भले ही यह एक अजीब बात लगे, लेकिन शरीर के अंदर क्या है और बाहर क्या है इसे परिभाषित करना हमेशा आसान नहीं होता क्योंकि शरीर में अनेक सतहें होती हैं। त्वचा, जो कि वास्तव में एक अंगतंत्र है, प्रत्यक्ष रूप से शरीर के बाहर मौजूद होती है। यह एक रोधन का गठन करती है जो बहुत से हानिकारक पदार्थों को शरीर में प्रवेश करने से रोकती है। पाचन तंत्र एक लंबी नली है जो मुंह से शुरू होती है, और शरीर में घुमावदार मार्ग से होते हुए गुदा से बाहर निकलती है। क्या भोजन इसी तरह से नली से होता हुआ अंदर और बाहर जाता है? पोषक तत्व और तरल पदार्थ वास्तव में तब तक शरीर के अंदर नहीं होते जब तक कि वे रक्तधारा में अवशोषित नहीं हो जाते।
वायु नाक और गले से होते हुए वायु नली (श्वासनली) में, उसके बाद, फेफड़ों के विस्तृत शाखाओं वाले वायुमार्गों (ब्रोंकाई) में जाती है। शरीर में यह आने-जाने का मार्ग किस बिंदु पर होता है? फेफड़ों ( देखें श्वसन तंत्र का विवरण) में ऑक्सीजन तब तक शरीर के लिए उपयोगी नहीं होती जब तक कि यह रक्तधारा में प्रवेश नहीं करती है। रक्तधारा में प्रवेश करने के लिए, ऑक्सीजन का फेफड़ों के आवरण की कोशिकाओं की पतली परत से होकर गुजरना आवश्यक है। वायरस और बैक्टीरिया, जैसे वो जिनके कारण ट्यूबरक्लोसिस होता है, जो वायु के साथ फेफड़ों में जा सकते हैं, यह परत उनके प्रति एक रोधक का कार्य करती है। जब तक कि ये जीव कोशिकाओं में नहीं घुसते या रक्तधारा में प्रवेश नहीं कर लेते तब तक वे सामान्यतः कोई रोग पैदा नहीं करते। चूंकि फेफड़ों में कई सुरक्षात्मक क्रियाविधि होती हैं, जैसे संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज़ और वायुमार्गों से अशुद्ध पदार्थों को हटाने वाले छोटे-छोटे बाल जिन्हें सिलिया कहा जाता है, इसलिए अधिकांश वायुजनित संक्रामक जीवों के कारण कभी भी कोई रोग नहीं होता।
शरीर की सतहें न केवल बाह्य भाग को आंतरिक भाग से अलग करती हैं बल्कि ये संरचनाओं और पदार्थों को भी उनके उपयुक्त स्थान पर रखती है ताकि वे उचित रूप से कार्य कर सकें। उदाहरण के लिए, अंदरुनी अंग रक्त के पूल में तैरते हुए नहीं होते हैं क्योंकि रक्त सामान्यतौर पर रक्त वाहिकाओं के अंदर ही रहता है। यदि रक्त इन वाहिकाओं से रिस कर शरीर के अन्य भागों में बहने लगता है (हैमरेज), तो यह न केवल ऊतकों तक ऑक्सीजन और पोषक तत्वों को ले जाने में विफल होता है बल्कि इसके कारण गंभीर क्षति भी हो सकती है। उदाहरण के लिए, मस्तिष्क में थोड़ी सी मात्रा में रक्तस्राव होने से मस्तिष्क का ऊतक नष्ट हो सकता है क्योंकि कपाल में फैलाव के लिए कोई जगह ही नहीं होती। दूसरी ओर, पेट में उतनी ही मात्रा में रक्त के रिसने से कोई ऊतक नष्ट नहीं होता क्योंकि पेट में फैलाव के लिए जगह होती है।
लार, जिसका मुंह में होना बहुत ज़रूरी होता है, यदि श्वास के साथ फेफड़ों में चली जाती है तो गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है क्योंकि लार में बैक्टीरिया होते हैं जिनसे फेफड़े में एब्सेस बन सकता है। पेट द्वारा उत्पादित हाइड्रोक्लोरिक एसिड से शरीर को कभी-कभार ही कोई नुकसान पहुंचता है। हालांकि, यह अम्ल यदि उल्टी दिशा में प्रवाहित होता है तो यह इसोफ़ेगस को जला सकता है या क्षतिग्रस्त कर सकता है तथा यदि यह पेट की भित्ति से बाहर रिसने लगता है तो इससे अन्य अंगों को क्षति पहुंच सकती है। मल, आहार का अपचित भाग जो गुदा के रास्ते से बाहर निकलता है, यदि इसका स्राव उदर गुहा में होने लगता है तो इससे प्राणघातक संक्रमण हो सकते हैं, यह स्राव आंत की भित्ति में छिद्र होने के कारण हो सकता है।