कई अस्पताल और दूसरे संगठन माता-पिताओं के लिए नवजात शिशु को पोषण देने, नहलाने, और कपड़े पहनाने, और शिशु की गतिविधियों, संकेतों और आवाज़ों से परिचित होने के बारे में प्रशिक्षण की पेशकश करते हैं। माता-पिता को गर्भनाल, खतना, त्वचा, मूत्र तथा मल त्याग, और वज़न के संबंध में देखभाल के सामान्य पहलुओं के बारे में भी शिक्षित किया जाता है।
गर्भनाल
नवजात शिशु की गर्भनाल पर आमतौर पर एक गर्भनाल की प्लास्टिक की क्लैम्प लगाई हुई होती है। गर्भनाल के पूरी तरह से सूख जाने पर क्लैम्प को निकाला जा सकता है।
गर्भनाल के स्टम्प को खींचने या निकालने का कोई प्रयास नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि एक या दो सप्ताह में वह अपने आप गिर जाएगा। गर्भनाल के स्टम्प को साफ़-सुथरा और सूखी हुई अवस्था में रखना चाहिए। स्टम्प पर अल्कोहल या दूसरे एंटीसेप्टिक घोल लगाने की कोई ज़रूरत नहीं होती।
बहुत ही कम मामलों में, गर्भनाल संक्रमित हो सकती है, इसलिए लालिमा, सूजन या स्राव के किसी भी संकेत की जांच डॉक्टर द्वारा की जानी चाहिए।
खतना
पुरुष नवजातों में खतना, यदि इसकी इच्छा व्यक्त की जाती है, तो आमतौर पर इसे जन्म के कुछ दिनों के भीतर ही किया जाता है। नवजात शिशु के खतना करने का निर्णय आमतौर पर माता-पिता की धार्मिक मान्यताओं या व्यक्तिगत पसंद आदि के आधार पर किया जाता है।
कुछ चिकित्सकीय समस्याएं होती हैं जिनमें खतना की ज़रूरत होती है। कभी-कभी असामान्य रूप से तंग अग्रत्वचा (फ़िमोसिस) होती है जो मूत्र के प्रवाह में बाधा डालती है, और बाधा को दूर करने के लिए खतना किया जाना ज़रूरी होता है। हालांकि, खतना किए गए पुरुषों को लिंग के कैंसर और मूत्र की नली में संक्रमणों का कम जोखिम होता है, लेकिन उचित स्वच्छता को अपना कर इन जोखिमों को कम किया जा सकता है। साथ ही, खतना किए गए पुरुषों को लिंग के कैंसर का कम जोखिम होता है, लेकिन यह बहुत कम होने वाला कैंसर होता है, और मानव पैपिलोमा वायरस के सबसे आम कैंसर पैदा करने वाले उपभेदों के खिलाफ टीकाकरण रोकथाम की एक रणनीति होती है।
खतना की प्रक्रिया आमतौर पर जटिलताहीन होती है। लड़कों के एक छोटे से प्रतिशत में खतना प्रक्रिया के दौरान जटिलताएं पाई हैं, आमतौर पर मामूली रक्तस्राव या स्थानीय संक्रमण। हालांकि, कभी-कभी गंभीर जटिलताएं हो जाती हैं।
यदि लड़के ने अब तक पेशाब नहीं किया है या उसे रक्तस्राव विकार है या किसी भी तरह से लिंग असामान्य है, तो खतना नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि लिंग की अग्रत्वचा का इस्तेमाल किसी प्लास्टिक सर्जिकल सुधार के लिए किया जा सकता है जिसकी शायद बाद में ज़रूरत पड़े। खतना को निलंबित किया जाना चाहिए, यदि गर्भावस्था के दौरान माँ के द्वारा ऐसी दवाओं का सेवन किया गया था जिनसे रक्तस्राव का खतरा बढ़ जाता है, जैसे एंटीकोग्युलेन्ट (ब्लड थिनर) या एस्पिरिन आदि। खतना में तब तक देरी की जानी चाहिए जब तक कि नवजात शिशु के शरीर से ऐसी सभी दवाएँ समाप्त न हो जाएं।
त्वचा
अधिकांश नवजात शिशुओं में जन्म के पहले सप्ताह के दौरान हल्के चकत्ते होते हैं। आमतौर पर, ऐसे चकत्ते शरीर के उन अंगों में दिखाई देते हैं जिनको कपड़ों से रगड़ा जाता है—जैसे बाजु, टांगे और पीठ—और विरल रूप से उन्हें चेहरे पर भी देखा जाता है। बिना उपचार के यह ठीक होते चले जाते हैं। लोशन या पाउडर लगाने से, परफ्यूम से युक्त साबुन लगाने और डायपर्स को ढंकने से, जिससे नमी सूख नहीं पाती है, रूखे चकत्तों के बदतर होने की संभावना रहती है, विशेष रूप से गर्म मौसम में। कुछ दिनों के बाद, शुष्कता तथा कुछ हिस्सों से त्वचा की पपड़ी उखड़ना होता है, और विशेष रूप से ऐसा कलाईयों और टखनों की क्रीज़ पर ऐसा होता है।
जन्म के पहले दिन के बाद नवजात शिशु की त्वचा का रंग पीला (पीलिया) हो सकता है। पीलिया इसलिए होता है क्योंकि नवजात शिशु के लिवर को अब गर्भ में काम करने की बजाए, गर्भ के बाहर काम करना होता है। हालांकि, 24 घंटों की आयु से पहले दिखाई देने वाला पीलिया अधिक चिंताजनक होता है और यह अधिक गंभीर समस्या का संकेत हो सकता है। यदि नवजात शिशु को पीलिया हो जाता है, तो आमतौर पर डॉक्टर बिलीरुबिन के स्तर की माप करने के लिए रक्त की जांच करते हैं, जो कि पित्त में मुख्य रंजक (पिग्मेंट) होता है। यदि बिलीरुबिन का स्तर एक निश्चित संख्या से ऊपर है, तो फ़ोटोथेरेपी के साथ इलाज शुरू किया जाता है। फ़ोटोथेरेपी में, बिलीरुबिन को तोड़ने के लिए नवजात शिशु को बिना कपड़ों के विशेष प्रकाश ("बिली" लाइट) में रखा जाता है ताकि बिलीरुबिन खत्म किया जा सके। इस लाइट की ज़रूरत 2 दिन से एक सप्ताह तक पड़ सकती है। नवजात शिशु का सामान्य पीलिया 2 सप्ताह की आयु तक चला जाना चाहिए। ऐसा नवजात शिशु जिसे 2 सप्ताह की आयु के बाद पीलिया होता है या जारी रहता है तो उसका मूल्यांकन स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर द्वारा किया जाना चाहिए।
विलियम जे. कोचरान, MD के सौजन्य से छवि प्राप्त हुई है।
मूत्र और मल त्याग
जीवन के पहले 2 दिनों में, नवजात शिशु द्वारा निर्मित मूत्र कन्संट्रेडेट होता है और अक्सर उसमें यूरेट्स नामक रसायन होते हैं, जिससे डायपर का रंग नारंगी या गुलाबी हो सकता है। यदि नवजात शिशु जन्म के बाद पहले 24 घंटों में पेशाब नहीं करता, तो चिकित्सकीय मूल्यांकन की ज़रूरत हो सकती है।
पहला मल त्याग चिपचिपा हरा काला तत्व होता है जिसे मेकोनियम कहा जाता है। जन्म के पहले 24 घंटों के दौरान हर शिशु द्वारा मेकोनियम अवश्य किया जाना चाहिए। यदि कोई शिशु ऐसा नहीं करता है, तो क्या कोई समस्या है, इसका पता लगाने के लिए डॉक्टर को जांच करनी चाहिए। कभी-कभी, उदाहरण के तौर पर, जन्मजात दोष के कारण आंतों में अवरोध हो सकता है।
वज़न
अधिकांश नवजात शिशुओं का जन्म के पहले कुछ दिनों के दौरान अपने जन्म के वजन की तुलना में 5 से 7% वजन कम हो जाता है, और अधिकांश रूप से ऐसा मूत्र में फ़्लूड की हानि और साथ ही मेकोनियम के करने के कारण भी ऐसा होता है। यदि नवजात शिशुओं को स्तनपान करवाया जाता है, तो वे लगभग 2 सप्ताह में अपने जन्म के वज़न को फिर से प्राप्त कर लेते हैं, और यदि उनकोफार्मूला-आहार दिया जाता है, तो ऐसा लगभग 10 दिनों में हो जाता है। उसके बाद, पहले कुछ महीनों के दौरान उनका वजन 20 से 30 ग्राम (1 आउंस) हर रोज़ बढ़ना चाहिए। लगभग 5 महीनों की आयु तक सामान्यतः नवजात शिशु का वज़न जन्म के वज़न से दुगुना होना चाहिए।
अस्पताल से छुट्टी दिया जाना
अमेरिका में, आमतौर पर नवजात शिशुओं का जन्म अस्पताल में होता है और उनको 24 से 48 घंटों के भीतर छुट्टी दे दी जाती है। ऐसे शिशु जिनको 48 घंटों के भीतर छुट्टी दी जाती है, उनको डॉक्टर के पास 2 से 3 दिन के भीतर जांच के लिए आना चाहिए (बच्चों में रोकथाम स्वास्थ्य देखभाल विज़िट देखें)। जिन शिशुओं को 48 घंटों के बाद छुट्टी दी जाती है, उनको 2 सप्ताह की आयु या इससे पहले जांच करवानी चाहिए यदि उनको कोई विशिष्ट समस्या है (जैसे फीडिंग न लेना, कब्ज, डायरिया, या पीलिया)।
शिशु को छुट्टी दिए जाने से पहले, माता-पिता को यह विशिष्ट रूप से बताया जाता है कि उन्हें बाल रोग चिकित्सक के कार्यालय में फ़ोन करना चाहिए। उदाहरण के लिए, माता-पिता को तत्काल बाल रोग चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए यदि शिशु को बुखार है (तापमान को गुदा से लिया जाना चाहिए), सांस लेने मे मुश्किल हो रही है, भूख नहीं लगती, पित्त की उल्टी होती है (हरे-पीले रंग सामग्री की उलटी करना), या त्वचा का रंग नीला (सायनोसिस) हो जाता है।
घर पर पहुंचने के बाद, शिशु को घर में रखने के लिए सभी शामिल लोगों को बहुत अधिक समायोजन करने की ज़रूरत पड़ती है। ऐसे परिवार जिनमें अभी तक कोई बच्चे नहीं थे, वहां पर ऐसे परिवर्तन बहुत अधिक नाटकीय हो सकते हैं। जब दूसरे बच्चे मौजूद हो, तो ईर्ष्या एक समस्या हो सकती है। दूसरे बच्चों को नए शिशु की देखभाल के लिए तैयार करना और उन पर ध्यान देने के लिए सजग रहना तथा उन्हें शिशु की देखभाल में शामिल करने से यह बदलाव आसान हो सकता है। पालतू पशुओं पर भी कुछ अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता पड़ सकती है, ताकि शिशु की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन पर नज़र रखी जा सके। कुछ मामलों में, पालतू पशुओं को शिशु से दूर रखना भी आवश्यक हो सकता है।