हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम एक जन्मजात डिफ़ेक्ट है जिसमें दिल की बाईं ओर सही तरीके से विकसित नहीं हो पाती, इन पूरी तरह न विकसित होने वाले हिस्सों में दिल का निचला चेंबर (बायां वेंट्रिकल), हृदय के वाल्व (माइट्रल और एओर्टिक वाल्व), और एओर्टा शामिल हैं। हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम से प्रभावित नवजात बच्चों में एट्रियल सेप्टल डिफ़ेक्ट (ASD) और पेटेंट डक्टस आर्टिरियोसस जैसी समस्याएं भी होती हैं।
हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम की वजह से जन्म के थोड़े समय के बाद ही हृदय खराब हो जाता है - हृदय, शरीर में सामान्य से कम रक्त पहुंचाता है और आखिरकार मृत्यु हो जाती है।
इसका निदान ईकोकार्डियोग्राफ़ी से किया जाता है।
इलाज के लिए डक्टस आर्टेरियोसस को खुला रखने के लिए इमरजेंसी दवाएँ दी जाती हैं और इसके बाद सर्जरी की कई प्रक्रियाएं या हार्ट ट्रांसप्लांटेशन किया जाता है।
(दिल की समस्याओं का विवरण भी देखें।)
हृदय की जन्मजात समस्याओं में से 2 से 4% खराबियां हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम की वजह से होती है। हाइपोप्लास्टिक शरीर के ऐसे हिस्से के लिए चिकित्सीय शब्द है, जो अर्धविकसित और छोटा होता है।
हृदय की खराबी से पीड़ित शिशुओं में, चूंकि हृदय का बायां हिस्सा कम विकसित होता है, इसलिए फेफड़ों से रक्त के प्रवाह के समय, उनके बाएं एट्रियम में बहुत कम स्थान होता है। इसकी वजह से कुछ रक्त आर्टेरियल सेप्टल खराबी (हृदय की दीवार में बाएं और दाएं एट्रिया में मौजूद सूराख) के ज़रिए हृदय के दाएं हिस्से में धकेला जाता है। साथ ही, शरीर से वापस लौटने वाला रक्त (कम ऑक्सीजन स्तर वाला रक्त) फेफड़ों से वापस लौटने वाले रक्त (अधिक ऑक्सीजन स्तर वाला रक्त) के साथ मिश्रित होता है।
हृदय का कम विकसित बायां हिस्सा, पर्याप्त रक्त को शरीर में नहीं लौटने देता है, जिससे शिशुओं में डक्टस आर्टेरियोसस के ज़रिए अधिक रक्त प्रवाह की आवश्यकता होती है (ऐसा शॉर्ट कट, जो फ़ीटल सर्क्युलेशन के हिस्से का शॉर्ट-कट है, जो रक्त को सीधे पल्मोनरी धमनी से शरीर में प्रवाहित होने देता है), लेकिन यह शॉर्ट कट आमतौर पर जन्म के तुरंत बाद बंद हो जाता है (देखें भ्रूण में सामान्य परिसंचरण)। अगर प्रोस्टेग्लैंडिन दवा शुरू करके डक्टस को जल्दी से खुला नहीं रखा जाता है, तो शिशु की मौत हो जाएगी। जन्म के शुरुआती कुछ हफ़्तों में सर्जरी से इलाज की जरूरत पड़ती है।
हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम के लक्षण
हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम के लक्षण तब दिखते हैं, जब डक्टस आर्टिरियोसस जन्म के शुरुआती 24 से 48 घंटों में बंद होने लगता है। इसके बाद, हार्ट फ़ेल और आघात के संकेत तेज़ी से बढ़ सकते हैं, जिनमें तेज़ी से सांस लेना, सांस चढ़ना, कमज़ोर पल्स, पीली या नीली त्वचा, शरीर का ठंडा तापमान, सुस्ती और पेशाब में कमी शामिल हैं। जब शरीर में ब्लड फ़्लो कम हो जाता है, तो दिल, दिमाग और अन्य ज़रूरी अंगों में पर्याप्त ब्लड फ़्लो नहीं हो पाता। अगर ब्लड फ़्लो सही नहीं होता, तो शिशु की मृत्यु हो जाती है।
हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम का निदान
इकोकार्डियोग्राफी
कई शिशुओं का जन्म से पहले निदान किया जाता है जब माता के प्रीनेटल अल्ट्रासाउंड टेस्ट या भ्रूण की ईकोकार्डियोग्राफ़ी (हृदय की अल्ट्रासोनोग्राफ़ी) में हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम का पता लगता है।
निदान की शंका तब होती है, जब शिशु की जांच के दौरान डॉक्टर को हृदय की खराबी के लक्षण और निष्कर्ष दिखाई देते हैं। निदान की पुष्टि इमरजेंसी ईकोकार्डियोग्राफ़ी से की जाती है।
चेस्ट एक्स-रे और इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ़ी (ECG) की जाती है। कभी-कभी कार्डिएक कैथीटेराइजेशन की आवश्यकता होती है।
हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम का इलाज
सर्जरी करने तक डक्टस आर्टेरियोसस को खुला रखने के लिए एक दवा (प्रोस्टेग्लैंडिन) दी जाती है
सर्जिकल मरम्मत
कभी-कभी हृदय का प्रत्यारोपण
चूंकि हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम से प्रभावित ज़्यादातर बच्चों का पता जन्म से पहले ही लग जाता है, इसलिए डॉक्टर जन्म के तुरंत बाद ही, लक्षणों के विकसित होने के पहले ही डक्टस को खुला रखने के लिए दवा देना शुरू करते हैं।
तुरंत देखभाल
सभी प्रभावित शिशुओं का उपचार नीयोनेटल इंटेंसिव केयर यूनिट या पीडियाट्रिक कार्डिएक इंटेंसिव केयर यूनिट में किया जाता है। शिरा के ज़रिए प्रोस्टेग्लैंडिन दी जाती है, ताकि डक्टस आर्टेरियोसस को बंद होने से रोका जा सके या संकुचित डक्टस को फिर से खोला जा सके। नवजात बच्चों को आमतौर पर सांस लेने के लिए मदद की ज़रूरत पड़ती है (मैकेनिकल वेंटिलेशन), खासतौर पर उन्हें जो बहुत बीमार होते हैं। गंभीर रूप से बीमार नवजात बच्चों के हृदय की कार्यप्रणाली में सुधार लाने के लिए दवाएँ देने की ज़रूरत पड़ सकती हैं।
सर्जिकल मरम्मत
ज़िंदा रहने के लिए कई सारी सर्जरी करानी पड़ती है, जिससे दायां वेंट्रिकल अर्द्धविकसित बाएं वेंट्रिकल का काम करता है।
सर्जरी 2 से 3 वर्षों के सामान्य चरणों में की जाती है।
चरण 1: जन्म के शुरुआती कुछ हफ़्तों के दौरान की जाती है। इसमें नॉरवुड नाम की जटिल प्रक्रिया शामिल है, जिससे दिल के दाएं हिस्से से शरीर में ब्लड की सप्लाई होने लगती है।
चरण 2: यह तब किया जाता है जब शिशु की उम्र 3 से 6 महीने होती है। इस ऑपरेशन को ग्लेन प्रक्रिया कहते हैं। यह दिल के ऊपरी आधे हिस्से से दिल में आने वाले ब्लड को दिल को बाइपास करते हुए पल्मोनरी धमनी में भेज देता है।
चरण 3: यह तब किया जाता है जब शिशु की उम्र 18 से 36 साल की होती है। अगर सर्जरी के पहले 2 चरणों से अच्छे परिणाम मिलते हैं, तब उन्हें तीसरे चरण में ले जाया जाता है, जिसे फ़ॉन्टेन प्रक्रिया कहते हैं। यह ऑपरेशन दिल के निचले आधे हिस्से से दिल में आने वाले ब्लड को दिल को बाइपास करते हुए पल्मोनरी धमनी की तरफ निर्देशित करता है, जिससे शिरा में मौजूद सारा ब्लड दिल को बाइपास करते हुए फेफड़ों में चला जाता है।
हृदय प्रत्यारोपण
कुछ शिशुओं में, हाइपोप्लास्टिक लेफ़्ट हार्ट सिंड्रोम के लिए हार्ट ट्रांसप्लांटेशन करना बेहतर विकल्प माना जाता है। शिशुओं को दिल का डोनर मिलने तक डक्टस आर्टिरियोसस को खुला रखने तक प्रोस्टेग्लैंडिन का इंफ़्यूज़न किया जाना चाहिए। दिल के डोनर बहुत कम उपलब्ध होते हैं, इसलिए ट्रांसप्लांट का इंतज़ार करते हुए 20% शिशुओं की मृत्यु हो जाती है। ट्रांसप्लांटेशन और मल्टीस्टेज सर्जरी दोनों के बाद, 5-साल तक जीवित रहने की दर एक जैसी होती है। हालांकि, सीमित डोनर की समस्या और बेहतर सर्जिकल परिणामों की वजह से अधिकांश जन्मजात हृदय रोगों के उपचार केंद्र एक से अधिक चरणों के सर्जिकल तरीके की अनुशंसा करते हैं।
हार्ट ट्रांसप्लांटेशन के बाद, बच्चे की बाकी की ज़िंदगी के लिए, इम्यून सिस्टम (इम्यूनोसप्रेसेंट) की गतिविधियों को कम करने के लिए दवाओं की आवश्यकता होती है। इन दवाओं से लोगों को इंफ़ेक्शन के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है और उनमें कुछ तरह के ट्यूमर विकसित होने का जोखिम बढ़ जाता है। इम्यूनोसप्रेसेंट से ट्रासंप्लांट किए गए दिल की कोरोनरी धमनियों में भी क्षति होती है। कोरोनरी धमनी की क्षति का एकमात्र उपलब्ध उपचार दोबारा ट्रांसप्लांटेशन है।
दीर्घकालिक देखभाल
कुछ बच्चों को डेंटिस्ट से मिलने और कुछ खास सर्जरी (जैसे श्वसन तंत्र की) कराने से पहले एंटीबायोटिक्स लेनी पड़ती हैं, यह सर्जरी के नतीज़ों पर निर्भर करता है। इन एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल एन्डोकार्डाइटिस जैसे इंफ़ेक्शन को ठीक करने के लिए किया जाता है।
कुछ बच्चों को हृदय में थक्के बनने से बचने के लिए एस्पिरिन या कोई खून पतला करने वाली दवाएँ वारफ़ेरिन या इनोक्सापेरिन लेने की ज़रूरत हो सकती हैं। कई प्रभावित बच्चों को एक या ज़्यादा दूसरी दवाएँ भी लेनी पड़ती हैं, ताकि उनका हृदय लगातार बेहतर ढंग से काम करता रह सके।
अधिक जानकारी
निम्नलिखित अंग्रेजी भाषा के संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इन संसाधनों की सामग्री के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।
American Heart Association: Common Heart Defects: माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए दिल से जुड़े सामान्य जन्मजात समस्याओं का विवरण देता है
American Heart Association: Infective Endocarditis: इंफ़ेक्टिव एन्डोकार्डाइटिस का विवरण देता है, जिसमें बच्चों और देखभाल करने वालों के लिए एंटीबायोटिक के इस्तेमाल का सार होता है