नवजात शिशु की शारीरिक जांच

इनके द्वाराDeborah M. Consolini, MD, Thomas Jefferson University Hospital
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया सित॰ २०२३

आमतौर पर जीवन के पहले 24 घंटों में किसी स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर द्वारा नवजात शिशु का एक संपूर्ण शारीरिक परीक्षण किया जाता है।

जांच की शुरुआत अनेक मापों से होती हैं, जिनमें वज़न, लंबाई, तथा सिर का घेरा शामिल होते हैं। जन्म के समय औसत वज़न 7 पाउंड (3.2 किलोग्राम) होता है, तथा औसत लंबाई 20 इंच (51 सेंटीमीटर) होती है, हालांकि विस्तृत रेंज को सामान्य माना जा सकता है। फिर डॉक्टर नवजात शिशु की त्वचा, सिर और गर्दन, हृदय और फेफड़ों, और पेट तथा यौनांगों की जांच करता है और फिर नवजात शिशु की तंत्रिका तंत्र और रिफ़लेक्सेज का आंकलन करता है। सामान्य रूप से डॉक्टर स्क्रीनिंग जांच भी करते हैं, ताकि वे उन समस्याओं का पता लगा सकें जिन्हें वे शारीरिक परीक्षा के दौरान नहीं देख सके थे।

त्वचा

डॉक्टर त्वचा की परीक्षा करता है और इसके रंग को नोट करता है। आमतौर पर, त्वचा पर लालिमा होती है, लेकिन उंगलियां और पैरों की उंगलियां थोड़ी नीली रहती हैं, क्योंकि पहले कुछ घंटों के दौरान रक्त संचरण इतना अच्छा नहीं होता। कभी-कभी, शरीर के ऐसे अंग जिन्हें प्रसव के दौरान ज़ोर से दबाया जाता है, उन पर छोटे-छोटे लालिमा के साथ बैंगनी रंग के धब्बे (जिन्हें पेटेकिया कहा जाता है) नज़र आते हैं। हालांकि, पूरे शरीर पर इन पेटेकिया की मौजूदगी किसी विकार का लक्षण हो सकती है, जिसकी जांच डॉक्टर से करानी चाहिए। कुछ ही दिनों में त्वचा का शुष्क होना और पपड़ी उखड़ना शुरु हो जाता है, और विशेष रूप से ऐसा कलाई और ऐड़ी की क्रीज़ पर ऐसा होता है।

अनेक नवजात शिशुओं को जन्म के लगभग 24 घंटों के भीतर चकत्ते हो जाते हैं। ये चकत्ते, जिन्हें एरिथेमा टॉक्सिकम कहा जाता है, उनमें समतल लाल धब्बे शामिल होते हैं और आमतौर पर इनके बीच में मुहांसों जैसे सफेद उभरे हुए हिस्से दिखाई देते हैं। यह हानिरहित होते हैं और 7 से 14 दिनों के बीच में गायब हो जाते हैं।

सिर और गर्दन

(चेहरे, हड्डियों, जोड़ों और मांसपेशियों के पैदाइशी दोषों का परिचय भी देखें।)

किसी भी असामान्यता के लिए नवजात शिशु के सिर, चेहरे, और गर्दन की जांच एक स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर द्वारा की जाती है। प्रसव के दौरान कुछ अनियमितताएं हो जाती हैं। अन्य अनियमितताएं जन्म दोष के कारण हो सकती हैं।

एक सामान्य पहले-सिर वाले प्रसव के बाद, शिशु का सिर कई दिनों के लिए विकृत हो सकता है (वह शंकु-आकार या किसी तरफ से चपटा लग सकता है)। खोपड़ी की हड्डियां एक दूसरे पर चढ़ी रहती हैं, जिससे प्रसव के दौरान सिर का संकुचित होना संभव हो पाता है। खोपड़ी पर कुछ सूजन और खरोंच आदि आम लक्षण हैं। कभी-कभी, खोपड़ी की किसी हड्डी और इसकी बाहरी कवरिंग से रक्तस्राव के कारण सिर पर एक छोटा उभार बन जाता है, जो कुछ महीनों में गायब हो जाता है (इसे सेफालहेमाटोमा कहा जाता है)।

जब शिशु के प्रसव के दौरान पहले नितंब, यौनांग या पैर पहले (उलटा प्रसव) बाहर आते हैं, तो आमतौर पर सिर टेढ़ा-मेढ़ा नहीं होता है। हालांकि, नितम्ब, यौनांग या पैर सूजे हुए हो सकते हैं या उन पर खरोंच हो सकती है। जब बच्चा उलटी स्थिति में होता है, तो डॉक्टर आमतौर पर योनि से प्रसव के बजाय सिजेरियन प्रसव या C सेक्शन (शिशु का शल्य चिकित्सीय प्रसव जिसमें महिला के पेट और गर्भाशय को काटा जाता है) का सुझाव देते हैं, जिससे जन्म के दौरान शिशु को होने वाला जोखिम कम किया जा सके।

योनि के माध्यम से प्रसव के दौरान दबाव से, नवजात शिशु के चेहरे पर चोट लग सकती है। इसके अलावा, बर्थ कैनाल के माध्यम से कम्प्रेशन के कारण शुरुआत में चेहरा टेढ़ा-मेढ़ा हो सकता है। बहुत कम बार, ऐसी विकृति, प्रसव के दौरान चेहरे की मांसपेशियों तक जाने वाली किसी तंत्रिका में क्षति होने की वजह से होती है। अगले कुछ सप्ताहों के दौरान धीरे-धीरे स्वास्थ्य लाभ संभव हो जाता है।

प्रसव प्रक्रिया के कारण सबकंजंक्टिवल हैमरेज (आँख की सतह पर नलियों का टूटना) भी हो सकता है, जो नवजात शिशु की आँख में होता है। इस तरह हैमरेज होना आम बात है, इनके लिए उपचार की आवश्यकता नहीं होती है, और विशिष्ट रूप से 2 सप्ताह में यह दूर हो जाते हैं।

डॉक्टर कानों की जांच करते हैं और नोट करते हैं कि क्या उनका आकार उचित है तथा वे सही जगह पर हैं। उदाहरण के लिए, लो-सेट या विकृत कान का अर्थ यह हो सकता है कि नवजात शिशु में आनुवंशिक विकार है और/या उसे कम सुनाई देता है।

डॉक्टर समस्याओं के लिए मुंह की भी जांच करते हैं। बहुत ही कम मामलों में, नवजात शिशुओं के जन्म के समय दांत होते हैं, जिन्हें हटाने की ज़रूरत पड़ सकती है, या उनमें क्लेफ्ट लिप या क्लेफ्ट पैलेट पाए जा सकते हैं। डॉक्टर यह देखने के लिए जांच करते हैं कि क्या नवजात शिशुओं में एपुलिस (मसूड़ों का कैंसर-रहित विकास) है, क्योंकि ऐसे विकास के कारण खाते-पीते समय समस्याएं हो सकती हैं और सांस लेने में भी समस्या हो सकती है।

सूजन, विकास और मरोड़ या ऐंठन के लिए गर्दन की जांच की जाती है।

हृदय और फेफड़े

(हृदय से संबंधित जन्मजात दोष भी देखें।)

किसी भी असामान्यता का पता लगाने के लिए हृदय और फेफड़ों की आवाज़ सुनने के लिए स्टेथोस्कोप का उपयोग किया जाता है। हृदय या फेफड़े की असामान्य आवाज़ें हृदय की बुदबुदाहट या फेफड़े का जमाव हो सकती हैं।

नवजात शिशु की त्वचा की जांच की जाती है। चेहरे और धड़ का नीला रंग जन्मजात हृदय या फेफड़े के रोग का लक्षण हो सकता है।

नाड़ी दर और उसके बल की जांच की जाती है। नवजात शिशु की सांसों की निगरानी की जाती है और एक मिनट में सांसों की संख्या को गिना जाता है। सांस लेने के लिए घुरघुराना और/या नासिकाओं का फड़कना या बहुत तेज-तेज सांस लेना या बहुत धीमी सांस लेना, समस्याओं के लक्षण हो सकते हैं।

पेट और यौनांग

(पाचन की नलियों से जुड़ी जन्मजात समस्याओं के अलावा, मूत्रपथ और यौनांगों से जुड़ी जन्मजात समस्याएं देखें।)

पेट के सामान्य आकार की जांच की जाती है, साथ ही, आंतरिक अंगों जैसे गुर्दे, लिवर और स्प्लीन के साइज़, आकार और स्थिति की जांच की जाती है। किडनी के बड़े होने की वजह से, मूत्र के प्रवाह में अवरोध का लक्षण नज़र आ सकता है।

यह सुनिश्चित करने के लिए यौनांगों की जांच की जाती है कि यूरेथ्रा (वह नली जिसके माध्यम से पेशाब करते समय मूत्राशय से मूत्र निकलता है) खुली हुई और सही स्थान पर है। यौनांग स्पष्ट रूप से पुरुष या स्त्री के हैं या नहीं, यह देखने के लिए उनकी जांच की जाती है। लड़के के स्थिति में, अंडकोश में वृषणकोष मौजूद होने चाहिए। लड़की में, मां के हार्मोन के संपर्क में आने के कारण भगोष्ठ उभरे हुए रहते हैं, और वे पहले कुछ हफ़्तों के दौरान सूजे हुए ही रहते हैं। शिशु की योनि से रक्त और म्युकस के साथ रिसाव होना सामान्य बात है। बहुत कम बार, नवजात शिशु के यौनांग ऐसे होते हैं जो स्पष्ट रूप से पुरुष या स्त्री के नहीं होते (अस्पष्ट जननांग) और आगे मूल्यांकन की ज़रूरत होती है।

यह सुनिश्चित करने के लिए डॉक्टर गुदा की जांच करता है कि ओपनिंग सामान्य स्थान पर है तथा वह बंद नहीं है।

तंत्रिका तंत्र

(मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड से जुड़ी जन्मजात समस्याओं की भी जांच करें।)

नवजात शिशु की जागरूकता, मांसपेशी के टोन तथा समान रूप से बाजुओं और टांगों को हिलाने-डुलाने में सक्षमता की निगरानी की जाती है। असामान संचलन तंत्रिकाओं की असामान्यता का लक्षण हो सकता है (जैसे नर्व पाल्सी)।

विभिन्न प्रकार की गतिविधियों की जांच करके, नवजात शिशु के सहज क्रियाओं की जांच की जाती है। किसी नवजात शिशु के सर्वाधिक महत्वपूर्ण रिफ़्लेक्स में मोरो, रूटिंग और सकिंग रिफ़लेक्स शामिल होते हैं।

नवजात शिशुओं के तीन सामान्य रिफ़्लेक्सेज़

मोरो रिफ़्लेक्स में, जब नवजात शिशु चौंक जाता है, तो वह रोता है और उंगलियों को फैला कर अपनी बाजुओं का विस्तार करता है और अपनी टांगों को ऊपर ले जाता है।

रूटिंग रिफ़्लेक्स में, जब उनके मुंह की दोनों साइड में से किसी एक या होठ पर स्ट्रोक का असर होता है, तो नवजात शिशु अपने सिर को उस तरफ मोड लेते हैं और अपना मुंह खोलते हैं। इस रिफ़्लेक्स से नवजात शिशुओं को चूचुकों को खोजने में मदद मिलती है।

सकिंग रिफ़्लेक्स में, जब उनके मुंह में किसी वस्तु को रखा जाता है, तो नवजात शिशु तत्काल चूसना शुरु कर देते हैं।

मांसपेशियाँ और हड्डियां

(चेहरे, हड्डियों, जोड़ों और मांसपेशियों के पैदाइशी दोषों का परिचय भी देखें।)

नवजात शिशु के लचीलेपन और बाहों, पैरों, और कूल्हों की गतिशीलता का परीक्षण यह देखने के लिए किया जाता है कि प्रसव के दौरान नवजात का कूल्हा अपनी जगह से सरक न गया हो या उसकी कोई हड्डी न टूट गई हो (कॉलर की हड्डी सबसे आम हड्डी है जो प्रसव के दौरान टूट सकती है और आमतौर पर कुछ हफ्तों में पूरी तरह से ठीक हो जाती है)। बेडौल या गायब अंगों के लिए सभी अंगों और जोड़ों की जांच की जाती है।

सभी तरह की समस्याओं और विकृतियों (जैसे स्पिना बाइफ़िडा) के लिए रीढ़ की हड्डी की जांच की जाती है।

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