एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया एक जानलेवा बीमारी है जिसमें वे कोशिकाएं जो सामान्य रूप से श्वेत रक्त कोशिकाओं के प्रकार में विकसित होती हैं, जिन्हें न्यूट्रोफिल, बेसोफिल, इयोसिनोफिल और मोनोसाइट कहा जाता है, कैंसरयुक्त हो जाती हैं और तेजी से बोन मैरो में सामान्य कोशिकाओं को बदल देती हैं।
लोगों को थकान महसूस होती है और वे पीले पड़ जाते हैं, आसानी से संक्रमण और बुखार हो सकता है और आसानी से चोट लग सकता है या खून बहने लगता है।
इसका पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट करवाए जाते हैं और बोन मैरो की जांच की जाती है।
इलाज में, कैंसर से छुटकारा पाने के लिए कीमोथेरेपी, साथ ही कैंसर वापस आने से बचने के लिए अतिरिक्त कीमोथेरेपी और कभी-कभी स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन शामिल है।
(ल्यूकेमिया का विवरण भी देखें।)
एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया (AML), वयस्कों में होने वाला सबसे आम प्रकार का ल्यूकेमिया है, हालांकि यह सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। कभी-कभी किसी दूसरे कैंसर के इलाज के लिए दी गई कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी द्वारा AML हो जाता है।
AML में, निम्न में से एक या अधिक सहित अपरिपक्व ल्यूकेमिया कोशिकाएं, सामान्य रक्त कोशिकाओं का उत्पादन करने वाली कोशिकाओं को नष्ट करके बदलकर बोन मैरो में तेजी से इकट्ठी होने लगती हैं:
लाल रक्त कोशिकाएं, जो रक्त में ऑक्सीजन पहुंचाती हैं
श्वेत रक्त कोशिकाएं, जो संक्रमण से लड़ने में शरीर की मदद करती हैं
प्लेटलेट, जो कोशिका जैसे छोटे कण होते हैं और जो क्लॉटिंग की प्रक्रिया में मदद करते हैं
कैंसरयुक्त श्वेत रक्त कोशिकाएं, सामान्य श्वेत रक्त कोशिकाओं की तरह काम नहीं करतीं। इसलिए भले ही जांच में श्वेत रक्त कोशिकाएं ज़्यादा दिखाई दें लेकिन वास्तव में इनकी संख्या बहुत कम होती है और व्यक्ति का शरीर संक्रमणों से नहीं लड़ पाता।
ल्यूकेमिया वाली कोशिकाएं, रक्तप्रवाह में भी शामिल हो जाती हैं और दूसरे अंगों तक पहुंच जाती हैं, जहां वे लगातार बढ़ती रहती हैं और विभाजित होती रहती हैं।
AML कई प्रकार का होता है, जिसका पता ल्यूकेमिया वाली कोशिकाओं की विशेषताएं देखकर लगाया जा सकता है।
एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया, AML का महत्वपूर्ण प्रकार है। इस प्रकार के ल्यूकेमिया में शुरुआती अवस्था से परिपक्व न्यूट्रोफिल में विकसित होने वाली प्रोमाइलोसाइट कोशिकाओं के क्रोमोसोम में बदलाव होने के कारण, अपरिपक्व सेल इक्ट्ठा होने लगती हैं। एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया युवा आयु समूह (मध्यम आयु 31 वर्ष) और विशेष जाति (हिस्पैनिक लोग) को प्रभावित करता है।
AML के लक्षण
AML के शुरुआती लक्षण एक्यूट लिम्फ़ोब्लास्टिक ल्यूकेमिया जैसे ही होते हैं और यह बोन मैरो के पर्याप्त मात्रा में सामान्य रक्त कोशिकाएं न बना पाने के कारण उत्पन्न होते हैं।
बुखार और पसीना ज़्यादा आने पर संक्रमण होने के संकेत मिलते हैं, जो सामान्य श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या कम होने के कारण होता है।
लाल रक्त कोशिकाओं के कम होने (एनीमिया) की वजह से कमज़ोरी और थकान होती है और त्वचा पीली पड़ जाती है। कुछ लोगों को सांस लेने में तकलीफ़ हो सकती है, उनके दिल की धड़कन बढ़ सकती है, या सीने में दर्द हो सकता है।
आसानी से खरोंच लगना और रक्तस्राव, कभी-कभी नकसीर या मसूड़ों से रक्तस्राव के रूप में, जो बहुत कम प्लेटलेट्स (थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया) के परिणामस्वरूप हो सकता है। कुछ मामलों में लोगों के मस्तिष्क या पेट से भी खून बह सकता है।
ल्यूकेमिया वाली कोशिकाएं, शरीर के अन्य अंगों को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं। बोन मैरो में ल्यूकेमिया वाली कोशिकाएं होने के कारण हड्डियों और जोड़ों में दर्द हो सकता है। पेट फूला हुआ होने का एहसास होता है और कभी-कभी ल्यूकेमिया वाली कोशिकाओं के कारण लिवर और स्प्लीन बढ़ जाता है और इससे दर्द हो सकता है। त्वचा के अंदर या ठीक नीचे (जिसे ल्यूकेमिया क्यूटिस कहा जाता है) या मसूड़े, या आंखों सहित पूरे शरीर पर ल्यूकेमिया वाली कोशिकाएं छोटी फुंसियां उभार सकती है।
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AML कोशिकाएं, ऊतक की सतहों पर फैल सकती हैं और मस्तिष्क और स्पाइनल कॉर्ड (मेनिंजेस) को ढँक देती हैं जिससे ल्यूकेमिया मेनिनजाइटिस हो जाता है, जिससे
सिरदर्द
उल्टी होना
स्ट्रोक
देखने, सुनने, और चेहरे की मांसपेशियों (ल्यूकेमिक मेनिनजाइटिस) में परेशानी होती है
प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया कहलाने वाले AML के एक प्रकार में अक्सर खून बहने या ब्लड क्लॉटिंग न होने की समस्याएं देखी जाती हैं।
AML का निदान
रक्त की जाँच
बोन मैरो की जाँच
AML का निदान एक्यूट लिम्फ़ोब्लास्टिक ल्यूकेमिया के निदान जैसा होता है। पूरे ब्लड काउंट की जांच की जाती है, इसमें हर प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या भी देखी जाती है। बोन मैरो की जांच ज़्यादातर इसलिए की जाती है ताकि AML होने की पुष्टि हो सके और इसे दूसरे प्रकार के ल्यूकेमिया से अलग करके देखा जा सके। अपरिपक्व श्वेत रक्त कोशिकाओं (ब्लास्ट) में क्रोमोसोम के असामान्यता की जांच की जाती है जिससे डॉक्टर को यह तय करने में मदद मिलती है कि ल्यूकेमिया किस प्रकार का है और इसके इलाज के लिए कौन सी दवाएँ दी जाएँ।
AML से संबंधित अन्य असामान्यताओं का पता लगाने के लिए ट्यूमर मार्कर और इलेक्ट्रोलाइट की असामान्यताओं और पेशाब सहित अन्य ब्लड टेस्ट भी करवाए जाते हैं।
इमेजिंग टेस्ट की भी ज़रूरत हो सकती है। अगर मरीज़ के मस्तिष्क में ल्यूकेमिया वाली कोशिकाएं होने की शंका होती है, तो कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) या मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) की जाती है। फेफड़ों के आसपास के हिस्सों में ल्यूकेमिया वाली कोशिकाओं की जांच के लिए छाती का CT स्कैन करवाया जा सकता है। पेट का CT स्कैन, MRI या अल्ट्रासोनोग्राफ़ी की जा सकती है, जिससे यह पता चल सके कि भीतर के अंगों का आकार बढ़ तो नहीं रहा। कीमोथेरेपी शुरू करने से पहले एक इकोकार्डियोग्राम (हृदय का अल्ट्रासाउंड) करवाया जा सकता है क्योंकि कीमोथेरेपी में दी जाने वाली दवाओं से कभी-कभी हृदय पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
AML का इलाज
कीमोथेरपी
स्टेम सैल ट्रांसप्लांटेशन
AML के इलाज का उद्देश्य ल्यूकेमिया वाली कोशिकाओं को ज़्यादा मात्रा में खत्म करके मरीज़ को तुरंत आराम पहुंचाना है। हालांकि, इलाज से ठीक होने से पहले मरीज़ और भी ज़्यादा बीमार हो सकते हैं।
इलाज के दौरान बोन मैरो काम करना कम कर देती है, जिससे श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या बहुत कम हो जाती हैं, खासतौर पर न्यूट्रोफिल। न्यूट्रोफिल की संख्या कम होने से संक्रमण होने की संभावना बढ़ जाती है। इलाज के दौरान म्यूकोसा (जैसे मुंह की सतह) भी प्रभावित होता है, जिससे बैक्टीरिया शरीर में आसानी से प्रवेश कर जाते हैं। संक्रमणों को रोकने के लिए देखभाल में बहुत सावधानी रखनी चाहिए और संक्रमणों का इलाज तुरंत किया जाना चाहिए। लाल रक्त कोशिका और प्लेटलेट ट्रांसफ़्यूजन की ज़रूरत भी पड़ सकती है।
AML के इलाज का पहला चरण इंडक्शन कीमोथेरेपी है। कीमोथेरेपी में दी जाने वाली दवाएँ आमतौर पर 7 दिनों तक लगातार इन्फ्यूजन से साइटाराबिन और 3 दिनों तक इंट्रावीनस तरीके से डाउनोरूबिसिन (या इडारूबिसिन) दी जाती है। अन्य दवाएँ जो दी जा सकती हैं उनमें माइडस्टॉरिन या जेम्टुज़ुमैब ओजोगैमिसिन शामिल हैं। बुजुर्गों में या गंभीर चिकित्सा समस्याओं वाले दूसरे लोगों में, डैसिटाबीन, एज़ासाइटिडीन, वेनेटोक्लैक्स या ग्लासडेगिब जैसी दूसरी दवाएँ उपयोग की जा सकती हैं।
AML ठीक होने के बाद कंसोलिडेशन कीमोथेरेपी दी जाती है। आमतौर पर शुरुआती इलाज के कुछ सप्ताह बाद लोगों को अतिरिक्त कीमोथेरेपी के कई कोर्स दिए जाते हैं ताकि ल्यूकेमिया की ज़्यादा से ज़्यादा कोशिकाएं नष्ट हो जाएं।
जिन लोगों में बीमारी के वापस लौटने का जोखिम होता है उनमें इंडक्शन और कंसोलिडेशन के बाद एलोजेनिक स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन ("एलोजेनिक" का मतलब, किसी अन्य व्यक्ति की स्टेम सेल) किया जाता है। लेकिन ट्रांसप्लांटेशन तभी किया जा सकता है जब स्टेम सेल ऐसे व्यक्ति से प्राप्त किया गया हो जिसके पास संगत ऊतक प्रकार हो (ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन [HLA]–मेल खाने वाला)। डोनर आमतौर पर कोई भाई या बहन होता है, लेकिन मैच करने वाले, असंबंधित डोनर (या कभी-कभी परिवार के सदस्यों या असंबंधित डोनर से आंशिक रूप से मेल खाने वाली कोशिकाएं, साथ ही गर्भनाल स्टेम कोशिकाएं) की कोशिकाएं भी कभी-कभी उपयोग की जाती हैं।
एक्यूट लिम्फ़ोसाइटिक ल्यूकेमिया के विपरीत, वयस्कों को आमतौर पर मस्तिष्क को बचाने वाले इलाज की ज़रूरत नहीं होती और लंबे समय तक कम डोज़ वाली कीमोथेरेपी (मेंटेनेंस थेरेपी) से भी जीवन में सुधार के लक्षण नहीं दिखते।
एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया वाले लोगों का इलाज एक प्रकार के विटामिन A से किया जा सकता है जिसे ऑल-ट्रांस-रेटिनोइक एसिड (ट्रेटीनॉइन) कहते हैं। कीमोथेरेपी के साथ अक्सर ऑल-ट्रांस-रेटिनोइक एसिड का इस्तेमाल किया जाता है, खासतौर पर जब जांच के समय व्यक्ति के शरीर में श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या ज़्यादा पाई जाती है या श्वेत रक्त कोशिकाओं की संख्या अचानक बढ़ जाती है। इस प्रकार के AML में आर्सेनिक ट्राइऑक्साइड भी काफ़ी असरदार होता है।
पुनर्वापसी
जिन लोगों में इलाज का असर नहीं दिखता है और जिन युवाओं में बीमारी में सुधार हो गया है लेकिन उसके वापस लौटने का जोखिम बहुत ज़्यादा है (इसकी पहचान आमतौर पर क्रोमोसोम में कुछ असामान्यताएं होने पर होती है), उन्हें स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन के बाद ज़्यादा डोज़ वाली कीमोथेरेपी की दवाएँ दी जा सकती हैं।
कैंसर के वापस लौटने पर स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन करवाने में अक्षम मरीज़ों में अतिरिक्त कीमोथेरेपी कम असरदार होती है और अक्सर उन्हें काफ़ी दर्द से गुज़रना पड़ता है। कीमोथेरेपी का दूसरा कोर्स युवाओं और उन लोगों के लिए सबसे ज़्यादा असरदार है जिनमें शुरुआती इलाज के 1 वर्ष बाद तक कैंसर वापस नहीं लौटता। जिन लोगों में AML वापस लौटता है, उन्हें अतिरिक्त इंटेन्सिव कीमोथेरेपी की सलाह देते समय डॉक्टर कई बातों पर विचार करते हैं।
AML के लिए प्रॉग्नॉसिस
इलाज न मिलने पर, AML से जूझ रहे ज़्यादातर लोगों की मृत्यु, इसका निदान होने के कुछ ही हफ़्तों में हो जाती है। थेरेपी से 20% से 40% लोग, कम से कम 5 वर्ष तक जीवित रहते हैं और इस दौरान उनमें बीमारी वापस नहीं लौटती। गहन इलाज से 40 से 50% युवा कम से कम 5 साल जीवित रह सकते हैं। क्योंकि लगभग हमेशा शुरुआती इलाज के बाद, पहले 5 वर्षों के भीतर ही बीमारी के वापस लौटने के लक्षण दिखने लगते हैं, जिन लोगों में 5 साल के बाद भी ल्यूकेमिया के कोई लक्षण नहीं दिखते, उनमें से ज़्यादातर को पूरी तरह ठीक माना जाता है।
बीमारी के मौजूद होने का सबसे बड़ा संकेत ल्यूकेमिया वाली कोशिकाओं में मौजूद आनुवंशिक असामान्यता का प्रकार है। 65 साल से ज़्यादा उम्र के वे लोग जिनके ब्लड टेस्ट में कुछ नतीजे दिखाई देते हैं, जैसे, श्वेत रक्त कोशिका की संख्या ज़्यादा होना, वे लोग जिनमें अन्य कैंसर के लिए कीमोथेरेपी या रेडिएशन थेरेपी करवाने के बाद AML विकसित हो जाता है, और वे लोग जिनमें पहले से माइलोडिसप्लास्टिक सिंड्रोम होता है, उनका प्रॉग्नॉसिस सबसे खराब होता है।
एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया को किसी समय ल्यूकेमिया का सबसे हानिकारक रूप माना जाता था। लेकिन अब इस प्रकार के AML के इलाज की संभावना सबसे ज़्यादा होती है। एक्यूट प्रोमाइलोसाइटिक ल्यूकेमिया वाले 70% से ज़्यादा लोगों को ठीक किया जा सकता है। इसका जल्दी निदान करना ज़रूरी है।
अधिक जानकारी
निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।
Leukemia & Lymphoma Society: Acute Myeloid Leukemia: एक्यूट माइलॉयड ल्यूकेमिया के कई पहलुओं पर सामान्य जानकारी, जिसमें जांच, इलाज के विकल्प और हाल ही में शोध से सामने आए निष्कर्ष शामिल हैं