एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस लिवर की सूजन है, सामान्यतया अर्थ है कि यह सूजन हैपेटाइटिस के 5 वायरसों में से किसी 1 के संक्रमण के कारण होता है। ज़्यादातर लोगों में, सूजन अचानक शुरू होती है और कुछ ही हफ़्तों तक रहती है।
इसके या तो कोई लक्षण नहीं होते या फिर बहुत गंभीर लक्षण होते हैं।
संक्रमित व्यक्ति में भूख कम लगना, मतली, उल्टी, बुखार, पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में दर्द और पीलिया जैसे लक्षण हो सकते हैं।
हैपेटाइटिस का पता लगाने और इसके कारण की पहचान करने के लिए डॉक्टर रक्त परीक्षण करवाते हैं।
टीके लगवाकर हैपेटाइटिस A, B और E से बचा जा सकता है (हैपेटाइटिस E का टीका सिर्फ़ चीन में उपलब्ध है)।
आमतौर पर, इसमें किसी तरह के खास इलाज की आवश्यकता नहीं होती है।
(हैपेटाइटिस का विवरण भी देखें।)
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस दुनिया भर में एक आम बीमारी है। एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस के ज़्यादातर मामलों में मरीज़ अपने आप ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ लोगों में यह बीमारी बनी रहती है और क्रोनिक हैपेटाइटिस में बदल जाती है।
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस होने के कारण
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस, हैपेटाइटिस के 5 मुख्य वायरसों के कारण हो सकती है (हैपेटाइटिस वायरस की तालिका देखें):
एक्यूट हैपेटाइटिस होने का सबसे आम कारण हैपेटाइटिस A वायरस और इसके बाद हैपेटाइटिस B वायरस से संक्रमित होना है।
अन्य वायरसों के संक्रमण से भी एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस हो सकता है। इन वायरसों में एपस्टीन-बार वायरस (Epstein-Barr virus, EBV) भी शामिल है, जिसके कारण संक्रामक मोनोन्यूक्लियोसिस (मोनो) होता है।
कुछ गतिविधियों में संलग्न होने से कुछ प्रकार के वायरल हैपेटाइटिस होने का जोखिम बढ़ जाता है, जैसे टैटू बनवाना या शरीर छिदवाना, नशीली दवाओं को इंजेक्ट करने के लिए सुइयों को साझा करना, या कई साथियों से यौन संबंध बनाना।
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस के लक्षण
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस में फ्लू जैसे मामूली लक्षण से लिवर की विफलता जैसे गंभीर लक्षणों तक कुछ भी हो सकता है। कभी-कभी इसमें कोई लक्षण नहीं होते। वायरस और संक्रमण से बचाव के लिए व्यक्ति के शरीर की क्षमता के आधार पर लक्षणों की गंभीरता और बीमारी के ठीक होने की गति काफ़ी अलग-अलग होती है। हैपेटाइटिस A और C के लक्षण या तो अक्सर बहुत हल्के होते हैं या कोई लक्षण नहीं होते और उन पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। हैपेटाइटिस B और E के लक्षण काफ़ी गंभीर हो सकते हैं। हैपेटाइटिस B और D दोनों का संक्रमण होने से (जिसे कोइंफेक्शन कहते हैं) हैपेटाइटिस B के लक्षण और भी ज़्यादा गंभीर हो सकते हैं।
आमतौर पर एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस के लक्षण अचानक शुरू होते हैं। उनमें शामिल हैं
भूख न लगना
बीमारी का सामान्य एहसास (मेलेइस)
जी मचलाना और उल्टी आना
बुखार
पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से (जहां लिवर होता है) में दर्द होना
धूम्रपान करने वाले लोगों को सिगरेट पीने का मन न होना इसका एक विशिष्ट लक्षण है। कभी-कभी, खासतौर पर हैपेटाइटिस B से संक्रमित लोगों को जोड़ों में दर्द होता है और त्वचा पर लाल पित्तियां (धारियाँ या यूर्टिकेरिया) हो जाती हैं, जिनमें खुजली होती है।
लक्षण शुरू होने के लगभग एक सप्ताह बाद भूख न लगने का लक्षण समाप्त हो जाता है।
कभी-कभी 3 से 10 दिनों के बाद पेशाब का रंग गहरा हो जाता है और मल का रंग हल्का पीला हो जाता है। पीलिया (त्वचा और आँखों के सफेद हिस्से का पीला होना) हो सकता है। इसमें कभी-कभी खुजली भी होती है। ये लक्षण तब उत्पन्न होते हैं जब लिवर खराब होने की वजह से यह रक्त से बिलीरुबिन को सामान्य तरीके से नहीं निकाल पाता। बिलीरुबिन पीले रंग का द्रव्य होता है जो तब बनता है जब पुरानी या क्षतिग्रस्त लाल रक्त कोशिकाओं को फिर से बनाने की सामान्य प्रक्रिया के दौरान हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कोशिकाओं का वह भाग जो ऑक्सीजन ले जाता है) टूटता है। इसके बाद रक्त में बिलीरुबिन बनता है और यह त्वचा (जिससे त्वचा पीली हो जाती है और उसमें खुजली होती है) और आँखों के सफ़ेद हिस्से में जमा हो जाता है (आंखों भी पीली हो जाती हैं)। बिलीरुबिन आम तौर पर पित्त के एक घटक (लिवर द्वारा निर्मित हरे और पीले रंग का पाचक तरल) के रूप आंत में स्रावित होता है और मल के माध्यम से शरीर से बाहर निकलता है, बिलीरुबिन की वजह से मल का रंग सामान्यतया भूरा होता है। हैपेटाइटिस से पीड़ित लोगों में, मल का रंग हल्का पीला हो जाता है क्योंकि बिलीरुबिन आंत में नहीं पहुँचता और मल के माध्यम से शरीर से बाहर नहीं जाता। इसकी बजाय बिलीरुबिन पेशाब के माध्यम से शरीर से बाहर निकलता है और पेशाब का रंग गहरा हो जाता है।
लिवर का आकार बड़ा और नाज़ुक हो सकता है।
इसके अधिकांश शुरुआती लक्षण (कम भूख, मतली, उल्टी और बुखार) आमतौर पर एक सप्ताह के भीतर खत्म हो जाते हैं और मरीज़ बेहतर महसूस करने लगता है हालांकि, उनमें पीलिया बिगड़ सकता है। पीलिया के लक्षण आमतौर पर 1 से 2 सप्ताह में काफ़ी बढ़ सकते हैं, फिर 2 से 4 सप्ताह में यह कम हो जाता है। लेकिन कभी-कभी इसे पूरा ठीक होने में ज़्यादा समय लग सकता है।
फुलमिनेंट हैपेटाइटिस बहुत कम होता है। फुलमिनेंट हेपेटाइटिस लिवर की विफलता के संकेतों के साथ गंभीर हेपेटाइटिस है। हैपेटाइटिस A से पीड़ित लोगों को फ़ुलमिनेंट हैपेटाइटिस हो सकता है, लेकिन हैपेटाइटिस B से पीड़ित लोगों को इससे ज़्यादा खतरा होता है, खासकर अगर उन्हें साथ में हैपेटाइटिस D भी हो। यह उन लोगों को भी हो सकता है जो लिवर खराब करने वाली कुछ दवाएँ जैसे कि एसिटामिनोफेन और हर्बल सप्लीमेंट लेते हैं, या यह उन लोगों में अल्कोहोलिक हैपेटाइटिस के कारण हो सकता है जो लंबे समय से ज़्यादा शराब पीते रहे हैं। फुलमिनेंट हैपेटाइटिस बहुत तेजी से बढ़ सकता है, आमतौर पर कुछ दिनों या हफ़्तों में ही। लिवर अब पर्याप्त मात्रा में उस प्रोटीन को संश्लेषित नहीं कर सकता है जो रक्त के थक्के बनाने में मददगार होता है। हालांकि, सामान्य तरीके से रक्त का थक्का न बनने के बावजूद ऐसे लोगों को आसानी से चोट नहीं लगती या आसानी से या बिना किसी कारण के खून नहीं बहता। लिवर सामान्य रूप से जहरीले पदार्थों को शरीर से बाहर नहीं निकाल पाता, जैसा कि यह सामान्य होने पर करता है। इसलिए ये जहरीले पदार्थ रक्त में जमा हो जाते हैं और मस्तिष्क तक पहुंच जाते हैं, जिससे मानसिक कार्य करने की क्षमता तेजी से कम होने लगती है—इसे हैपेटिक (पोर्टोसिस्टेमिक) एन्सेफैलोपैथी कहा जाता है। मरीज़ कई दिन या कई हफ़्तों के लिए कोमा में जा सकता है। फुलमिनेंट हैपेटाइटिस जानलेवा हो सकता है, खासकर वयस्कों में। कभी-कभी मरीज़ का जीवन बचाने के लिए तुरंत लिवर प्रत्यारोपण किया जाना चाहिए।
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस वाले मरीज़, आमतौर पर बिना इलाज के भी 4 से 8 सप्ताह में ठीक हो जाते हैं। हालांकि, हैपेटाइटिस B या C से संक्रमित कुछ लोगों में क्रोनिक संक्रमण हो जाते हैं।
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस का निदान
रक्त की जाँच
डॉक्टर को मरीज़ के शारीरिक लक्षण देखकर एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस होने का संदेह होता है। शारीरिक जांच के दौरान, डॉक्टर लिवर के ऊपर के हिस्से में पेट को दबाकर देखते हैं, एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस के लगभग आधा प्रतिशत मरीज़ों का लिवर नर्म और कुछ हद तक बड़े आकार का हो जाता है।
मरीज़ में निम्नलिखित लक्षण दिखने पर डॉक्टर को फुलमिनेंट हैपेटाइटिस होने का संदेह होता है
जो लोग बहुत बीमार होते हैं और जिन्हें पीलिया बहुत जल्दी हो जाता है।
मानसिक कार्य करने की क्षमता तेज़ी से बिगड़ने लगती है।
रक्त परीक्षण करवाकर पता लगाया जाता है कि रक्त के थक्के कितनी जल्दी बन रहे हैं—प्रोथ्रोम्बिन का समय या अंतरराष्ट्रीय सामान्य अनुपात (international normalized ratio, INR)—असामान्य हैं।
लिवर की बीमारी वाले लोगों की स्थिति तेज़ी से बिगड़ने लगती है।
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस की जांच के लिए, आमतौर पर सबसे पहले रक्त परीक्षण करवाए जाते हैं ताकि यह पता लगाया जा सके कि लिवर ठीक से काम कर रहा है या नहीं और कहीं इसमें कोई खराबी तो नहीं है (लिवर के परीक्षण)। लिवर के परीक्षणों में लिवर एंज़ाइम और लिवर द्वारा बनाए जाने वाले अन्य पदार्थों के स्तर को मापना भी शामिल है। इन जांचों से यह पता चल सकता है कि लिवर में सूजन है या नहीं और इससे डॉक्टरों को अक्सर अल्कोहल के सेवन से होने वाले हैपेटाइटिस और वायरस के कारण होने वाले हैपेटाइटिस के बीच अंतर करने में मदद मिलती है।
फ़ुलमिनेंट हैपेटाइटिस का निदान करने के लिए, डॉक्टर जांच करके यह पता लगाते हैं कि रक्त का क्लॉट कितनी देर में बन रहा है (क्योंकि अगर लोगों को फ़ुलमिनेंट हैपेटाइटिस है, तो रक्त सामान्य रूप से क्लॉट नहीं होता है)।
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस होने की संभावना होने पर इसके कारण का पता लगाया जा सकता है। इसके कारण का पता लगाने के लिए, डॉक्टर आमतौर पर निम्नलिखित तरीके अपनाते हैं:
ऐसी गतिविधियों के बारे में सवाल पूछते हैं जिससे वायरल हैपेटाइटिस होने के जोखिम बढ़ते हैं (हैपेटाइटिस वायरस तालिका देखें)।
रक्त जांच करवाएं जिससे पता चल सके कि संक्रमण कौन से हैपेटाइटिस वायरस के कारण हुआ है।
इन रक्त परीक्षण से किसी खास वायरस के हिस्सों या शरीर में इन वायरस से लड़ने के लिए बनने वाली एंटीबॉडीज के बारे में पता चल सकता है। (एंटीबॉडीज एक तरह के प्रोटीन होते हैं, जो शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र द्वारा बनाए जाते हैं, इनसे शरीर को वायरस और अन्य बाहरी हानिकारक तत्वों से लड़ने में मदद मिलती है।)
यह पता लगाने के लिए कि कहीं हैपेटाइटिस होने का कारण वायरस के अलावा कुछ और तो नहीं है, डॉक्टर लोगों से यह पूछ सकते हैं कि क्या वे कोई ऐसी दवा या अन्य पदार्थ लेते हैं जिससे हैपेटाइटिस हो सकता है (जैसे कि आइसोनियाज़िड, जिसका इस्तेमाल ट्यूबरक्लोसिस के इलाज के लिए किया जाता है) और वे कितनी अल्कोहल पीते हैं।
कभी-कभी, अगर निदान स्पष्ट नहीं होता है, तो लिवर की बायोप्सी की जाती है। इसके लिए सुई की मदद से लिवर के ऊतक का एक नमूना निकाला जाता है और उसकी जांच की जाती है।
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस का इलाज
सहायक देखभाल
एक्यूट हैपेटाइटिस C के लिए एंटीवायरल दवाइयाँ
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस वाले अधिकांश लोगों को किसी प्रकार के खास इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। हालांकि, एक्यूट हैपेटाइटिस के गंभीर लक्षणों वाले मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ सकता है ताकि लक्षणों का इलाज किया जा सके। यदि डॉक्टरों को मरीज़ में फुलमिनेंट हैपेटाइटिस होने का संदेह होता है, तो वे उसे अस्पताल में भर्ती होने की सलाह देते हैं ताकि उसकी मानसिक स्थिति की निगरानी की जा सके, लिवर की जांच की जा सके और डॉक्टर यह तय कर सकें कि मरीज़ को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता है या नहीं।
पहले कई दिनों के बाद, भूख न लगने की समस्या खत्म हो जाती है और लोगों को बिस्तर पर लेटे रहने की आवश्यकता नहीं होती। आहार या गतिविधि पर कड़े प्रतिबंध लगाना ज़रूरी नहीं है और विटामिन सप्लीमेंट देने की आवश्यकता भी नहीं होती। ज़्यादातर लोग पीलिया ठीक होने के बाद सुरक्षित तरीके से अपने काम पर लौट सकते हैं, भले ही उनके लिवर की जांच के परिणाम पूरी तरह सामान्य न भी हों।
हैपेटाइटिस से पीड़ित लोगों को तब तक शराब नहीं पीनी चाहिए जब तक वे पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाते।
हो सकता है कि संक्रमित लिवर सामान्य तरीके से दवाओं को प्रोसेस (मेटाबोलाइज़) न कर सके। इसलिए डॉक्टर को वह दवाई देना बंद करना पड़ सकता है या खुराक को कम करने की आवश्यकता हो सकती है, जो शरीर में हानिकारक स्तर तक जमा हो सकती है (जैसे वारफ़ेरिन या थियोफ़ाइलिन)। इस प्रकार, हैपेटाइटिस से पीड़ित लोगों को अपने डॉक्टर को उन सभी दवाओं और अन्य पदार्थों के बारे में बताना चाहिए जो वे ले रहे हैं (प्रिस्क्रिप्शन वाली और बिना प्रिस्क्रिप्शन वाली, जिसमें कोई भी औषधीय जड़ी-बूटियां शामिल हैं), ताकि ज़रूरत पड़ने पर दवाई की खुराक को घटाया या बढ़ाया जा सके।
खुजली होने पर कोलेस्टाइरामीन खाने से अक्सर आराम मिलता है।
यदि हैपेटाइटिस B से फुलमिनेंट हैपेटाइटिस हो जाता है, तो आमतौर पर मरीज़ का इलाज गहन चिकित्सा कक्ष में रखकर किया जाता है। एंटीवायरल दवाइयाँ मदद कर सकती हैं। हालांकि, लिवर प्रत्यारोपण सबसे प्रभावी इलाज होता है और इससे जीवन बचने की उम्मीद सबसे ज़्यादा होती है, खासतौर पर वयस्कों के लिए।
एक्यूट हैपेटाइटिस C से संक्रमित लोगों का उपचार एंटीवायरल दवाओं से किया जाना चाहिए ताकि संक्रमण दूसरे लोगों में फैलने का जोखिम कम हो सके और हैपेटाइटिस के क्रोनिक होने का जोखिम भी कम हो सके।
एक्यूट वायरल हैपेटाइटिस की रोकथाम
चूंकि वायरल हैपेटाइटिस के लिए उपलब्ध इलाज केवल आंशिक रूप से प्रभावी होते हैं, इसलिए वायरल हैपेटाइटिस को रोकना बहुत ज़रूरी है।
टीके और इम्यून ग्लोबुलिन
संयुक्त राज्य अमेरिका में हैपेटाइटिस A और हैपेटाइटिस B को रोकने के लिए टीके उपलब्ध हैं। हैपेटाइटिस E से बचाव का टीका फिलहाल केवल चीन में उपलब्ध है। हैपेटाइटिस C या D वायरस से बचाव के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है। हालांकि, हैपेटाइटिस B वायरस से बचाव के लिए टीकाकरण करवाने से हैपेटाइटिस D वायरस के संक्रमण का खतरा भी कम हो जाता है। हैपेटाइटिस के टीके मांसपेशियों में इंजेक्शन से लगाए जाते हैं।
अमेरिका में सभी बच्चों और हैपेटाइटिस होने के ज़्यादा जोखिम वाले वयस्कों को हैपेटाइटिस A वैक्सीन और हैपेटाइटिस B वैक्सीन के साथ नियमित टीकाकरण करवाने की सलाह दी जाती है (हैपेटाइटिस वायरस की तालिका देखें)।
अधिकांश टीकों की तरह ही हैपेटाइटिस का टीका लगवाने के बाद भी दवा का पूरा असर होने में कुछ सप्ताह लग सकते हैं क्योंकि प्रतिरक्षा तंत्र इसके वायरस से लड़ने के लिए धीरे-धीरे एंटीबॉडीज बनाता है।
जिन लोगों को हैपेटाइटिस का टीका नहीं लगा है, अगर वे हैपेटाइटिस A के वायरस से संक्रमित हो जाते हैं, तो उन्हें उनकी उम्र और स्वास्थ्य के आधार पर हैपेटाइटिस A के टीके की एक खुराक या मानक इम्यून ग्लोबुलिन का एक इंजेक्शन दिया जाता है। मानक इम्यून ग्लोबुलिन में सामान्य प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों के एक बड़े समूह से इकट्ठा किए गए रक्त से प्राप्त एंटीबॉडीज होती हैं। इम्यून ग्लोबुलिन, संक्रमण से बचाता है या इसकी गंभीरता को कम करता है। हालांकि, इससे मिलने वाली सुरक्षा का स्तर अलग-अलग होता है और यह सुरक्षा सिर्फ़ कुछ ही समय के लिए होती है।
जिन लोगों का टीकाकरण नहीं हुआ है, अगर वे हैपेटाइटिस B वायरस से संक्रमित हो जाते हैं, तो उन्हें हैपेटाइटिस B इम्यून ग्लोबुलिन दिया जाता है और टीका लगाया जाता है। हैपेटाइटिस B इम्यून ग्लोबुलिन में उन लोगों के रक्त से प्राप्त एंटीबॉडीज होती हैं जिनके शरीर में हैपेटाइटिस B से लड़ने के लिए पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज होती हैं। इसे इंजेक्शन के माध्यम से मांसपेशी में या नसों से शरीर में डाला जाता है। यह दवा हैपेटाइटिस के संक्रमण से लड़ने में शरीर की मदद करती है और इसके लक्षणों से भी बचाती है या उनकी गंभीरता को कम करती है, हालांकि इससे संक्रमण को नहीं रोका जा सकता।
हैपेटाइटिस B से संक्रमित माँ से पैदा होने वाले शिशु को हैपेटाइटिस B इम्यून ग्लोबुलिन (मांसपेशियों में इंजेक्शन लगाकर) और हैपेटाइटिस B का टीका लगाया जाता है।
बचाव के अन्य उपाय
हैपेटाइटिस वायरस के संक्रमण से बचने के लिए दूसरे उपाय भी किए अपनाए जा सकते हैं:
भोजन को छूने से पहले हाथों को अच्छी तरह धोएँ
दवाओं को इंजेक्ट करने के लिए सुइयों को साझा न करें
टूथब्रश, रेजर, या अन्य वस्तुएं जिनपर खून लग सकता हो उन्हें साझा न करें
यौन संबंध बनाते समय सुरक्षा का ध्यान रखें—जैसे कंडोम का उपयोग करना
ज़्यादा लोगों से यौन संबंध बनाने से बचें
दान किए गए रक्त के दूषित होने की संभावना नहीं होती क्योंकि इसकी कड़ी जांच की जाती है। फिर भी, डॉक्टर हैपेटाइटिस के जोखिम को कम करने के लिए बहुत आवश्यक होने पर ही ब्लड ट्रांसफ़्यूजन करवाने की सलाह देते हैं। कभी-कभी लोग सर्जरी होने के कई सप्ताह पहले से खुद रक्तदान करते हैं ताकि ब्लड ट्रांसफ़्यूजन के समय उन्हें किसी अनजान रक्तदाता से रक्त लेने की आवश्यकता न पड़े।