सुधारात्मक लेंस

इनके द्वाराDeepinder K. Dhaliwal, MD, L.Ac, University of Pittsburgh School of Medicine
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया फ़र॰ २०२४

अपवर्तक त्रुटियों को फ्रेम में चढ़ाए गए काँच या प्लास्टिक के लेंसों (चश्मे) या कोर्निया पर तैरने या स्थिर रहने वाले प्लास्टिक से बने छोटे से लेंस (कॉंटैक्ट लेंस) से सुधारा जा सकता है। चश्मों या कॉंटैक्ट लेंसों से दृष्टि में अच्छा सुधार लाना संभव है। अधिकांश लोगों के लिए, पसंद दिखावट, सुविधा, लागत, जोखिम, और आराम पर निर्भर होती है।

लो-विज़न उपादान क्या होते हैं?

केवल आंशिक दृष्टि वाले लोगों के लिए दृष्टि की हानि का सामना करने वाले उपदान (जिन्हें लो-विज़न उपादान कहते हैं) बहुत उपयोगी हो सकते हैं। पढ़ने, लिखने, टेलीविजन देखने, और आउटडोर गतिविधियों में शामिल होने के लो-विज़न उपादानों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बड़े अक्षरों वाली किताबें

  • बड़ी संख्याओं वाले टेलीफोन, घड़ियाँ, और थर्मामीटर

  • वस्तुओं को बड़ा करने के लिए क्लोज्ड-सर्किट टेलीविजन

  • इलेक्ट्रॉनिक “बोलने वाली” घड़ियाँ और अन्य “बोलने वाले” उपकरण

  • कंप्यूटर प्रोग्राम जो टेक्स्ट को स्कैन कर सकते हैं और फिर बड़ा टेक्स्ट उत्पन्न करते हैं या टेक्स्ट को पढ़कर सुनाते हैं

  • कॉंट्रास्ट सुधारने के लिए प्रकाश फिल्टर

  • कलर-कोडेड गोलियों के बॉक्स

  • हैंड-हेल्ड आवर्धक लेंस

  • चमक कम करने वाले धूप के चश्मे

  • हैंडहेल्ड दूरबीन

अन्य स्वास्थ्य सेवा चिकित्सकों के साथ काम करने वाले आँख के डॉक्टर आम तौर से मूल्यांकन कर सकते हैं कि दृष्टि की हानि व्यक्ति को किस तरह से प्रभावित कर रही है। फिर वे लो-विज़न उपादानों के एक संयोजन की अनुशंसा कर सकते हैं जो उनके अनुसार दैनिक कार्य करने में व्यक्ति की सबसे अच्छी मदद कर सकते हैं।

चश्मे

चश्मों के लेंस प्लास्टिक या काँच से बनाए जा सकते हैं।

चश्मों के लिए प्लास्टिक लेंस हल्के होते हैं लेकिन उन पर खरोंच पड़ने की अधिक संभावना होती है। इन लेंसों का काँच से अधिक आम रूप से उपयोग किया जाता है क्योंकि वे अधिक पतले होते हैं और उन्हें एक पदार्थ से लेपित किया जा सकता है जो उन्हें खरोंच-प्रतिरोधक बनाता है।

चश्मों के लिए काँच के लेंस अधिक टिकाऊ होते हैं और उन पर खरोंच आने की कम संभावना होती है लेकिन उनके टूटने की अधिक संभावना होती है, जिससे चोट लग सकती है।

काँच और प्लास्टिक दोनों तरह के लेंस रंगीन हो सकते हैं उन पर एक रसायन लगाता जा सकता है जो उन्हें प्रकाश के संपर्क में आने पर अपने आप गहरा बना देता है। लेंसों को आँख में पहुँचने वाले संभावित रूप से नुकसानदेह अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश की मात्रा को कम करने के लिए लेपित भी किया जा सकता है।

नए प्लास्टिक लेंस (पॉलीकार्बोनेट या यूरीथेन पर आधारित पॉलीमर से बने) अल्ट्रावॉयलेट प्रकाश को पूरी तरह से अवरुद्द करते हैं, आसानी से नहीं टूटते हैं, और उन्हें खरोंच-अवरोधक पदार्थ से लेपित भी किया जा सकता है।

बाइफोकल्स ऐसे चश्मे होते हैं जिनमें 2 लेंस होते हैं––एक ऊपरी लेंस जो दूर की वस्तुओं के दृश्य को सही करता है और एक निचला लेंस जो करीब की वस्तुओं, जैसे कि पठन सामग्री, के दृश्य को सुधारता है। हालांकि, लोगों को बीच की दूरियों, जैसे कि कंप्यूटर स्क्रीन को देखते समय, पर फोकस करने की जरूरत भी पड़ती है। ट्राइफोकल्स वे चश्में हैं जो इस जरूरत को पूरा करते हैं क्योंकि उनमें बीच की दूरी के लिए एक तीसरा लेंस होता है। लगातार परिवर्तनीय लेंस (प्रोग्रेसिव लेंस या नो-लाइन बाइफोकल लेंस) भी बीच की दूरियों पर फोकस करना संभव करते हैं और उनमें एक कॉस्मेटिक फायदा होता है कि चश्मे के विभिन्न लेंसों के बीच कोई रेखा या स्पष्ट विभाजन नहीं होता है।

कॉन्टैक्ट लेंस

कई लोगों को लगता है कि कॉंटैक्ट लेंस उन्हें अधिक सक्रिय बने रहने का अवसर देते हैं या उन्हें चश्मों पहनने वालों से अधिक आकर्षक बनाते हैं। कुछ लोगों को लगता है कि कॉंटैक्ट लेंस अधिक प्राकृतिक दृष्टि प्रदान करते हैं। हालांकि, कॉंटैक्ट लेंसों को चश्मों से अधिक देखभाल की जरूरत होती है, और, दुर्लभ रूप से, वे आँख को क्षति पहुँचा सकते हैं। कुछ लोगों को, खास तौर से कंपन वाले लोगों या संधिशोथ वाले लोगों को कॉंटैक्ट लेंसों को पकड़ने और अपनी आँखों में लगाने में कठिनाई हो सकती है।

कॉंटैक्ट लेंस चश्मों की तुलना में बेहतर परिधीय दृष्टि (दृष्टि के क्षेत्र की बाहरी सीमाएं) प्रदान करते हैं।

ऐसे कॉटैक्ट लेंस बनाए जा सकते हैं जो लेंस के विभिन्न भागों में विभिन्न दृष्टि संबंधी समस्याओं (जैसे कि दूर और नजदीक की दृष्टि) को सुधारते हैं। ये तथाकथित बाइफोकल या मल्टीफोकल कॉंटैक्ट लेंस हैं।

कॉंटैक्ट लेंस निम्नलिखित को सुधार सकते हैं

निकटदृष्टि दोष और दूरदृष्टि दोष को ठीक करने के लिए नर्म या सख्त (कड़े) कॉंटैक्ट लेंसों का उपयोग किया जाता है। नर्म टोरिक लेंस (जिनमें लेंस की सामने की सतह पर समायोजित की गई अलग-अलग वक्रताएं होती हैं) या सख्त कॉंटैक्ट लेंस एस्टिग्मेटिज्म में सुधार कर सकते हैं, लेकिन उन्हें विशेषज्ञों द्वारा लगाना जरूरी होता है।

प्रेसप्ब्योपिया को कॉंटैक्ट लेंसों से भी सुधारा जा सकता है। एक तरीके में, जिसे मोनोविज़न कहते हैं, एक आँख को पढ़ने के लिए और दूसरी को दूर की दृष्टि के लिए सही किया जाता है। हालांकि कुछ लोगों को मोनोविजन के साथ समायोजित होने में कठिनाई होती है। एक और तरीका है प्रत्येक आँख में बाइफोकल या मल्टीफोकल कॉंटैक्ट लेंस लगाना।

न तो सख्त और न ही नर्म कॉंटैक्ट लेंस आँखों को चपटी या नुकीली चीजों से चोट लगने से बचा सकते हैं जैसा कि चश्मे कर सकते हैं।

सख्त कॉंटैक्ट लेंस

सख्त कॉंटैक्ट लेंस, जिनमें से आम तौर से गैस आर-पार जा सकती है, कड़े प्लास्टिक से बने पतले डिस्क होते हैं। वे नर्म कॉंटैक्ट लेंसों से छोटे होते हैं और कोर्निया को केवल आंशिक रूप से ढकते हैं। पुरानी शैली के सख्त कॉंटैक्ट लेंसों के प्लास्टिक में से ऑक्सीजन, जो कोर्निया के ठीक काम करने के लिए जरूरी होती है, आसानी से नहीं गुजरती थी। आधुनिक गैस के गुजरने योग्य कॉंटैक्ट लैंस (जीपीसीएल [GPCL, gas-permeable contact lenses]), जो नए फ्लोरोसिलिकोन एक्राइलेट यौगिकों जैसे प्लास्टिक से बने होते हैं, अधिक ऑक्सीजन को कोर्निया तक पहुँचने का अवसर देते हैं। सख्त कॉंटैक्ट लेंसों का उपयोग निकटदृष्टि दोष, दूरदृष्टि दोष, और कोर्निया में अनियमितताओं (एस्टिग्मेटिज्म और केरैटोकोनस) को सही करने के लिए किया जा सकता है।

GPCL का निर्माण आँख पर सटीक ढंग से फिट होने के लिए किया जा सकता है। आँख को उनकी उपस्थिति से अनुकूलित होने में कुछ समय लगता है और लंबे समय के लिए सहज महसूस होने से पहले उन्हें लगभग 4 से 7 दिनों तक लगाने की जरूरत पड़ती है। कॉंटैक्ट लेंसों को हर रोज घंटों की क्रमिक रूप से बढ़ती संख्या के लिए लगाया जाता है। हालांकि, सख्त कॉंटैक्ट लेंस शुरू में असहज महसूस हो सकते हैं, उन्हें दर्द पैदा नहीं करना चाहिए। दर्द आम तौर से गलत फिट का संकेत होता है। GPCL लगाने वाले लोगों को कॉंटैक्ट लेंसों को निकालने के बाद चश्मा लगाने पर अस्थायी रूप (2 घंटे से कम) से धुंधला दिखता है। सख्त कॉंटैक्ट लेंसों के साथ दृष्टि आम तौर से नर्म कॉंटैक्ट लेंसों के साथ मिलने वाली दृष्टि से अधिक तीक्ष्ण होती है, जो खास तौर से एस्टिग्मेटिज्म वाले लोगों में देखा जाता है।

स्क्लेरल कॉन्टैक्ट लेंस

स्क्लेरल कॉन्टैक्ट लेंस कठोर गैस-पारगम्य सामग्री से बने होते हैं, साथ ही वे कॉर्निया के कॉन्टैक्ट लेंस से बड़े होते हैं। उन्हें स्क्लेरल कॉन्टैक्ट लेंस इसलिए कहा जाता है कि लेंस का परिधि वाला हिस्सा स्कलेरा (आँख का सफ़ेद हिस्सा) पर रहता है। ये लेंस ज़्यादा आरामदेह इसलिए होते हैं क्योंकि ये आँसू की एक मोटी फ़िल्म को आँख की सतह पर तैरने देते हैं। परिणामस्वरूप, जिन लोगों को आँख की सतह की गंभीर बीमारी होती है, वे भी आम तौर पर इन्हें आसानी से लगा सकते हैं।

क्योंकि स्क्लेरल कॉन्टैक्ट लेंस की हर एक जोड़ी कस्टम-निर्मित होती है, इसलिए उन्हें छोटे व्यास के पारंपरिक लेंस की तुलना में अनुकूलित करना आम तौर पर आसान होता है।

स्क्लेरल कॉन्टैक्ट लेंस अनियमित ऑस्टिगमेटिज़्म (उदाहरण के लिए, एडवांस्ड केराटोकोनस) की हाई डिग्री को ठीक कर सकते हैं।

नर्म कॉंटैक्ट लेंस

नर्म हाइड्रोफिलिक (जल-अवशोषक) कॉंटैक्ट लेंस लचीले प्लास्टिक से बने होते हैं और उनमें 30 से 79% पानी होता है। वे सख्त कॉंटैक्ट लेंसों से बड़े होते हैं और पूरी कोर्निया को ढकते हैं। नर्म कॉंटैक्ट लेंसों का उपयोग निकटदृष्टि दोष, दूरदृष्टि दोष, एस्टिग्मेटिज्म, और प्रेसब्योपिया को सही करने के लिए किया जा सकता है। सभी नर्म कॉंटैक्ट लेंस ऑक्सीजन को कोर्निया तक आसानी से पहुँचने नहीं देते हैं।

क्योंकि वे आकार में बड़े होते हैं, सख्त कॉंटैक्ट लेंसों की अपेक्षा नर्म कॉंटैक्ट लेंसों के गिरने या धूल या अन्य कणों के उनके नीचे फंसने की कम संभावना होती है। इसके अलावा, आम तौर से नर्म कॉंटैक्ट लेंस पहली बार पहनने के साथ ही आरामदेह होते हैं। नर्म कॉंटैक्ट लेंसों को समस्याओं की रोकथाम के लिए सतर्कतापूर्ण देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि सख्त कॉंटैक्ट लेंसों की तुलना में नर्म कॉंटैक्ट लेंसों से संक्रमण का अधिक जोखिम होता है। सूखे होने पर, नर्म कॉंटैक्ट लेंस भंगुर होते हैं और आसानी से टूट जाते हैं।

क्या आप जानते हैं...

  • सख्त कॉंटैक्ट लेंसों से ठीक की गई दृष्टि आम तौर से नर्म कॉंटैक्ट लेंसों से सही की गई दृष्टि से अधिक तीक्ष्ण होती है।

  • संक्रमण के जोखिम को कम करने का तरीका है कॉंटैक्ट लेंस लगा कर न सोना।

कॉंटैक्ट लेंसों की देखभाल और जटिलताएं

कॉंटैक्ट लेंसों को हर रोज सोने से पहले निकाल कर कॉंटैक्ट लेंसों को विसंक्रमित करने वाले घोल का उपयोग करके साफ करना चाहिए। नल के पानी का कभी भी उपयोग नहीं करना चाहिए, खास तौर से नर्म या गैस को आर-पार जाने देने वाले कॉंटैक्ट लेंसों को साफ करने के लिए। लेंसों को हाथ लगाने से पहले हाथों को साबुन और पानी से धोना चाहिए। प्रत्येक लेंस को अलग साफ किया जाता है। लेंस को एक हाथ की हथेली पर रखा जाता है, और ताज़ा घोल की कई बूंदें उस पर टपकाई जाती हैं। दूसरे हाथ की तर्जनी उंगली के सिरे का उपयोग करके लेंस को साफ किया जाता है, और लेंस की दोनों सतहों पर उंगली को सौम्यता के साथ आगे-पीछे घुमाया जाता है। फिर लेंस को धोने के लिए घोल की कई और बूंदों का उपयोग किया जाता है। साफ करने के बाद, सभी कॉंटैक्ट लेंसों को एक कॉंटैक्ट लेंस केस में ताज़ा विसंक्रामक घोल में रात भर रख कर विसंक्रमित करना चाहिए।

अगले दिन लेंसों को लगाने के बाद, विसंक्रामक घोल को लेंस के केस से निकाल देना चाहिए। फिर लेंस के केस को ताज़ा घोल से धोना चाहिए और किसी अलमारी या दराज में रख देना चाहिए और उन्हें हवा में रख कर सूखने देना चाहिए। केस को बाथरूम में सिंक के आसपास के काउंटर पर खुला नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि दांतों को ब्रश करने या टॉयलेट को फ्लश करने के बाद उड़ने वाली महीन बूंदों में सूक्ष्मजीवी हो सकते हैं और केस में बैठ सकते हैं तथा संक्रमण शुरू कर सकते हैं। लेंस के केस को हर 1 से 2 महीने में बदलना चाहिए।

कॉंटैक्ट लेंसों को अनुशंसित अवधि से अधिक समय तक या आँख की सहनशक्ति से अधिक देर तक लगाने से आँख में लालिमा, पानी आना, और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता हो सकती है (जिसे कॉंटैक्ट लेंस ओवरवियर सिंड्रोम या कॉंटैक्ट लेंस ओवरयूज़ सिंड्रोम कहते हैं)। लेंसों को निकालने के बाद, ये लक्षण एक-दो दिन में ठीक हो जाते हैं, लेकिन अधिक समय तक जारी रहने वाले लक्षण अधिक गंभीर संक्रमण का संकेत हो सकते हैं।

कुछ कॉंटैक्ट लेंसों को एक एंज़ाइम क्लीनर से साप्ताहिक सफाई की जरूरत पड़ सकती है। दैनिक डिस्पोजिबल कॉंटैक्ट लेंसो को एक दिन के उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है। कुछ नियमित या डिस्पोजेबल नर्म कॉंटैक्ट लेंस इस तरह से परिकल्पित होते हैं कि उन्हें कई दिनों तक नींद के दौरान आँख में रखा जा सकता है (एक्सटेंडेड वियर)। अधिकांश को 7 दिनों तक आँख में रखा जा सकता है, लेकिन ऐसे कुछ कॉंटैक्ट लेंस उपलब्ध हैं जिन्हें 30 दिनों तक लगाए रखा जा सकता है। हालांकि, जब कॉंटैक्ट लेंसों को रात के दौरान लगाया जाता है तो संक्रमण का जोखिम बहुत ज़्यादा होता है। इसलिए, सोने से पहले कॉंटैक्ट लेंसों को निकालना सबसे अच्छा होता है।

कॉंटैक्ट लेंस लगाने से कोर्निया पर अल्सरों सहित, गंभीर, दृष्टि के लिए खतरनाक, दर्दनाक जटिलताएं होने का जोखिम होता है। कोर्नियल अल्सर जीवाणुओं, वायरसों, कवकों, या अमीबा के कारण हो सकते हैं और दृष्टि को हानि पहुँचा सकते हैं। आँख के डॉक्टर के लेंस की देखभाल के निम्नलिखित निर्देशों का सख्ती से पालन करके जोखिमों को काफी कम किया जा सकता है।

गंभीर संक्रमणों का जोखिम तब बढ़ जाता है जब लोग अपने कॉंटैक्ट लेंस लगाकर तैराकी या स्नान करते हैं और अपने लेंसों को घर में बने नमक के घोल, थूक, नल के पानी, या डिस्टिल्ड पानी से साफ करते हैं। किसी भी तरह के कॉंटैक्ट लेंस लगाकर सोने से भी गंभीर संक्रमणों का जोखिम बढ़ जाता है। जब कोई व्यक्ति नर्म कॉंटैक्ट लेंस लगाकर सोता है तो हर रात संक्रमण का जोखिम बढ़ता रहता है। संक्रमण के जोखिम को कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कॉंटैक्ट लेंस लगाकर नहीं सोना, सही ढंग से विसंक्रमित करना, और कॉंटैक्ट लेंस को नल के पानी के संपर्क में नहीं लाना। यदि किसी व्यक्ति को आँख में तेज दर्द है, आँखों से बहुत पानी आ रहा है, प्रकाश के संपर्क में आने से दर्द होता है, दृष्टि में बदलाव आ रहे हैं, या आँखें लाल हो रही हैं, तो कॉंटैक्ट लेंसों को तत्काल निकाल देना चाहिए। यदि लक्षण जल्दी से ठीक नहीं होते हैं, तो व्यक्ति को आँख के डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

क्या आप जानते हैं...

  • कॉंटैक्ट लेंस को जब उसका इस्तेमाल कॉंटैक्ट लेंसों को रखने के लिए नहीं किया जा रहे हो तो किसी दराज या अलमारी में खुला छोड़ना चाहिए। खुले केस को बाथरूम में सिंक के आसपास के काउंटर पर नहीं रखना चाहिए क्योंकि दांतों को ब्रश करने या टॉयलेट को फ्लश करते समय उड़ने वाली महीन बूंदों में सूक्ष्मजीवी हो सकते हैं जो केस में बैठ सकते हैं तथा संक्रमण शुरू कर सकते हैं।

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