इंपटाइगो ऊपरी त्वचा का संक्रमण होता है, जिससे त्वचा पर खुजली जैसे पीले पपड़ीदार घाव बन जाते हैं और कभी-कभी पीले फ़्लूड से भरे छोटे-छोटे फफोले पड़ जाते हैं। यह स्टेफ़ाइलोकोकस ऑरियस, स्ट्रेप्टोकोकस पायोजीन्स या दोनों से होता है। एक्थिमा, इंपटाइगो का एक रूप है जिसके कारण त्वचा में और अधिक गहराई में घाव हो जाते हैं।
(त्वचा के जीवाणु संक्रमणों का विवरण भी देखें।)
इंपटाइगो आम है। यह अधिकतर बच्चों को प्रभावित करता है। इंपटाइगो शरीर पर कहीं भी हो सकता है पर यह अधिकतर चेहरे, बांहों और पैरों पर होता है।
इंपटाइगो के एक रूप में अलग-अलग साइज़ के फफोले हो जाते हैं (बूलस इंपटाइगो) और वह कई दिनों से कई सप्ताह तक रह सकता है।
इंपटाइगो अक्सर सामान्य त्वचा को प्रभावित करता है, लेकिन यह ऐसी किसी चोट या स्थिति के बाद भी हो सकता है जिसके कारण त्वचा में कोई दरार बनी हो, जैसे कोई फ़ंगल संक्रमण, धूप से झुलसना या किसी कीड़े का काटना। खराब साफ़-सफ़ाई और नम वातावरण भी इसके जोखिम कारक हैं। कुछ लोगों की नाक में स्टेफिलोकोकी या स्ट्रेप्टोकोकी बैक्टीरिया का निवास होता है जो संक्रमण पैदा नहीं करते हैं। उन्हें नास्य वाहक कहा जाता है। वाहक ऐसे लोग होते हैं जिनमें बैक्टीरिया होता तो है पर बैक्टीरिया से होने वाले कोई भी लक्षण उनमें नहीं होते हैं। वाहक बैक्टीरिया को अपने हाथों द्वारा अपनी नाक से शरीर के अन्य भागों तक पहुंचा सकते हैं, जिससे कभी-कभी बार-बार संक्रमण होते हैं या संक्रमण दूसरों तक फैल जाता है।
इंपटाइगो बहुत संसर्गज होता है—व्यक्ति की अपनी त्वचा के अन्य स्थानों तक भी और अन्य लोगों तक भी।
इंपटाइगो और एक्थिमा के लक्षण
इंपटाइगो और एक्थिमा में खुजली और थोड़ा दर्द होता है। खुजली के कारण अक्सर व्यक्ति बहुत अधिक खुजाता है, विशेष रूप से बच्चे बहुत अधिक खुजाते हैं, जिससे संक्रमण और फैलता है।
इंपटाइगो में आम तौर पर नन्हे फफोलों के गुच्छे बनते हैं जो फट जाते हैं और घावों (अल्सर) के ऊपर शहद जैसे रंग के परत बन जाते हैं।
बूलस इंपटाइगो भी ऐसा ही होता है, बस इतना अंतर है कि इसमें घाव तेज़ी से बड़े होकर विशाल फफोलों का रूप ले लेते हैं। ये छोटे फफोले बड़े फ़ोड़ों में बदलने से पहले लाल चकत्ते की तरह दिखाई दे सकते हैं। फिर ये फूट जाते हैं और त्वचा का अंदरूनी हिस्सा दिखने लगता है, जो बाद में शहद के रंग की परत से ढँक जाता है।
इम्पेटिगो में, घावों के समूह फट जाते हैं और शहद के रंग की पपड़ी विकसित हो जाती है।
चित्र थॉमस हबिफ, MD के सौजन्य से।
इम्पेटिगो वाले इस बच्चे में पपड़ीदार, पीले-धंसे हुए घावों के समूह हैं।
डॉ. पी. मराज़ी/SCIENCE PHOTO LIBRARY
इस फोटो में एक नवजात शिशु के पेट पर बूलस इंपटाइगो देखा जा सकता है। इस संक्रमण की शुरुआत एक लाल चकत्ते के रूप में होती है, जो छोटे-छोटे, मवाद से भरे धब्बों में बदल जाता है, वे आपस में जुड़ जाते हैं और पीले फफोलों (बुली) का रूप ले लेते हैं जो फटकर खुल जाते हैं और उन पर परत बन जाती है।
SCIENCE PHOTO LIBRARY
एक्थिमा एक तरह का इंपटाइगो होता है। इसमें छोटे-छोटे और कम गहरे घाव बनते हैं, जो उभरे हुए दिखाई देते हैं और कभी-कभी उनमें मवाद भरा होता है। घावों को ढकने वाले पपड़ी की परत, इंपटाइगो में बनने वाली पपड़ी से मोटी होती है। वह कत्थई-काले रंग का होता है। घावों के आस-पास का स्थान आम तौर पर बैंगनी लाल और सूजा हुआ होता है।
इंपटाइगो और एक्थिमा का निदान
एक डॉक्टर का मूल्यांकन
डॉक्टर इंपटाइगो और एक्थिमा की दिखावट के आधार पर उनका परीक्षण करते हैं।
जिन लोगों में बार-बार संक्रमण होते हैं, उनकी नाक से स्वैब लेकर लैबोरेटरी को भेजा जाता है, ताकि पता लगाया जा सके कि वे स्टेफिलोकोकी या स्ट्रेप्टोकोकी के नास्य वाहक हैं या नहीं।
इंपटाइगो और एक्थिमा का इलाज
एंटीबायोटिक ऑइंटमेंट या क्रीम
कभी-कभी एंटीबायोटिक गोलियां
संक्रमित स्थान को दिन में कई बार हल्के हाथों से साबुन व पानी से धोना चाहिए, ताकि जो परत बन गए हों वे हट जाएं।
इंपटाइगो के छोटे स्थानों का इलाज सीधे त्वचा पर लगाए जाने वाले (टॉपिकल) एंटीबायोटिक ऑइंटमेंट या क्रीम से किया जाता है। अगर बड़े स्थान प्रभावित हुए हों या टॉपिकल एंटीबायोटिक्स से लाभ न हो, तो मुंह से ली जाने वाली एंटीबायोटिक्स की ज़रूरत पड़ सकती है।
एक्थिमा का इलाज आम तौर पर मुंह से ली जाने वाली एंटीबायोटिक्स से किया जाता है।
जिन लोगों को ये नाक में होते हैं, उनका इलाज उनकी नाक में टॉपिकल एंटीबायोटिक्स लगाकर किया जाता है।