कैंसर की स्क्रीनिंग

इनके द्वाराRobert Peter Gale, MD, PhD, DSC(hc), Imperial College London
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्तू॰ २०२२ | संशोधित नव॰ २०२३

स्क्रीनिंग टेस्ट का इस्तेमाल लक्षणों के दिखने से पहले ही रोग के होने की संभावना का पता करने में किया जाता है। स्क्रीनिंग टेस्ट बहुधा स्पष्ट नहीं होते। और अधिक परीक्षण और टेस्ट करके परिणामों की पुष्टि की जाती है या नकारा जाता है।

एक बार डॉक्टर को शक हो जाए कि व्यक्ति को कैंसर है, तब डायग्नोस्टिक टेस्ट किए जाते हैं (कैंसर का निदान भी देखें)।

डॉक्टर यह निर्धारित करते हैं कि किसी व्यक्ति विशेष को—उम्र, लिंग, पारिवारिक इतिहास, पिछले इतिहास या जीवनशैली के तत्वों—की वजह से क्या कैंसर होने का कोई विशेष जोखिम तो नहीं, इससे पहले कि वे स्क्रीनिंग टेस्ट करने का विकल्प चुनें। अमेरिकी कैंसर सोसाइटी ने कैंसर स्क्रीनिंग गाइडलाइन दे रखी हैं जिनका इस्तेमाल व्यापकता से किया जाता है। अन्य समूहों ने भी स्क्रीनिंग गाइडलाइनें बना रखी हैं। कई बार अलग-अलग समूहों के लिए अलग-अलग सिफारिशें की जाती हैं, जो इस बात पर निर्भर करता है कि समूहों के विशेषज्ञ उपलब्ध वैज्ञानिक साक्ष्य की संबंधित शक्ति और महत्व के बारे में किस तरह से सोचते हैं।

स्क्रीनिंग टेस्ट लोगों की ज़िंदगी बचाने मे मददगार साबित ज़रूर हो सकते हैं, लेकिन टेस्ट के परिणाम गलत तरीके से पॉज़िटिव या नेगेटिव भी हो सकते हैं:

  • गलत-पॉज़िटिव परिणाम: वे परिणाम जो बताते हैं कि व्यक्ति को कैंसर है, लेकिन असल में उसे कोई कैंसर नहीं है

  • गलत-नेगेटिव परिणाम: वे परिणाम जिनमें व्यक्ति को कैंसर होने के बारे में कोई संकेत मौजूद नहीं है लेकिन वास्तव में उसे कैंसर है

गलत-पॉज़िटिव परिणाम बिना किसी कारण के मानसिक तनाव पैदा कर सकते हैं और उनकी वजह से अन्य आक्रामक अथवा महंगे टेस्ट करवाने पड़ सकते हैं। गलत-नेगेटिव परिणाम व्यक्ति को ऐसा झूठा एहसास कराते हैं कि वह स्वस्थ है, उसे कैंसर होने के बावजूद। इन कारणों से, ऐसे स्क्रीनिंग टेस्ट की संख्या बहुत कम है जिन्हें डॉक्टर सामान्यतया भरोसे के लायक मानते हों।

महिलाओं में, पापानिकोलाओ (Pap) टेस्ट और उच्च जोखिम वाले ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) उपप्रकारों के लिए टेस्ट, वे व्यापकता से इस्तेमाल होने वाले स्क्रीनिंग टेस्ट हैं जिनका इस्तेमाल सर्वाइकल कैंसर और मैमोग्राफ़ी का इस्तेमाल स्तन कैंसर का पता लगाने में किया जाता है। दोनों स्क्रीनिंग टेस्ट इन कैंसरों से मरने वाले निश्चित उम्र समूहों के लोगों की मृत्यु दर को कम करने मे सफल रहे हैं।

पुरुषों में, खून के प्रोस्टेट-विशेष एंटीजन (PSA) स्तरों का इस्तेमाल प्रोस्टेट कैंसर को स्क्रीन करने के लिए किया जा सकता है। PSA स्तर प्रोस्टेट कैंसर से प्रभावित पुरुषों में अक्सर उच्च होते हैं, लेकिन उन पुरुषों में भी ये स्तर बढ़े होते हैं जिन्हें प्रोस्टेट कैंसर नहीं होता अथवा मामूली सा होता है, लेकिन आकार बढ़ा हुआ होता है। उसके स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में इस्तेमाल किए जाने का एक दोष यह है कि बहुतों के परिणाम गलत-पॉज़िटिव आते हैं, जिनकी वजह से प्रोस्टेट बायोप्सी जैसे ज़्यादा आक्रामक टेस्ट करवाया जाना आम है। और अब डॉक्टर यह महसूस कर रहे हैं कि यह ज़रूरी नहीं कि बायोप्सी में दिखने वाले सभी प्रोस्टेट कैंसर दिक्कत पैदा करने वाले ही हों। इस सवाल का अब तक कोई जवाब नहीं मिला है कि क्या प्रोस्टेट कैंसर की स्क्रीनिंग करने के लिए, नियमित तौर पर PSA टेस्ट किया जाना चाहिए, इस बारे में अलग-अलग समूहों की अलग-अलग सिफारिशें मौजूद हैं। पुरुषो को अपने डॉक्टर के साथ PSA टेस्ट के बारे में बातचीत करनी चाहिए।

कोलन कैंसर की स्क्रीनिंग करने के लिए कई टेस्ट इस्तेमाल में लाए जा सकते हैं, लोगों को अपने डॉक्टर से इस बारे में बात करनी चाहिए कि उन्हें किस टेस्ट का इस्तेमाल करना चाहिए। कोलन कैंसर के एक आम स्क्रीनिंग टेस्ट में शौच में खून की जांच शामिल है जिसे नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता (ऑकल्ट ब्लड यानी छिपा हुआ खून)। शौच में छिपे हुए खून का मिलना एक संकेत होता है कि पाचन मार्ग में कहीं कुछ तो गड़बड़ हो रही है। यह कैंसर की समस्या हो सकती है, हालांकि अल्सर, बवासीर, डाइवर्टिक्यूलोसिस (कोलन की दीवार में छोटी थैलियां), और अंतड़ियों की दीवार में असामान्य रक्त वाहिकाओं के कारण, शौच में थोड़ा-बहुत खून आ सकता है। इसके अलावा, एस्पिरिन या अन्य किसी नॉनस्टेरॉयड सूजन-रोधी दवा (NSAID) या कच्चा माँस खाने की वजह से भी अस्थायी तौर पर पॉज़िटिव टेस्ट परिणाम मिल सकता है। एक और टेस्ट जिससे कोलन कैंसर की वजह से शौच में असामान्य DNA की जांच की जाती है। कोलन कैंसर की स्क्रीनिंग करने के लिए सिग्मोइडोस्कोपी, कोलोनोस्कोपी, जैसी बाह्यरोगी प्रक्रियाएं और एक विशेष प्रकार की कोलन की कंप्यूटेड टोमोग्राफी (CT) (CT कोलोनोग्राफ़ी) का भी अक्सर इस्तेमाल किया जाता है।

फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग, फेफड़ों के CT सहित उन लोगों के लिए उपलब्ध है जो फिलहाल धूम्रपान करते हों या पिछले 15 सालों में कभी न कभी धूम्रपान कर चुके हों। फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग के जोखिमों और फायदों के बारे में डॉक्टर से बात करनी चाहिए।

कई बार खुद कैंसर के लक्षणों का नियमित स्व-परीक्षण करने की सलाह दी जाती है। हालांकि, शायद टेस्टिकुलर कैंसर के अलावा, घर पर स्व-परीक्षण द्वारा स्क्रीनिंग कैंसर की पहचान करने में प्रभावी साबित नहीं हुई है, इसलिए अगर लोग घर पर परीक्षण करें भी तो यह ज़रूरी है कि वे स्क्रीनिंग टेस्ट की सिफारिशों/सलाहों का अनुकरण भी करें।

कुछ स्क्रीनिंग टेस्ट घर पर भी किए जा सकते हैं, जैसे थोड़ी सी शौच को एक विशेष कार्ड में रखकर उसमें खून है या नहीं, यह जांचना और उस कार्ड को प्रोसेस किए जाने के लिए डाक द्वारा लेबोरेट्री भेज देना। असामान्य परिणाम आने पर पुष्टि के लिए तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए।

ट्यूमर मार्कर रक्तवाहिकाओं में कुछ ट्यूमरों द्वारा स्रवित पदार्थ होते हैं। पहले ऐसा सोचा जाता था कि इन मार्करों के स्तरों को मापना, लोगों में कैंसर के लक्षणों की स्क्रीनिंग करने के लिए एक उत्कृष्ट तरीका होगा। हालांकि, ट्यूमर मार्कर उन लोगों के खून में अक्सर मौजूद होते हैं जिन्हें कैंसर नहीं है। ट्यूमर मार्कर के मिलने का मतलब यह ज़रूरी नहीं कि व्यक्ति को कैंसर है, और ट्यूमर मार्कर की कैंसर की स्क्रीनिंग में बहुत सीमित भूमिका होती है।

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अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।

  1. American Cancer Society: कैंसर स्क्रीनिंग संबंधी सलाहें/सिफारिशें