कोर्नियल अल्सर

इनके द्वाराMelvin I. Roat, MD, FACS, Sidney Kimmel Medical College at Thomas Jefferson University
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अग॰ २०२२ | संशोधित सित॰ २०२२

कोर्नियल अल्सर कोर्निया (परितारिका और पुतली के सामने स्थित पारदर्शी पर्त) पर होने वाला एक खुला छाला है जो आम तौर से आँख के संक्रमण के कारण होता है।

  • कॉंटैक्ट लेंस, चोटें, विकार, दवाइयाँ, और पोषण-संबंधी कमियाँ भी कोर्निया पर छाले (अल्सर) उत्पन्न कर सकती हैं।

  • आम लक्षणों में शामिल हैं पीड़ा होना, बाहरी वस्तु के होने का एहसास (पीड़ा और बाहरी वस्तु के होने का एहसास तीव्र हो सकता है), लालिमा, आँसू आना, और प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता।

  • डॉक्टर व्यक्ति की कोर्निया की दिखावट के आधार पर अल्सर का निदान करते हैं।

  • कभी-कभी एंटीबायोटिक, एंटीवायरल, या एंटीफंगल आई ड्रॉप्स जल्द से जल्द दी जाती है।

(हर्पीज़ सिम्प्लेक्स केराटाइटिस भी देखें।)

कोर्नियल अल्सर के कारण

बैक्टीरियल कोर्नियल अल्सर
विवरण छुपाओ
ऊपरी तस्वीर एक अपारदर्शी बैक्टीरियल कोर्नियल अल्सर (आम तौर से धूसर-सफेद, लेकिन इस तस्वीर में पीला है क्योंकि उसे फ्लोरेसीन डाई––काला तीर––से रंजित किया गया है) और कंजंक्टाइवा की लालिमा प्रदर्शित करती है। आँख के अंदर परितारिका के ठीक तल में मवाद की एक पर्त (नीला तीर) स्थित है। निचली तस्वीर 1 सप्ताह तक एंटीबायोटिक आई ड्रॉप्स डालने के बाद सुधार दर्शाती है।
छवियाँ सदीर हानुश, MD से साभार।

कोर्नियल अल्सर जीवाणुओं, कवक, वायरसों, या परजीवियों जैसे कि एकैंथाअमीबा (जो संदूषित पानी में रहता है) के संक्रमणों से हो सकते हैं। अल्सर कोर्निया की चोट से शुरू हो सकते हैं, जैसे कि गंभीर शुष्क आँखों, आँख में किसी बाहरी वस्तु की खरोंच, भेदने, या बैठ जाने से, या अक्सर आँख के किसी कॉंटैक्ट लेंस से क्षोभित होने, खास तौर से यदि कॉंटैक्ट लेंसों को नींद के दौरान पहने जाने या पर्याप्त रूप से विसंक्रमित नहीं करने से होता है (देखें देखरेख और जटिलताएं)। वायरल कोर्नियल अल्सर (अक्सर हर्पीज़ वायरस के कारण) शारीरिक तनाव से या सहज रूप से बार-बार हो सकते हैं। विटामिन A और प्रोटीन की कमी से कोर्नियल अल्सर बन सकता है। हालांकि, अमेरिका में ऐसे अल्सर दुर्लभ हैं।

जब पलके ठीक से बंद नहीं होती है, तो कोर्निया शुष्क और जलन-युक्त हो सकती है। इस प्रकार की जलन से चोट लग सकती है और कोर्नियल अल्सर विकसित हो सकता है। कोर्नियल अल्सर अंदर की ओर बढ़ने वाली बरौनियों (ट्राइकियासिस), अंदर की ओर मुड़ी हुई पलक (एंट्रोपियॉन), या पलक के शोथ (ब्लेफराइटिस) से भी हो सकते हैं।

कोर्नियल अल्सर के लक्षण

कोर्नियल अल्सर आँख में लालिमा, दर्द, आम तौर से बाहरी वस्तु के होने जैसा एहसास, पीड़ा, तेज रोशनी के प्रति संवेदनशीलता, और आँसुओं के उत्पादन में वृद्धि पैदा कर सकते हैं। अल्सर अक्सर कोर्निया पर एक सफेद या हल्के और धूसर धब्बे की तरह दिखता है। कभी-कभी, अल्सर पूरी कोर्निया पर विकसित हो जाते हैं और गहराई में जा सकते हैं। कोर्निया के पीछे मवाद जमा हो सकता है, जो कोर्निया के तल में सफेद पर्त की तरह दिखता है (जिसे हाइपोप्यॉन कहते हैं)। कंजंक्टाइवा आम तौर से रक्तरंजित होती है। अल्सर जितना अधिक होता है, लक्षण और जटिलताएं उतनी ही अधिक तीव्र होती हैं।

कोर्नियल अल्सर की जटिलताएं

कोर्नियल अल्सर उपचार से ठीक हो सकते हैं, लेकिन वे एक धुंधला निशान छोड़ सकते हैं जिससे दृष्टि क्षीण होती है।

अन्य जटिलताओं में शामिल हैं, गहराई में स्थित संक्रमण, कोर्निया में छेद होना, परितारिका का विस्थापन, और आँख के गड्ढे में अधिकांश या पूरे ऊतक का नष्ट होना।

कोर्नियल अल्सर का निदान

  • आँखों की जांच

  • कभी-कभी कल्चर

डॉक्टर अल्सर का मूल्यांकन करने के लिए स्लिट लैंप (एक उपकरण जो डॉक्टर को उच्च आवर्धन के साथ आँख की जाँच करने योग्य बनाता है) का उपयोग करते हैं। अल्सर को स्पष्ट देखने के लिए, डॉक्टर फ्लोरेसीन नामक एक पीली-हरी डाई से युक्त आई ड्रॉप्स डाल सकते हैं। फ्लोरेसीन कोर्निया के क्षतिग्रस्त इलाकों को अस्थायी रूप से रंजित करती है, जिससे डॉक्टर कोर्निया के अन्यथा अदृश्य रहने वाले क्षतिग्रस्त इलाकों को देख सकते हैं।

कुछ परिस्थितियों में, डॉक्टर बड़े अल्सरों की सतह को नमूना लेने के लिए खुरचते हैं। फिर नमूने को संक्रमण पैदा करने वाले जीवाणु, कवक, वायरस, या प्रोटोज़ोआ की पहचान करने के लिए प्रयोगशाला में उगाया जाता (कल्चर) है। रोगाणु की पहचान होने के बाद, डॉक्टर संक्रमण से लड़ने के लिए सर्वोत्तम दवाई का चुनाव करते हैं।

कोर्नियल अल्सर का उपचार

  • एंटीबायोटिक, एंटीवायरल, या एंटीफंगल आई ड्रॉप्स

  • आँख को फैलाने वाली ड्रॉप्स

  • कभी-कभी कोर्निया का ट्रांसप्लांटेशन

कोर्नियल अल्सर एक इमरजेंसी है जिसका तत्काल उपचार करना चाहिए।

एंटीबायोटिक, एंटीवायरल, या एंटीफंगल आई ड्रॉप्स की आम तौर से तत्काल जरूरत पड़ती है और बार-बार, कभी-कभी तो कई दिनों तक चौबीसों घंटे और हर घंटे में एक बार डालनी चाहिए।

आँख को चौड़ा करने वाली आई ड्रॉप्स जैसे कि अट्रोपीन या स्कोपोलामीन, दर्द और जटिलताओं की संभावना को कम करने में मदद कर सकती हैं।

कभी-कभी कोर्नियल ट्रांसप्लांटेशन (केरैटोप्लास्टी) की जरूरत पड़ती है।