जीवन के पहले कुछ दिनों के बाद, शिशुओं को कम से कम 6 से 8 गीले डायपर लगने चाहिए लेकिन ज़्यादा भी ले सकते हैं। मूत्र का रंग लगभग साथ होने से लेकर गहरे पीले की तरह होता है।
शिशुओं को बार-बार मल आने की समस्या, रंग और निरंतरता बहुत अधिक भिन्न-भिन्न होती है, जो प्रत्येक शिशु की प्रकृति और उनके आहार में शामिल सामग्रियों पर निर्भर करती है। शिशु कितनी बार मल त्याग करते हैं, यह दिन में एक बार लेकर दिन में 6 से 8 बार हो सकता है। मल का स्वरूप ठोस और फार्म्ड से लेकर नर्म से बहता हुआ हो सकता है। मल का रंग सरसों के जैसा पीला से लेकर गहरा भूरा हो सकता है। फ़ॉर्मूला-फ़ेड शिशुओं की तुलना में जिन शिशुओं को स्तनपान करवाया जाता है, उनका मल नर्म तथा रंग में हल्का होता है।
अंदर की त्वचा को सूखा रखने के लिए डायपर्स को बार-बार बदलते रहना चाहिए। शुष्क त्वचा की तुलना में गीली त्वचा अधिक आसानी से झड़ जाती है और डायपर के कारण चकत्ते विकसित होने की संभावना अधिक होती है। आधुनिक, सुपर-एब्सार्बेंट डिस्पोजेबल डायपर्स में जैल की एक परत शामिल होती है जो लिक्विड को अवशोषित कर लेती है और इसे त्वचा से दूर रखती है। कपड़े के डायपर्स की तुलना में ये डायपर्स कम से मध्यम मात्रा में मूत्र के बाद त्वचा को शुष्क रखते हैं, लेकिन जब भी त्वचा गीली हो जाती है, तब किसी भी प्रकार के डायपर्स क्यों न हों, उन्हें बदला जाना चाहिए। मल में मौजूद बैक्टीरिया मूत्र में मौजूदा यूरिया नामक तत्व को ब्रेक डाउन कर सकता है, जिसके एल्केलाइन pH विकसित हो जाता है, जिसकी वजह से त्वचा पर जलन होती है, इसलिए बार-बार देख लेना चाहिए कि कहीं डायपर्स मल की वजह से गंदे तो नहीं हो गए हैं और उन्हें तत्काल बदल दिया जाना चाहिए।
जब शिशुओं को थोड़ा पसीना आता है, तो बेबी टेल्कम से त्वचा को सूखा रखने में मदद मिलती है, लेकिन इससे मूत्र और मल से त्वचा को सूखा रखने में मदद नहीं मिलती है और यह अनिवार्य भी नहीं होता है। टेल्कम से बनाया गया पाउडर फेफड़ों की समस्या का कारण बनता है यदि उन्हें शिशुओं द्वारा सांस से अंदर ले लिया जाता है, इसलिए माता-पिता को ऐसे बेबी पाउडर्स खरीदने चाहिए, जिनमें कॉर्नस्टार्च शामिल होता है।