अम्ल के अधिक उत्पादन और रक्त में उसके इकट्ठा हो जाने के कारण या रक्त में बाइकार्बोनेट की अत्यधिक कमी (मेटाबोलिक एसिडोसिस) या रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड के इकट्ठे होने के कारण एसिडोसिस होती है, कार्बन डाइऑक्साइड फेफड़ों के सही से काम न कर पाने या सांस लेने में रुकावट आने (श्वसन तंत्र एसिडोसिस) के कारण इकट्ठी हो सकती है।
रक्त की अम्लीयता तब बढ़ जाती है, जब लोग ऐसी कोई चीज़ खा या पी लेते हैं, जिसमें अम्ल होता है या जिससे अम्ल उत्पन्न होता है या जब फेफड़े पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर नहीं निकालते हैं।
मेटाबोलिक एसिडोसिस से पीड़ित लोगों को मतली, उल्टी और थकान हो सकती है और उनकी सांस तेज़ और सामान्य से अधिक गहरी हो सकती है।
श्वसन तंत्र एसिडोसिस से पीड़ित लोगों को अक्सर सिरदर्द और मतिभ्रम होता है और सांस हल्की या धीमी या दोनों तरह की हो सकती है।
ब्लड सैंपल पर किए जाने वाले टेस्ट आमतौर पर pH को सामान्य रेंज से नीचे दिखाते हैं।
डॉक्टर एसिडोसिस के कारण का उपचार करते हैं।
(अम्ल-क्षार के संतुलन का विवरण भी देखें।)
अगर अम्ल की मात्रा बढ़ने की वजह से, शरीर के अम्ल-क्षार सिस्टम में गड़बड़ी आती है, तो खून अम्लीय हो जाता है। जैसे ही रक्त का pH कम होता है (अधिक अम्लीय हो जाता है), मस्तिष्क के वे हिस्से जो सांस को नियंत्रित करते हैं, तेज और गहरी सांस (श्वसन तंत्र क्षतिपूर्ति) उत्पन्न करने के लिए प्रेरित होते हैं। तेज़ी से और गहरी सांस लेने से बाहर निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे रक्त का pH वापस सामान्य होने लगता है।
किडनी भी मूत्र में अधिक अम्ल का उत्सर्जन करके क्षतिपूर्ति करने का प्रयास करते हैं। हालांकि, अगर शरीर लगातार बहुत अधिक अम्ल बनाता रहता है, तो ये प्रक्रियाएँ प्रभावी नहीं रह जाती हैं, जिससे एसिडोसिस गंभीर हो जाती है और अंत में रोगी को हृदय की समस्याएँ हो सकती हैं और वह कोमा में जा सकता है।
रक्त सहित किसी भी घोल की अम्लीयता या क्षारीयता को pH स्केल पर दर्शाया जाता है।
रक्त का pH
अम्लीयता और क्षारीयता को pH स्केल पर दिखाया जाता है, इस स्केल की रेंज 0 (पूरी तरह अम्लीय) से लेकर 14 (पूरी तरह एल्केलाइन) तक होती है। इस स्केल के बीच का 7.0, का pH उदासीन होता है।
रक्त सामान्यतः थोड़ा क्षारीय होता है, जिसकी सामान्य pH रेंज 7.35 से 7.45 होती है। आमतौर पर शरीर रक्त के pH को 7.40 के करीब रखता है।
एसिडोसिस के कारण
एसिडोसिस को उसके मुख्य कारण के आधार पर इस प्रकार वर्गीकृत किया जाता है
मेटाबोलिक
श्वसन तंत्र
मेटाबोलिक एसिडोसिस
मेटाबोलिक एसिडोसिस तब उत्पन्न होती है, जब किसी ऐसे पदार्थ के शरीर में जाने के कारण शरीर में अम्ल की मात्रा बढ़ जाती है, जो खुद अम्ल हो या जिसके टूटने (मेटोबोलाइज़ होने) पर अम्ल बन सकता हो—जैसे कि वुड अल्कोहल (मीथेनॉल), एंटीफ़्रीज़ (इथाइलीन ग्लाइकॉल) या एस्पिरिन (एसिटाइलसैलीसिलिक एसिड) की अधिक खुराक। अन्य कई दवाइयों और विषों के कारण एसिडोसिस हो सकता है।
मेटाबोलिक एसिडोसिस, असामान्य मेटाबोलिज़्म के कारण भी हो सकती है। शॉक (लैक्टिक एसिडोसिस) की एडवांस स्टेज और अच्छी तरह से नियंत्रित नहीं किए गए टाइप 1 डायबिटीज मैलिटस (डायबेटिक कीटोएसिडोसिस) में शरीर बहुत अधिक अम्ल का उत्पादन करता है।
किडनी के ठीक से काम न करने (किडनी के फ़ेल होने) की स्थिति में अम्ल का उत्पादन सामान्य मात्रा में होने पर भी एसिडोसिस हो सकती है, क्योंकि तब किडनी पेशाब में अम्ल की पर्याप्त मात्रा को बाहर नहीं निकाल पाती हैं।
मेटाबोलिक एसिडोसिस तब भी उत्पन्न होती है, जब शरीर में से बहुत अधिक क्षार बाहर निकल जाता है। उदाहरण के लिए, दस्त लगने या इलियोस्टॉमी होने के कारण बाइकार्बोनेट पाचन नली के ज़रिए बाहर निकल सकता है।
श्वसन तंत्र एसिडोसिस
श्वसन तंत्र एसिडोसिस तब उत्पन्न होती है, जब फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड की पर्याप्त मात्रा को बाहर नहीं निकालते हैं (अपर्याप्त वेंटिलेशन), यह एक ऐसी स्थिति होती है, जो फेफड़ों को बुरी तरह प्रभावित करने वाले विकारों (जैसे कि क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज़ [COPD], गंभीर निमोनिया, हृदयाघात और दमा) में उत्पन्न हो सकती है।
श्वसन तंत्र एसिडोसिस तब भी उत्पन्न हो सकती है, जब मस्तिष्क के विकार या छाती की तंत्रिकाओं या मांसपेशियों के विकार (जैसे गुइलेन-बैरे सिंड्रोम या एमयोट्रोफिक लेटरल स्क्लेरोसिस) सांस लेना मुश्किल बना देते हैं। इसके अलावा, लोगों में श्वसन तंत्र एसिडोसिस तब भी उत्पन्न हो सकती है, जब ओपिओइड्स (नार्कोटिक्स), अल्कोहल या नींद लाने वाली प्रबल दवाओं (सिडेटिव) की अधिक खुराक लेने के कारण सांस धीमी हो जाती है। धीमी सांस लेने के कारण, रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो सकती है।
नींद के दौरान सांस लेने में रुकावट आना (जैसे कि स्लीप ऐप्निया) सांस को बार-बार इतनी देर तक रोक सकता है कि उससे अस्थायी श्वसन तंत्र एसिडोसिस हो सकती है।
एसिडोसिस के लक्षण
हल्की मेटाबोलिक एसिडोसिस में, हो सकता है कि रोगी में कोई लक्षण न दिखाई दे, लेकिन उसे आमतौर पर यह होता है
थकान
जी मिचलाना
उल्टी होना
सांस और गहरी तथा थोड़ी तेज़ हो जाती है (क्योंकि शरीर ज़्यादा कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालकर एसिडोसिस को ठीक करने की कोशिश करता है)। जैसे-जैसे एसिडोसिस बिगड़ती जाती है, व्यक्ति खुद को बहुत कमज़ोर और उनींदा महसूस करने लगता है और उसे भ्रमित होने और चक्कर आने की समस्या हो सकती है। अंत में, गंभीर मामलों में हृदय की समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं और ब्लड प्रेशर कम हो सकता है, जिसके कारण शॉक, कॉमा या मृत्यु हो सकती है।
श्वसन तंत्र एसिडोसिस में, शुरुआती लक्षण यह होते हैं
उनींदापन
सिरदर्द
रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा पर्याप्त नहीं होने पर उनींदापन बढ़कर स्टूपर और कॉमा में बदल सकता है। सांस बंद होने या सांस लेने में गड़बड़ी होने पर स्टूपर और कॉमा कुछ की सेकंड में उत्पन्न हो सकता है या सांस लेने में कम गड़बड़ी होने पर कई घंटों में उत्पन्न हो सकता है।
एसिडोसिस का निदान
रक्त की जाँच
एसिडोसिस के निदान के लिए आमतौर पर रक्त का pH मापना और धमनी के रक्त के सैंपल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा को मापना ज़रूरी होता है, जिसे आमतौर पर कलाई की रेडियल धमनी से निकाला जाता है। धमनियों के रक्त का उपयोग इसलिए किया जाता है, क्योंकि शरीर के pH की स्थिति मापने के लिए शिराओं का रक्त उतना भरोसेमंद नहीं होता है।
एसिडोसिस के कारण के बारे में और जानने के लिए, डॉक्टर रक्त में बाइकार्बोनेट की मात्रा भी मापते हैं। इसके बाद निश्चित कारण का पता लगाने के लिए कुछ और ब्लड टेस्ट किए जाते हैं।
एसिडोसिस का उपचार
कारण का इलाज
कभी-कभी बाइकार्बोनेट के साथ फ़्लूड शिरा के ज़रिए दिया जाता है
लगभग हमेशा, एसिडोसिस के उपचार का उद्देश्य उसके कारण को ठीक करना होता है। डॉक्टर एसिडोसिस को ठीक करने के लिए बहुत कम मामलों में एल्केलाइन दवाएँ जैसे कि बाइकार्बोनेट देते हैं।
मेटाबोलिक एसिडोसिस में उपचार मुख्य रूप से कारण पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन से उपचार करना या विषाक्तता की स्थिति में रक्त से विषैले पदार्थ को बाहर निकालना ज़रूरी हो सकता है।
श्वसन तंत्र एसिडोसिस में उपचार का उद्देश्य फेफड़ों की कार्यक्षमता को बेहतर बनाना होता है। सांस की नलियों को खोलने वाली दवाएँ (ब्रोंकोडाइलेटर्स, जैसे कि अल्ब्यूटेरॉल) उन लोगों की मदद कर सकती हैं, जिन्हें दमा और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज़ जैसी फेफड़ों की बीमारियां होती हैं। दवाओं और अन्य पदार्थों के कारण होने वाले सेडेशन को कभी-कभी एंटीडोट से ठीक किया जा सकता है। जिन लोगों को किसी भी कारण से सांस लेने में बहुत समस्या होती है या फेफड़ों की क्षमता बहुत कम होती है, उन्हें सांस लेने के लिए मैकेनिकल वेंटिलेशन की सहायता लेनी पड़ सकती है।
जब लक्षणों का उपचार करने के प्रयास सफल नहीं होते हैं, तब गंभीर एसिडोसिस का उपचार सीधे तौर पर भी किया जा सकता है। ऐसे मामलों में, बाइकार्बोनेट इंट्रावीनस तरीके से दिया जा सकता है। हालांकि, बाइकार्बोनेट से सिर्फ़ अस्थायी राहत मिलती है (कारण का उपचार जारी रहना चाहिए) और ये नुकसान पहुंचा सकता है—जैसे कि, शरीर में सोडियम और पानी की मात्रा बढ़ाकर।