हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया में, ब्लड में फॉस्फेट का लेवल काफ़ी ज़्यादा होता है।
(इलेक्ट्रोलाइट्स का विवरण और शरीर में फॉस्फेट की भूमिका का विवरण भी देखें।)
फॉस्फेट शरीर के इलेक्ट्रोलाइट्स में से एक है, जो कि ऐसे मिनरल होते हैं जो शरीर के फ़्लूड जैसे कि, ब्लड में मिलने पर इलेक्ट्रिक चार्ज पैदा करते हैं, लेकिन शरीर का ज़्यादातर कैल्शियम चार्ज नहीं होता।
हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया बहुत दुर्लभ है, लेकिन जिन लोगों की किडनी ठीक से काम नहीं करती उन्हें यह हो सकता है। इन लोगों में, किडनी पर्याप्त फॉस्फेट उत्सर्जित नहीं करती। फॉस्फेट को निकालने में डायलिसिस से मदद नहीं मिलती, जो कि किडनी के ठीक से काम न करने पर अक्सर कराई जाती है और इस वजह से इससे हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया का खतरा कम नहीं होता।
बहुत कम मामलों में, हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया उन लोगों को होता है जिन्हें ये समस्याएं हों:
पैराथायरॉइड हार्मोन का लेवल कम होने पर (हाइपोपैराथायरॉइडिज़्म)
पैराथायरॉइड हार्मोन का लेवल सामान्य होने की वजह से प्रतिक्रिया में कमी (स्यूडोहाइपोपैराथायरॉइडिज़्म)
दबाव की वजह से लगी चोटें
मांसपेशियों के ऊतक का क्षतिग्रस्त होने से (रैब्डोमायोलिसिस)
पूरे शरीर में इंफ़ेक्शन (सेप्सिस) होने से
बड़ी मात्रा में फॉस्फेट मुंह या एनिमा द्वारा दिया जाना
हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया के लक्षण
हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया से पीड़ित ज़्यादातर लोगों को कोई लक्षण नहीं होते। हालांकि, जिन लोगों को किडनी की गंभीर समस्या होती है, उनके शरीर में कैल्शियम फॉस्फेट के साथ मिल जाता है, जिससे ब्लड में कैल्शियम का लेवल कम हो जाता है (यह एक विकार है जिसे हाइपोकैल्सीमिया कहते हैं)। कैल्शियम की मात्रा कम होने से मांसपेशियों में ऐंठन और तनाव हो सकता है, लेकिन इससे पैराथायरॉइड हार्मोन का लेवल भी बढ़ भी जाता है, जिससे हड्डियों में कमज़ोरी और अन्य समस्याएं हो सकती हैं।
कैल्शियम और फॉस्फेट शरीर के ऊतक में क्रिस्टल बना सकते हैं (कैल्सिफ़ाई), इसमें रक्त वाहिकाओं की सतहों में बनना भी शामिल होता है। गंभीर आर्टियोस्क्लेरोसिस (धमनियों का सख्त होना) हो सकता है, जिससे आघात, हार्ट अटैक और ब्लड का संचार खराब हो सकता है।
त्वचा में भी क्रिस्टल बन सकते हैं, जिससे उस जगह पर गंभीर खुजली हो सकती है।
हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया का निदान
ब्लड में फॉस्फेट लेवल की जांच करना
हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया का निदान ब्लड टेस्ट के आधार पर किया जाता है, जिसमें पता चलता हो कि फॉस्फेट का लेवल ज़्यादा है।
हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया का इलाज
ऐसी डाइट लेना जिसमें फॉस्फेट का लेवल कम हो
फ़ॉस्फ़ेट का उत्सर्जन बढ़ाने के लिए दवाएँ
किडनी के ठीक से काम न करने की समस्या से पीड़ित लोगों को हाइपरफ़ॉस्फ़ेटेमिया का इलाज करने के लिए फॉस्फेट का लेवल कम किया जाता है और पाचन तंत्र के फॉस्फेट अवशोषण की मात्रा को कम किया जाता है। फॉस्फेट की ज़्यादा मात्रा वाली खाने की चीज़ों से बचा जाता है, जैसे कि दूध, अंडे की जर्दी, चॉकलेट और सॉफ़्ट ड्रिंक।
फ़ॉस्फ़ेट को बनाए रखने वाली दवाएँ, डॉक्टर के बताए अनुसार खाने के साथ ली जाती हैं, जैसे कि सीवेलेमर, लैंथेनम और कैल्शियम कंपाउंड। ये दवाएँ फ़ॉस्फ़ेट के अवशोषण में मुश्किल पैदा करती हैं और इनसे ज़्यादा मात्रा में फ़ॉस्फ़ेट उत्सर्जन होता है। सीवेलेमर और लैंथेनम उन लोगों के लिए इस्तेमाल किये जाते हैं जिनका डायलिसिस हो रहा है, क्योंकि कैल्शियम कंपाउंड से ऊतकों में कैल्शियम-फॉस्फेट क्रिस्टल बनने की संभावना बढ़ जाती है।