स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस, एक ही जानलेवा त्वचा विकार के दो रूप हैं, जिनमें ददोरे, त्वचा का उतरना, और म्युकस झिल्लियों पर घाव होते हैं।
(त्वचा की हाइपरसेंसिटिविटी और प्रतिक्रियाशीलता से जुड़े विकारों के विवरण भी देखें।)
स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस आम तौर पर दवाओं या संक्रमणों से होते हैं।
दोनों रोगों के आम लक्षणों में त्वचा का निकलना, बुखार, शरीर में दर्द, चपटे लाल या पर्पल रैश, और श्लेष्मा झिल्लियों पर फफोले और घाव होना शामिल हैं।
प्रभावित लोगों को आम तौर पर अस्पताल की बर्न यूनिट में भर्ती किया जाता है, उन्हें फ़्लूड और कभी-कभी दवाएँ दी जाती हैं, और सभी संदिग्ध दवाएँ रोक दी जाती हैं।
त्वचा का छिलना इन विकारों का प्रमाण चिह्न होता है। इसमें त्वचा की पूरी-की-पूरी ऊपरी परत (एपिडर्मिस) उतर जाती है, जो कभी-कभी शरीर के बड़े-बड़े भागों से परत के रूप में उतरती है (त्वचा की संरचना और उसके कार्य देखें)।
स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम के कारण त्वचा के केवल छोटे-छोटे भाग ही निकलते हैं (शरीर का 10% से कम भाग प्रभावित होता है)।
टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस में त्वचा के बड़े-बड़े भाग उतरते हैं (शरीर का 30% से अधिक भाग प्रभावित होता है)।
यदि शरीर का 10 से 30% भाग प्रभावित होता है, तो लोगों में स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम/टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस ओवरलैपिंग होना माना जाता है।
दोनों ही रूपों में, आम तौर पर मुंह, आंखों और योनि की म्युकस झिल्लियों में, और कभी-कभी पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, और मूत्र तंत्र की म्युकस झिल्लियों में फफोले हो जाते हैं।
दोनों विकार जानलेवा हो सकते हैं।
स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस के कई मामले किसी दवा पर प्रतिक्रिया के कारण होते हैं, इन दवाइयों में अधिकतर सल्फ़ा और अन्य एंटीबायोटिक्स; एंटीसीज़र दवाएँ, जैसे फ़ेनिटॉइन और कार्बेमाज़ेपाइन; और कुछ अन्य दवाएँ जैसे पाइरॉक्सीकैम या एलोप्यूरिनॉल शामिल हैं।
कुछ मामले जीवाणु संक्रमण, टीकाकरण या ग्राफ़्ट-वर्सेस-होस्ट डिजीज से होते हैं। स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों में, कोई संक्रमण सर्वाधिक संभावित कारण होता है।
कभी-कभी, कारण की पहचान नहीं हो पाती।
ये विकार सभी आयु वर्गों में होते हैं। ये विकार ऐसे लोगों में होने की संभावना अधिक होती है, जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली असामान्य है, जैसे कि वे लोग, जिन्होंने बोन मैरो ट्रांसप्लांट करवाया है या वे लोग, जो सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस, जोड़ों व संयोजी ऊतकों के अन्य क्रोनिक रोगों या ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (HIV) संक्रमण से ग्रस्त हैं (विशेष रूप से तब, जब लोगों को न्यूमोसिस्टिस जीरोवेकिआय के कारण निमोनिया भी हुआ हो)। ये विकार होने की प्रवृत्ति एक से दूसरी पीढ़ी में जा सकती है।
SJS और TEN के लक्षण
स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस की शुरुआत आम तौर पर बुखार, सिरदर्द, खाँसी, केरटोकंजंक्टिवाइटिस (आंखों में कंजंक्टाइवा और कॉर्निया का शोथ), और शरीर में दर्द के साथ होती है। यदि यह किसी दवाई के कारण हुआ हो, तो ये लक्षण आम तौर पर दवाई लेना शुरू करने के 1 से 3 सप्ताह बाद दिखते हैं। इसके बाद त्वचा में बदलाव शुरू होते हैं, जिनमें चेहरे, गर्दन और धड़ पर सपाट पर्पल रैश हो जाते हैं, जो आगे चलकर अक्सर अनियमित पैटर्न में पूरे शरीर पर फैल जाते हैं। ददोरे वाले स्थान बढ़ने और फैलने लगते हैं, और उनके बीच में अक्सर फफोले बन जाते हैं। फफोलों की त्वचा बहुत ढीली होती है, जो अक्सर हल्के से छूने या खींचने मात्र से अलग हो जाती है, और 1 से 3 दिनों में फफोलों की त्वचा उतर जाती है। प्रभावित स्थानों में दर्द होता है, और व्यक्ति को कंपकंपी और बुखार के साथ बहुत अस्वस्थता महसूस होती है। कुछ लोगों के भौहें और नाख़ून भी गिर जाते हैं। हथेलियाँ और तलवे प्रभावित हो सकते हैं।
दोनों ही विकारों में मुंह, गले, गुदा, जननांगों, और आंखों का अस्तर वाली म्युकस झिल्लियों पर घाव दिखाई देते हैं। मुंह के अस्तर को हुए नुक़सान से खाना मुश्किल हो जाता है, और मुंह को बंद करने में दर्द हो सकता है, जिसके कारण व्यक्ति की लार बह सकती है। आंखों में बहुत दर्द और सूजन हो जाती है और आंखें इतनी पपड़ीदार हो जाती हैं कि वे पूरी तरह बंद हो जाती हैं। कॉर्निया पर घाव के निशान पड़ सकते हैं। जिस छेद से मूत्र निकलता है (यूरेथ्रा) वह भी प्रभावित हो सकता है, जिससे पेशाब करने में समस्या और दर्द होता है। कभी-कभी पाचन तंत्र और श्वसन तंत्र की म्युकस झिल्लियाँ भी प्रभावित हो जाती हैं, जिस कारण दस्त, खाँसी, निमोनिया और सांस लेने में कठिनाई हो जाती है।
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टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस में बड़ी मात्रा में होने वाले त्वचा का नुकसान, गंभीर रूप से जलने के समान होता है और उतना ही जानलेवा भी होता है। लोग बहुत अस्वस्थ हो जाते हैं और खाने या आंखें खोलने में असमर्थ हो जाते हैं। बड़े, कच्चे और क्षतिग्रस्त जगहों से तरल पदार्थों और लवणों की भारी मात्राएँ रिस सकती हैं। इस विकार से ग्रस्त लोगों में अंगों के काम न करने की बहुत अधिक संभावना होती है। वे खराब और बिना त्वचा के ऊतकों वाले स्थानों पर संक्रमण होने के जोखिम में भी होते हैं। ऐसे संक्रमण, टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस से ग्रस्त लोगों की मृत्यु होने का सबसे आम कारण होते हैं।
SJS और TEN का निदान
एक डॉक्टर का मूल्यांकन
कभी-कभी एक त्वचा बायोप्सी
डॉक्टर आम तौर पर, स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस का निदान, प्रभावित त्वचा और श्लेष्मा झिल्लियों की दिखावट, उनके लक्षणों (खुजली के बजाय दर्द), त्वचा पर दिखने वाले लक्षणों के बढ़ने की गति और प्रभावित त्वचा के क्षेत्र के आधार पर कर सकते हैं।
त्वचा का नमूना लिया जा सकता है और उसे माइक्रोस्कोप के नीचे जांचा जा सकता है (जिसे स्किन बायोप्सी कहते हैं)।
SJS और TEN का उपचार
बर्न सेंटर या इंटेंसिव केयर यूनिट में उपचार
शायद साइक्लोस्पोरिन, कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाएँ, प्लाज़्माफ़ेरेसिस, इम्यून ग्लोबुलिन, या इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएँ
स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम या टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस से ग्रस्त लोगों को अस्पताल में भर्ती किया जाता है। जिन भी दवाओं के कारण उक्त विकार होने का संदेह हो उन्हें तुरंत रोक दिया जाता है। जब संभव हो, तब लोगों का उपचार बर्न सेंटर या इंटेंसिव केयर यूनिट में किया जाता है और संक्रमण से बचाने के लिए उनकी बहुत सावधानी से देखभाल की जाती है (गंभीर रूप से जलना देखें)। यदि व्यक्ति जीवित बचता है, तो त्वचा अपने-आप दोबारा बन जाती है और जलने के विपरीत, स्किन ग्राफ़्ट की ज़रूरत नहीं पड़ती। खराब त्वचा से हुई तरल पदार्थों और लवणों की हानि की भरपाई नसों के ज़रिए (इंट्रावीनस तरीके से) की जाती है।
इन विकारों का उपचार करने वाली दवाओं का उपयोग विवादास्पद है, क्योंकि भले ही इस बात के सैद्धांतिक कारण हैं कि क्यों कुछ दवाएँ लाभकारी हो सकती हैं, लेकिन कोई भी दवा जीवित बचने की दर में स्पष्ट सुधार नहीं दिखा पाई है। साइक्लोस्पोरिन, सक्रिय फफोले बनने और त्वचा निकलने की अवधि घटा सकती है और जीवित बचने की दर बढ़ा सकती है। कुछ डॉक्टर मानते हैं कि शुरुआती कुछ दिनों में कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाओं की ज़्यादा खुराक देने से लाभ होता है, जबकि कुछ अन्य मानते हैं कि उनका उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनसे गंभीर संक्रमण का जोखिम बढ़ सकता है। यदि संक्रमण हो जाए, तो डॉक्टर तुरंत एंटीबायोटिक्स देते हैं।
डॉक्टर प्लाज़्माफ़ेरेसिस कर सकते हैं। इस कार्यविधि में, व्यक्ति का रक्त निकाल कर, उसके रक्त कणों से प्लाज़्मा को अलग करके हटा दिया जाता है। इस कार्यविधि से खून से कुछ हानिकारक पदार्थ अलग किए जाते हैं, जिनमें वे दवाएँ और एंटीबॉडीज (प्रतिरक्षा प्रणाली के प्रोटीन) हो सकते हैं, जिनसे उक्त विकार हो सकता है। इन पदार्थों को अलग कर देने के बाद, रक्त कोशिकाएँ वापस व्यक्ति में चढ़ा दी जाती हैं।
डॉक्टर टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस के उपचार के लिए, नसों के ज़रिए ह्यूमन इम्यून ग्लोबुलिन दे सकते हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि क्या यह पदार्थ, त्वचा की कोशिकाओं को और अधिक नुक़सान से बचाता है।
इम्यूनोसप्रेसेंट नाम की दवाएँ दी जा सकती हैं। इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएँ प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर बनाती (दबाती) हैं और उसे शरीर के अपने ही ऊतकों पर हमला करने से रोकने में मदद करती हैं। ट्यूमर नेक्रोसिस फ़ैक्टर (TNF)–अवरोधी दवाएँ, इम्युनोसप्रेसेंट दवाओं का एक प्रकार हैं। स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम या टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस से ग्रस्त व्यक्तियों में शोथ उत्पन्न कर रही प्रतिरक्षा प्रक्रिया को कमज़ोर करने में मदद के लिए TNF अवरोधक दवाएँ, जैसे इन्फ़्लिक्सीमेब और इतानर्सेप्ट दी जाती हैं।
SJS और TEN का पूर्वानुमान
टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस में मृत्यु दर वयस्कों में 25 से 35% तक हो सकती है और गंभीर फफोलों से ग्रस्त वयोवृद्ध वयस्को में यह और भी अधिक हो सकती है। बच्चों में मृत्यु दर कम है।
स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम में मृत्यु दर, टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस की तुलना में कम है।