डॉक्टर त्वचा को देखने मात्र से त्वचा संबंधी कई विकारों की पहचान कर सकते हैं। त्वचा की पूरी जांच में सिर की त्वचा, नाखूनों, और म्युकस वाली मेंब्रेन की जांच शामिल होती है। कभी-कभी डॉक्टर चिंताजनक स्थानों को बेहतर ढंग से देखने के लिए, हाथ में पकड़े जाने वाले लेंस या डर्मेटोस्कोप (जिसमें एक मैग्निफ़ाइंग लेंस और बिल्ट-इन प्रकाश स्रोत होते हैं) का उपयोग करते हैं।
विकार का संकेत देने वाली विशेषताओं में असामान्यता का साइज़, उसकी आकृति, रंग, और स्थान के साथ-साथ अन्य लक्षणों या संकेतों की उपस्थिति या अनुपस्थिति शामिल हैं। त्वचा संबंधी समस्याओं को जांचने के लिए, डॉक्टर अक्सर व्यक्ति से सारे कपड़े उतारने को कहते हैं, भले ही व्यक्ति को वह असामान्यता त्वचा के किसी छोटे-से स्थान मात्र पर ही क्यों न दिखी हो।
यदि त्वचा को देखने मात्र से डॉक्टर के द्वारा निदान न हो पाए, तो त्वचा संबंधी विकारों की पहचान के लिए कई टेस्ट उपलब्ध हैं।
(त्वचा की संरचना और उसकी गतिविधियाँ भी देखें।)
बायोप्सी
कभी-कभी बायोप्सी करना ज़रूरी होता है, जिसमें त्वचा का एक छोटा-सा टुकड़ा निकालकर, उसे माइक्रोस्कोप के नीचे जांचा जाता है।
इस साधारण से तरीके के लिए डॉक्टर आम तौर पर त्वचा की किसी छोटी से हिस्से को लोकल एनेस्थेटिक से सुन्न कर देते हैं और एक छोटे-से चाकू (स्कैलपल), कैंची, रेज़र ब्लेड (इसे शेव बायोप्सी कहते हैं) या गोल कटर (इसे पंच बायोप्सी कहते हैं) का उपयोग करते हुए त्वचा का एक टुकड़ा निकाल लेते हैं। टुकड़े का साइज़ कितना होना चाहिए, यह बात संदिग्ध असामान्य वृद्धि के प्रकार पर, उसके स्थान पर, और किए जाने वाले टैस्ट के प्रकार पर निर्भर करती है।
कभी-कभी डॉक्टर किसी छोटे-से ट्यूमर को उसके आस-पास की सामान्य त्वचा की छोटी किनारी समेत पूरे-का-पूरा ट्यूमर निकालकर उस छोटे ट्यूमर का निदान और उपचार, दोनों एक साथ कर देते हैं (कभी-कभी एक्सिसनल बायोप्सी कहा जाता है)। ट्यूमर को माइक्रोस्कोप के नीचे जांच के लिए लैबोरेटरी भेजा जाता है।
खुरचन
कल्चर
यदि किसी संक्रमण का संदेह हो, तो पदार्थ (जैसे त्वचा की खुरचन) का एक नमूना लैबोरेटरी भेजा जा सकता है, जहाँ नमूने को एक कल्चर मीडियम (एक पदार्थ जो सूक्ष्मजीवों को अपनी संख्या बढ़ाने देता है) में रख दिया जाता है। अगर नमूने में बैक्टीरिया, फ़ंगस, परजीवी या वायरस होते हैं, तो वे अक्सर कल्चर में अपनी संख्या बढ़ाने लगते हैं और फिर उन्हें पहचाना जा सकता है।
वुड लाइट (ब्लैक लाइट)
त्वचा संबंधी कुछ संक्रमणों का संदेह होने पर, वुड लाइट जांच का उपयोग किया जाता है। किसी अंधेरे कमरे में त्वचा पर अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश (जिसे ब्लैक लाइट भी कहते हैं) डाला जाता है। अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश से कुछ फ़ंगस या बैक्टीरिया तेज़ी से चमकने लगते हैं। यह प्रकाश त्वचा के पिगमेंट (मेलेनिन) को भी स्पष्ट दिखाता है, जिससे पिगमेंटेशन से जुड़ी असामान्यताएँ, जैसे विटिलिगो (सफ़ेद दाग़) और साफ़ दिखने लगती हैं।
ज़ैंक परीक्षण
ज़ैंक टेस्ट से डॉक्टरों को हर्पीज़ सिंप्लेक्स और हर्पीज़ ज़ॉस्टर आदि वायरस से होने वाले कुछ रोगों के निदान में मदद मिलती है। जब ये रोग सक्रिय होते हैं, तो इनसे छोटे-छोटे फफोले बनते हैं।
ज़ैंक टेस्ट के दौरान, डॉक्टर किसी तेज़ ब्लेड से फफोले का ऊपरी भाग निकालते हैं और फिर स्कैलपल से फफोले को खुरचकर उससे फ़्लूड प्राप्त कर लेते हैं। तरल के इस नमूने पर विशेष स्टेन लगाने के बाद, उसे माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है।
डायास्कपी
डायास्कपी इसलिए की जाती है, ताकि डॉक्टर त्वचा पर दबाव पड़ने पर रंग में होने वाले बदलाव देख सकें।
इस परीक्षण के दौरान डॉक्टर ज़ख़्म वाली जगह से माइक्रोस्कोप स्लाइड दबाकर देखते हैं कि क्या वह सफ़ेद पड़ जाता (कम लाल हो जाता है) है या नहीं या फिर उसका रंग बदलता है या नहीं। कुछ प्रकार के ज़ख़्म की वजह से सफ़ेद दाग पड़ जाते हैं, जबकि कुछ मामलों में ऐसा नहीं होता। त्वचा की कुछ क्षतियाँ (जैसे सार्कोइडोसिस से होने वाली क्षतियाँ) टेस्ट करते समय पीली-कत्थई हो जाती हैं।
त्वचा का परीक्षण
यदि डॉक्टर को यह संदेह हो कि ददोरा किसी एलर्जिक प्रतिक्रिया के कारण है, तो त्वचा के टेस्ट किए जा सकते हैं जिनमें "यूज़" टेस्ट, पैच टेस्ट, प्रिक (छेद) टेस्ट और इंट्राडर्मल टेस्ट शामिल हैं।
यूज़ टेस्ट में संदिग्ध पदार्थ को, जहाँ ददोरा हुआ था उस मूल स्थान से काफ़ी दूर (आम तौर पर बाँह के अगले भाग पर) लगाया जाता है, यह टेस्ट तब उपयोगी होता है, जब परफ़्यूम, शैंपू या घर में मिलने वाले अन्य पदार्थ एलर्जिक प्रतिक्रिया का कारण हो सकते हैं।
पैच टेस्ट में, प्रतिक्रिया करने वाले आम और संदिग्ध पदार्थों, जिन्हें एलर्जिन कहते हैं, उनके कई छोटे-छोटे नमूने चिपकने वाले टेप के नीचे लगाकर, त्वचा पर लगा दिए जाते हैं (आम तौर पर पीठ पर) और फिर लगे छोड़ दिए जाते हैं। पैच के नीचे की त्वचा का मूल्यांकन पैच हटाने के 48 घंटे बाद और फिर 96 घंटे बाद एक बार फिर किया जाता है। त्वचा पर दिखने लायक प्रतिक्रिया होने में अक्सर कई दिन लगते हैं। अगर किसी पदार्थ से खास, आमतौर पर खुजलीदार ददोरा बनता है, तो व्यक्ति संभवतः उस पदार्थ के प्रति एलर्जिक होता है। जिन लोगों की त्वचा गोरी होती है, उनमें दाने का रंग आमतौर पर लाल होता है। जिन लोगों की त्वचा सांवली है, उनमें दाने का रंग आसपास की त्वचा से कम विपरीत हो सकता है, और इस तरह अधिक संवेदी हो सकता है। कभी-कभी पदार्थों से ऐसी उत्तेजना होती है जो वास्तविक एलर्जिक प्रतिक्रिया नहीं होती।
प्रिक टेस्ट में संदिग्ध पदार्थ के एक्स्ट्रेक्ट की एक बूँद त्वचा पर डाली जाती है। इसके बाद, बूँद में नीडिल चुभोई जाती है या नीडिल से छेद कर दिया जाता है, ताकि पदार्थ की एक बहुत छोटी मात्रा त्वचा में प्रवेश कर जाए। इसके बाद, त्वचा को लालिमा (या रंग में अन्य बदलाव), पित्ती या दोनों के लिए देखा जाता है, जो आमतौर पर 30 मिनटों के भीतर हो जाता है। (त्वचा का परीक्षण भी देखें।)
इंट्राडर्मल टेस्ट में पदार्थ की बहुत छोटी मात्राएँ त्वचा के नीचे इंजेक्शन से पहुँचाई जाती हैं। इसके बाद, उस स्थान को लालिमा (या रंग में अन्य बदलाव) और सूजन के लिए देखा जाता है, जिनसे एलर्जिक प्रतिक्रिया का संकेत मिलता है। (त्वचा का परीक्षण भी देखें।)
बहुत कम मामलों में, प्रिक और इंट्राडर्मल टेस्ट से एक बेहद गंभीर एलर्जिक प्रतिक्रिया हो सकती है, जिसे एनाफ़ेलैक्सिस कहते हैं और यह जानलेवा हो सकती है। इसलिए, इस प्रकार के परीक्षण केवल किसी प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर द्वारा ही किए जाने चाहिए।