एक समय पर आकर, कार्डियोपल्मनरी रिससिटैशन (CPR—एक आपातकालीन प्रक्रिया जो हृदय और फेफड़े की क्रिया को पुनर्स्थापित करती है) न लेने का निर्णय वास्तविकता में उन सभी लोगों के लिए उपयुक्त होता है जो मरणासन्न अवस्था में हैं और जो मृत्यु को स्वीकार कर सकते हैं। मरणासन्न लोगों, परिवारों, और देखभाल टीम को चिकित्सा देखभाल के बारे में अन्य महत्वपूर्ण निर्णय भी लेने चाहिए और उन्हें लेखाबद्ध कर लेना चाहिए (जैसे कि मरणासन्न व्यक्ति को हॉस्पिटल में भर्ती कराना चाहिए या नहीं या वेंटिलेटर का उपयोग करना चाहिए या नहीं)। प्रायः, इन निर्णयों को कार्यान्वित करने के लिए विशेष कार्रवाइयों की आवश्यकता होती है (उदाहरण के लिए, लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए घर पर दवाइयाँ तैयार रखना)।
अगर व्यक्ति की मृत्यु घर पर होने की संभावना है, तो परिवार के सदस्यों को पहले से सीख लेना चाहिए कि उन्हें किसे कॉल करना है (जैसे डॉक्टर या हॉस्पिस नर्स) और जान लेना चाहिए कि किसे कॉल नहीं करना है (जैसे ऐम्बुलेंस सेवा)। उन्हें कानूनी सलाह लेने तथा दफ़नाने एवं दाह-संस्कार सेवाओं के प्रबंध में भी सहायता मिलनी चाहिए। व्यक्ति या परिवार और देखभाल टीम को, यदि उपयुक्त हो तो, मृत्यु से पहले या मृत्यु के तुरंत बाद अंग और ऊतक दान के बारे में भी विचार-विमर्श कर लेना चाहिए। देखभाल टीम को आमतौर पर ये चर्चाएं करने के लिए कानून द्वारा आदेश दिया जाता है। धार्मिक प्रथाओं से मृत्यु के बाद शरीर की देखभाल प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। असामान्य प्रथाओं के बारे में मृत्यु से पहले ही देखभाल टीम के साथ-साथ मरने वाले व्यक्ति या परिवार के सदस्यों से चर्चा कर ली जानी चाहिए।
मरणासन्न लोगों और उनके परिवार के सदस्यों को मृत्यु के निकट होने के विशिष्ट शारीरिक संकेतों के लिए भी तैयार रहना चाहिए। चेतना में कमी आ सकती है। हाथ-पैर ठंडे पड़ सकते हैं और शायद नीले हो सकते हैं या उन पर चित्तियां पड़ सकती हैं। सांस अनियमित हो सकती है। अंतिम घंटों में मतिभ्रम की समस्या या आलस सा हो सकता है।
गले में होने वाले स्रावों या गले की मांसपेशियों के शिथिल पड़ने के कारण सांस लेते समय आवाज़ें आ सकती है, जिसे कभी-कभी मृत्यु की दस्तक भी कहा जाता है। व्यक्ति की मुद्रा बदलने, फ़्लूड के सेवन को कम करने, या स्रावों को सुखाने के लिए दवाओं का उपयोग करने के द्वारा इन आवाज़ों को कम किया जा सकता है। इस तरह का उपचार परिवार या देखभाल करने वाले व्यक्तियों के आराम के उद्देश्य से दिया जाता है क्योंकि जब मरणासन्न व्यक्ति आवाज़ के साथ सांस लेता है तब उसे इसके बारे में पता भी नहीं होता। मृत्यु की दस्तक से मरणासन्न व्यक्ति को कोई बेआरामी महसूस नहीं होती। इस तरह की सांस लेने की प्रक्रिया कई घंटों तक चल सकती है और प्रायः इसका अर्थ यह होता है कि व्यक्ति कि मृत्यु कुछ ही घंटों में होने वाली है।
मृत्यु के समय, कुछ मांसपेशियों में संकुचन हो सकता है, और छाती फूल सकती है जैसे कि सांस लेते समय होती है। सांस लेना बंद हो जाने के बाद दिल कुछ मिनट तक धड़क सकता है, और एक छोटा सा सीज़र पड़ सकता है। यदि मरणासन्न व्यक्ति को ऐसा कोई संक्रामक संक्रमण रोग नहीं है जिससे दूसरों को खतरा हो सकता है, तो परिवार के सदस्य को निश्चिंत हो जाना चाहिए कि मरणासन्न व्यक्ति के शरीर को छूना, उसे लाड़-दुलार करना, और पकड़ना, चाहे मृत्यु के बाद थोड़ी देर के लिए ही सही, स्वीकार्य है। सामान्यतः, मृत्यु होने के बाद शरीर को देखना व्यक्ति के करीबी लोगों के लिए मददगार हो सकता है।
परिवार के सदस्यों, मित्रों, और देखभाल करने वाले व्यक्तियों पर व्यक्ति के जीवन के अंतिम क्षणों का गहरा प्रभाव पड़ता है। जब संभव हो, व्यक्ति को एक ऐसे स्थान पर समय बिताना चाहिए जो तनावमुक्त, शांत, और शारीरिक रूप से आरामदायक हो। परिवार के सदस्यों को व्यक्ति के साथ शारीरिक स्पर्श बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जैसे हाथ पकड़ना। यदि व्यक्ति की ईक्षा हो तो परिवार के सदस्य, मित्र, और पुरोहित उपस्थित होने चाहिए।