मन और शरीर एक शक्तिशाली तरीके से पारस्परिक संपर्क करते हैं जिससे व्यक्ति का स्वास्थ्य प्रभावित होता है। पाचन तंत्र पूर्णतया मन (मस्तिष्क) द्वारा नियंत्रित होता है, तथा अत्यधिक चिंता, डिप्रेशन, और डर इस तंत्र की क्रिया को आश्चर्यजनक रूप से प्रभावित करते हैं। सामाजिक और मानसिक तनाव व्यापक रूप से विभिन्न प्रकार के रोगों और विकारों को उत्प्रेरित करते हैं, जैसे डायबिटीज मैलिटस, बढ़ा हुआ ब्लड प्रेशर, और माइग्रेन सिरदर्द। हालांकि, मनोवैज्ञानिक कारकों की प्रासंगिक महत्ता समान विकारों से ग्रस्त अलग-अलग लोगों के बीच व्यापक रूप से भिन्न होती है।
अधिकांश लोग, या तो अंतर्बोध या फिर निजी अनुभव के आधार पर, यह मानते हैं कि भावनात्मक तनाव भी गंभीर शारीरिक रोगों को उत्पन्न कर सकता है या उनके आगे बढ़ने की दिशा को बदल सकता है। ये तनाव कारक यह क्रिया कैसे करते हैं, यह अभी स्पष्ट नहीं है। यह स्पष्ट है कि भावनाओं से कुछ शारीरिक क्रियाएं प्रभावित हो सकती हैं, जैसे हृदय गति, ब्लड प्रेशर, पसीना आना, सोने के तरीके, पेट में अम्ल का स्राव, और आंत्र क्रियाएं, लेकिन इसके अन्य संबंध कम स्पष्ट हैं। उदाहरण के लिए, मस्तिष्क और प्रतिरक्षा तंत्र जिन पथों और क्रियाविधियों के द्वारा पारस्परिक संपर्क करते हैं उनकी पहचान करने की प्रक्रिया अभी शुरू ही हुई है। यह उल्लेखनीय है कि मस्तिष्क श्वेत रक्त कोशिकाओं की गतिविधि को और इसीलिए प्रतिरक्षा अनुक्रिया को बदल सकता है क्योंकि श्वेत रक्त कोशिकाएं रक्त या लसिका वाहिकाओं के माध्यम से शरीर में संचरण करती हैं और ये तंत्रिकाओं से जुड़ी हुई नहीं होती हैं। इसके बावजूद, शोध से पता चलता है कि मस्तिष्क श्वेत रक्त कोशिकाओं के साथ संचार करता है। उदाहरण के लिए, डिप्रेशन इस प्रतिरक्षा प्रणाली को रोक सकता है और व्यक्ति को संक्रमणों जैसे सामान्य सर्दी-जुकाम के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है।
तनाव के कारण शारीरिक लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं भले ही व्यक्ति को कोई रोग न हो क्योंकि शरीर भावनात्मक तनाव के प्रति शारीरिक रूप से अनुक्रिया करता है। उदाहरण के लिए, तनाव अत्यधिक चिंता का कारण बन सकता है, जो फिर हृदय गति को बढ़ाने और ब्लड प्रेशर और पसीने की मात्रा को बढ़ाने के लिए स्वसंचालित तंत्रिका तंत्र एवं हार्मोन जैसे एपीनेफ़्रिन को उत्प्रेरित करती है। तनाव से मांसपेशियों में तनाव आ सकता है, जिसके कारण गर्दन, पीठ, सिर, या किसी भी भाग में दर्द होता है।
मानसिक-शारीरिक चिकित्सा पद्धति इस सिद्धांत पर आधारित थेराप्युटिक चिकित्सीय तकनीकों को संदर्भित करती है कि मानसिक और भावनात्मक कारकों से शारीरिक स्वास्थ्य पर असर पड़ता है। स्वास्थ्य को बनाए रखने और रोग की रोकथाम अथवा उपचार करने का प्रयास करने के लिए व्यावहारिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक विधियों का उपयोग किया जाता है।
मन और शरीर में इंटरैक्शन एक द्विपथीय सड़क है। मनोवैज्ञानिक कारक न केवल व्यापक विभिन्न प्रकार के शारीरिक विकारों की शुरुआत करने या वृद्धि करने में योगदान देते हैं, बल्कि इनके कारण ऐसे शारीरिक रोग भी हो सकते हैं जिनसे व्यक्ति की सोच या मनोदशा पर बुरा असर पड़ सकता है। प्राणघातक, आवर्ती, या क्रोनिक शारीरिक विकारों से ग्रस्त लोग आमतौर पर डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं। डिप्रेशन के कारण शारीरिक रोग से और अधिक दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं और इससे व्यक्ति का दुःख और बढ़ सकता है।