माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम, संबंधित विकारों का एक समूह होता है जिसमें बोन मैरो में असामान्य रक्त बनाने वाली कोशिकाएं विकसित हो जाती हैं। सबसे पहले, ये कोशिकाएं सामान्य रक्त कोशिकाओं के निर्माण में समस्या उत्पन्न करती हैं। इसके बाद ये कोशिकाएं कैंसरयुक्त हो सकती हैं और किसी प्रकार के ल्यूकेमिया में बदल सकती हैं।
(ल्यूकेमिया का विवरण भी देखें।)
इसके लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि किस प्रकार की कोशिकाएं प्रभावित हुई हैं, लेकिन इसमें थकान, कमज़ोरी, त्वचा का पीलापन या बुखार और संक्रमण या खून बहने और आसानी से चोट लगने जैसे लक्षण भी दिखाई दे सकते हैं।
इसका पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट और बोन मैरो सैंपल की जांच करने की ज़रूरत पड़ सकती है।
एज़ासाइटिडीन और डैसिटाबीन देने से इसके लक्षणों में आराम मिल सकता है और ल्यूकेमिया के विकसित होने की संभावना भी कम हो सकती है।
स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन से यह बीमारी ठीक हो सकती है।
माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम में, एक जैसी कोशिकाओं (क्लोन) की एक पंक्ति विकसित हो जाती है और बोन मैरो में जमा हो जाती है। ये असामान्य कोशिकाएं न तो विकसित होती हैं, न परिपक्व होती हैं और न ही सामान्य तरीके से काम करती हैं। ये कोशिकाएं, बोन मैरो की सामान्य कार्यप्रणाली में भी बाधा डालती हैं, इसके निम्न परिणाम होते हैं
लाल रक्त कोशिकाओं (जो रक्त में ऑक्सीजन ले जाती हैं) की कमी हो जाती है, जिससे एनीमिया हो जाता है
श्वेत रक्त कोशिकाओं (जो शरीर को संक्रमण से बचाने में मदद करती हैं) की कमी हो जाती है, जिससे संक्रमण होता है
प्लेटलेट्स (छोटी कोशिका जैसे कण जो रक्त के थक्के बनाने में मदद करते हैं) की कमी हो जाती है, जिससे चोट आसानी से लग जाती है और खून बहना नहीं रुकता
कुछ लोगों में, खासतौर पर लाल रक्त कोशिका का निर्माण प्रभावित होता है।
माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम अक्सर 50 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में होते हैं, खासतौर पर 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों में। महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में इसके होने की संभावना ज़्यादा होती है।
इसका कारण अभी तक ज्ञात नहीं है। हालांकि, कुछ लोगों में बोन मैरो में रेडिएशन थेरेपी या कुछ प्रकार की कीमोथेरेपी दवाएँ या बेंज़ीन जैसे रसायन एक भूमिका निभा सकते हैं।
MDS के लक्षण
इसके लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं। इसमें थकान, कमज़ोरी और एनीमिया जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या कम होने पर संक्रमण के कारण बुखार हो सकता है। अगर प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है (थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया) तो मरीज़ को चोट आसानी से लग जाती है और खून बहना नहीं रुकता।
MDS का निदान
रक्त की जाँच
बोन मैरो की जाँच
मॉलेक्यूलर टेस्टिंग
माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम होने का संदेह तब होता है जब मरीज़ में एनीमिया बने रहने का कोई विशेष कारण समझ में नहीं आता, लेकिन जांच के लिए बोन मैरो के मूल्यांकन की ज़रूरत होती है।
कुछ केंद्रों में, जाँच करके उन जीन या क्रोमोसोम की असामान्यताओं का पता लगाया जाता है जो माइलोडिस्प्लास्टिक सिंड्रोम (जिसे कभी-कभी मॉलीक्यूलर टेस्टिंग कहा जाता है) में मौजूद होती हैं। ऐसे प्रायोगिक इलाज उपलब्ध हैं जिनमें कुछ खास असामान्यताओं पर ध्यान दिया जाता है।
MDS का इलाज
कीमोथेरपी
कभी-कभी स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन किया जाता है
एज़ासाइटिडीन और डैसिटाबीन दवाओं से माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम के लक्षणों में आराम मिलता है और इसके एक्यूट ल्यूकेमिया में बदलने की संभावना कम हो जाती है। एज़ासाइटिडीन से व्यक्ति ज़्यादा समय तक भी जीवित रह सकता है। इसके इलाज का एकमात्र तरीका है स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन, जो आमतौर पर जवान लोगों में किया जाता है।
अगर यह एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (AML) में बदल जाता है, तो AML के लिए की जाने वाली कीमोथेरेपी से इलाज में मदद मिल सकती है, लेकिन इस तरह का AML सिर्फ़ कीमोथेरेपी से ठीक नहीं हो सकता।
माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम में होने वाली परेशानियों का इलाज
माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम वाले मरीज़ों में अक्सर लाल रक्त कोशिकाओं का ट्रांसफ़्यूजन करने की ज़रूरत होती है। लेनालिडोमाइड नाम की दवा एक खास क्रोमोसोम की असामान्यता के साथ काम करने वाली कोशिकाओं पर हमला करती है, ब्लड ट्रांसफ़्यूजन की ज़रूरत को भी कम करती है। प्लेटलेट्स ट्रांसफ़्यूज़न तभी किया जाता है जब मरीज़ का रक्त बहना बंद न हो रहा हो या उसकी सर्जरी करनी हो और उसमें प्लेटलेट्स की संख्या कम हो।
जिन लोगों में न्यूट्रोफिल या संक्रमण से लड़ने वाली श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या बहुत कम होती है, उन्हें निश्चित समय पर एक खास तरह के प्रोटीन का इंजेक्शन देने फ़ायदा हो सकता है जिसे ग्रैन्युलोसाइट कॉलोनी-स्टिम्युलेटिंग फ़ैक्टर कहा जाता है। लोगों को एरीथ्रोपॉइटिन, जो लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण में सहायक हो सकता है और थ्रॉम्बोपॉइटिन, जो प्लेटलेट्स के निर्माण की प्रक्रिया को तेज़ करता है, प्रोटीन देने से भी फ़ायदा हो सकता है।
MDS का पूर्वानुमान
माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम को एक प्रकार का प्रील्यूकेमिया माना जाता है जो कई महीनों से कई सालों तक धीरे-धीरे बढ़ सकता है। 10 से 30% लोगों में, माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया में बदल जाता है।
अधिक जानकारी
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Leukemia & Lymphoma Society: Myelodysplastic Syndromes: माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम के कई पहलुओं पर सामान्य जानकारी, जिसमें जांच, इलाज के तरीके और शोध में मिले निष्कर्ष शामिल हैं
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