हृदय और रक्त वाहिकाओं के विकारों के निदान का परिचय

इनके द्वाराThomas Cascino, MD, MSc, Michigan Medicine, University of Michigan;
Michael J. Shea, MD, Michigan Medicine at the University of Michigan
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया दिस॰ २०२३

    कभी-कभी, केवल चिकित्सीय इतिहास और शारीरिक जांच से ही डॉक्टर को अंदाजा लग जाता है कि व्यक्ति को हृदय या रक्त वाहिका का विकार है। हालांकि, निदान की पुष्टि करने, रोग की व्यापकता और गंभीरता का निर्धारण करने, तथा उपचार की योजना बनाने के लिए अक्सर विशेष निदानकारी प्रक्रियाओं की जरूरत पड़ती है।

    निदानकारी प्रक्रियाएं

    • गैर-इनवेसिव

    • न्यूनतम रूप से इनवेसिव

    गैर-इनवेसिव जांचों के लिए कभी-कभी खून निकालने या बांह की शिरा में मानक लघु अंतःशिरीय कैथेटर लगाने के सिवाय किसी भी चीरे या सुई लगाने की जरूरत नहीं होती है। इन जांचों में शामिल हैं

    कभी-कभार फ्लोरोस्कोपी (एक प्रक्रिया जिसमें लगातार एक्स-रे लिए जाते हैं) का उपयोग किया जाता है। शूगर (मधुमेह की जांच के लिए), कोलेस्ट्रॉल, और अन्य पदार्थों के लिए रक्त परीक्षण करके ऐसे विकारों की तलाश की जाती है जो हृदय रोग पैदा कर सकते हैं।

    न्यूनतम रूप से इनवेसिव जांच के लिए आमतौर पर एक लंबे, लचीले कैथेटर की जरूरत होती है, जिसे कलाई, गर्दन या जाँघ की रक्त वाहिका में प्रविष्ट किया जाता है और रक्त वाहिका से होते हुए आगे बढ़ा कर हृदय में ले जाया जाता है। इन जांचों में शामिल हैं

    इनमें से अधिकांश प्रक्रियाओं से बहुत थोड़ा सा जोखिम होता है, लेकिन प्रक्रिया की जटिलता, हृदय के विकार की गंभीरता, और व्यक्ति में मौजूद किसी अन्य रोग की तीव्रता के साथ-साथ जोखिम बढ़ता है।

    कभी-कभी कुछ न्यूनतम रूप से इनवेसिव निदानकारी जांचों के दौरान उपचार किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, करोनरी धमनी रोग वाले लोगों में कार्डियक कैथेटराइज़ेशन के दौरान परक्युटेनियस करोनरी हस्तक्षेप किया जा सकता है और असामान्य हृदय तालों वाले लोगों में इलेक्ट्रोफिज़ियोलॉजिक परीक्षण के दौरान रेडियोफ्रीक्वेंसी अब्लेशन किया जा सकता है।

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