हाइपरपिगमेंटेशन

इनके द्वाराShinjita Das, MD MPH, Massachusetts General Hospital
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्तू॰ २०२२

    हाइपरपिगमेंटेशन का अर्थ त्वचा का रंग गहरा होने से है, जो अधिकतर मामलों में मेलेनिन नामक त्वचा पिगमेंट की मात्रा असामान्य रूप से अधिक होने के कारण होता है।

    मेलेनोसाइट नामक विशेष कोशिकाएँ धूप के संपर्क में आने पर अधिक मात्रा में मेलेनिन नामक पिगमेंट बनाती हैं (त्वचा पिगमेंट का संक्षिप्त वर्णन देखें), जो त्वचा का रंग गहरा कर देता है या उसे टैन कर देता है। कुछ गोरी त्वचा वाले लोगों में, कुछ मेलेनोसाइट धूप के संपर्क में आने पर औरों से अधिक मेलेनिन बनाती हैं। मेलेनिन के इस असमान उत्पादन के कारण पिगमेंटेशन के धब्बे बन जाते हैं जिन्हें झाइयां कहा जाता है। झाइयां होने की प्रवृत्ति एक से दूसरी पीढ़ी में चलती है। धूप के अतिरिक्त अन्य चीज़ें भी हैं जो धब्बों या चकत्तों के रूप में (स्थान विशेष तक सीमित) या त्वचा के बड़े-बड़े भागों में मेलेनिन की मात्रा बढ़ा सकती हैं। दुर्लभ मामलों में, मेलेनिन के अतिरिक्त अन्य पदार्थ भी त्वचा के रंग को गहरा कर सकते हैं।

    मेलेनोसाइट
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    मेलेनोसाइट नाम की विशेष कोशिकाएँ मेलेनिन नाम के पिगमेंट बनाती हैं। मेलेनोसाइट एपिडर्मिस की सबसे गहरी परत, जिसे बेसल परत कहते हैं, उसमें मौजूद कोशिकाओं से पैदा होती हैं।

    स्थान विशेष तक सीमित हाइपरपिगमेंटेशन

    स्थान विशेष तक सीमित हाइपरपिगमेंटेशन के कारण

    • त्वचा की चोटें

    • त्वचा में शोथ

    • धूप से प्रतिक्रियाएं

    • त्वचा की असामान्य वृद्धियां

    हाइपरपिगमेंटेशन कटने और जलने जैसी चोटों के बाद हो सकता है या एक्ने और लूपस जैसे विकारों से हुए शोथ के बाद हो सकता है।

    कुछ लोगों में धूप के संपर्क में आई त्वचा पर हाइपरपिगमेंटेशन हो जाता है। कुछ पौधों (जैसे नींबू, अजमोद, और अजवायन) में फ़्यूरोकूमरिन नामक यौगिक होते हैं जो कुछ लोगों की त्वचा को अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील बना देते हैं। इस प्रतिक्रिया को फाइटोफोटोडर्माटाइटिस कहते हैं (रासायनिक प्रकाशसंवेदनशीलता देखें)।

    मलाज़्मा, झाइयों, लेंटिजिनीज़, और कैफ़े-ओ-ले स्पॉट (चपटे, कत्थई धब्बे) में, और तिल/मस्सों तथा मेलेनोमा जैसी असामान्य त्वचा वृद्धियों में भी हाइपरपिगमेंटेशन हो सकता है।

    एकैन्थोसिस नाइग्रिकन्स नामक विकार से ग्रस्त लोगों की बगलों में, गर्दन के पिछले भाग पर, और त्वचा की तहों में त्वचा गहरे रंग की और मोटी हो जाती है। एकैन्थोसिस नाइग्रिकन्स डायबिटीज़ का लक्षण हो सकता है।

    लेंटिजिनीज़

    लेंटिजिनीज़ (जिन्हें आम तौर पर एज स्पॉट या लिवर स्पॉट कहते हैं [पर वे लिवर यानि यकृत की समस्याओं से संबंधित नहीं हैं]) त्वचा पर चपटे, पीले-कत्थई से कत्थई, अंडाकार धब्बे होते हैं। एक धब्बे को लेंटिगो कहते हैं। ये स्थान विशेष तक सीमित हाइपरपिगमेंटेशन का एक प्रकार हैं।

    लेंटिजिनीज़ दो प्रकार के होते हैं:

    • सोलर

    • नॉन-सोलर

    सोलर लेंटिजिनीज़ धूप के संपर्क से होते हैं और ये सबसे आम प्रकार के लेंटिगो हैं। वे अधिकतर उन भागों में होते हैं जो धूप के संपर्क में आते हैं, जैसे चेहरा और हथेलियों की पिछली सतह। वे आम तौर पर अधेड़ आयु में सबसे पहले होते हैं और आयु बढ़ने के साथ-साथ संख्या में बढ़ते जाते हैं। लेंटिजिनीज़ कैंसर-रहित (बेनाइन) होते हैं, पर जिन लोगों में ये होते हैं उनमें मेलेनोमा का अधिक जोखिम हो सकता है।

    नॉन-सोलर लेंटिजिनीज़ धूप के संपर्क से नहीं होते हैं। नॉन-सोलर लेंटिजिनीज़ कभी-कभी कुछ वंशानुगत विकारों से ग्रस्त लोगों में हो सकते हैं, इन विकारों में पर्ट्ज़-जेगर्स सिंड्रोम (जिसमें होठों पर कई लेंटिजिनीज़ और पेट व आँतों में कई पोलिप हो जाते हैं), ज़ीरोडर्मा पिगमेंटोसम, और मल्टीपल लेंटिजिनीज़ सिंड्रोम (लेपर्ड सिंड्रोम) शामिल हैं।

    यदि लोगों में बहुत सारे लेंटिजिनीज़ नहीं हैं पर वे उनके प्रतीत होने से परेशान हैं, तो डॉक्टर इन्हें फ़्रीज़िंग ट्रीटमेंट (क्रायोथेरेपी) या लेजर थेरेपी के माध्यम से हटा सकते हैं। हाइड्रोक्विनोन आदि ब्लीचिंग एजेंट प्रभावी नहीं होते हैं।

    लेंटिजिनीज़
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    इस फोटो में पीठ पर कई, छोटे-छोटे, पीले-कत्थई से कत्थई धब्बे देखे जा सकते हैं।
    © Springer Science+Business Media

    बड़े स्थान में फैला हाइपरपिगमेंटेशन

    बड़े स्थान में फैले हाइपरपिगमेंटेशन के कारण

    • हार्मोन में बदलाव

    • अंदरूनी रोग

    • दवाएँ और भारी धातुएं

    एडिसन रोग में, गर्भावस्था में, या हार्मोनल गर्भनिरोधक के उपयोग से हार्मोन में बदलाव होने से मेलेनिन का उत्पादन बढ़ सकता है और त्वचा का रंग गहरा हो सकता है। प्राइमरी बिलियरी कोलैंजाइटिस (जिसे पहले प्राइमरी बिलियरी सिरोसिस कहा जाता था) नामक लिवर के विकार में भी मेलेनिन का उत्पादन बढ़ सकता है।

    हाइपरपिगमेंटेशन के कुछ मामले मेलेनिन से नहीं बल्कि कुछ ऐसे अन्य पिगमेंट युक्त पदार्थों से होते हैं जो त्वचा में सामान्यतः उपस्थित नहीं होते हैं। हीमोक्रोमेटोसिस या हीमोसाइडरोसिस जैसे रोग, जो शरीर में आयरन की अधिकता से होते हैं, हाइपरपिगमेंटेशन का कारण बन सकते हैं। त्वचा पर लगाई जाने वाली, निगली जाने वाली, या इंजेक्शन से ली जाने वाली कुछ दवाओं और धातुओं के कारण हाइपरपिगमेंटेशन हो सकता है।

    दवाओं और भारी धातुओं से होने वाला हाइपरपिगमेंटेशन

    वे दवाएँ और भारी धातुएं जिनसे हाइपरपिगमेंटेशन हो सकता है, उनमें निम्नलिखित शामिल हैं:

    • एमीओडारोन

    • हाइड्रोक्विनोन

    • मलेरिया-रोधी दवाएँ

    • टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक्स

    • फीनोथायज़ीन

    • कुछ कैंसर कीमोथेरेपी दवाएँ

    • कुछ ट्राइसाइक्लिक एंटीडिप्रेसेंट

    • कुछ भारी धातुएं (जैसे चाँदी, सोना, और पारा, जो ज़हरीली हो सकती हैं)

    हाइपरपिगमेंटेशन के स्थान आम तौर पर काफ़ी फैले हुए होते हैं, पर कुछ दवाएँ विशिष्ट रूप से कुछ विशेष स्थानों को प्रभावित कर सकती हैं। जैसे, कुछ लोगों में नियत दवाओं के प्रति प्रतिक्रियाएं उत्पन्‍न होती हैं, जिनमें कुछ दवाओं (जैसे कुछ एंटीबायोटिक्स, बिना स्टेरॉइड वाली शोथ-रोधी दवाओं [NSAID] और बार्बीट्यूरेट्स वर्ग की दवाओं) के लिए जाने के कारण त्वचा के एक ही स्थान पर लाल चकत्ते या फफोले हो जाते हैं। इन प्रतिक्रियाओं से आखिरकार त्वचा के प्रभावित स्थान पर हाइपरपिगमेंटेशन हो जाता है।

    दवा या धातु कौन सी है और वह त्वचा में कहाँ इकट्ठी हुई है इस बात के आधार पर, हाइपरपिगमेंटेशन बैंगनी, नीला-काला, पीला-कत्थई, या नीले, सिल्वर, और स्लेटी की किसी रंगत वाला हो सकता है (त्वचा के रंग में बदलाव भी देखें)। त्वचा के साथ-साथ दाँत, नाख़ून, आंखों का सफ़ेद भाग (स्कलेरा), और मुंह का अस्तर (म्यूकोसा) का रंग भी बदल सकता है। इनमें से कई दवाओं के मामले में, दवा रोक देने पर हाइपरपिगमेंटेशन अक्सर हल्का पड़ जाता है, पर जिन लोगों की त्वचा साँवली है उनमें इसके हल्का पड़ने में अधिक समय लग सकता है। कभी-कभी हाइपरपिगमेंटेशन स्थायी होता है, चाहे त्वचा किसी भी रंग की हो।

    चूंकि स्किन पिगमेंटेशन करने वाली कई दवाएँ प्रकाशसंवेदनशीलता प्रतिक्रियाएं भी करती हैं, अतः लोगों को धूप से बचना चाहिए