डेलूज़नल पैरासाइटोसिस, शरीर में परजीवियों से ग्रस्त हो जाने की ग़लतफ़हमी को कहते हैं।
डेलूज़नल पैरासाइटोसिस से ग्रस्त लोगों को यह अटल किंतु झूठा विश्वास होता है कि उन पर कीड़ों, कृमियों, कुटकियों, जूं, पिस्सुओं या अन्य जीवों ने आक्रमण कर दिया है। कुछ लोगों को यह विश्वास भी होता है कि परजीवियों ने उनके घर, आस-पास के स्थानों और कपड़ों पर भी आक्रमण कर दिया है। वे अक्सर इस बारे में पूरी जानकारी के साथ बताते हैं कि कैसे वे जीव उनकी त्वचा और शरीर के अन्य छिद्रों से उनके शरीर में प्रवेश करते हैं और यहाँ-वहाँ विचरते हैं।
खुजली, रेंगने, और जलन या परेशानी की संवेदनाएँ उनके लिए बेहद असली होती हैं। ख़ुद को इन संवेदनाओं से छुटकारा दिलाने की कोशिश में लोग अपनी त्वचा को इतना खुरचते, नोचते या नुक़सान पहुँचाते हैं कि वहाँ घाव या छाले हो जाते हैं। इसके बाद, ऐसे घाव कभी-कभी संक्रमित हो जाते हैं। अन्य लोग अपनी त्वचा पर तरह-तरह के रसायन और/या विसंक्रामक उत्पाद लगाते हैं। ऐसे रसायन त्वचा में खुजली व जलन अथवा एलर्जिक प्रतिक्रिया कर सकते हैं।
लोग पर्याक्रमण को सच्चा साबित करने के लिए, अपने बालों व त्वचा के नमूने और सूखी पपड़ियाँ या खुरंट, धूल, और कपड़ों के रेशे वैगरह जैसी चीज़ें अपने डॉक्टरों के पास ले जाते हैं। लोग नमूनों को माइक्रोस्कोप की स्लाइड पर रखकर या उन्हें किसी कंटेनर में लेकर आ सकते हैं। डेलूज़नल पैरासाइटोसिस अधिकतर 50 वर्ष से अधिक आयु के लोगों और महिलाओं को प्रभावित करता है, लेकिन यह बहुत ही कम मामलों में होता है।
डेलूज़नल पैरासाइटोसिस से ग्रस्त कुछ लोगों में एक ऐसा विकार हो सकता है जिसके कारण वे अपने स्वास्थ्य के बारे में बहुत अधिक चिंता करते हैं (रुग्णता दुश्चिंता विकार/इलनेस एंग्ज़ायटी डिसॉर्डर, जिसे पहले हायपोकॉन्ड्रायसिस कहते थे) या हो सकता है कि उन्हें मीडिया से किसी परजीवी विकार (जैसे, स्कैबीज़) की जानकारी हुई हो या वे उससे संक्रमित किसी व्यक्ति के संपर्क में आए हों। डिलुज़नल पैरासाइटोसिस से ग्रस्त कुछ लोगों को कोई मानसिक विकार भी होता है, जैसे सीज़ोफ़्रेनिया, डिप्रेशन, चिंता या ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर, लेकिन ज़्यादातर लोगों को ऐसा कोई विकार नहीं होता है। कुछ नशीली दवाओं (जैसे कोकेन या मेथमफ़ेटमीन) की लत लगने या लंबे समय तक अल्कोहल का सेवन करने के बाद, उसे छोड़ने से भी डिलुज़नल पैरासाइटोसिस हो सकता है (देखें लक्षण/डेलिरियम ट्रेमेंस...)।
डेलूज़नल पैरासाइटोसिस का निदान
एक डॉक्टर का मूल्यांकन
डॉक्टरों के लिए डेलूज़नल पैरासाइटोसिस का निदान करना कभी-कभी कठिन होता है, क्योंकि त्वचा के वास्तविक विकारों, जैसे एलर्जियों, डर्माटाईटिस या असली परजीवियों से भी खुजली की संवेदनाएँ हो सकती हैं। साथ ही, व्यक्ति द्वारा खुरचने और रसायनों का उपयोग करने से, त्वचा पर हुए घाव या खुजली व जलन भी त्वचा के अन्य विकारों जैसे दिख सकते हैं।
डॉक्टर इसका निदान शारीरिक जाँच और व्यक्ति के इतिहास, जिसमें नशीली दवाइयों का उपयोग या मानसिक विकारों का इतिहास शामिल होता है, के आधार पर लगाते हैं। डॉक्टर असली संक्रमणों और अन्य रोगों की संभावना ख़ारिज करने के लिए, त्वचा की खुरचनों की जांच और कभी-कभी ब्लड टेस्ट भी कर सकते हैं। अगर असली संक्रमण की संभावना ख़ारिज हो गई हो, तो मानसिक स्वास्थ्य संबंधी रोगों में विशेषज्ञता रखने वाले डॉक्टर (साइकियाट्रिस्ट) द्वारा जाँच से यह तय करने में मदद मिल सकती है कि डिलुज़नल पैरासाइटोसिस किसी मानसिक विकार का भाग है या नहीं।
डेलूज़नल पैरासाइटोसिस का उपचार
मनोरोग-विज्ञान थेरेपी
कभी-कभी दवाएं
डेलूज़नल पैरासाइटोसिस का उपचार, त्वचा विकारों के विशेषज्ञ डॉक्टर (जिन्हें डर्मेटोलॉजिस्ट कहते हैं) और साइकियाट्रिस्ट के आपसी तालमेल द्वारा सबसे सही तरीके से होता है। कोई वास्तविक परजीवी मौजूद न हों, यह सुनिश्चित करने के लिए डर्मेटोलॉजिस्ट विस्तृत मूल्यांकन करते हैं। इसके बाद, व्यक्ति को साइकियाट्रिस्ट के पास भेजा जाता है, ताकि उसके भ्रम का उपचार किया जा सके।
एंटीसाइकोटिक दवाएँ, जैसे रिस्पेरिडोन और हैलोपेरिडोल, जो आम तौर पर किसी साइकियाट्रिस्ट द्वारा लिखी जाती हैं, इसमें बहुत प्रभावी साबित हो सकती हैं। हालांकि, लोग अक्सर मनोरोग-विज्ञान की मदद लेने से मना कर देते हैं और उनके काल्पनिक परजीवियों का सफ़ाया करने वाले उपचार की बेमतलब तलाश में एक-के-बाद-एक डॉक्टरों के चक्कर काटते रहते हैं।
जिन लोगों में ऑब्सेसिव कंपल्सिव विकार के लक्षण होते हैं, उन्हें सिलेक्टिव सेरोटोनिन रिअपटेक इन्हिबिटर (SSRI) नाम के एक प्रकार के एंटीडिप्रेसेंट से लाभ मिल सकता है।