हृदय की मांसपेशी को ऑक्सीजन से प्रचुर रक्त की लगातार आपूर्ति की जरूरत होती है। करोनरी धमनियाँ, जो महाधमनी के हृदय से बाहर निकलने के तुरंत बाद उससे निकलती हैं, इस रक्त का वितरण करती हैं। अक्यूट करोनरी सिंड्रोम तब होता है जब करोनरी धमनी का अचानक ब्लॉकेज हृदय की मांसपेशी (मायोकार्डियम) के एक क्षेत्र को रक्त की आपूर्ति कम कर देता है या रोक देता है। किसी भी ऊतक को रक्त की आपूर्ति के अबाव को इस्कीमिया कहते हैं। यदि आपूर्ति चंद मिनटों से अधिक समय तक बहुत कम हो जाती है या बंद हो जाती है, तो हृदय का ऊतक मर जाता है। दिल का दौरा, जिसे मायोकार्डियल इनफार्क्शन (MI) भी कहते हैं, इस्कीमिया के कारण हृदय के ऊतक की मृत्यु है। (करोनरी धमनी रोग (CAD) का अवलोकन भी देखें।)
अक्यूट करोनरी सिंड्रोमों की समस्याएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि हृदय की मांसपेशी कितनी क्षतिग्रस्त हुई है, जो करोनरी धमनी के अवरुद्ध होने के स्थान और उसके अवरुद्ध रहने की अवधि का सीधा परिणाम होता है। यदि ब्लॉकेज हृदय की मांसपेशी के बड़े हिस्से को प्रभावित करती है, हृदय प्रभावी ढंग से पंप नहीं करता है। यदि ब्लॉकेज हृदय की विद्युतीय प्रणाली को रक्त का प्रवाह बंद कर देता है, तो हृदय की ताल प्रभावित हो सकती है।
पंपिंग की समस्याएं
दिल के दौरे में, हृदय की मासंपेशी का हिस्सा मर जाता है। मासंपेशी के विपरीत, उसे अंततोगत्वा प्रतिस्थापित करने वाला मृत ऊतक, और धब्बेदार ऊतक संकुचित नहीं होता है। जब शेष हृदय संकुचित होता है तब कभी-कभी धब्बेदार ऊतक फैल या फूल भी जाता है। परिणामस्वरूप, रक्त को पंप करने के लिए मांसपेशी की कम मात्रा उपलब्ध रहती है। यदि बहुत सारी मांसपेशी मर जाती है, तो हृदय की पंपिंग क्षमता इतनी कम हो सकती है कि हृदय शरीर की रक्त और ऑक्सीजन की जरूरत पूरी नहीं कर सकता है। हार्ट फेल्यूर, निम्न रक्तचाप (हाइपोटेंशन), और/या आघात विकसित हो जाते हैं। यदि आधे से अधिक हृदय का ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाता या मर जाता है, तो आमतौर से हृदय काम नहीं कर सकता है और तीव्र अक्षमता या मृत्यु होने की संभावना होती है।
बीटा-ब्लॉकर और खास तौर पर एंजियोटेन्सिन-कन्वर्टिंग एंज़ाइम (ACE) इन्हिबटर जैसी दवाइयाँ हृदय के काम के बोझ और तनाव को कम करके असामान्य क्षेत्रों के विस्तार को कम कर सकती हैं (कोरोनरी धमनी रोग का उपचार करने के लिए उपयोग की जाने वाली दवाइयाँ का टेबल देखें)। इस तरह से इन दवाइयों से हृदय का आकार और उसका कार्य सामान्य बना रहता है।
क्षतिग्रस्त हृदय का आकार, आंशिक रूप से पंपिंग गतिविधि में कमी का सामना करने के लिए, बढ़ सकता है (एक बिंदु तक, बड़ा हृदय अधिक बलपूर्वक धड़क सकता है)। हृदय के आकार के बढ़ने से असामान्य हृदय तालों के होने की संभावना बढ़ जाती है।
ताल की समस्याएं
असामान्य हृदय गति (एरिद्मिया) दिल के दौरे से ग्रस्त होने वाले 90% से अधिक लोगों में होती है। ये असामान्य तालें दिल के दौरे के कारण हृदय की विद्युतीय प्रणाली के आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त होने से हो सकती हैं। कभी-कभी हृदय के धड़कन को प्रेरित करनेवाले भाग में समस्या होती है, जिससे हृदय की धड़कन बहुत धीमी हो सकती है (ब्रैडीकार्डिया)। अन्य समस्याओं के कारण हृदय बहुत तेजी से या अनियमित रूप से धड़कने लगता है (जैसे, एट्रियल फिब्रिलेशन)। कभी-कभी धड़कने का संकेत हृदय के एक भाग से दूसरे में संचालित नहीं होता है, और हृदय की धड़कन धीमी हो सकती है या रुक सकती है (हार्ट ब्लॉक)।
इसके अलावा, हृदय के वे क्षेत्र जिनमें रक्त का प्रवाह कम हो गया है लेकिन मरे नहीं हैं, अतिसंवेदनशील हो सकते हैं। इस अतिसंवेदनशीलता के कारण वेंट्रिकुलर टैकीकार्डिया या वेंट्रिकुलर फिब्रिलेशन जैसी हृदय की ताल की समस्याएं हो सकती हैं। ताल की ये समस्याएं हृदय की पंपिंग क्षमता में बड़ा हस्तक्षेप कर सकती हैं और हृदय की धड़कन को रोक सकती हैं (कार्डियक एरेस्ट)। बेहोशी या मृत्यु हो सकती है। लय की ये गड़बड़ियाँ, उन लोगों में ज़्यादा समस्या उत्पन्न कर सकती हैं, जिनके रक्त में इलेक्ट्रोलाइट की मात्रा में असंतुलन होता है, जैसे कि पोटेशियम की मात्रा में कमी होती है।
पेरिकार्डाइटिस
पेरिकार्डाइटिस (हृदय के चारों ओर स्थित दो पर्तों वाली थैली की सूजन) दिल के दौरे के पहले दिन या दो दिनों के बाद विकसित हो सकती है। पेरिकार्डाइटिस उन लोगों में अधिक आम है जिनकी अवरुद्ध धमनी को पर्क्युटेनियस करोनरी हस्तक्षेप (PCI) या करोनरी धमनी बायपास ग्राफ्टिंग (CABG) द्वारा खोला नहीं गया है। लोगों का ध्यान पेरिकार्डाइटिस का विकास शुरू होने के लक्षणों पर ध्यान कभी-कभार ही जाता है क्योंकि उनके दिल के दौरे के लक्षण अधिक प्रधान होते हैं। हालांकि, पेरिकार्डाइटिस एक खुरचने के जैसा लय-युक्त ध्वनि पैदा करती है जो कभी-कभी दिल के दौरे के 2 से 3 दिनों बाद स्टेथस्कोप से सुनाई देती है। कभी-कभी, सूजन के कारण पेरिकार्डियम की दो परतों के बीच की जगह में थोड़ा सा तरल जमा हो जाता है (पेरिकार्डियल एफ्यूजन)।
पोस्ट-मायोकार्डियल इन्फ़ार्क्शन (ड्रेसलर) सिंड्रोम ऐसा पेरिकार्डाइटिस होता है, जो दिल के दौरे के 10 दिनों से 2 महीने के बीच विकसित होता है। इस सिंड्रोम के कारण बुखार, पेरिकार्डियल एफ्यूजन (हृदय के चारों ओर की जगह में अतिरिक्त तरल), फेफड़ों को ढकने वाली झिल्लियों की सूजन, प्लूरल एफ्यूजन (प्लूरा की दो परतों के बीच की जगह में अतिरिक्त तरल), और जोड़ों में दर्द होता है। निदान इससे उत्पन्न होने वाले लक्षणों और इसके होने के समय पर निर्भर करता है।
जिन लोगों को पेरिकार्डाइटिस होती है उन्हें आमतौर पर एक नॉनस्टेरॉयडल शोथ-रोधी दवाई दी जाती है। कोल्चिसीन अक्सर तेजी से राहत प्रदान करती है। उपचार के बावजूद, सिंड्रोम दोबारा प्रकट हो सकता है। अगर पोस्ट-मायोकार्डियल इन्फ़ार्क्शन सिंड्रोम गंभीर है, तो थोड़े समय के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड या बिना स्टेरॉइड वाली किसी दूसरी एंटी-इन्फ़्लेमेटरी दवा की ज़रूरत पड़ सकती है।
मायोकार्डियल रप्चर
दुर्लभ रूप से, क्षतिग्रस्त हृदय की मासंपेशी के कमजोर होने के कारण हृदय की पंपिंग क्रिया के दबाव से हृदय की मांसपेशी फूट जाती या रप्चर हो जाती है। रप्चर आमतौर पर दिल के दौरे के 1 से 10 दिन बाद होता है और महिलाओं में अधिक आम है। दिल के दौरे के दौरान या उसके बाद दो निलय को अलग करने वाली दीवार (सेप्टम), हृदय की बाहरी दीवार और माइट्रल वाल्व (जो बाएँ वेंट्रिकल में से होकर जाने वाले रक्त के प्रवाह को नियंत्रित करता है) को खोलने और बंद करने वाली मांसपेशियों के फूटने की विशेष रूप से संभावना होती है।
सेप्टम के फूटने से बहुत सारा रक्त फेफड़ों में चला जाता है, जिससे वहाँ तरल जमा हो जाता है (पल्मनरी एडीमा)। सेप्टम के रप्चर को कभी-कभी सर्जरी द्वारा ठीक किया जा सकता है।
बाहरी दीवार के फूटने से लगभग हमेशा ही तेजी से मृत्यु हो जाती है। दुर्लभ रूप से डॉक्टरों को सर्जरी की कोशिश करने का समय मिलता है, और तब भी, सर्जरी दुर्लभ रूप से ही सफल होती है।
यदि माइट्रल वाल्व की मांसपेशियाँ फूट जाती हैं, तो वाल्व काम नहीं कर सकता है–-परिणामस्वरूप अकस्मात और गंभीर हार्ट फेल्यूर होता है। डॉक्टर कभी-कभी क्षति को सर्जरी द्वारा ठीक कर सकते हैं।
वेंट्रिकुलर एन्यूरिज्म
क्षतिग्रस्त मांसपेशी निलय की दीवार पर एक पतला उभार (एन्यूरिज्म) पैदा कर सकती है। डॉक्टर को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ़ी (ECG) के असामान्य परिणामों के आधार पर एन्युरिज़्म होने का संदेह हो सकता है, लेकिन ईकोकार्डियोग्राफ़ी से इसकी पुष्टि की जाती है। ये एन्यूरिज्म असामान्य हृदय गति की घटनाएं उत्पन्न कर सकती हैं और हृदय की पंपिंग क्षमता को कम कर सकती हैं। क्योंकि एन्यूरिज्मों से होकर रक्त अधिक धीरे-धीरे बहता है, इसलिए हृदय के कक्षों में रक्त के थक्के बन सकते हैं। यदि हार्ट फेल्यूर या असामान्य हृदय गति विकसित होती है, तो एन्यूरिज्म को शल्यक्रिया द्वारा निकाला जा सकता है।
ब्लड क्लॉट
जिन लोगों को पहले कभी दिल का दौरा पड़ चुका हो, उनमें हृदय के अंदर, मृत हृदय मांसपेशी के क्षेत्र में ब्लड क्लॉट बन जाते हैं। कभी-कभी क्लॉट में से कुछ हिस्से टूट जाते हैं, रक्त की धारा में बहने लगते हैं और पूरे शरीर की छोटी रक्त वाहिकाओं में फँस जाते हैं। क्लॉट से मस्तिष्क में रक्त की आपूर्ति अवरुद्ध हो सकती है (जिससे आघात हो जाता है) या अन्य अंगों में रक्त की आपूर्ति अवरुद्ध हो सकती है।
हृदय में बनने वाले थक्कों का पता लगाने के लिए या यह तय करने के लिए कि व्यक्ति को ऐसे कारक हैं जो थक्कों को बनने की संभावना को बढ़ा सकते हैं, इकोकार्डियोग्राफी की जा सकती है। उदाहरण के लिए, हो सकता है कि बायें निलय का कोई क्षेत्र उतनी अच्छी तरह से नहीं धड़क रहा हो जैसे उसे धड़कना चाहिए।
जिन लोगों को थक्के होते हैं, उन्हें डॉक्टर अक्सर स्कंदन-रोधी दवाइयाँ (इन्हें कभी-कभी रक्त को पतला करने की दवाइयाँ कहते हैं) जैसे कि हेपैरिन और वारफैरिन देते हैं। अस्पताल में कम से कम 2 दिन तक नस के माध्यम से हैपेरिन दी जाती है। इसके बाद वारफ़ेरिन 3 से 6 महीने तक मुँह से दी जाती है। एस्पिरिन भी अनिश्चित काल के लिए ली जाती है।
अन्य समस्याएं
दिल के दौरे के बाद होने वाली अन्य समस्याओं में शामिल है माइट्रल वाल्व का रिसना (माइट्रल वाल्व का रीगर्जिटेशन)।
दिल के दौरे के बाद घबराहट और अवसाद होना आम है। दिल के दौरे के बाद अवसाद उल्लेखनीय हो सकता है और लंबे समय तक बना रह सकता है।