पैरासोम्निया वे असामान्य व्यवहार हैं जो सोने से ठीक पहले, नींद के दौरान या जब जाग रहे होते हैं, तब किए जाते हैं।
(नींद का विवरण भी देखें।)
बच्चों तथा वयस्कों में अलग-अलग अचेतन तथा काफी हद तक भूला दिए जाने वाले व्यवहार हो सकते हैं।
नींद से ठीक पहले, लगभग सभी लोग कभी-कभी बाजुओं और पूरे शरीर में थोड़े-बहुत, अचानक से आए झटकों का अनुभव करते हैं। कभी-कभी टांगों में झटके पैदा होते हैं। कुछ लोग नींद संबंधी लकवे (प्रयास करते हैं, लेकिन वे हिलने-डुलने में सक्षम नहीं होता हैं) या संक्षिप्त फ्लीटिंग छवियों या विचारों का अनुभव करते हैं, जब सोने या जागने की कोशिश कर रहे होते हैं। लोग अपने दांत भींच सकते हैं या पीस सकते हैं या उन्हें बुरे सपने आ सकते हैं।
नींद में चलना, सिर पटकना और रात को डरना, बच्चों में आम बात है और ये उनके माता-पिता के लिए काफी अधिक परेशानी की वजह हो सकती है। आमतौर पर, बच्चे इन घटनाओं को याद नहीं रख पाते हैं। अन्य पैरासोम्निया में रात को बुरे सपने आना, आँख का तेज़ी से फड़कना (REM) नींद से जुड़ी समस्याएं, तथा सोते समय टांगों में ऐंठन होना शामिल है।
रात का भय
इन डरा देने वाली घटनाओं के कारण व्यक्ति उठ कर बैठ जाता है, चिल्लाता है, और हाथ से पीटने की क्रिया करता है। आँखें बड़ी होकर खुली रहती हैं, तथा दिल की धड़कन तेज हो जाती है। लोग बहुत डरे हुए नज़र आते हैं। ये घटनाएं आमतौर पर उस समय होती हैं जब लोग आंशिक रूप से जागे हुए रहते हैं या जब वे गैर-तीव्र आँख संचलन (NREM) नींद से अभी जागते ही हैं, और खास तौर पर ऐसा रात्रि के पहले कुछ घंटों में होता है।
रात को डर लगना, बुरे सपनों से अलग होता है तथा इसकी वजह से नींद में चलने की बीमारी हो सकती है।
बच्चों में रात में डर जाना आम बात होती है। बच्चों को जगाया नहीं जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से वे और भी अधिक डर सकते हैं। हालांकि, बच्चे बहुत ज़्यादा परेशान दिखाई देते हैं, लेकिन जागने के बाद उन्हें घटनाओं या मानसिक छवियों की कोई याद नहीं रहती है और इन व्यवहारों की वजह से उन्हें कोई मनोवैज्ञानिक समस्या नहीं होती। माता-पिता को ज़रूरत से ज़्यादा तनावग्रस्त नहीं होना चाहिए। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं, तो आमतौर पर उनमें ऐसी घटनाएं होना रूक जाती हैं।
वयस्कों में ये घटनाएं अक्सर मनोवैज्ञानिक समस्याओं या अल्कोहल के सेवन संबंधी विकार से जुड़ी होती हैं।
बच्चों के लिए, माता-पिता की तरफ से केवल तसल्ली देने की ही आवश्यकता होती है। यदि स्कूल का काम या अन्य गतिविधियां प्रभावित होती हैं, तो बच्चों का उपचार कुछ खास बेंज़ोडाइज़ेपाइन (जैसे डाइआज़ेपैम, क्लोनाज़ेपैम, अल्प्राज़ोलेम) से करने से शायद सहायता मिल सकती है। ये दवाएँ जिनका इस्तेमाल चिंता का उपचार करने के लिए किया जाता है (चिंता-रोधी दवाएँ) और नींद को उत्प्रेरित करने के लिए किया जाता है (सिडेटिव), उनको सोने से 90 मिनट पहले दिया जाता है। इनसे बच्चों को सोने और रात को डरने की घटनाओं के होने को कम किया जा सकता है। हालांकि, बेंज़ोडाइज़ेपाइन का बहुत लंबे समय तक इस्तेमाल दवा पर निर्भरता पैदा कर सकता है। इसलिए, इन दवाओं को केवल थोड़े समय के लिए (लगभग 3 से 6 सप्ताह) तक लिया जाता है।
वयस्कों को मनोचिकित्सा या दवा के उपचार से लाभ मिल सकता है।
बुरे सपने
रात को आने वाले सपने अलग-अलग तरह के, डरावने वाले, तथा अचानक जगाने वाले होते हैं। वयस्कों की तुलना में, बच्चों को बुरे सपने आने की अधिक संभावना होती है। बुरे सपने की वजह से, नींद के दौरान तेजी से आँख फड़कने (REM) की समस्या होती है।
बुरे सपनों के आने की संभावना आमतौर पर उस समय अधिक होती है, जब लोगों तनाव होता है, उनको बुखार होता है या वे बहुत अधिक थके होते हैं या उन्होनें अल्कोहल का सेवन किया हो।
बुरे सपनों के उपचार, यदि ज़रूरी है, तो उनमें अंतर्निहित समस्या पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।
नींद में चलना (सोम्नेमबुलिज़्म)
नींद में चलना, जो बाल्यावस्था की समाप्ति और किशोरावस्था में सबसे आम होता है, अर्धचेतन अवस्था में चलना है जिसमें ऐसा करने के प्रति चेतनता नहीं होती। ऐसा NREM नींद की सबसे गहरी अवस्था में होता है।
नींद में चलने वाले लोग बार-बार बुदबुदा सकते हैं और वे बाधाओं से टकरा कर खुद को चोट पहुँचा सकते हैं। नींद में चलने वाले ज़्यादातर लोगों को नींद में चलने की कोई स्मृति नहीं होती।
पर्याप्त नींद प्राप्त न कर पाना और नींद में बाधक तरीकों से व्यवहार करने (नींद में सुधार करने के लिए व्यवहार में बदलाव तालिका देखें) से नींद में चलने की अधिक संभावना हो सकती है। उदाहरण के लिए, सोने से पहले कैफ़ीन का सेवन करना, व्यायाम करना, या कोई रोमांचक टेलीविज़न कार्यक्रम बहुत ध्यान से देखना नींद में चलने की समस्या को बढ़ावा मिल सकता है।
आमतौर पर, जब तक नींद में चलने की वजह से चोट नहीं लगती, तब तक किसी विशिष्ट उपचार की आवश्यकता नहीं होती।
नींद में चलने की संभावना को निम्नलिखित सामान्य उपायों से कम किया जा सकता है:
नींद में सुधार के लिए उपाय करना—उदाहरण के लिए, सोने के समय के करीब, कुछ भी उत्तेजक कार्य करने से बचना (जैसे कि कुछ घंटों के अंदर व्यायाम करना या लगभग 12 घंटों के भीतर कैफ़ीन का सेवन करना)
जब नींद में चलने वाला व्यक्ति बिस्तर के बाहर निकलता है, तो उसे जगाने के लिए अलार्म सेट करना
डोर अलार्म सेट करना
नींद में चलने के दौरान चोट लगने की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपायों से सहायता मिल सकती है:
नींद में चलने वाले व्यक्ति को जबरदस्ती जगाने के बजाए आराम से उसे बिस्तर में सुलाना चाहिए, इससे वह व्यक्ति उत्तेजित हो सकता है
बाधाओं या टूट जाने वाली चीज़ों को हटाना जो नींद में चलने वाले व्यक्ति की राह में आ सकती हैं
खिड़कियों को बंद तथा तालाबंद रखना
नींद में चलने वाले व्यक्ति के लिए, कम ऊँचाई वाले बिस्तर में सोना या फ़र्श पर गद्दा बिछा कर सोना, ताकि बिस्तर से गिरने की रोकथाम की जा सके, जब नींद में चलने वाला व्यक्ति बिस्तर से बाहर निकलने की कोशिश करता है
बेंज़ोडाइज़ेपाइन, खासतौर पर क्लोनाज़ेपैम, से आमतौर पर सहायता मिलती है, यदि सामान्य उपाय निष्प्रभावी रहते हैं। हालांकि, इन दवाओं के गंभीर दुष्प्रभाव भी हैं, जैसे दिन में उनींदापन आना। बेंज़ोडाइज़ेपाइन के लंबे समय तक किए जाने वाले उपयोग से दवा पर निर्भरता हो सकती है।
तेजी से आँख फड़कने की समस्या नींद के समय बीमारी
इस बीमारी में बोलना (अभद्रता से) तथा कभी-कभी तेज़ी से आँख फड़कना (REM) नींद के दौरान आक्रामक संचलन करना, आमतौर पर किसी सपने की प्रतिक्रिया स्वरूप शामिल होता है।
REM नींद से जुड़े विकार वयोवृद्ध वयस्कों में अधिक आम होते हैं। इस विकार से पीड़ित ज़्यादातर लोगों को ऐसा विकार होता है जिसके कारण मस्तिष्क के ऊतकों में खराबी आती है, जैसे पॉर्किंसन रोग, मल्टीपल सिस्टम एट्रॉफी या डिमेंशिया विद लेवी बाडीज़। अल्जाइमर रोग के बढ़ने का जोखिम भी थोड़ा बढ़ा हुआ होता है। कुछ लोगों में REM नींद से जुड़ी समस्याओं के निदान के कुछ वर्षों के बाद पार्किंसन रोग विकसित हो जाता है।
REM नींद से जुड़ी समस्याओं से पीड़ित लोगों को, उन लोगों की तुलना में जिनको रात को भय लगता है, किसी हद तक अगले दिन जागने पर यह मालूम होता है कि इन घटनाओं के दौरान उनको अलग-अलग तरह के सपने आए थे।
आक्रामक संचलनों में बाजुओं को हिलाना, घूंसा मारना या ठोकर मारना शामिल हो सकता है। आक्रामक व्यवहार आशयपूर्ण नहीं होता है तथा यह किसी खास व्यक्ति के प्रति नहीं किया जाता है। लोग अनजाने में खुद को या अपने साथ सोने वाले साझेदार को चोट पहुँचा सकते हैं। साथ ही, यह व्यवहार नींद में बाधा पैदा करता है, जिससे लोग दिन के समय थकान और बहुत ज़्यादा नींद महसूस करते हैं।
डॉक्टर अक्सर REM नींद से जुड़ी समस्याओं का निदान व्यक्ति द्वारा बताए गए लक्षणों या उस व्यक्ति के साथ सोने वाले साझेदार द्वारा बताए गए लक्षणों के आधार पर कर सकते हैं। हालांकि, यदि वे ऐसा नहीं कर पाते, तो इलेक्ट्रोमायोग्राफ़ी (EMG) के साथ पॉलीसोम्नोग्राफ़ी को आमतौर पर किया जाता है।
ऐसी बीमारियों की जांच करने के लिए जिनसे दिमाग को नुकसान पहुंचता है, डॉक्टर मानसिक स्थिति का मूल्यांकन करने और दिमाग तथा तंत्रिका संबंधी गतिविधियों की जांच करने के लिए न्यूरोलॉजिक जांच करते हैं। यदि किसी असामान्यता का पता लगता है, तो कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) तथा मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) की जाती है।
इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। हालांकि, क्लोनाज़ेपैम, एक बेंज़ोडाइज़ेपाइन (जो कि सिडेटिव है) से ज़्यादातर लोगों में लक्षणों में राहत मिल जाती है। निम्न खुराक प्रभावी साबित होती है। आमतौर पर, दवाई को अनिश्चित काल के लिए जारी रखा जाता है। मेलेटोनिन से भी REM नींद से जुड़ी बीमारियों के लक्षणों में राहत से सहायता मिल सकती है।
बिस्तर पर सोने वाले साथी को नुकसान की संभावना के बारे में चेतावनी दे देनी चाहिए तथा जब तक दवाई काम करना शुरू न कर दे, तब तक वे दूसरे बिस्तर पर सोना पसंद कर सकता है। REM नींद व्यवहार विकार से पीड़ित लोगों के बिस्तर के आसपास धार वाली चीज़ों और फर्नीचर को हटा देना चाहिए।
नींद के समय टांगों में ऐंठन
स्वस्थ मध्यम आयु वर्ग और बुजुर्ग वयस्कों में सोते समय अक्सर पिंडली या पैर में मांसपेशियों में ऐंठन होती है।
डॉक्टर, अन्य शारीरिक समस्याओं और कमजोरियों की संभावनाओं को दूर करने के बाद, आमतौर पर नींद के समय टांगों में ऐंठन का निदान करते हैं। इसके अलावा, किसी अन्य परीक्षण की आवश्यकता नहीं होती।
इस प्रकार की ऐंठन को रोकथाम करने के लिए, लोगों को सोने से पहले प्रभावित मांसपेशियों को कई मिनटों तक स्ट्रेच करना चाहिए। आमतौर पर, ऐंठन के होते ही, स्ट्रेच करने से लक्षणों में तत्काल राहत मिलती है और दवा उपचार की तुलना में इसे पसंद किया जाता है। कैफ़ीन और अन्य उत्प्रेरकों से दूर रहने से भी सहायता मिल सकती है।
अनेक दवाएँ (जैसे कुनैन, कैल्शियम तथा मैग्नीशियम सप्लीमेंट, डाइफ़ेनिलहाइड्रामिन, बेंज़ोडायज़ेपाइन, और मेक्सीलेटिन) का प्रयोग किया गया है, लेकिन किसी के भी प्रभावी होने की संभावना नहीं है। साथ ही, किनाइन तथा मेक्सीलेटिन के बुरे असर परेशानी का कारण बन सकते हैं।