मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) इस तरह की एक मेडिकल इमेजिंग तकनीक है, जिसमें बहुत स्पष्ट तस्वीरें बनाने के लिए एक प्रबल चुंबकीय क्षेत्र और बहुत उच्च आवृत्ति की रेडियो तरंगों का उपयोग किया जाता है।
MRI के दौरान, एक कंप्यूटर किसी व्यक्ति के शरीर के आस-पास के चुंबकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों को रिकॉर्ड करके अलग-अलग कोणों के विस्तृत चित्र बनाता है। कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) स्कैन और पॉज़िट्रॉन एमिशन टोमोग्राफ़ी (PET) स्कैन से अलग, MRI में एक्स-रे (रेडिएशन) का उपयोग नहीं किया जाता है और यह आमतौर पर बहुत सुरक्षित होता है। (इमेजिंग जांचों का विवरण भी देखें।)
जॉन ए. जैकबसन, MD की ओर से दी गई छवि।
जॉन ए जैकबसन, MD की ओर से दी गई छवि।
MRI की प्रक्रिया
MRI के लिए, रोगी व्यक्ति को एक मोटर से चलने वाली टेबल पर लेटने को कहा जाता है जिसे एक मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र बनाने वाले, एक बड़े ट्यूबलर स्कैनर के अंदर ले जाया जाता है। आम तौर पर, ऊतकों में प्रोटोन (परमाणु के धनात्मक रूप से आवेशित कण) किसी विशेष व्यवस्था में नहीं होते हैं। लेकिन जब प्रोटोन एक मज़बूत चुंबकीय क्षेत्र से घिरे होते हैं, जैसा कि MRI स्कैनर में होता है, तो वे चुंबकीय क्षेत्र के साथ एक लाइन में व्यवस्थित हो जाते हैं। इसके बाद, स्कैनर रेडियो तरंगों की एक पल्स भेजता है, जो कुछ देर के लिए प्रोटोन को लाइन से बाहर कर देती हैं। जैसे ही प्रोटोन फिर से चुंबकीय क्षेत्र के साथ लाइन में व्यवस्थित होते हैं, वे ऊर्जा छोड़ते हैं (जिन्हें सिग्नल कहा जाता है)। सिग्नल की ताकत हर ऊतक के लिए अलग होती है। MRI स्कैनर इन सिग्नल्स को रिकॉर्ड करता है। इन सिग्नल्स का विश्लेषण करने और इमेज बनाने के लिए एक कंप्यूटर का उपयोग किया जाता है।
रेडियो तरंग की पल्स, चुंबकीय क्षेत्र की स्ट्रेंथ और दिशा और अन्य कारकों को बदलकर, एग्ज़ामिनर स्कैन पर विभिन्न ऊतकों के दिखने के तरीके को बदल सकते हैं। उदाहरण के लिए, वसा ऊतक (फैट टिशू) एक प्रकार के स्कैन पर गहरे रंग का और दूसरे प्रकार के स्कैन पर चमकीला दिखाई देता है। ये अलग-अलग स्कैन एकतरफा जानकारी प्रदान करते हैं, इसलिए अक्सर एक से ज़्यादा स्कैन लिए जाते हैं।
गैडोलिनियम (एक पैरामैग्नेटिक कंट्रास्ट एजेंट) वाले कंट्रास्ट एजेंट को नस या जोड़ में इंजेक्ट किया जा सकता है। गैडोलिनियम एजेंट्स, चुंबकीय क्षेत्र को कुछ इस तरह से बदल देते हैं जिससे इमेज साफ़ दिखाई देने लगती हैं।
जांच से पहले, लोग अपने ज़्यादातर या सभी कपड़ों को हटा देते हैं और उन्हें पहनने के लिए एक ऐसा गाउन दिया जाता है जिसमें कोई बटन, स्नैप, ज़िप्पर या अन्य धातु नहीं होती है। सभी धातु की वस्तुएं (जैसे चाबियां, गहने और सेल फोन) और अन्य वस्तुएं जो चुंबकीय क्षेत्र (जैसे क्रेडिट कार्ड और घड़ियां) से प्रभावित हो सकती हैं, उन्हें MRI स्कैनिंग रूम के बाहर छोड़कर आना चाहिए। इमेज लेते समय लोगों को बिना हिले-डुले लेटना चाहिए और कभी-कभी अपनी सांस रोककर रखनी पड़ सकती है। चूंकि स्कैनर से तेज़ धमाकेदार आवाजें निकलती हैं, इसलिए उन्हें रोकने के लिए आपको हेडफ़ोन या ईयरप्लग पहनने को दिए जा सकते हैं। एक स्कैन में 20 से 60 मिनट लग सकते हैं। जांच के बाद, लोग तुरंत अपनी सामान्य गतिविधियां फिर से शुरू कर सकते हैं।
MRI के फ़ायदे
जब डॉक्टरों को नरम ऊतकों के बारे में अधिक जानकारी की ज़रूरत होती है तो वे कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) के बजाय MRI को ज़्यादा पसंद करते हैं—उदाहरण के लिए, मस्तिष्क, स्पाइनल कॉर्ड, मांसपेशियों और लिवर की समस्याओं की इमेज पाने के लिए। MRI, खासतौर पर इन ऊतकों में ट्यूमर की पहचान करने में मदद करता है।
MRI का इस्तेमाल निम्न के लिए भी किया जाता है:
मस्तिष्क में कुछ अणुओं (मॉलिक्यूल्स) को मापने के लिए, ताकि ब्रेन ट्यूमर और ब्रेन ऐब्सेस (मस्तिष्क में फोड़ा) में अंतर किया जा सके
महिला प्रजनन अंगों में समस्याओं का पता लगाने और कूल्हे और श्रोणि में फ्रैक्चर की पहचान करने के लिए
डॉक्टरों को जोड़ों की समस्याओं (जैसे घुटने में लिगामेंट या कार्टिलेज का फटना) और मोच का मूल्यांकन करने में सहायता करने के लिए
रक्तस्राव और संक्रमण का मूल्यांकन करने में डॉक्टरों की सहायता करने के लिए
अगर CT के जोखिम अधिक होते हैं, तो उस स्थिति में भी MRI का उपयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, उन लोगों के लिए MRI को प्राथमिकता दी जा सकती है, जिन्हें CT में इस्तेमाल किए गए आयोडीन वाले कंट्रास्ट एजेंट्स से परेशानी हुई है और गर्भवती महिलाओं के लिए भी (क्योंकि रेडिएशन से भ्रूण को नुकसान पहुँच सकता है)।
गैडोलिनियम कंट्रास्ट एजेंट को नस में इंजेक्ट करने के बाद MRI करने पर, डॉक्टरों को सूजन, ट्यूमर और रक्त वाहिकाओं का मूल्यांकन करने में मदद मिलती है। इस एजेंट को एक जोड़ में इंजेक्ट करने से डॉक्टरों को जोड़ की समस्याओं की एक साफ़ तस्वीर पाने में मदद मिलती है, खासकर अगर वे समस्याएं जटिल हों (जैसे घुटने में लिगामेंट या कार्टिलेज के डिजनरेशन या चोटिल होने से)।
MRI के प्रकार
फ़ंक्शनल MRI
फंक्शनल MRI, मस्तिष्क के सक्रिय रहने के दौरान होने वाले उपापचयी बदलावों का पता लगाती है। इस प्रकार, यह दिखा सकता है कि व्यक्ति द्वारा कोई विशिष्ट कार्य करने, जैसे कि पढ़ने, लिखने, याद रखने, गणना करने या किसी अंग को हिलाने के दौरान मस्तिष्क के कौन से क्षेत्र सक्रिय होते हैं। फ़ंक्शनल MRI का उपयोग, शोध और नैदानिक परीक्षण संबंधी स्थानों पर किया जा सकता है, उदाहरण के लिए, मस्तिष्क में मिर्गी के इलाज के लिए सर्जरी करने की योजना बनाने के लिए।
पर्फ्यूज़न MRI
परफ़्यूज़न MRI के ज़रिए, डॉक्टर किसी विशेष क्षेत्र में रक्त के प्रवाह का अनुमान लगा सकते हैं। यह जानकारी आघात के दौरान यह पता लगाने में उपयोगी हो सकती है कि कहीं मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में रक्त का प्रवाह कम तो नहीं हो गया है। इसका उपयोग उन क्षेत्रों की पहचान करने के लिए भी किया जा सकता है जहां रक्त प्रवाह बढ़ जाता है—जैसे कि, ट्यूमर में।
डिफ्यूज़न-वेटेड MRI
डिफ़्यूजन वेटेड MRI, उन कोशिकाओं में पानी की गति में आए बदलावों का पता लगाती है, जो सामान्य रूप से कार्य नहीं कर रही होती हैं। इसका उपयोग मुख्य रूप से शुरुआती आघात की पहचान करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग मस्तिष्क के कुछ विकारों का पता लगाने और यह पता करने के लिए भी किया जाता है कि क्या ट्यूमर मस्तिष्क में फैल गया है या फिर ब्रेन ट्यूमर और ब्रेन ऐब्सेस (मस्तिष्क में फोड़ा) में अंतर करने के लिए। इस तकनीक का उपयोग, मस्तिष्क के अलावा अन्य क्षेत्रों की इमेज पाने के लिए कम ही होता है। ट्यूमर, विशेष रूप से मस्तिष्क के ट्यूमर का मूल्यांकन करने के लिए, डिफ्यूज़न-वेटेड MRI को अक्सर अन्य तकनीकों के साथ संयोजित किया जाता है।
मैग्नेटिक रीसोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी
मैग्नेटिक रीसोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी में रेडियो तरंगों का उपयोग किया जाता है, जो पारंपरिक MRI की पल्स के रूप में उत्सर्जित होने वाली तरंगों के विपरीत लगभग लगातार उत्सर्जित होती रहती हैं। सीज़र वाले विकारों, अल्जाइमर रोग, मस्तिष्क के ट्यूमर और मस्तिष्क के घावों का पता लगाने के लिए मैग्नेटिक रीसोनेंस स्पेक्ट्रोस्कोपी का उपयोग किया जाता है। यह तकनीक, एक फोड़े के अंदर मृत मलबे और एक ट्यूमर के अंदर गुणात्मक रूप से बढ़ने वाली कोशिकाओं के बीच अंतर कर सकती है।
इस तकनीक का उपयोग मांसपेशियों और तंत्रिका तंत्र में मेटाबोलिज़्म-संबंधी विकारों के मूल्यांकन के लिए भी किया जाता है।
मैग्नेटिक रीसोनेंस एंजियोग्राफ़ी (MRA)
MRA में, पारंपरिक एंजियोग्राफ़ी तकनीक और CT एंजियोग्राफ़ी की तरह ही, रक्त वाहिकाओं की पूरी इमेज बनाई जा सकती है। हालांकि यह ज़्यादा सुरक्षित और आसान है, लेकिन बहुत महंगा है। ज़्यादातर मामलों में, MRA को कंट्रास्ट एजेंट के इंजेक्शन के बिना भी किया जा सकता है।
मैग्नेटिक रीसोनेंस एंजियोग्राफ़ी में, धमनियों और नसों से होकर जाने वाले रक्त प्रवाह को देखा जा सकता है या रक्त प्रवाह को केवल एक दिशा में देखा जा सकता है और इस तरह केवल धमनियों या केवल नसों को देखा जा सकता है। जैसा कि CT एंजियोग्राफ़ी में होता है, इसमें भी एक कंप्यूटर का उपयोग करके इमेज से रक्त वाहिकाओं के अतिरिक्त सभी ऊतकों को हटा दिया जाता है।
अक्सर, रक्त वाहिकाओं को रेखांकित करने के लिए एक गैडोलिनियम कंट्रास्ट एजेंट को एक नस में इंजेक्ट किया जाता है। एग्ज़ामिनर सावधानी से स्कैनिंग का समय तय करता है, ताकि मूल्यांकन की जा रही रक्त वाहिकाओं में जब गैडोलिनियम कंसन्ट्रेट होने लगे तब इमेज ली जा सके।
MRA का उपयोग मस्तिष्क, हृदय, पेट के अंगों, बाहों और पैरों की रक्त वाहिकाओं का मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग इन समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है:
अंगों में संकुचित हुई धमनियां
अंगों और श्रोणि की नसों में रक्त के थक्के
ट्यूमर में रक्त प्रवाह
ट्यूमर, जो रक्त वाहिकाओं को प्रभावित कर रहे हों
मैग्नेटिक रीसोनेंस वेनोग्राफ़ी
शिराओं के MRA को मैग्नेटिक रीसोनेंस वेनोग्राफ़ी कहा जाता है। अक्सर, इसका उपयोग रक्त को मस्तिष्क से दूर ले जाने का काम करने वाली किसी नस में रक्त का थक्का बनने (सेरेब्रल वीनस थ्रॉम्बोसिस) का पता लगाने और इस विकार के उपचार से होने वाले प्रभाव की निगरानी के लिए किया जाता है।
इको प्लानर इमेजिंग
ईको प्लेनर इमेजिंग कुछ ही सेकंड में कई चित्र तैयार कर देती है। इसका उपयोग मस्तिष्क, हृदय और पेट की इमेज पाने के लिए किया जा सकता है। क्योंकि यह तकनीक बहुत तेज़ी से काम करती है, इसलिए जिस व्यक्ति की जांच की जा रही है उसकी हलचल से इमेज ज़्यादा धुंधली नहीं होती है। साथ ही, यह तकनीक इस बारे में जानकारी दे सकती है कि ऊतक कैसे कार्य कर रहे हैं।
हालांकि, इसके लिए खास मशीन की ज़रूरत होती है और चूंकि यह तकनीक अलग तरह की है इसलिए पारंपरिक MRI तकनीक की तुलना में, यह तकनीक शरीर की कुछ संरचनाओं को गलत तरीके से भी पेश कर सकती है।
MRI के नुकसान
अगर CT से तुलना करें, तो MRI करने में ज़्यादा समय लगता है। इसके अलावा, CT की तुलना में MRI तुरंत उपलब्ध होने की संभावना कम होती है। इसलिए, गंभीर चोटों और आघात जैसी आपात स्थितियों में CT बेहतर विकल्प हो सकता है। CT की तुलना में MRI ज़्यादा महंगा भी है।
इसके अन्य नुकसान भी हैं जिनमें शामिल हैं
क्लॉस्ट्रोफोबिया होना और कभी-कभी MRI स्कैनर के अंदर फ़िट होने में कठिनाई होती है क्योंकि यह एक छोटी, बंद जगह होती है
शरीर में इम्प्लांट किए गए मैटल डिवाइस पर चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव पड़ सकता है
कंट्रास्ट एजेंट की प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं
छोटी बंद जगह से संबंधित समस्याएं
MRI स्कैनर में जगह छोटी और बंद होती है, जिससे कुछ लोगों को क्लॉस्ट्रोफोबिक महसूस होता है, यहां तक कि वे लोग जो आमतौर पर सीमित जगहों के बारे में चिंतित नहीं होते हैं। कुछ मोटे लोगों को स्कैनर में फिट होने में कठिनाई होती है।
कुछ MRI स्कैनर (जिन्हें ओपन MRI स्कैनर कहा जाता है) का एक हिस्सा खुला होता है और एक बड़ा इंटीरियर भाग होता है। उनमें, लोगों को फंसने का डर कम महसूस होता है और मोटे लोग अधिक आसानी से फ़िट हो सकते हैं। हो सकता है कि ओपन MRI स्कैनर में बनी इमेज बंद जगह वाले स्कैनर द्वारा बनाई इमेज जितनी बढ़िया नहीं हो, लेकिन फिर भी निदान करने के लिए इनका उपयोग किया जा सकता है।
जिन्हें MRI के बारे में सोचकर घबराहट होती है, उन्हें स्कैनिंग से 15 से 30 मिनट पहले एंटी-एंग्जायटी दवा दी जा सकती है, जैसे अल्प्राज़ोलेम या लोरेज़ेपैम।
मैग्नेटिक फील्ड का असर
आम तौर पर, MRI का उपयोग नहीं किया जाता है अगर किसी व्यक्ति के
शरीर के खास हिस्सों में, विशेष रूप से आँख में, कोई चीज़ (जैसे छर्रा या उसके टुकड़े) मौजूद है
शरीर में इम्प्लांट की गई डिवाइस मौजूद है जिसे शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र प्रभावित कर सकते हैं
इन डिवाइस में कुछ कार्डियक पेसमेकर, डीफिब्रिलेटर, कॉचलियर (कान के लिए) इम्प्लांट, और मैग्नेटिक मैटलिक क्लिप शामिल हैं जिन्हें एन्यूरिज्म के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। MRI में इस्तेमाल किए गए चुंबकीय क्षेत्र की वजह से, इम्प्लांट की गई डिवाइस अपनी जगह से खिसक सकती है, ज़्यादा गरम हो सकती है या खराब हो सकती है। अगर डिवाइस को पिछले 6 सप्ताह के अंदर इम्प्लांट किया गया था तो इस डिवाइस पर असर होने की अधिक संभावना है (क्योंकि घाव का निशान, जो डिवाइस को फिट होने के लिए जगह बनाने में मदद कर सकता है, तब तक बना नहीं होता)। इस डिवाइस से MRI की इमेज बिगड़ भी सकती हैं।
कुछ डिवाइस, जैसे आम डेंटल इम्प्लांट, एक आर्टिफ़िशियल हिप (नकली कूल्हा), या रीढ़ को सीधा करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रॉड (छड़ें), पर MRI असर नहीं करता है।
जिन लोगों के शरीर में कोई इम्प्लांट की गई डिवाइस है, उन्हें MRI किए जाने से पहले अपने डॉक्टर को बताना चाहिए, ताकि डॉक्टर यह तय कर सकें कि इमेजिंग जांच करना सुरक्षित है या नहीं।
MRI चुंबकीय क्षेत्र बहुत मज़बूत और हमेशा चालू रहती है। इसलिए, अगर स्कैनिंग रूम के प्रवेश द्वार के पास कोई मैटल की चीज़ (जैसे ऑक्सीजन टैंक या IV पोल) मौजूद है, तो उस चीज़ को स्कैनर तेज़ गति से खींच सकता है। ऐसा होने से मूल्यांकन किया जा रहा व्यक्ति घायल हो सकता है, और वस्तु को चुंबक से अलग करना मुश्किल हो सकता है।
MRI कंट्रास्ट एजेंट की प्रतिक्रियाएं
गैडोलिनियम कंट्रास्ट एजेंट से, सिरदर्द, जी मचलने, दर्द होने और इंजेक्शन लगाए जाने वाली जगह पर ठंड लगने, स्वाद बिगड़ने और चक्कर आने जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
पारंपरिक एंजियोग्राफ़ी तकनीक और CT एंजियोग्राफ़ी में उपयोग किए जाने वाले आयोडीन-वाले कंट्रास्ट एजेंट्स की तुलना में, इन एजेंट्स से गंभीर प्रतिक्रिया होने की संभावना बहुत कम होती है।
हालांकि, नेफ़्रोजेनिक सिस्टेमिक फ़ाइब्रोसिस—जो एक गंभीर और जानलेवा विकार होता है—एडवांस क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित कुछ लोगों में हो चुका है; हालांकि इनमें से ज़्यादातर मामले एक प्रकार के कंट्रास्ट एजेंट से संबंधित हैं, जिन्हें समूह I के गैडोलिनियम आधारित कंट्रास्ट मीडिया (GBCM) कहा जाता है, जिन्हें अब अमेरिका में नहीं दिया जाता है।