त्वचा की संरचना या रंग में असामान्य परिवर्तन को चकत्ता कहा जाता है।
चकत्तों के ज्ञात कारणों में जलन, एलर्जी, दवाएँ, और बैक्टीरियल, फ़ंगल या वायरल संक्रमण शामिल होते हैं।
चकत्तों में लालपन, सफेद या पीली पपड़ियाँ, और मोती जैसे दाने, उभार, या गाँठें शामिल होती हैं।
चकत्तों में खुजली, जलन या दर्द हो सकते हैं, या हो सकता है कि वे कोई लक्षण न पैदा करें।
ऐसे चकत्ते जिनके लिए उपचार की आवश्यकता होती है, उनके संबंध में सौम्य क्लींजर, मॉइस्चराइजिंग क्रीम, एंटीबायोटिक या कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम, और/या खुजली-रोधी दवाओं से सहायता मिल सकती है।
शिशुओं और छोटे बच्चों में चकत्ते आमतौर पर गंभीर नहीं होते हैं तथा उनके विभिन्न कारण हो सकते हैं। जलन करने वाले तत्व, दवाएँ, एलर्जिक प्रतिक्रियाएं और विकार जिनके कारण सूजन होती है, से चकत्ते हो सकते हैं।
शिशुओं और छोटे बच्चों में चकत्तों के कुछ सामान्य कारणों में निम्नलिखित शामिल होते हैं:
डायपर से होने वाले चकत्ते (डायपर डर्मेटाइटिस)
क्रैडल कैप (सीबोरीइक डर्मेटाइटिस)
एटोपिक डर्मेटाइटिस (एग्ज़िमा)
वायरल संक्रमण जिनके कारण चकत्ते होते हैं
डायपर से होने वाले चकत्ते (डायपर डर्मेटाइटिस)
डायपर के कारण होने वाले चकत्ते चमकदार लाल होते हैं, लेकिन आमतौर पर ये तभी होते हैं जब शिशु की त्वचा ऐसे डायपर के संपर्क में आती है जो मूत्र, मल या दोनो से खराब हो चुके होते हैं। शिशु की त्वचा में आर्द्रता के कारण जलन पैदा होती है। खास तौर पर, डायपर के स्पर्श में आने वाली त्वचा के हिस्से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
डायपर से होन वाले चकत्ते कैंडिडा फंगस से होने वाले संक्रमण के कारण भी हो सकते हैं, खास तौर पर त्वचा के किनारों में चमकदार लाल चकत्ते तथा छोटे लाल धब्बे हो जाते हैं। बहुत कम ही डायपर से होने वाले चकत्ते का कारण बैक्टीरिया होते हैं।
जिन शिशुओं को स्तनपान करवाया जाता है, उनको डायपर से होने वाले चकत्ते कम होते हैं क्योंकि उनके मल में एंजाइम और अन्य तत्व कम होते हैं जिनसे त्वचा पर जलन पैदा हो सकती है।
डायपर से होने वाले चकत्तों से बच्चा हमेशा परेशान नहीं होता है। इसे एब्सार्बेंट जैल से बने डायपर का इस्तेमाल करके, नमी बनाए रखने वाले रेस्ट्रिक्टिव प्लास्टिक डायपर या पैंट का इस्तेमाल न करके, और गीले होने पर बार-बार डायपर को बदल कर, बचाया या कम किया जा सकता है।
डायपर से होने वाले चकत्तों का मुख्य उपचार बच्चे के डायपर को बार-बार हटाना या बदलना है। बच्चे की त्वचा को हल्के साबुन और पानी से धोया जाना चाहिए। अक्सर केवल इन्हीं चीजों को करने से चकत्ते दूर हो जाते हैं। त्वचा से संबंधित मॉइश्चराइजर और बच्चे की त्वचा और डायपर के बीच अवरोध पैदा करने वाली क्रीम, जैसे जिंक, पेट्रोलियम जेली, या विटामिन A और D ऑइंटमेंट के उपयोग से मदद मिल सकती है। यदि डॉक्टर द्वारा कैंडिडा संक्रमण का निदान किया जाता है तो एंटीफंगल क्रीम आवश्यक हो सकती है। यदि चकत्ते बैक्टीरिया के कारण हुए हैं, तो एंटीबायोटिक क्रीम का प्रयोग किया जा सकता है।
क्रैडल कैप ()
क्रेडल कैप लाल और पीला, पपड़ीदार, परतदार चकत्ते होते हैं जो शिशु के सिर पर होते हैं। इसी प्रकार के चकत्ते कभी-कभी शिशु के स्किनफोल्ड में हो सकते हैं। इसका कारण पता नहीं है। क्रेडल कैप हानिरहित होती है तथा 6 महीने की आयु तक यह अधिकांश बच्चों में गायब हो जाती है।
क्रैडल कैप को सेलेनियम सल्फाइड शैम्पू के साथ नियमित रूप से शैंपू करने और शैंपू करने से पहले पपड़ी को ढीला करने में मदद करने के लिए खोपड़ी में खनिज तेल की मालिश करके इलाज किया जा सकता है। पपड़ी को छोटी कंघी से भी हटाया जा सकता है। क्रैडल कैप जो इन उपायों से बेहतर नहीं होती उसे आगे और उपचार, जैसे कि कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम की आवश्यकता हो सकती है।
(एग्ज़िमा)
एटोपिक डर्मेटाइटिस लाल, पपड़ीयुक्त, तथा खुजली युक्त चकत्ते होते हैं। ये चकत्ते पैच के रूप में दिखाई देते हैं जो आते और जाते रहते हैं और अक्सर सर्द, शुष्क मौसम में बदतर हो जाते हैं। शिशुओं के चेहरे, खोपड़ी, डायपर के संपर्क में आने वाले हिस्सों, हाथों, बाजुओं, पैर या टांगों पर लाल, रिसने वाले, पपड़ीदार चकत्ते पैदा हो जाते हैं। बड़े बच्चों में एक या कुछ धब्बे पैदा हो जाते हैं जो आमतौर पर हाथों, ऊपरी बाजुओं, कोहनी के सामने, या घुटनों के पीछे विकसित होते हैं।
एटोपिक डर्माटाईटिस परिवारों में वंशागत होता है और कई मामलों में जीन की ऐसी विभिन्नता के कारण माना जाता है जो त्वचा की नमी बनाए रखने और बैक्टीरिया, जलनकारी, एलर्जी कारकों, और पर्यावरणीय घटकों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने की क्षमता को प्रभावित करती है। यह कमज़ोर त्वचा रोधक प्रकार्य शायद इम्यून प्रतिक्रिया को शुरू करता है, जिसके कारण त्वचा में जलन और खुजली होती है। अधिकांश बच्चे एटोपिक डर्मेटाइटिस से छुटकारा पा लेते हैं, लेकिन अन्य बच्चों में यह जीवनभर बनी रहती है। गंभीर मामलों से ग्रसित बच्चों को उन हिस्सों में बीच-बीच में संक्रमण हो सकते हैं, जहां पर उनके द्वारा त्वचा खरोंचने पर छिल जाती है।
एटोपिक डर्मेटाइटिस के उपचार में स्किन मॉइस्चराइज़र, सौम्य साबुन, आर्द्रता युक्त हवा, कॉर्टिकोस्टेरॉइड क्रीम और खुजली-रोधी दवाओं का उपयोग शामिल है। इस दशा में बच्चे की एलर्जी को ट्रिगर करने वाले तत्वों से बचने के प्रयासों से सहायता मिल सकती है।
वायरल संक्रमण जिनके कारण चकत्ते होते हैं
छोटे बच्चों में अक्सर वायरल संक्रमणों के कारण चकत्ते हो जाते हैं। रास्योला इन्फैंटम और एरिथेमा इन्फ़ेक्टियोसम (पांचवां रोग) के कारण होने वाले चकत्ते हानिरहित होते हैं और आमतौर पर बिना उपचार के ठीक हो जाते हैं। खसरा, रूबेला, और छोटी माता के कारण पैदा हुए चकत्ते कम आम होते हैं, क्योंकि बच्चों को इन संक्रमणों को रोकने वाली वैक्सीन लगी होती है, लेकिन वैक्सीन रहित बच्चों में वे हो सकते हैं।
चकत्तों के अन्य कारण
डर्मेटोफ़ाइटोसेस (जिसे रिंगवॉर्म या टिनिया भी कहा जाता है) त्वचा का फंगस संक्रमण होता है। बच्चों में खोपड़ी (टिनिया कैपिटिस) तथा शरीर (टिनिया कोर्पोरिस) के संक्रमण सर्वाधिक आम होते हैं।
डर्मेटोफ़ाइटोसेस का निदान और उपचार बच्चों और वयस्कों में समान होता है तथा खास तौर पर इसमें एंटीफंगल दवाएँ जिनको त्वचा पर लगाया जाता है अथवा मौखिक रूप से इनका सेवन किया जाता है। कुछ बच्चों में फंगल संक्रमण के प्रति सूजनकारी प्रतिक्रिया होती है, जिसके कारण खोपड़ी पर पीड़ादायक, सूजनयुक्त, फूले हुए पैच हो जाते हैं जिन्हें केरियोन कहा जाता है। केरियोन के लिए अतिरिक्त उपचार की आवश्यकता हो सकती है।
मोलस्कम कंटेजियोसम मांस के रंग के मोती जैसे मुँहासे या उभारों का समूह होता है जो वायरल त्वचा संक्रमण के कारण होता है और आमतौर पर बिना उपचार के ठीक हो जाता है। लेकिन, जिस वायरस के कारण यह संक्रमण होता है, वह संक्रामक होता है।
मिलिया नवजात शिशुओं के चेहरे पर छोटे मोती जैसे सिस्ट होते हैं। ये बच्चे की स्वेद ग्रंथियों से होने वाले पहले स्रावों के कारण होते हैं। नवजात मुंहासों की तरह, मिलिया के लिए किसी उपचार की ज़रूरत नहीं होती और जन्म के कुछ सप्ताह बाद यह ठीक हो जाती है।