टिनिया वर्सिकलर त्वचा की सबसे ऊपरी परत का फ़ंगल संक्रमण होता है, जिसमें पपड़ीदार और बदरंग चकत्ते बन जाते हैं।
यह संक्रमण एक प्रकार के फ़ंगस से होता है।
आम तौर पर लोगों को त्वचा पर काले, भूरे, हल्के नारंगी या सफ़ेद रंग के पपड़ीदार हिस्से बन जाते हैं।
इसका निदान इसके स्वरूप और त्वचा की खुरचनों के आधार पर किया जाता है।
संक्रमण के इलाज के लिए एंटीफंगल त्वचा उत्पादों, शैंपू और कभी-कभी मुंह से ली जाने वाली दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है।
टिनिया वर्सिकलर संक्रमण अक्सर लौटकर आता है।
(त्वचा के फ़ंगल संक्रमणों का विवरण भी देखे।)
यह संक्रमण मैलेसेज़िया फ़रफ़ुर से होता है। मैलसीज़िया फ़रफ़र एक प्रकार का फ़ंगस है जो यीस्ट और मोल्ड, दोनों रूपों में रह सकता है। यीस्ट और मोल्ड, इन शब्दों का इस्तेमाल यह बताने के लिए किया जाता है कि फ़ंगस माइक्रोस्कोप से कैसा दिखता है।
मैलसीज़िया फ़रफ़र आम तौर पर हानिरहित होता है और त्वचा पर रहता है, लेकिन कुछ लोगों में इससे टिनिया वर्सिकलर हो जाता है। अधिकतर प्रभावित लोग स्वस्थ होते हैं। कुछ लोगों में आनुवंशिक कारणों के चलते इस फ़ंगस की अत्यधिक वृद्धि की अधिक संभावना होती है।
टिनिया वर्सिकलर के अन्य जोखिम कारकों में गर्मी और नमी और कॉर्टिकोस्टेरॉइड के इस्तेमाल के कारण प्रतिरक्षा तंत्र का कमज़ोर पड़ना, गर्भावस्था, अल्पपोषण, डायबिटीज़ या अन्य विकार शामिल हैं।
टिनिया वर्सिकलर एक मध्यम तीव्रता का संक्रमण है और इसे संपर्गज (संपर्क से फैलने वाला) नहीं माना जाता है। यह ख़ास तौर पर युवा वयस्कों में काफ़ी आम होता है।
टिनिया वर्सिकलर के लक्षण
टिनिया वर्सिकलर में धड़, गर्दन, पेट और कभी-कभी चेहरे पर पीले-कत्थई, कत्थई, गुलाबी-नारंगी या सफ़ेद पपड़ीदार चकत्ते बनते हैं। ये चकत्ते जुड़कर और बड़े चकत्ते बना सकते हैं। इन चकत्तों का रंग गहराता नहीं है, इसलिए गर्मियों में, जब चकत्तों के इर्द-गिर्द की त्वचा का रंग गहरा जाता है तो ये चकत्ते और साफ़ दिखने लग सकते हैं। जिन लोगों की त्वचा प्राकृतिक रूप से गहरे रंग की होती है उन्हें हल्के रंग के चकत्ते दिखाई पड़ सकते हैं। जिन लोगों की त्वचा प्राकृतिक तौर पर गोरी होती है, उनकी त्वचा पर गहरे या हल्के रंग के धब्बे उत्पन्न हो सकते हैं।
टिनिया वर्सिकलर आम तौर पर अन्य लक्षण पैदा नहीं करता है।
इस फ़ोटो में टिनिया वर्सिकलर से त्वचा पर उत्पन्न होने वाले हल्के रंग के धब्बे दिखाए गए हैं।
फ़ोटो - कैरेन मैककोय, MD के सौजन्य से।
इस फोटो में पीठ पर कई गुलाबी, पपड़ीदार चकत्ते देखे जा सकते हैं। ये चकत्ते टिनिया वर्सिकलर की पहचान हैं।
थॉमस हबीफ, MD द्वारा प्रदान की गई छवि।
इस फोटो में छाती पर एक पीला-कत्थई चकत्ता देखा जा सकता है जो टिनिया वर्सिकलर की पहचान है।
© स्प्रिंगर सायन्स + बिज़नेस मीडिया
© स्प्रिंगर सायन्स + बिज़नेस मीडिया
इस फ़ोटो में चेहरे और गर्दन पर पड़े हल्के रंग के धब्बे टिनिया वर्सिकलर से उत्पन्न हुए हैं।
फ़ोटो - कैरेन मैककोय, MD के सौजन्य से।
टिनिया वर्सिकलर का निदान
डॉक्टर द्वारा त्वचा और त्वचा की खुरचनों की जांच
कभी-कभी वुड लाइट जांच
डॉक्टर त्वचा के दिखावट के आधार पर और कवक को देखने के लिए माइक्रोस्कोप से त्वचा की खुरचनों को देखकर टिनिया वर्सिकलर की पुष्टि करते हैं।
डॉक्टर त्वचा पर संक्रमण को अधिक स्पष्टता से दिखाने के लिए एक अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश (जिसे वुड लाइट कहते हैं) का इस्तेमाल कर सकते हैं।
टिनिया वर्सिकलर का इलाज
प्रभावित स्थानों पर लगाई जाने वाली या कभी-कभी मुंह से ली जाने वाली एंटीफंगल दवाएँ
टिनिया वर्सिकलर के इलाज के लिए सीधे प्रभावित स्थानों पर लगाई जाने वाली (टॉपिकल) किसी भी एंटीफंगल दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रिस्क्रिप्शन पर मिलने वाला सेलेनियम सल्फ़ाइड शैंपू प्रभावी है बशर्ते उसे 1 सप्ताह तक दिन में एक बार 10 मिनटों तक या एक माह तक हर सप्ताह एक बार 24 घंटों तक प्रभावित त्वचा (केवल सिर की त्वचा ही नहीं) पर लगाकर रखा जाए। अन्य इलाजों में 2 सप्ताह तक प्रतिदिन टॉपिकल कीटोकोनाज़ोल लगाना और 1 से 2 सप्ताह तक प्रतिदिन पिरिथायोन ज़िंक साबुन से नहाना या त्वचा पर सोडियम थायोसल्फ़ेट/सैलिसिलिक अम्ल का शैंपू लगाना शामिल होता है। (त्वचा पर लगाई जाने वाली कुछ एंटीफंगल दवाएँ (टॉपिकल दवाएँ) तालिका भी देखें)।
मुंह से ली जाने वाली एंटीफंगल दवाएँ, जैसे फ्लुकोनाज़ोल का इस्तेमाल कभी-कभी उन लोगों का इलाज करने के लिए किया जाता है जिनके शरीर में संक्रमण फैल चुका होता है (कवक के गंभीर संक्रमण की दवाएँ तालिका देखें) या जिन्हें बार-बार संक्रमण होता है।
संक्रमण के लौटने की संभावना घटाने के लिए, कई डॉक्टर साफ़-सफ़ाई में अधिक सावधानी बरतने और नियमित रूप से पिरिथायोन ज़िंक साबुन का या माह में एक बार किसी भी अन्य टॉपिकल इलाज का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
टिनिया वर्सिकलर का पूर्वानुमान
हो सकता है कि संक्रमण के चले जाने के बाद त्वचा कई माह या वर्षों तक अपना सामान्य पिगमेंटेशन यानि पहली जैसी रंगत वापस न पा सके।
टिनिया वर्सिकलर सफल इलाज के बाद आम तौर पर लौटता है क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार यीस्ट सामान्य रूप से त्वचा पर निवास करता है।