किडनी में फ़िल्टरिंग से जुड़ी बीमारियों के बारे में जानकारी

इनके द्वाराFrank O'Brien, MD, Washington University in St. Louis
द्वारा समीक्षा की गईNavin Jaipaul, MD, MHS, Loma Linda University School of Medicine
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अप्रैल २०२५

विषय संसाधन

हरेक किडनी में लगभग 1 मिलियन फ़िल्टरिंग इकाइयां (ग्लोमेरुली) होती हैं। ग्लोमेरुली छोटे छिद्रों वाली छोटी रक्त वाहिकाओं (कोशिकाओं) के बहुत सारे छोटे क्लस्टर से बनी होती हैं। इन रक्त वाहिकाओं को खून के बहाव से फ़्लूड को लघु नलिकाओं की एक प्रणाली में रिसने के लिए डिज़ाइन किया गया है। ये नलिकाएं फ़्लूड से रसायन और पदार्थों को अलग करती हैं और फिर से अवशोषित करती हैं, जिससे यह पेशाब बन जाता है। इसके बाद, पेशाब किडनी से निकलकर बड़ी-बड़ी ट्यूबों में तब तक जाता रहता है, जब तक यह किडनी से बाहर नहीं निकल जाता। आमतौर पर, यह फ़िल्टरिंग प्रणाली फ़्लूड और छोटे अणुओं (पर लगभग किसी प्रोटीन या रक्त कोशिकाओं को नहीं—एसिम्प्टोमेटिक प्रोटीन्यूरिआ और हेम्ट्यूरिया सिंड्रोम) को नलिकाओं में रिसने देती है।

किडनी पर असर डालने वाले रोगों को उनके ज़रिए किडनी के अलग-अलग हिस्सों पर पडने वाले असर के तरीके के हिसाब से 3 कैटेगरी में बांटा जा सकता है:

  • ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस (या नेफ्रिटिक सिंड्रोम) ग्लोमेरुली में सूजन होती है, जिसके कारण रक्त कोशिकाएँ और प्रोटीन ग्लोमेरुलर कोशिकाओं से निकलकर पेशाब में चले जाते हैं और कभी-कभी यह वंशानुगत भी होता है।

  • नेफ़्रोटिक सिंड्रोम तब होता है, जब ग्लोमेरुली की कोशिकाओं के ख़राब होने से पेशाब में प्रोटीन रिसने लगता है।

  • ट्यूबुलोइंटरस्टिशियल नेफ़्राइटिस नलिकाएं और/या नलिकाओं के आसपास के ऊतकों (इंटरस्टीटियम) की सूजन होती है।

कुछ बीमारियाँ ऐसी भी होती हैं जिनमें ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस और नेफ़्रोटिक सिंड्रोम, दोनों की विशेषताएं होती हैं।

एक अलग किस्म की बीमारी, जो रिफ़्लक्स नेफ्रोपैथी कहलाता है, जो मूत्राशय से किडनी तक पेशाब के रिफ़्लक्स होने के कारण होता है, इससे मूत्र मार्ग में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है और यह किडनी में सूजन और निशान का कारण बन सकता है।

मूत्र पथ को देखना

ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस, नेफ़्रोटिक सिंड्रोम, और ट्यूबुलोइंटरस्टिशियल नेफ्रिटिस कोई खास तरह की बीमारी नहीं है, बल्कि ये बीमारियों की श्रेणियाँ हैं। कई किसी खास बीमारी हर श्रेणी में आती हैं और कई खास तरह की स्थितियों में किसी श्रेणी में बीमारियों का कारण बन सकती हैं। मिसाल के तौर पर, प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के कारण मेम्ब्रेनोप्रोलिफ़ेरेटिव ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस किडनी की फ़िल्टरिंग कोशिकाओं में सूजन आ जाती है। प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया कई ऑटोइम्यून से जुड़ी बीमारियों में से किसी एक के कारण हो सकती है, जैसे कि प्रणालीगत ल्यूपस एरिथेमेटोसस (ल्यूपस) या संक्रमण या यहाँ तक कि कैंसर भी कारण हो सकता है।

अक्सर असामान्य प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया की वजह से, ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस में सूजन होती है। ऐसी प्रतिक्रिया 2 तरीकों से हो सकती है:

  • हो सकता है कि एंटीबॉडीज (एंटीजन नामक एक खास तरह के अणुओं पर हमला करने के लिए शरीर द्वारा निर्मित प्रोटीन) सीधे किडनी की कोशिकाओं या उनमें फंसे अणुओं से जुड़ जाए, जिससे सूजन होती है।

  • किडनी के बाहर ये एंटीबॉडीज एंटीजन से जुड़ जाते हैं और ये एंटीजन-एंटीबॉडी (या इम्यून) कॉम्प्लेक्स को खून के बहाव के ज़रिए किडनी में लेकर जाते हैं और ग्लोमेरुली में फंस जाता है, जिससे सूजन होती है।

अगर बड़े पैमाने पर ग्लोमेरुली में ख़राबी आ जाती है, तो किडनी पूरी तरह से काम नहीं करती है। नतीजतन पेशाब कम मात्रा में बनाता है और खून में गंदा पदार्थ जमा होने लगता है। इसके अलावा, जब यह गंभीर रूप से ख़राब हो जाती है, तो सूजन कोशिकाएं और ख़राब ग्लोमेरुलर कोशिकाएं संचित हो जाती हैं, ग्लोमेरुली के अंदर की कोशिकाओं को सिकोड़ देती हैं और फ़िल्टर के काम में ये बाधक हो जाती हैं। हो सकता है कि स्कारिंग का असर किडनी के कामकाज पर भी पड़ने लगे और पेशाब का बनाना कम हो जाए। कुछ मामलों में, हो सकता है कि छोटी रक्त वाहिकाओं में खून के छोटे-छोटे थक्के (माइक्रोथ्रोम्बी) बन जाएं, जिससे किडनी के काम करने की क्षमता और भी कम हो जाती है। बहुत कम मामलों में, ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस आनुवंशिक स्थिति के कारण हो सकता है। दूसरे मामलों में, रक्त वाहिकाओं में सूजन (वैस्कुलाइटिस) के कारण ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस होता है।

नेफ़्रोटिक सिंड्रोम के कारण खून से बड़ी मात्रा में प्रोटीन पेशाब में रिसने लगता है। यह रिसाव सूजन या बिना-सूजन वाली प्रक्रियाओं से ग्लोमेरुली को होने वाली ख़राबी के कारण हो सकता है। सूजन की प्रक्रियाओं में, पेशाब में लाल रक्त कोशिकाएँ दिखाई देती हैं, जो ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस के समान होती हैं। बिना सूजन वाली प्रक्रियाओं में पेशाब में लाल रक्त कोशिकाएं नहीं दिखाई देती हैं। कुछ किस्म के नेफ़्रोटिक सिंड्रोम गंभीर हो सकते हैं। ग्लोमेरुली में निशान बन जाते हैं और इससे किडनी की ख़राबी (किडनी ज़्यादातर काम नहीं करते) विकसित होने लगती है। नेफ़्रोटिक सिंड्रोम के कुछ कम गंभीर मामलों में किडनी का काम थोड़ा प्रभावित होता है।

अक्सर ट्यूबुलोइंटरस्टिशियल नेफ्रिटिस की वजह किसी दवा का विषाक्त प्रभाव या एलर्जिक प्रतिक्रिया होती है। सफ़ेद रक्त कोशिकाएं या निशान वाले ऊतक प्रभावित किडनी में दिखाई देने लगते हैं। ट्यूबुलोइंटरस्टिशियल नेफ्रिटिस का कारण किडनी का संक्रमण (पायलोनेफ़्राइटिस) भी हो सकता है। सूजन जब नलिकाओं और उसके आसपास के ऊतकों में ख़राबी पैदा करती है, तो हो सकता है कि किडनी अपने सामान्य काम ठीक से न कर पाए, जैसे कि शरीर में पानी को संरक्षित करने के लिए पेशाब को गाढ़ा करना, जिसकी वजह से पेशाब बहुत पतला हो जाता है। किडनी शरीर से व्यर्थ पदार्थों को बाहर निकालने (उत्सर्जित करने) या एसिड, सोडियम और पोटेशियम जैसे दूसरे इलेक्ट्रोलाइट्स को शरीर से बाहर निकालने में असमर्थ हो सकती हैं। अगर बहुत ज़्यादा ख़राबी आ जाती है और दोनों किडनी प्रभावित हो जाती हैं, ऐसे में किडनी विफल हो जाती हैं।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी भाषा के संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इन संसाधनों की सामग्री के लिए मैन्युअल उत्तरदायी नहीं है।

  1. American Kidney Fund

  2. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डायबिटीज एंड डाइजेस्टिव एंड किडनी डिज़ीज़ (NIDDKD)

  3. National Kidney Foundation

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