क्रोनिक लिम्फ़ोसाइटिक ल्यूकेमिया (CLL)

इनके द्वाराAshkan Emadi, MD, PhD, West Virginia University School of Medicine, Robert C. Byrd Health Sciences Center;
Jennie York Law, MD, University of Maryland, School of Medicine
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्तू॰ २०२३

पुरानी लिम्फ़ोसाइटिक ल्यूकेमिया आमतौर पर धीरे-धीरे बढ़ता है जिसमें परिपक्व दिखने वाली लिम्फ़ोसाइट्स (एक प्रकार की सफेद रक्त कोशिका) कैंसर बन जाती हैं और धीरे-धीरे लसिका ग्रंथियों से सामान्य कोशिकाओं को हटाकर उनकी जगह लेने लगती हैं।

  • कई बार लोगों में इसके कोई लक्षण नहीं दिखाई देते या उनमें सामान्य लक्षण दिखाई दे सकते हैं, जैसे कि थकान, बुखार, रात को पसीना आना और अचानक वजन कम होना।

  • लोगों की लसिका ग्रंथियो का आकार बढ़ जाता है और स्प्लीन का आकार बढ़ने की वजह से पेट फूला हुआ लगता है।

  • इसकी जांच के लिए ब्लड टेस्ट करवाने पड़ते हैं।

  • इलाज में कीमोथेरेपी में इस्तेमाल होने वाली दवाएँ, मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ और कभी-कभी रेडिएशन थेरेपी दी जाती है।

(ल्यूकेमिया का विवरण भी देखें)

पुरानी लिम्फ़ोसाइटिक ल्यूकेमिया (CLL) वाले तीन चौथाई से अधिक लोगों की उम्र 60 साल से ज़्यादा होती है, और बच्चों में यह बीमारी बहुत दुर्लभ होती है। उत्तरी अमेरिका और यूरोप के लोगों में सबसे ज़्यादा होने वाला ल्यूकेमिया CLL है। यह जापान और दक्षिणपूर्व एशिया में और अमेरिका में रहने वाले जापानी तथा दक्षिणपूर्वी एशियाई मूल के लोगों में दुर्लभ है, जिससे यह संकेत मिलता है कि इसके विकास में जेनेटिक्स की कुछ भूमिका है।

इसमें पहले रक्त, बोन मैरो और लसिका ग्रंथियों में कैंसरयुक्त, परिपक्व दिखने वाली लिम्फ़ोसाइट्स की संख्या बढ़ती है। फिर कैंसरयुक्त लिम्फ़ोसाइट्स लिवर और स्प्लीन में फैल जाते हैं, जिससे इन दोनों अंगों का आकार बढ़ने लगता है।

बोन मैरो में कैंसरयुक्त लिम्फ़ोसाइट्स, रक्त बनाने वाली सामान्य कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं, जिससे निम्न में से एक या ज़्यादा कोशिकाओं की संख्या कम हो जाती है:

कैंसरयुक्त लिम्फ़ोसाइट्स, सामान्य लिम्फ़ोसाइट्स की तरह काम नहीं करते हैं, जो ऐसे प्रोटीन (एंटीबॉडीज) बनाते हैं जिनसे संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती है। स्वस्थ लिम्फ़ोसाइट्स की संख्या कम होने की वजह से, वे पर्याप्त एंटीबॉडीज नहीं बना पाते हैं, इसलिए संक्रमण होना संभव है। इसके अलावा, प्रतिरक्षा तंत्र, जो आमतौर पर बाहरी जीवों और पदार्थों से शरीर की रक्षा करता है, वह कभी-कभी इन जीवों और पदार्थो का पता नहीं लगा पाता और सामान्य ऊतकों को नष्ट करने लगता है। इस गलत प्रतिरक्षा गतिविधि के परिणामस्वरूप, लाल रक्त कोशिकाएं, न्यूट्रोफिल या प्लेटलेट्स नष्ट हो सकते हैं।

कभी-कभी CLL एक तरह के जानलेवा कैंसर में बदल जाता है, जिसे लिम्फ़ोमा कहते हैं। इस प्रकार के बदलाव को रिक्टर ट्रांसफ़ॉर्मेशन कहा जाता है जो 2 से 10 प्रतिशत मामलों में देखा गया है।

क्या आप जानते हैं...

  • क्रोनिक लिम्फ़ोसाइटिक ल्यूकेमिया बच्चों में कभी-कभार ही होता है।

CLL के लक्षण

CLL के शुरुआती चरणों में, अधिकांश लोगों में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते और बीमारी का पता सिर्फ़ इसलिए चल पाता है क्योंकि उनके शरीर में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ जाती है। बाद में मिलने वाले लक्षणों में ये शामिल होते हैं

  • बढ़े हुए लसीका ग्रंथियां

  • थकान

  • भूख नहीं लगना

  • वज़न का घटना

  • रात में पसीने आना

  • कसरत करते समय सांस फूलना

  • स्प्लीन का आकार बढ़ने के कारण पेट फूला हुआ लगता है

जैसे-जैसे CLL बढ़ता है, मरीज़ की त्वचा पीली पड़ती जाती है और उसे आसानी से चोट लग जाती है। बीमारी ज़्यादा बढ़ने पर बैक्टीरिया, वायरस और फंगस से संक्रमण हो सकता है क्योंकि बोन मैरो संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाओं बनाना कम कर देती है।

CLL का निदान

  • रक्त की जाँच

कभी-कभी CLL का पता अचानक उस समय चलता है जब किसी अन्य कारण से ब्लड काउंट की जांच करवाई जाती है और उसमें लिम्फ़ोसाइट्स की संख्या ज़्यादा निकलती है। रक्त कोशिकाओं में असामान्य लिम्फ़ोसाइट्स का पता लगाने के लिए खास तरह के ब्लड टेस्ट (जिन्हें फ्लो साइटोमैट्री और इम्यूनोफ़ेनोटाइपिंग कहा जाता है) किए जा सकते हैं। ब्लड टेस्ट से यह भी पता चल सकता है कि लाल रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट और एंटीबॉडीज़ की संख्या कम है या नहीं।

CLL का पता लगाने के लिए बोन मैरो की जांच करवाना आवश्यक नहीं है, लेकिन यदि इसकी जांच की जाती है, तो अक्सर लिम्फ़ोसाइट्स की संख्या ज़्यादा दिखाई देती है।

CLL का इलाज

  • कीमोथेरपी

  • इम्युनोथेरेपी

चूंकि CLL धीरे-धीरे बढ़ता है, बहुत से लोगों को कई साल तक इलाज की आवश्यकता नहीं होती है, आमतौर पर डॉक्टर तभी इसका इलाज शुरू करते हैं जब निम्नलिखित में से कोई एक या अधिक लक्षण दिखाई देते हैं

  • लिम्फ़ोसाइट्स की संख्या बढ़ जाए और बीमारी के लक्षण दिखाई देने लगें

  • लसीका ग्रंथि, लिवर या स्प्लीन एनलार्ज

  • लाल रक्त कोशिकाओं या प्लेटलेट्स की संख्या घटने लगे

CLL में दी जाने वाली दवाएँ

दवाएँ, जिनमें कीमोथेरेपी और इम्युनोथेरेपी (जैसे कि मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज) दवाएँ शामिल हैं, लक्षणों को दूर करने और बढ़ी हुई लसीका ग्रंथियों और स्प्लीन के आकार को कम करने में मदद करती हैं, लेकिन इससे बीमारी ठीक नहीं होती। इलाज से CLL को कई वर्षों तक नियंत्रित रखा जा सकता है और ल्यूकेमिया के फिर से बढ़ने पर अक्सर इसका उपयोग फिर से सफलता के साथ किया जा सकता है।

CLL के इलाज के लिए उपयोग की जाने वाली दवाओं का कोई मानक संयोजन नहीं है। शुरुआती तौर पर फ़्लूडारबीन और साइक्लोफ़ॉस्फ़ामाइड जैसी दवाएँ दी जाती हैं, जो DNA के साथ इंटरैक्ट करके कैंसर सेल्स को मार देती हैं। वर्तमान में CLL के इलाज के लिए कीमोथेरेपी और रिटक्सीमैब नाम की एक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी का भी उपयोग किया जाता है। इस कॉम्बिनेशन थेरेपी से CLL (कैंसर का लौटना प्रेरित करना) आमतौर पर नियंत्रित हो जाता है। लेकिन धीरे-धीरे ज़्यादातर प्रकार के CLL पर इन दवाओं का असर होना बंद हो जाता है। इसके बाद अन्य दवाओं या मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज़ से इलाज करने पर विचार किया जाता है।

आइब्रुटिनिब नाम की दवा से कुछ मरीज़ों में CLL काफ़ी समय तक ठीक रहता है। इसका उपयोग शुरुआती इलाज में या ऐसे CLL के इलाज में किया जाता है जिस पर किसी दूसरे इलाज का असर होने की संभावना न हो, जिस CLL पर दूसरे किसी इलाज (अपवर्तक) का असर न हो रहा हो या फिर जिस CLL के लक्षण दोबारा लौट आए हों। बुजुर्गों में CLL के साथ दूसरी बीमारियां भी होने पर, ओबिनुट्यूज़ुमब का उपयोग किया जा सकता है। जिन लोगों में कैंसर कुछ समय ठीक रहने के बाद लौट आता है उनमें कभी-कभी स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन करने की ज़रूरत पड़ सकती है।

एसेलैब्रूटिनिब और ज़ेनुट्रिनिब हाल ही में CLL के इलाज के लिए उपलब्ध हुई हैं। उनकी वजह से इब्रुटिनिब के मुकाबले कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

CLL के लक्षणों का इलाज

एनीमिया के इलाज के लिए ब्लड ट्रांसफ़्यूजन किया जाता है और कभी-कभी एरीथ्रोपॉइटिन या डर्बेपोइटिन के इंजेक्शन (वे दवाएँ जिनसे लाल रक्त कोशिकाएं तेज़ी से बनती हैं) लगाए जाते हैं। प्लेटलेट्स कम होने पर खून बहना नहीं रुकता और इसके इलाज के लिए प्लेटलेट ट्रांसफ़्यूज़न किया जाता है। संक्रमण का इलाज एंटीमाइक्रोबियल्स से किया जाता है। अगर लसीका ग्रंथियों, लिवर, या स्प्लीन का आकार बढ़ जाने से कोई परेशानी हो रही हो और कीमोथेरेपी का असर न हो रहा हो तो इन अंगों के आकार को कम करने के लिए रेडिएशन थेरेपी दी जाती है।

CLL का पूर्वानुमान

CLL आमतौर पर धीरे-धीरे बढ़ता है। मरीज़ के पास कितना समय बचा है, यह जानने के लिए डॉक्टर पता लगाते हैं कि बीमारी कितनी बढ़ गई है (स्टेजिंग)। बीमारी के स्टेज कई कारकों पर निर्भर करते हैं, जिसमें ये शामिल हैं

  • रक्त में लिम्फ़ोसाइट्स की संख्या

  • बोन मैरो में लिम्फ़ोसाइट्स की संख्या

  • स्प्लीन का आकार

  • लिवर का आकार

  • रक्त में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या

  • रक्त में प्लेटलेट की संख्या

जिन लोगों में CLL शुरुआती स्टेज में होता है, वे अक्सर जांच के बाद 10 से 20 साल या उससे अधिक समय तक जीवित रहते हैं और आमतौर पर उन्हें शुरुआती स्टेज में इलाज की आवश्यकता नहीं होती है। जिन लोगों में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या कम (एनीमिया) हो जाती है या प्लेटलेट की संख्या कम (थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया) हो जाती है, उन्हें तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है और उनमें प्रॉग्नॉसिस कम कारगर होता है। इस बीमारी में आमतौर पर मरीज़ की मृत्यु इसलिए होती है क्योंकि बोन मैरो ऑक्सीजन ले जाने वाली, संक्रमण से लड़ने वाली और खून बहने से रोकने वाली सामान्य कोशिकाएं बनाना बंद कर देती है।

संभावित रूप से प्रतिरक्षा तंत्र में होने वाले बदलावों के कारण, CLL के मरीज़ों में अन्य प्रकार के कैंसर होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं, जैसे, त्वचा के कैंसर या फेंफड़े के कैंसर। CLL, लिम्फ़ैटिक सिस्टम (लिम्फ़ोमा) वाले गंभीर कैंसर में भी बदल सकता है।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।

  1. Leukemia & Lymphoma Society: What is CLL: पुराना लिम्फ़ोसाइटिक ल्यूकेमिया के कई पहलुओं पर सामान्य जानकारी, जिसमें जांच, इलाज के तरीके और प्राप्त जानकारी पर शोध शामिल हैं