्रल स्टीनोसिस नहीं होता है।
जिन माइट्रल स्टीनोसिस वाले लोगों में कोई लक्षण नहीं होते हैं उन्हें उपचार की जरूरत नहीं होती है लेकिन रूमेटिक बुखार के और हमलों की रोकथाम करने के लिए दीर्घावधि एंटीबायोटिक दवाइयों की आवश्यकता पड़ सकती है।
जरूरत पड़ने पर, उपचार करने के लिए मूत्रवर्धक दवाइयों और बीटा-ब्लॉकरों या कैल्शियम चैनल ब्लॉकरों का उपयोग किया जाता है। मूत्रवर्धक, जो मूत्र के उत्पादन में वृद्धि करते हैं, रक्त की मात्रा को काम करके फेफड़ों में रक्तचाप को कम कर सकते हैं। बीटा-ब्लॉकर, डिगॉक्सिन, और कैल्शियम चैनल ब्लॉकर एट्रियल फिब्रिलेशन से उत्पन्न होने वाली असामान्य हृदय दर को धीमा करने में मदद कर सकते हैं। एट्रियल फिब्रिलेशन वाले लोगों में खून के थक्कों के बनने से रोकने के लिए एंटीकोएग्युलैंट दवाइयों की जरूरत होती है।
अगर दवाओं से लक्षणों में संतोषजनक कमी न आए, तो वाल्व को सुधारा (यह प्रक्रिया वाल्वुलोप्लास्टी कहलाती है) जा सकता है या उसे बदला जा सकता है।
अक्सर वाल्व को बैलून वाल्वोटोमी नामक एक प्रक्रिया का उपयोग करके खींच कर खोला जा सकता है। इस प्रक्रिया में, सिरे पर बैलून लगे एक कैथेटर को एक शिरा के माध्यम से ले जाया जाता है, और अंततोगत्वा हृदय तक पहुँचाया जाता है (कार्डियक कैथेटराइज़ेशन)। वाल्व को पार करने के बाद, बैलून को फुलाया जाता है, जिससे वाल्व के कस्प अलग हो जाते हैं। विकल्प के रूप में, जुड़े हुए कस्पों को अलग करने के लिए हार्ट सर्जरी की जा सकती है। यदि वाल्व बहुत बुरी तरह से क्षतिग्रस्त है, तो उसे सर्जरी द्वारा निकाल कर कृत्रिम वाल्व लगाया जा सकता है।
यदि वाल्व का प्रतिस्थापन किया जाता है, तो हृदय के वाल्व के संक्रमण (इन्फेक्टिव एंडोकार्डाइटिस) के विकसित होने के छोटे से जोखिम को कम करने के लिए सर्जिकल, डेंटल, या मेडिकल प्रक्रिया (देखें टेबल उन प्रक्रियाओं के उदाहरण जिनके लिए निवारक एंटीबायोटिक दवाइयाँ आवश्यक हैं) से पहले एंटीबायोटिक दवाइयाँ दी जाती हैं।
माइट्रल स्टीनोसिस का पूर्वानुमान
माइट्रल स्टीनोसिस के बढ़ने की दर अलग-अलग होती है, लेकिन ज़्यादातर लोगों में लक्षणों की शुरुआत के 7 से 9 वर्ष बाद गंभीर अक्षमता उत्पन्न हो जाती है। सर्जरी की ज़रूरत पड़ने से पहले, परिणाम व्यक्ति की उम्र, अक्षमता की गंभीरता के साथ-साथ इस बात पर भी निर्भर करता है कि व्यक्ति को पल्मोनरी हाइपरटेंशन है या नहीं और उसे माइट्रल रिगर्जिटेशन की समस्या कितनी अधिक है।
वाल्व को सुधारने के बाद अक्सर स्टीनोसिस वापस हो जाता है और ऐसे में वाल्व को बदलना ज़रूरी हो सकता है। आर्ट्रियल फ़ाइब्रिलेशन या पल्मोनरी हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों में माइट्रल स्टीनोसिस से मृत्यु होने का जोखिम अधिक होता है।
अधिक जानकारी
निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।
American Heart Association: हृदय वाल्वों का रोग हृदय वाल्वों के रोगों के निदान और उपचार के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है