क्यूटेनियस मायायसिस

इनके द्वाराJames G. H. Dinulos, MD, Geisel School of Medicine at Dartmouth
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्तू॰ २०२३

क्यूटेनियस मायायसिस त्वचा का एक परजीवी संक्रमण है, जो मक्खी की कुछ प्रजातियों की इल्लियों (मैगट) से होता है।

    परजीवी ऐसे जीव होते हैं जो किसी अन्य जीव (पोषक) पर या उसके अंदर रहते हैं और जीवित रहने हेतु पोषण पाने के लिए पोषक पर निर्भर होते हैं। मक्खी की कुछ प्रजातियाँ दूसरे कीड़ों पर या लोगों की त्वचा के संपर्क में आने वाली दूसरी चीज़ों पर अंडे देती हैं। कुछ मक्खियाँ अपने अंडे किसी घाव या छाले में या उसके पास देती हैं। अंडे फूटने पर उनसे इल्लियाँ निकलती हैं, जो परजीवी होती हैं और त्वचा में बिल बना सकती हैं।

    मक्खियों के लार्वा त्वचा में मुख्य रूप से 3 प्रकार के संक्रमण उत्पन्न करते हैं:

    • फ़्यूरंकुलर (मुंहासे जैसा या फुंसी जैसा) मायायसिस

    • वुंड मायायसिस

    • माइग्रेटरी मायायसिस

    एक मैगट (इल्ली)
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    © स्प्रिंगर सायन्स + बिज़नेस मीडिया

    मक्खी की प्रजाति के आधार पर, विकार अलग-अलग होते हैं। ये संक्रमण आम तौर पर गर्म जलवायु वाले देशों में होते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में मायायसिस से ग्रस्त होने वाले लोग आम तौर पर, हाल ही में किसी गर्म जलवायु वाले देश से आए या वहाँ की यात्रा करके आए होते हैं।

    फ़्यूरंकुलर मायायसिस

    फ़्यूरंकुलर मायायसिस करने वाली कई मक्खियों को आम तौर पर, बॉट फ़्लाई कहा जाता है। फ़्यूरंकुलर मायायसिस की कारक मक्खियों की सबसे जानी-मानी प्रजातियाँ दक्षिणी और मध्य अमेरिका तथा अधो-सहारा व उष्णकटिबंधीय अफ़्रीका से आती हैं। अन्य प्रजातियाँ उत्तरी अमेरिका, यूरोप, और पाकिस्तान से आती हैं। बहुत सी मक्खियाँ मनुष्यों पर अंडे नहीं देती हैं। बल्कि, वे अन्य कीड़ों (जैसे मच्छरों) या अन्य वस्तुओं (जैसे सूखते कपड़ों) पर अंडे देती हैं, जो लोगों की त्वचा के संपर्क में आ सकते हैं।

    अंडों के फूटने पर इल्लियाँ निकलती हैं, जो त्वचा में बिल बना लेती हैं और विकसित होकर परिपक्व इल्लियाँ बन जाती हैं। परिपक्व इल्लियों की लंबाई ½ से 1 इंच (लगभग 1.3 से 2.5 सेंटीमीटर) तक होती है, जो प्रजाति पर निर्भर है। यदि लोग उपचार न कराएँ, तो इल्लियाँ त्वचा भेदकर बाहर निकलती हैं, ज़मीन पर गिर जाती हैं, और वहाँ से अपना जीवन चक्र जारी रखती हैं।

    फ़्यूरंकुलर मायायसिस के आम लक्षणों में खुजली, कुछ चलने का एहसास, और कभी-कभी तेज़ और चुभता दर्द होना शामिल है। शुरुआत में, लोगों को एक छोटा-सा लाल उभार दिखता है, जो देखने में किसी कीड़े के काटने का आम निशान या किसी मुंहासे (फ़्यूरंकल) की शुरुआत जैसा हो सकता है। बाद में, उभार बड़ा हो जाता है और बीच में एक छोटा-सा छेद दिखने लग सकता है। छेद से पारदर्शी, पीला तरल रिस सकता है, और कभी-कभी इल्ली के सिरे का छोटा-सा हिस्सा भी दिखता है।

    इनके इलाज की कई अलग-अलग तरकीबें हैं, जो विशिष्ट उपायों की एक्सेस और उपलब्धता के आधार पर अलग-अलग हो सकती हैं। चूंकि इल्लियों को ऑक्सीजन चाहिए होती है, इसलिए त्वचा के छेद को बंद कर देने से, उन्हें बाहर आने पर या सतह के समीप आने पर मज़बूर किया जा सकता है। जब वे सतह के समीप होती हैं, तो उन्हें खींचकर बाहर निकालना आसान होता है। त्वचा के छेद को बंद करने के लिए, कुछ लोग पेट्रोलियम जेली, नेल पॉलिश या यहाँ तक कि सूअर का मांस या तंबाकू का पेस्ट तक लगाते हैं। निकाले जाने से पहले, मर चुकी इल्लियों को बाहर निकालना कठिन होता है और उनसे अक्सर बहुत तेज़ शोथकारी प्रतिक्रिया होती है।

    कभी-कभी डॉक्टर त्वचा में सुन्न करने वाली दवा का इंजेक्शन लगाकर, एक छोटा-सा चीरा लगाते हैं और चिमटी की मदद से इल्ली को बाहर खींच निकालते हैं। मुँह से दी जाने वाली या त्वचा पर लगाई जाने वाली आइवरमेक्टिन भी लार्वा को मार सकती है या उसे त्वचा से बाहर निकाल सकती है।

    वुंड मायायसिस

    खुले घावों में और ख़ास तौर पर बेघर लोगों, अल्कोहल की लत के विकार से पीड़ित लोगों और गंदी जगहों पर रहने वाले लोगों के घावों में मक्खी के लार्वा का संक्रमण उत्पन्न हो सकता है। मुंह, नाक या आंखों की भीतरी त्वचा निर्मित करने वाले ऊतक (म्यूकोसा) भी संक्रमित हो सकते हैं। सबसे आम मक्खियाँ हरी या काली ब्लोफ़्लाई होती हैं। आम घरेलू मक्खियों की इल्लियों (मैगट) के विपरीत, वुंड मायायसिस की कारक अधिकतर इल्लियाँ स्वस्थ और मृत, दोनों प्रकार के ऊतकों पर हमला करती हैं।

    डॉक्टर घावों की धुलाई करके और इल्लियों को खींचकर बाहर निकालते हैं। जो ऊतक मृत हो चुका है, डॉक्टर उसे काटकर निकाल भी सकते हैं।

    वुंड मायायसिस
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    इस फोटो में एक खुले घाव के बगल में मौजूद मैगट देखा जा सकता है।
    © स्प्रिंगर सायन्स + बिज़नेस मीडिया

    माइग्रेटरी मायायसिस

    इसका सबसे आम स्रोत वे मक्खियाँ हैं जो आम तौर पर, घोड़ों और मवेशियों को संक्रमित करती हैं। यदि लोग संक्रमित पशुओं के संपर्क में आएँ, तो वे भी संक्रमित हो सकते हैं। कम ही मामलों में, मक्खियाँ सीधे लोगों के शरीर पर अंडे देती हैं। लार्वा एक स्थान पर नहीं ठहरते हैं। वे त्वचा के नीचे सूराख बनाते हैं, जिससे खुजलीदार घाव हो जाते हैं, जिन्हें ग़लती से क्यूटेनियस लार्वा माइग्रेंस समझा जा सकता है।

    माइग्रेटरी मायायसिस का उपचार फ़्यूरंक्यूलर मायायसिस के समान होता है।

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