इन्फेक्शस कंजंक्टिवाइटिस

(गुलाबी आँख; पिंकआई)

इनके द्वाराZeba A. Syed, MD, Wills Eye Hospital
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अप्रैल २०२३ | संशोधित जून २०२३

इन्फेक्शस कंजंक्टिवाइटिस में कंजंक्टाइवा का शोथ होता है जो आम तौर से वायरसों या जीवाणुओं के कारण होता है।

  • बैक्टीरिया और वायरस कंजंक्टाइवा को संक्रमित कर सकते हैं।

  • लालिमा और स्राव सामान्य लक्षण हैं, और कुछ लोगों को प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता होती है।

  • अच्छी स्वच्छता से संक्रमण के दूसरी आँख में या किसी अन्य व्यक्ति में फैलने से रोकथाम करने में मदद मिलती है।

  • बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस के लिए अक्सर एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स दी जाती हैं।

(कंजंक्टाइवा और स्क्लेरा के विकारों का अवलोकन भी देखें।)

विविध प्रकार के सूक्ष्मजीवी कंजंक्टाइवा (एक झिल्ली जो पलक के अस्तर का निर्माण करती है और आँख के सफ़ेद हिस्से को ढकती है) को संक्रमित कर सकते हैं। सबसे आम जीव हैं वायरस, खास तौर से वे जो एडीनोवायरस नामक समूह से संबंध रखते हैं। जीवाणु संक्रमण कम आम हैं। वायरल और बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस, ये दोनों ही अत्यंत संक्रामक होती हैं, और एक व्यक्ति से दूसरे में, या एक व्यक्ति की संक्रमित आँख से असंक्रमित आँख में आसानी से फैलती हैं।

शरीर-व्यापी लक्षण पैदा करने वाले कुछ वायरसों के कारण भी आँखें लाल और जलन-युक्त हो सकती हैं। कुछ वायरल संक्रमणों में शामिल हैं खसरा, मम्प्स, रुबेला, चिकनपॉक्स, ज़िका, और कुछ ऐसे वायरस जो सर्दी और फ्लू के लक्षण पैदा करते हैं। SARS-CoV2 से कंजंक्टिवाइटिस हो सकती है।

कवक संक्रमण दुर्लभ हैं और मुख्य रूप से उन लोगों में होते हैं जो लंबे समय तक कॉर्टिकोस्टेरॉयड आई ड्रॉप्स का उपयोग करते हैं या जिनकी आँखों में जैव सामग्री, जैसे कि पौधों या धूल से संबंधित चोट लगती है।

आँख के अंदर का दृश्य

नवजात शिशुओं के क्लैमाइडिया ट्रैकोमाटिस या नाइसीरिया गोनोरिये से होने वाले आँख के संक्रमणों से ग्रस्त होने की खास तौर से संभावना होती है, जिन्हें वे जन्म के समय माता की योनि में मौजूद जीवों से अर्जित करते हैं (नवजात शिशुओं की कंजंक्टिवाइटिस)।

इन्क्लूजन कंजंक्टिवाइटिस एक खास तौर से लंबे समय तक रहने वाली कंजंक्टिवाइटिस है जो क्लेमाइडिया ट्रैकोमाटिस नामक जीवाणु की कुछ जातियों के कारण होती है। इन्क्लूजन कंजंक्टिवाइटिस आम तौर से ऐसे व्यक्ति के जननांगों के स्रावों के साथ संपर्क से फैलती है जिसे जननांगों का क्लैमाइडा संक्रमण है। ट्रैकोमा, जो क्लैमाइडिया ट्रैकोमाटिस से होने वाली एक और प्रकार की कंजंक्टिवाइटिस है, जननांगों के क्लैमाइडा संक्रमण से नहीं होती है।

गोनोकॉकल कंजंक्टिवाइटिसनाइसीरिया गोनोरिया (प्रमेह), एक यौन रूप से संचरित संक्रमण जो जननांगों के गोनोरिया संक्रमण वाले व्यक्ति के जननांगों के स्रावों के संपर्क द्वारा आँख में भी फैल सकता है, से होने वाली कंजंक्टिवाइटिस है।

गंभीर संक्रमणों से कंजंक्टाइवा पर निशान बन सकते हैं, जिससे टियर फिल्म में असामान्यताएं हो सकती हैं। कभी-कभी, कंजंक्टाइवा के गंभीर संक्रमण कोर्निया (परितारिका और पुतली के सामने स्थित पारदर्शी पर्त) में फैल जाते हैं।

वायरस या जीवाणुओं के विपरीत, किसी एलर्जिक प्रतिक्रिया से कंजंक्टाइवा में होने वाले शोथ को एलर्जिक कंजंक्टिवाइटिस कहते हैं।

इन्फेक्शस कंजंक्टिवाइटिस के लक्षण

संक्रमित होने पर, कंजंक्टाइवा फैली हुई रक्त वाहिकाओं के कारण गुलाबी हो जाती है, और आँख में एक स्राव दिखाई देता है। अक्सर व्यक्ति की आँखें, खास तौर से रात के दौरान, स्राव के कारण चिपक कर बंद हो जाती हैं। स्राव के कारण दृष्टि भी धुंधली हो सकती है। जब स्राव पलक के झपकने से दूर हो जाता है दृष्टि सुधर जाती है। यदि कोर्निया संक्रमित है, तब भी धुंधला दिखता है लेकिन पलक झपकने से उसमें सुधार नहीं होता है। कभी-कभी आँखों में जलन महसूस होती है, और तेज रोशनी से तकलीफ हो सकती है। बहुत दुर्लभ रूप से, कंजंक्टाइवा पर निशान पैदा करने वाले गंभीर संक्रमणों के कारण दृष्टि में दीर्घावधि कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं।

वायरल कंजंक्टिवाइटिस और बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस में निम्नलिखित भिन्नताएं हैं:

  • वायरल कंजंक्टिवाइटिस में आँखों का स्राव पानी जैसा और बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस में गाढ़ा सफेद, हरा, या पीला होता है।

  • ऊपरी श्वसन संक्रमण वायरस संबंधी कारण की संभावना को बढ़ाता है।

  • वायरल कंजंक्टिवाइटिस में कान के सामने स्थित एक लिम्फ ग्रंथि सूजी और दर्दनाक हो सकती है लेकिन बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस में आम तौर से ऐसा नहीं होता है।

हालांकि, ये कारक वायरल कंजंक्टिवाइटिस और बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस के बाच हमेशा ही सटीक भेद नहीं कर सकते हैं।

इन्क्लूजन कंजंक्टिवाइटिस या गोनोरिया से होनेवाली कंजंक्टिवाइटिस से ग्रस्त लोगों में अक्सर जननांग के संक्रमण के लक्षण होते हैं, जैसे कि शिष्न या योनि से स्राव और पेशाब करते समय जलन।

नवजात शिशु की कंजंक्टिवाइटिस में पलकों का शोथ होता है और मवाद निकलता है।

इन्फेक्शस कंजंक्टिवाइटिस का निदान

  • डॉक्टर द्वारा लक्षणों और आँख की दिखावट का मूल्यांकन

  • कभी-कभी स्रावों का कल्चर

डॉक्टर संक्रमित कंजंक्टिवाइटिस का निदान उसके लक्षणों और दिखावट से करते हैं। आम तौर से एक स्लिट लैंप (एक उपकरण जो डॉक्टर को उच्च आवर्धन के साथ आँख की जाँच करने योग्य बनाता है) का उपयोग करके आँख की बारीकी से जाँच की जाती है। संक्रामक जीव का कल्चर द्वारा पता लगाने के लिए संक्रमित स्रावों के नमूनों को प्रयोगशाला में भेजा जाता है। हालांकि, डॉक्टर आम तौर से केवल कुछ परिस्थितियों में ही नमूनों को प्रयोगशाला में भेजते हैं।

  • जब लक्षण गंभीर या बार-बार होते हैं

  • डॉक्टर बैक्टीरियल इंफेक्शन के बारे में कब निश्चित नहीं होते

  • जब क्लैमाइडिया ट्रैकोमाटिस या नाइसीरिया गोनोरिया के होने का संदेह होता है

  • जब व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली में कोई दोष होता है (जैसे कि ह्यूमन इम्यूनोडेफिशिएंसी वायरस [एचआईवी (HIV, Human immunodeficiency virus)]/एड्स)

  • जब व्यक्ति को, जैसे कि कोर्नियल ट्रांसप्लांट या ग्रेवस रोग के कारण आँख का उभरना, जैसी आँख की कोई समस्या होती है

गुलाबी आँख क्या है?

हालांकि आँखों के अधिकांश शोथ आँख को गुलाबी कर देते हैं (कंजंक्टाइवे की रक्त वाहिकाओं के चौड़े होने के कारण), डॉक्टर आम तौर से “गुलाबी आँख” शब्दावली का उपयोग किसी जीवाणु या वायरस के संक्रमण से उत्पन्न कंजंक्टिवाइटिस के लिए करते हैं।

गुलाबी आँख के सबसे गंभीर प्रकारों में से एक एडीनोवायरस के कई खास प्रकारों से संक्रमण के परिणामस्वरूप होता है। यह संक्रमण, जिसे एपिडेमिक केरैटोकंजंक्टिवाइटिस कहते हैं, (तालिका देखें ), अत्यंत संक्रामक होता है और किसी समुदाय या स्कूल में बड़े प्रकोप उत्पन्न करता है। यह संक्रमण संक्रमित स्रावों से संपर्क के माध्यम से फैलता है। ऐसा संपर्क व्यक्ति से व्यक्ति या संदूषित वस्तुओं के माध्यम से हो सकता है, जिनमें डॉक्टर के अनुपयुक्त रूप से विसंक्रमित औजार भी शामिल हैं।

एपिडेमिक केरैटोकंजंक्टिवाइटिस के कई लक्षण, जैसे कि लालिमा और पतला, पानी जैसा स्राव और, कम सामान्य रूप से, जलन और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता, वायरल कंजंक्टिवाइटिस के अन्य प्रकारों के समान ही होते हैं। हालांकि, एपिडेमिक केरैटोकंजंक्टिवाइटिस वाले कुछ लोगों को अपनी आँख में किरकिराहट या रेत के होने का एहसास होता है और तेज रोशनी के संपर्क में आने पर आँख में दर्द हो सकता है। कंजंक्टाइवा सूज सकती है और कोर्निया के चारों ओर उभर सकती है। कई लोगों में प्रभावित आँख की तरफ के कान के सामने स्थित लसीका ग्रंथि सूज सकती है। ये लक्षण आम तौर से 1 से 3 सप्ताह तक रहते हैं। कुछ लोगों को धुंधला दिख सकता है, जो कई हफ्तों या महीनों के बाद ठीक हो सकता है।

एपिडेमिक केरैटोकंजंक्टिवाइटिस विशिष्ट उपचार के बिना पूरी तरह से ठीक हो जाती है। कभी-कभी डॉक्टर बहुत धुंधली दृष्टि या प्रकाश के प्रति तीव्र संवेदनशीलता वाले लोगों को कॉर्टिकोस्टेरॉयड ड्रॉप्स देते हैं। संक्रमण के फैलाव को कम करने के लिए अच्छी स्वच्छता, खास तौर से हैंड सैनिटाइज़रों के उपयोग की जरूरत होती है। पृथक तौलिये, कपड़े, और बिस्तर परिवार के अन्य लोगों में फैलाव को कम करने में मदद करते हैं। आम तौर पर लोग कई दिनों या, गंभीर मामलों में, कई हफ्तों तक काम या घर से छुट्टी लेकर घर पर रहते हैं।

इन्फेक्शस कंजंक्टिवाइटिस का उपचार

  • बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस के स्राव के लिए, आम तौर से सख्त, सूखे स्रावों को निकालने के लिए पलक को धोना और गर्म और नम कपड़े के कम्प्रेस

  • बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस के संक्रमण के उपचार के लिए, एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स या मलहम

  • गंभीर वायरल कंजंक्टिवाइटिस के लिए, जहाँ धुंधलापन और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता दैनिक गतिविधियों में बाधा डालते हैं, कॉर्टिकोस्टेरॉयड आई ड्रॉप्स उपयोगी हो सकती हैं

  • वायरल कंजंक्टिवाइटिस के लक्षणों (सूजन और तकलीफ) को कम करने के लिए, कोल्ड कम्प्रेस

  • संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए हैंड सैनिटाइज़रों का बार-बार उपयोग और अन्य सावधानियाँ

यदि स्राव पलक पर जमा हो जाता है, खास तौर से बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस में, तो लोगों को पलक को (आँख बंद रखते हुए) नल के गर्म पानी और साफ कपड़े से सौम्यता के साथ धोना चाहिए। कोल्ड कम्प्रेस, खास तौर से वायरल कंजंक्टिवाइटिस में, कभी-कभी जलन के एहसास से राहत दिलाते हैं।

यदि गंभीर वायरल कंजंक्टिवाइटिस धुंधलापन और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता जैसे लक्षण पैदा करती है, जो दैनिक गतिविधियों में बाधा डालते हैं, तो कॉर्टिकोस्टेरॉयड आई ड्रॉप्स उपयोगी हो सकती हैं। एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स या मलहम बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस के उपचार में मदद कर सकते हैं।

क्योंकि इन्फेक्शस (बैक्टीरियल या वायरल) कंजंक्टिवाइटिस अत्यंत संक्रामक होती है, लोगों को आँख को साफ करने तथा आँख में दवाइयाँ लगाने से पहले और बाद हैंड सैनिटाइज़रों का उपयोग करना चाहिए। साथ ही, व्यक्ति को संक्रमित आँख को छूने के बाद दूसरी आँख को न छूने की सावधानी बरतनी जाहिए। आँख को साफ करने के लिए प्रयुक्त तौलियों और कपड़ों को अन्य तौलियों और कपड़ों से अलग रखना चाहिए।

इन्फेक्शस कंजंक्टिवाइटिस वाले लोग जुकाम की तरह ही कुछ दिनों के लिए काम या स्कूल से छुट्टी ले सकते हैं। वायरल कंजंक्टिवाइटिस के सबसे गंभीर मामलों में, कभी-कभी लोग कई हफ्तों तक घर में रहते हैं। कंजंक्टिवाइटिस वाले व्यक्ति को पूल में तैराकी करने से बचना चाहिए।

जीवाणुओं से होने वाली कंजंक्टिवाइटिस

एंटीबायोटिक केवल बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस में ही उपयोगी होते हैं। हालांकि, चूंकि जीवाणु और वायरल संक्रमणों के बीच भेद करना कठिन होता है, इसलिए कुछ डॉक्टर कंजंक्टिवाइटिस वाले सभी लोगों को एंटीबायोटिक लिखते हैं। एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स या मलहमों, जैसे कि मॉक्सीफ्लॉक्सासिन, सिप्रोफ्लॉक्सासिन, या ट्राइमेथोप्रिम/पॉलीमिक्सिन, जो कई प्रकार के जीवाणुओं के विरुद्ध कारगर हैं, का उपयोग 7 से 10 दिनों तक किया जाता है। डॉप्स आम तौर से कारगर होती हैं, लेकिन कभी-कभी मलहमों का उपयोग किया जाता है, क्योंकि यदि आँख से बहुत पानी निकल रहा है तो वे अधिक समय तक रहते हैं। कुछ लोग मलहमों का उपयोग करने से मना कर सकते हैं क्योंकि उन्हें लगाने के बाद लगभग 20 मिनट तक दृष्टि धुंधली हो सकती है।

एडल्ट इन्क्लूजन कंजंक्टिवाइटिस के लिए एंटीबायोटिक्स, जैसे कि एज़िथ्रोमाइसिन, डॉक्सीसाइक्लिन, या एरिथ्रोमाइसिन, जिन्हें मुंह से लिया जाता है, की जरूरत होती है।

गोनोकॉकल कंजंक्टिवाइटिस का इलाज सेफ़ट्रिआक्सोन के मात्र एक इंजेक्शन और मुंह से ली जाने वाली एज़िथ्रोमाइसिन की मात्र एक खुराक (या एक सप्ताह के लिए डॉक्सीसाइक्लिन) से किया जा सकता है।

नवजात शिशु की कंजंक्टिवाइटिस की रोकथाम सभी शिशुओं को जन्म के समय सिल्वर नाइट्रेट आई ड्रॉप्स (अमेरिका में अनुपलब्ध) देकर की जा सकती है। यदि इन इलाजों के बावजूद संक्रमण विकसित होता है, तो संक्रमण उत्पन्न करने वाले जीवाणु पर निर्भर करते हुए नवजात शिशुओं को दवाइयाँ दी जाती हैं। नाइसीरिया गोनोरिये से होने वाले संक्रमणों का उपचार शिरा द्वारा या मांसपेशी में सेफ्ट्रियाक्सोन का इंजेक्शन देकर किया जाता है। क्लैमाइडिया ट्रैकोमाटिस से होने वाले संक्रमणों का उपचार एरिथ्रोमाइसिन से किया जाता है। माता-पिता का उपचार भी करना चाहिए।

वायरसों के कारण होने वाली कंजंक्टिवाइटिस

वायरल कंजंक्टिवाइटिस वाले अधिकांश लोग एक या दो सप्ताह में बेहतर हो जाते हैं और उन्हें किसी विशिष्ट उपचार की जरूरत नहीं पड़ती है। हालांकि, गंभीर एडीनोवायरल कंजंक्टिवाइटिस (एपिडेमिक केरैटोकंजंक्टिवाइटिस) (देखें गुलाबी आँख क्या है?) वाले कुछ लोगों में कॉर्टिकोस्टेरॉइड आई ड्रॉप्स की जरूरत पड़ सकती है, खास तौर से जिन लोगों में धुंधलापन और चमक (प्रकाश के चारों ओर तारे या प्रभामंडल) के कारण महत्वपूर्ण गतिविधियों में बाधा होती है। साइक्लोस्पोरीन आई ड्रॉप्स कम कारगर होती हैं और यदा-कदा लिखी जाती हैं, खास तौर से तब जब कॉर्टिकोस्टेरॉयड ड्रॉप्स के कारण अस्वीकार्य दुष्प्रभाव होते हैं।

एंटीवायरल आई ड्रॉप्स वायरसों से होने वाली कंजंक्टिवाइटिस के लिए उपयोगी नहीं हैं (एंटीवायरल आई ड्रॉप्स का उपयोग कोर्निया में वायरसों से होने वाले कुछ संक्रमणों के लिए किया जाता है––देखें हर्पीज़ सिम्प्लेक्स केराटाइटिस)।

गंभीर मामलों में, डॉक्टर पलक के अंदर के हिस्से से सूजी हुई झिल्ली को हटा देते हैं, ताकि कंजक्टिवा पर निशान पड़ने से रोका जा सके।

इंफेक्शियस कंजंक्टिवाइटिस का पूर्वानुमान

इन्फेक्शस कंजंक्टिवाइटिस वाले अधिकांश लोग उपचार के बिना बेहतर हो जाते हैं। हालांकि, खास तौर से, कुछ जीवाणुओं से उत्पन्न होने वाले कुछ संक्रमण, उपचार न करने पर अधिक समय तक रह सकते हैं।

इलाज न करने पर, इन्क्लूजन कंजंक्टिवाइटिस कई महीनों तक बनी रह सकती है।

नवजात शिशु में कंजंक्टिवाइटिस का इलाज न करने पर अंधापन हो सकता है।

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