कीमोथेरेपी का अर्थ है वे दवाएँ देना जो कैंसर कोशिकाओं को खत्म करती हैं या उनके बढ़ने की गति को धीमी कर देती हैं। हालांकि, चूंकि कीमोथेरेपी पूरे शरीर पर काम करती है (उदाहरण के लिए, विकास के खास चरण में सभी कोशिकाओं पर), कैंसरयुक्त कोशिकाओं के साथ-साथ स्वस्थ कोशिकाओं पर भी आक्रमण होता है। चूंकि कीमोथैरेपी के दौरान, स्वस्थ कोशिकाएं भी नष्ट होती हैं, इसलिए दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
कीमोथैरेपी से आमतौर पर मिचली, उल्टी आना, भूख नहीं लगना, वज़न कम होना, थकान होना, और रक्त कोशिकाओं की संख्या में कमी होना होता है, जिससे एनीमिया होता है और इंफ़ेक्शनों का जोखिम बढ़ जाता है। अक्सर लोगों के बाल भी उड़ जाते हैं, लेकिन अन्य दुष्प्रभाव एजेंट के प्रकार के अनुसार अलग-अलग होते हैं।
गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल प्रभाव
गैस्ट्रोइन्टेस्टिनल (पाचन मार्ग) प्रभाव बेहद आम होते हैं और इनमें शामिल हैं
भूख नहीं लगना
जी मचलाना और उल्टी आना
दस्त लगना
ये प्रभाव कैंसर की वजह से भी हो सकते हैं
भूख नहीं लगना, एक आम समस्या है और इससे वज़न में कमी आ सकती है। जिन लोगों का वज़न उनके शरीर के आदर्श वज़न से 10% से ज़्यादा कम हो वे उतने स्वस्थ नहीं रहते जितना कि अपना वज़न बनाए रखने वाले या वज़न में कमी लाने वाले रह पाते हैं। डॉक्टर, लोगों को अच्छे आहार वाला भोजन करने पर ज़ोर देते हैं। कई दवाएँ भूख बढ़ा सकती हैं, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि क्या वे वास्तव में वजन घटने की प्रक्रिया पलट सकती हैं, जीवन की गुणवत्ता सुधार सकती हैं या उम्र लंबी कर सकती हैं।
मिचली और उल्टी आना जीवन की गुणवत्ता को बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। अक्सर लोग यह सोचते हैं कि कैंसर की सभी दवाओं से मतली और उल्टी आने की दिक्कत होती है, लेकिन कुछ दवाओं और कुछ स्थितियों के साथ ये लक्षण अधिक होने की संभावना होती है। मतली और उल्टी को दवाओं (एंटीमेटिक्स) से आमतौर पर ठीक किया जा सकता है या उनसे आराम पाया जा सकता है, खासकर ग्रैनीसेट्रॉन, ओन्डेनसेट्रोन या अप्रैपिटेंट से। डॉक्टर ये दवाएँ कीमोथेरेपी की खुराक से पहले और इसके शुरू होने के बाद मतली और उल्टी का इलाज करने के लिए भी दे सकते हैं। भोजन में कमी करके और रेशेदार, गैस बनाने वाले या बहुत ज़्यादा गर्म या ठंडे भोजन से दूर रहकर भी मिचली को कम किया जा सकता है। कुछ राज्यों में, कीमोथैरेपी से होने वाली मिचली और उल्टी के लिए भांग (मारिजुआना) लेने का सुझाव दिया जा सकता है।
कीमोथेरेपी या टार्गेटेड थेरेपी से उपचार किए जाने के बाद (और रेडिएशन थेरेपी के बाद) दस्त आम है। दस्त का उपचार आमतौर पर लोपेरामाइड दवा से किया जाता है
रक्त कोशिका के जमाव/गाढ़ेपन में कमी
कीमोथेरेपी एजेंट्स के बोन मैरो (जहाँ रक्त कोशिकाओं का निर्माण होता है) पर होने वाले विषैले प्रभावों की वजह से, साइटोपेनिया, रक्त कोशिका के एक या अधिक प्रकार की डेफ़िशिएंसी हो सकती है। उदाहरण के लिए, व्यक्ति में असामान्य रूप से इनकी संख्या एकदम घट सकती है
लाल रक्त कोशिकाएँ (एनीमिया)
श्वेत रक्त कोशिकाएँ (न्यूट्रोपेनिया या ल्यूकोपीनिया)
प्लेटलेट्स (थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया)
लाल रक्त कोशिकाएँ फेफड़ों से ऑक्सीजन को शरीर की सभी कोशिकाओं तक पहुंचाती है। पर्याप्त लाल रक्त कोशिकाओं के बिना, लोगों में पीलापन आ सकता है, उनमें थकान हो सकती है या कमज़ोरी आ सकती है। अधिक गंभीर एनीमिया से ग्रस्त लोगों को चक्कर आ सकते हैं, प्यास लगना, पसीने आना या सांस फूलने तथा छाती में दर्द जैसी दिक्कतें आ सकती हैं। अगर एनीमिया गंभीर हो तो, पैक्ड लाल रक्त कोशिकाओं का ट्रांसफ़्यूज़न हो सकता है। लाल रक्त कोशिका के बढ़ने का कारक, एरीथ्रोपॉइटिन, को भी दिया जा सकता है, लेकिन ट्रांसफ़्यूजन हो तो अच्छा है, क्योंकि उससे खून का थक्का बनने का कम जोखिम होता है।
न्यूट्रोपेनिया से ग्रस्त व्यक्ति को इंफ़ेक्शन होने का ज़्यादा जोखिम होता है, क्योंकि श्वेत रक्त कोशिकाएं इंफ़ेक्शन के खिलाफ़ एक ज़रूरी सुरक्षा देती हैं। न्यूट्रोपेनिया से ग्रस्त व्यक्ति को 100.4° F (38° C) से ज़्यादा का बुखार हो जाए, तो उसे इमरजेंसी की तरह मानकर उसका उपचार किया जाता है। ऐसे व्यक्ति की इंफ़ेक्शन के लिए जांच होनी चाहिए, उसे एंटीबायोटिक्स देने पड़ सकते हैं और यहां तक कि अस्पताल में भर्ती तक कराना पड़ सकता है। श्वेत रक्त कोशिकाएं बहुत कम ट्रांसफ़्यूज़ होती हैं, क्योंकि वे केवल कुछ घंटे ही जीवित रहती हैं और उनसे अनेक दुष्प्रभाव होते हैं। इसके बजाय, (ग्रैन्युलोसाइट-कॉलोनी के प्रेरक कारक) श्वेत रक्त कोशिकाओं को प्रेरित करने के लिए कुछ पदार्थों की व्यवस्था की जा सकती है।
प्लेटलेट्स खून में मौजूद कोशिका जैसे दिखने वाले छोटे कण होते हैं जो खून की नलियों के कटने या टूटने पर खून को जमने में उसकी मदद करते हैं। जिस व्यक्ति में पर्याप्त संख्या में प्लेटलेट नहीं होते (थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया) उसे चोट लगने पर आसानी से खून आ सकता है। अगर थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया गंभीर है, तो लोगों को गंभीर रूप से पाचन मार्ग में रक्तस्राव हो सकता है या उनके दिमाग में खून का रिसाव हो सकता है। खून के रिसाव को रोकने के लिए, उपचार के तौर पर प्लेटलेट का संचार किया जा सकता है।
मुंह पर घाव
अनेक लोगों को जलन/सूजन या यहां तक कि म्यूकस मेम्ब्रेन के घाव भी हो जाते हैं, जैसे कि मुंह की लाइनिंग के रूप में। मुंह के घाव पीड़ादायी होते हैं और भोजन करना मुश्किल बना सकते हैं। विभिन्न मौखिक साधन (जिनमें आमतौर पर एंटासिड, एंटीहिस्टामाइन और स्थानीय एनेस्थेटिक होते हैं) दिक्कत को कम कर सकते हैं। बहुत कम मौके ऐसे होते हैं, जब लोगों को भोजन नली द्वारा पोषण-संबधी सहायता की ज़रूरत पड़ती है, जिसे सीधे पेट या छोटी आंत में या नस के ज़रिए भी लगा दिया जाता है।
डिप्रेशन और चिंता
अंग को नुकसान और अन्य कैंसर
कई बार कीमोथेरेपी एजेंट्स अन्य अंगों, जैसे फेफड़ों, दिल या लिवर को नुकसान पहुंचा सकते हैं। उदाहरण के लिए, एन्थ्रासाइक्लिन (डॉक्सोर्यूबिसिन जैसे), जो टोपोइसोमिरेज़ इन्हिबिटर का एक प्रकार है, जब उसकी कुल मात्राएं ज़्यादा हो जाती हैं, तब दिल को नुकसान पहुंचा सकता है।
कीमोथैरेपी द्वारा जिन लोगों का उपचार हुआ है, खासकर उपचार के कई सालों बाद अल्किलेटिंग एजेंटों में ल्यूकेमिया होने के जोखिम हो सकता है। कुछ दवाएँ, विशेषकर, अल्किलेटिंग एजेंट से ये उपचार कराने वाली कुछ महिलाओं और अधिकतर पुरुषों को निसंतानता हो जाती है।
ट्यूमर लिसिस सिंड्रोम और साइटोकिन रिलीज़ सिंड्रोम
कीमोथैरेपी के बाद ट्यूमर लिसिस सिंड्रोम हो सकता है, क्योंकि जब कैंसर कोशिकाएँ मर जाती हैं, तब वे अपनी साम्रियों को बहते हुए खून में छोड़ सकती हैं। यूरिक एसिड और इलेक्ट्रोलाइट्स सहित मृत कोशिकाओं के अपशिष्ट उत्पाद किडनी या हृदय को नुकसान पहुंचा सकते हैं। ट्यूमर लिसिस सिंड्रोम मुख्यत: एक्यूट ल्यूकेमिया और नॉन-हॉजकिन लिंफोमा में होता है, लेकिन यह अन्य प्रकारो के कैंसर के उपचार के उपचार के बाद भी हो सकता है। कई बार डॉक्टर यूरिक एसिड के उच्च स्तर से बचने के लिए कीमोथेरेपी से पहले और उसके दौरान, एलोप्यूरिनॉल देकर ट्यूमर लिसिस सिंड्रोम को रोक पाते हैं। किडनियां इन विषैले उत्पादों को तेज़ी से उगल दें, इसके लिए डॉक्टर नसों के ज़रिए तरल पदार्थ दे सकते हैं।
साइटोकिन रिलीज़ सिंड्रोम ट्यूमर लिसिस सिंड्रोम से संबंधित है लेकिन अलग है। साइटोकिन रिलीज़ सिंड्रोम तब होता है, जब बड़ी संख्या में श्वेत रक्त कोशिकाओं को एक्टिव किया जाता है और वे साइटोकिन नामक ज्वलनशील पदार्थ रिलीज़ करते हैं। ये CAR-T-कोशिकाओं और कुछ मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ का इस्तेमाल करने वाली जैसी कोशिका-आधारित थैरेपियों की बार-बार होने वाली जटिलता है। लक्षणों में शामिल हैं, बुखार होना, थकान होना, भूख नहीं लगना, माँसपेशी और जोड़ों में दर्द, मिचली, उल्टी होना, दस्त लगना, खाज-फुंसी होना, तेज़ सांसें चलना, सिरदर्द, कन्फ़्यूज़न और मतिभ्रम (हैलुसिनेशन) होना। रक्त में ऑक्सीजन का स्तर और ब्लड प्रेशर कम हो सकता है और शरीर के अंगों को नुकसान पहुंच सकता है। सामान्य रूप में, हल्के साइटोकिन रिलीज़ सिंड्रोम का उपचार मददगार है और इसमें इन लक्षणों से मुक्ति की जाती है जैसे बुखार, माँसपेशी में दर्द या थकान। अधिक गंभीर साइटोकिन रिलीज़ सिंड्रोम से ग्रस्त लोगों में ब्लड प्रेशर बढ़ाने के लिए ऑक्सीजन थेरेपी, तरल पदार्थ और दवाएँ और सूजन घटाने के लिए दवाओं की ज़रूरत पड़ सकती है।