छोटी आंत के ट्रांसप्लांटेशन में हाल ही में निधन हुए व्यक्ति की छोटी आंत को निकालकर उसको, कभी-कभी अन्य अंगों के साथ, ऐसे व्यक्ति में स्थानांतरित किया जाता है जो अपनी छोटी आंत के विकार के कारण पर्याप्त पोषक तत्व प्राप्त नहीं कर पा रहा है।
(ट्रांसप्लांटेशन का ब्यौरा भी देखें।)
छोटी आंत का ट्रांसप्लांटेशन तब किया जा सकता है जब लोगों को पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिल पाते क्योंकि
उन्हें कोई ऐसा गंभीर विकार है जो आंतों को पोषक तत्वों को अवशोषित करने से रोकता है।
किसी विकार या चोट के कारण आंत को निकालना पड़ा हो।
उनमें कई ट्यूमर, क्रोनिक जख्म या अन्य समस्याएं हैं जो आंत को अवरुद्ध करती हैं।
उन्हें अंतःशिरा (पूरी तरह से एक नली द्वारा आहार-पोषण) से आहार देना पड़ता था, लेकिन अब लिवर के खराब होने या बार-बार होने वाले इन्फेक्शन जैसी समस्याओं के कारण नहीं दिया जा सकता।
छोटी आंत का ट्रांसप्लांटेशन कम ही किया जाता है क्योंकि ऐसे इलाज और तकनीकें हैं जो ट्रांसप्लांटेशन को कम आवश्यक बना देती हैं।
50% से अधिक छोटी आंत के ट्रांसप्लांटेशन 3 वर्षों के बाद भी काम करते हैं और आंतों के ट्रांसप्लांटेशन वाले लगभग 65% लोग जीवित रहते हैं।
दाता और प्राप्तकर्ता दोनों की प्रीट्रांसप्लांटेशन स्क्रीनिंग की जाती है। यह स्क्रीनिंग यह सुनिश्चित करने के लिए की जाती है कि अंग, ट्रांसप्लांटेशन के लिए पूरी तरह स्वस्थ है और प्राप्तकर्ता को ऐसी कोई चिकित्सीय समस्या नहीं है जिसके कारण ट्रांसप्लांटेशन करने में समस्या आए।
प्रक्रिया
छोटी आंत को अकेले या अन्य अंगों-लिवर, पेट और/या पैंक्रियास के साथ ट्रांसप्लांट किया जा सकता है। ये प्रक्रियाएँ बहुत जटिल हो सकती हैं।
एक सर्जन प्राप्तकर्ता की छोटी आंत के रोगग्रस्त हिस्से को निकाल देता है और इसे दाता की छोटी आंत के स्वस्थ टुकड़े से बदल देता है। प्राप्तकर्ता की रक्त वाहिकाएं और दान किया गया अंग जुड़े हुए हैं और दाता की आंत, प्राप्तकर्ता के पाचन तंत्र से जुड़ी हुई है।
ट्रांसप्लांट की गई छोटी आंत का एक हिस्सा पेट की दीवार के माध्यम से त्वचा के एक छेद से जुड़ा होता है—जिसे इलियोस्टॉमी कहा जाता है। इस छेद से डॉक्टर यह देख पाते हैं कि ट्रांसप्लांटेशन कितनी अच्छी तरह से काम कर रहा है और समस्याओं की जांच कर सकते हैं। आमतौर पर, छेद कुछ समय बाद बंद किया जा सकता है। जब इलियोस्टॉमी मौजूद हो, शरीर के अपशिष्ट इसके माध्यम से निकाले जाते हैं और एक थैली में खाली हो जाते हैं।
जटिलताएँ
ट्रांसप्लांटेशन के कारण कई जटिलताएं हो सकती हैं। आंतों के ट्रांसप्लांटेशन विशेष रूप से इन्फेक्शन और रिजेक्शन दोनों को प्रवृत्त करते हैं।
रिजेक्शन
भले ही टिशू टाइप बिल्कुल मेल खाते हों, फिर भी खून चढ़ाए जाने की तुलना में अगर बात करें तो, रिजेक्शन को रोकने के उपाय नहीं किए जाने पर ट्रांसप्लांट किए गए अंग आमतौर पर अस्वीकृत हो जाते हैं। ट्रांसप्लांट किए गए उस अंग पर प्राप्तकर्ता की प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले का परिणाम रिजेक्शन होता है, जिसकी पहचान प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी सामग्री के रूप में करती है। रिजेक्शन हल्का और आसानी से नियंत्रित करने योग्य या गंभीर हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्यारोपित अंग खराब हो सकता है।
छोटी आंत के ट्रांसप्लांटेशन के बाद एक वर्ष के भीतर लगभग 30 से 50% लोगों में कम से कम एक बार रिजेक्शन होती है। लक्षणों में दस्त, बुखार और पेट में ऐंठन शामिल हैं।
ट्रांसप्लांटेशन के बाद, रिजेक्शन के संकेतों के लिए आंत की जांच करने के लिए डॉक्टर एक देखने वाली ट्यूब (एंडोस्कोप) का उपयोग करते हैं। यह जांच अक्सर की जाती है, शुरू-शुरू में कभी-कभी सप्ताह में एक बार। फिर जांच हर कुछ हफ्तों में की जाती है, और फिर हर कुछ महीनों में।
ग्राफ़्ट-वर्सेस-होस्ट डिसीज़
चूंकि छोटी आंत में बड़ी मात्रा में लिम्फ़ैटिक टिशू होते हैं, इसलिए नई आंत के टिशू उन कोशिकाओं का निर्माण कर सकते हैं जो प्राप्तकर्ता की कोशिकाओं पर हमला करते हैं, जिससे ग्राफ्ट-बनाम-होस्ट रोग होता है।
अन्य जटिलताएँ
कभी-कभी नए आंतों के टिशू, रक्त वाहिकाओं में समस्याएं पैदा करते हैं और इस प्रकार पर्याप्त रक्त आपूर्ति में कमी आती है। टिशू को सर्जरी से निकालने की जरूरत होती है। लोगों को इससे अंततः लिम्फ़ोमा नामक रक्त कैंसर भी हो सकता हैं।