डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार

इनके द्वाराDavid Spiegel, MD, Stanford University School of Medicine
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया मई २०२३

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार में व्यक्ति को अपने शरीर या मानसिक प्रक्रियाओं से विलग होने की स्थायी या आवर्ती अनुभूति होती है, मानो वह किसी के जीवन का बाहर से प्रेक्षण कर रहा हो (डीपर्सनलाइज़ेशन), और/या अपने आस-पास की चीज़़ों से विलग होने की स्थायी या आवर्ती अनुभूति (डीरियलाइज़ेशन) होती है।

  • यह विकार आम तौर से गंभीर तनाव, खास तौर से बचपन में भावनात्मक दुर्व्यवहार या उपेक्षा, या अन्य प्रमुख तनावों से (जैसे शारीरिक दुर्व्यवहार महसूस करना या देखना) से ट्रिगर होता है।

  • स्वयं से या आस-पास की चीज़़ों से विलगता कभी-कभार या निरंतर रूप से हो सकती है।

  • अन्य संभव कारणों के लिए परीक्षण कर लेने के बाद, डॉक्टर लक्षणों के आधार पर इस विकार का निदान करते हैं।

  • मनश्चिकित्सा, खास तौर से संज्ञानात्मक-व्यवहार-संबंधी थैरेपी, अक्सर उपयोगी होती है।

(वियोजी विकारों का संक्षिप्त वर्णन भी देखें।)

डीपर्सनलाइज़ेशन और डीरियलाइज़ेशन की अस्थायी अनुभूतियाँ आम हैं। लगभग आधे लोगों को कभी न कभी स्वयं से (डीपर्सनलाइज़ेशन) या आस-पास की चीज़़ों से (डीरियलाइज़ेशन) विलग होने की अनुभूति होती है। यह अनुभूति लोगों को निम्नलिखित के बाद होती है

डीपर्सनलाइज़ेशन या डीरियलाइज़ेशन कई अन्य मानसिक स्वास्थ्य विकारों के साथ-साथ सामान्य चिकित्सीय विकारों, जैसे सीज़र के विकारों के एक लक्षण के रूप में भी हो सकते हैं।

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन की भावनाओं को तब एक विकार माना जाता है जब निम्नलिखित चीज़़ें होती हैं:

  • डीपर्सनलाइज़ेशन और डीरियलाइज़ेशन अपने आप होता है (यानी दवाओं या किसी अन्य मानसिक स्वास्थ्य विकार के कारण नहीं होता है), और लगातार बना रहता है या बार-बार होता है।

  • लक्षणों के कारण व्यक्ति को बहुत परेशानी होती है या उसके लिए घर पर या कार्यस्थल में काम करना कठिन हो जाता है।

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार लगभग 2% आबादी में होता है और पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करता है।

यह विकार बचपन के आरंभ या मध्य में शुरू हो सकता है। यह दुर्लभ रूप से ही 40 की आयु के बाद होता है।

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार के कारण

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार अक्सर उन लोगों में होता है जिन्होंने गंभीर तनाव का अनुभव किया है, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • बचपन के दौरान भावनात्मक दुर्व्यवहार या उपेक्षा

  • शारीरिक दुर्व्यवहार

  • घरेलू हिंसा का अनुभव करना या उसका साक्षी होना

  • माता या पिता का गंभीर रूप से क्षीण या मानसिक रूप से बीमार होना

  • किसी प्रियजन की अनपेक्षित मृत्यु

लक्षण गंभीर तनाव (जैसे, रिश्तों, पैसों या काम से संबंधित), डिप्रेशन, चिंता या मनोरंजक दवाओं के उपयोग से ट्रिगर हो सकते हैं। हालाँकि, 25 से 50% मामलों में तनाव मामूली होते हैं या पहचाने नहीं जाते हैं।

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार के लक्षण

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार के लक्षण धीरे-धीरे या अचानक शुरू हो सकते हैं। प्रकरण केवल कुछ घंटों तक या दिनों तक या कई सप्ताहों, महीनों, और वर्षों तक बने रह सकते हैं। प्रकरणों में डीपर्सनलाइज़ेशन, डीरियलाइज़ेशन या दोनों शामिल हो सकते हैं।

लक्षणों की तीव्रता अक्सर कम-अधिक होती रहती है। लेकिन जब विकार गंभीर होता है, तो लक्षण मौजूद रह सकते हैं और कई वर्षों या दशकों तक समान तीव्रता पर बने रहते हैं।

डीपर्सनलाइज़ेशन के लक्षणों में शामिल हैं

  • शरीर, मन, भावनाओं, और/या संवेदनाओं से विलग महसूस करना

लोग यह भी कह सकते हैं कि वे अपने कार्यों या बोलचाल पर किसी भी नियंत्रण के बगैर, अवास्तविक या स्वचालित वस्तु की तरह महसूस करते हैं। वे भावनात्मक या शारीरिक रूप से सुन्न महसूस कर सकते हैं। ऐसे लोग अपने आपको अपने खुद के जीवन का बाहरी प्रेक्षक या “चलती-फिरती लाश” कह सकते हैं।

डीरियलाइज़ेशन के लक्षणों में शामिल हैं

  • आस-पास की चीज़़ों (लोगों, वस्तुओं, या हर चीज़) से विलग महसूस करना, जो अवास्तविक लग सकती हैं

लोगों को महसूस हो सकता है कि मानो वे किसी सपने या धुंध में हैं, या कोई काँच की दीवार या पर्दा उन्हें अपने आस-पास की चीज़़ों से अलग करता है। दुनिया निर्जीव, बेरंग, या कृत्रिम लगती है। दुनिया विकृत लग सकती है। उदाहरण के लिए, वस्तुएँ धुंधली या असामान्य रूप से स्पष्ट दिख सकती हैं, या वे सपाट या सामान्य से छोटी या बड़ी लग सकती हैं। ध्वनियाँ असलियत से अधिक या कम शोर पैदा कर सकती हैं। समय बहुत धीरे या बहुत तेज़ी से बीतता लग सकता है।

ये लक्षण लगभग हमेशा ही बहुत असहजता पैदा करते हैं। कुछ लोगों को वे असहनीय लग सकते हैं। व्यग्रता और अवसाद आम हैं। कई लोगों को डर लगता है कि ये लक्षण मस्तिष्क की ठीक न होने वाली क्षति के कारण हो रहे हैं। कई लोगों को अपने अस्तित्व को लेकर चिंता होती है या वे बार-बार जाँच करके देखते हैं कि क्या उनकी अनुभूतियाँ वास्तविक हैं।

तनाव, अवसाद या व्यग्रता के बदतर होने, नए या अत्यधिक उत्तेजित करने वाले परिवेश, और नींद की कमी से लक्षण बिगड़ सकते हैं।

लक्षण अक्सर लगातार बने रहते हैं। लोगों में हर समय लक्षण हो सकते हैं, या लक्षण बिना किसी लक्षण के समय के साथ आ और जा सकते हैं।

लोगों को अक्सर अपने लक्षणों का वर्णन करने में बहुत मुश्किल होती है और उन्हें लग सकता है कि वे पागल हो रहे हैं। हालाँकि, लोगों को हमेशा पता होता है कि उनके विलगता के अनुभव वास्तविक नहीं हैं लेकिन उन्हें बस ऐसा महसूस हो रहा है। यह जागरूकता ही वह चीज़ है जो डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार को साइकोटिक विकार से अलग करती है। सीज़ोफ़्रेनिया जैसे मानसिक विकार वाले लोगों में ऐसे विचार होते हैं जो असलियत से दूर होते हैं, लेकिन उन्हें यह एहसास नहीं होता है कि ये सामान्य विचारों से अलग हैं।

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार का निदान

  • मानसिक विकारों के निदान और सांख्यिकीय मैनुअल, पाँचवें संस्करण, पाठ संशोधन (DSM-5-TR) से विशिष्ट नैदानिक ​​मानदंडों के आधार पर एक डॉक्टर का मूल्यांकन

  • कभी-कभी अन्य संभावित कारणों का पता लगाने के लिए परीक्षण

डॉक्टर इन लक्षणों के आधार पर इस विकार का संदेह करते हैं:

  • लोगों को डीपर्सनलाइज़ेशन, डीरियलाइज़ेशन, या दोनों के प्रकरण होते हैं, जो लंबे समय तक बने रहते हैं या बार-बार होते हैं।

  • लोगों को पता होता है कि उनके वियोजी अनुभव वास्तविक नहीं हैं।

  • लोग अपने लक्षणों से बहुत परेशान हो जाते हैं या उनके लक्षण उन्हें सामाजिक परिस्थितियों में या काम पर कार्यकलाप नहीं करने देते हैं।

लक्षणों को पैदा करने वाले अन्य विकारों जिनमें अन्य मानसिक स्वास्थ्य विकार, सीज़र वाले विकार, और पदार्थ उपयोग विकार शामिल हैं, की संभावना हटाने के लिए शारीरिक जाँच और कभी-कभी कुछ परीक्षण किए जाते हैं। परीक्षणों में मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI), कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT), इलेक्ट्रोएन्सेफ़ेलोग्राफ़ी (EEG), और दवाओं की जाँच के लिए रक्त और मूत्र परीक्षण शामिल हो सकते हैं।

मनोवैज्ञानिक परीक्षण और विशेष संरचित साक्षात्कार और प्रश्नावलियाँ भी निदान करने में डॉक्टरों की मदद कर सकती हैं।

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार के उपचार

  • मनश्चिकित्सा

  • कभी-कभी एंटी एंक्ज़ायटी और एंटीडिप्रेसेंट दवाएं

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार उपचार के बिना गायब हो सकता है। लोगों का उपचार केवल तभी किया जाता है यदि विकार बना रहता है, बार-बार होता है, या परेशानी पैदा करता है।

कुछ लोगों के लिए विभिन्न मनोचिकित्सा विधियां प्रभावी रही हैं। डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार अक्सर अन्य मानसिक स्वास्थ्य विकारों के साथ संबद्ध होता है या उनसे ट्रिगर होता है (जैसे व्यग्रता या अवसाद), जिनके उपचार की ज़रूरत पड़ती है। लक्षणों को ट्रिगर करने वाले या डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार के विकास में योगदान करने वाले किसी भी तनाव को भी हल करना चाहिए।

उपयोगी तकनीकों में शामिल हैं:

  • संज्ञानात्मक तकनीकें जीवन की अवास्तविक स्थिति के बारे में जुनूनी सोच को अवरुद्ध करने में मदद कर सकती हैं।

  • व्यवहार-संबंधी तकनीकें लोगों को ऐसे कार्यों में इतना व्यस्त होने में मदद कर सकती हैं कि डीपर्सनलाइज़ेशन से उनका ध्यान हट जाता है।

  • ग्राउंडिंग तकनीकें स्वयं और दुनिया से अधिक जुड़ा हुआ महसूस करने में लोगों की मदद करने के लिए पाँचों इंद्रियों (श्रवण, स्पर्श, घ्राण, स्वाद, और दृष्टि) का उपयोग करती है। उदाहरण के लिए, शोरगुल वाला संगीत बजाया जाता है या हाथ में बर्फ़ का टुकड़ा दिया जाता है। इन संवेदनाओं को नज़रअंदाज़ करना कठिन होता है, जिसके कारण लोग खुद के वर्तमान पल में होने के बारे में सजग हो जाते हैं।

  • साइकोडायनामिक तकनीकें असहनीय संघर्षों, नकारात्मक भावनाओं, और उन अनुभवों से गुज़रने में लोगों की मदद करती हैं जिनसे लोग स्वयं को अलग रखना चाहते हैं।

  • वियोजन और प्रभाव (भावनाओं और विचारों की बाह्य अभिव्यक्ति) की पल-पल की ट्रैकिंग और लेबलिंग लोगों को अपनी वियोजन की भावनाओं की पहचान करना सिखाती है। ऐसी पहचान कुछ लोगों की मदद करती है। यह तकनीक लोगों की इस बात पर ध्यान देने में भी मदद करती है कि इस पल में क्या हो रहा है।

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार के उपचार के लिए विभिन्न दवाओं का उपयोग किया गया है, लेकिन कोई भी कारगर साबित नहीं हुई है। कभी-कभी एंटी एंक्ज़ायटी दवाएँ और एंटीडिप्रेसेंट मुख्य रूप से चिंता या डिप्रेशन से राहत दिलाकर मदद करती हैं, जो डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार से ग्रस्त लोगों में मौजूद रहते हैं। हालाँकि, एंटी एंक्ज़ायटी दवाएँ डीपर्सनलाइज़ेशन या डीरियलाइज़ेशन को बढ़ा भी सकती हैं, इसलिए डॉक्टर इन दवाओं की सावधानी से निगरानी करते हैं।

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार का पूर्वानुमान

डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार ग्रस्त कई लोग पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं, खास तौर से तब यदि लक्षण ऐसे तनावों के कारण उत्पन्न होते हैं जिनसे उपचार के दौरान निपटा जा सकता है। अन्य लोगों को उपचार से अधिक फ़ायदा नहीं होता है, और विकार जीर्ण बन जाता है। कुछ लोगों में डीपर्सनलाइज़ेशन/डीरियलाइज़ेशन विकार अपने आप गायब हो जाता है।

लगातार बने रहने वाले या आवर्ती लक्षण भी केवल मामूली समस्याएँ ही पैदा करते हैं बशर्ते लोग अपने मन को व्यस्त रखें और अपने खुद के बारे में सोचने की बजाए अन्य विचारों या गतिविधियों पर ध्यान दें। हालाँकि, कुछ लोग पंगु हो जाते हैं क्योंकि वे अपने आप से और अपने परिवेश से बहुत अलग हो जाते हैं या क्योंकि उन्हें व्यग्रता या अवसाद भी होता है।