हाथों के नाखूनों और पैरों के नाखूनों को चोटों से नुक़सान हो सकता है।
हाथ या पैर की अंगुली को लगी मामूली सी चोट भी नाख़ून में बदलाव कर सकती है।
नेल बेड (नेल प्लेट के नीचे मौजूद ऊतक जो नाख़ून को अंगुली से जोड़ता है) के गंभीर नुक़सान से, विशेष रूप से किसी कुचले जाने की चोट से हुए नुक़सान की वजह से अक्सर नाख़ून की स्थायी विरूपता पैदा होती है। स्थायी नाख़ून विरूपता का जोखिम घटाने के लिए, चोट की तुरंत मरम्मत की जानी चाहिए, जिसके लिए नाख़ून निकालना ज़रूरी होता है।
(नाखूनों के विकारों का संक्षिप्त विवरण भी देखें।)
नाखूनों की चोटें आम हैं। इन चोटों से होने वाले विकारों में शामिल हैं
पैर के नाख़ून की गतिविधि-संबंधी चोट
पैर के नाख़ून की तीक्ष्ण (एक्यूट) चोटें खिलाड़ियों में आम हैं और वे आम तौर पर नेल प्लेट के जूतों से बार-बार टकराने के कारण होती हैं। ये चोटें फ़ंगल संक्रमण का और नेल प्लेट की विरूपताओं, जिनमें रेट्रोनिकिया शामिल है, का कारण बन सकती हैं।
नाखून-काटना
नाख़ून कुतरने स (ओनिकोफेजिया) आम तौर पर कोई दीर्घस्थायी या गंभीर समस्या पैदा नहीं होती है, बशर्ते नेल बेड को नुक़सान न पहुँचा हो। पर फिर भी, इसकी कुछ जटिलताएं संभव हैं:
नाख़ून की सतही बनावट में, आकृति में, या दोनों में बदलाव (अपविकास)
संक्रमण (जीवाणु, फ़ंगल, और/या वायरल), जो आम तौर पर छोटे-छोटे स्थानों में नेल ट्रॉमा और नुक़सान के कारण होते हैं
दांतों की समस्याएं
यदि नाख़ून कुतरने की क्रोनिक आदत नाख़ून को तोड़ती हो, जिससे अक्सर नेल मेट्रिक्स में शोथ हो जाता है, तो अपविकास हो सकते हैं। नाखूनों में आड़ी उभरी धारियाँ, गड्ढे, और उठे हुए स्थान बन सकते हैं, और लंबे समय तक यह आदत जारी रहने से नाख़ून हमेशा के लिए छोटा हो सकता है। क्यूटिकल को लगभग हमेशा ही नुक़सान होता है, जिससे नाखूनों की वॉटरप्रूफ़ "सील" टूट जाती है, और इस कारण से नाख़ून पतले होकर उखड़ने लगते हैं, जिससे संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है। अंततः घाव के निशानों से क्यूटिकल और मेट्रिक्स पर प्रभाव पड़ता है, जिससे अपविकास स्थायी हो जाता है।
जीवाणु संक्रमण अक्सर स्टेफिलोकोकल और स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया से होते हैं पर वे स्यूडोमोनास एरुजिनोसा नामक बैक्टीरिया से भी हो सकते हैं। मवाद से भरे बंद स्थान (फोड़े) नाख़ून के इर्द-गिर्द बन सकते हैं (जैसे पैरोनिकिया में होते हैं) या अंगुली के सिरे पर बन सकते हैं (जिसे फ़ेलन कहते हैं)। समय से सर्जरी द्वारा मवाद न निकाला जाए तो इनसे नाख़ून स्थायी रूप से नष्ट हो सकता है। सर्जरी द्वारा मवाद निकाल देने पर भी नाख़ून में स्थायी बदलाव हो सकते हैं।
फ़ंगल संक्रमण, जो आम तौर पर कैंडिडा नामक यीस्ट से होते हैं, बहुत आम हैं और अक्सर मेनिक्योर कराने वाले लोगों में भी हो सकते हैं। नाखूनों के फ़ंगल संक्रमणों से आम तौर पर नाख़ून की तहों में सूजन और नाख़ून का हल्का अपविकास होता है और कभी-कभी नेल बेड से नेल प्लेट आंशिक या पूरी तरह अलग हो जाती है (ओनिकोलिसिस)। क्यूटिकल, नाखूनों, और आस-पास की त्वचा की क्रोनिक चोट से क्रोनिक सूजन हो जाती है, और इसी तरीक़े से संक्रमण नाखूनों में प्रवेश कर सकते हैं। यदि व्यक्ति नाख़ून कुतरना रोक देता है तो अक्सर किसी टॉपिकल कॉर्टिकोस्टेरॉइड के साथ सीधे नाख़ून पर लगाई जाने वाली एंटीफंगल दवाएँ (टॉपिकल दवाएँ) आम तौर पर प्रभावी उपचार सिद्ध होती हैं।
वायरल संक्रमणों में आम तौर पर ह्यूमन पैपिलोमा वायरस शामिल है जिससे मस्से होते हैं। नाख़ून के चारों ओर चोट के छोटे-छोटे स्थानों से वायरस नाखूनों में प्रवेश कर सकते हैं। इन संक्रमणों को नष्ट करना कठिन होता है और ये आसानी से एक से दूसरी अंगुली तक और अंगुलियों से मुंह और होठों तक फैल जाते हैं। मस्से देखने में अप्रिय और तनावदायी हो सकते हैं।
दंत जटिलताओं में दाँतों की आकृति बिगड़ना या उनका अपने स्थान से खिसकना शामिल हो सकता है। मसूड़ों के रोग व संक्रमण होने के जोखिम भी बढ़ जाते हैं।
कई लोगों में, नाख़ून कुतरने की आदत हल्की होती है, और संबंधित जटिलताओं (जिनके बारे में लोगों को अक्सर पता नहीं होता है) के बारे में डॉक्टर से परामर्श मिल जाने मात्र से वे इसे रोकने को प्रेरित हो सकते हैं। कुछ लोगों को नाख़ून कुतरने पर शर्मिंदगी होती है। आदत तोड़ने वाली तकनीकों में शामिल हैं ख़राब स्वाद वाली और डॉक्टरी पर्चे के बिना मिलने वाली नेल पॉलिश लगाना, या लंबे समय तक टिकने वाला मेनिक्योर लगाना जो व्यक्ति को नाख़ून कुतरने ही न दे, जैसे डिप-पाउडर मेनिक्योर। बहुत कम मामलों में, बहुत अधिक नाख़ून कुतरने की आदत या नाख़ून कुतरने की धुन सवार होना किसी मानसिक या चिंता संबंधी विकार का संकेत हो सकते हैं, और लोगों को किसी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से अपना मूल्यांकन करवाना चाहिए।
ओनिकोग्राइफोसिस
ओनिकोग्राइफोसिस एक अपविकास है जिसमें नाख़ून, अधिकतर मामलों में पैर के अंगूठे का नाख़ून, मोटा हो जाता है, उसकी गोलाई बहुत अधिक हो जाती है और वह देखने में हुक जैसा हो जाता है (रैम्स हॉर्न नेल)। अधिक गोलाई वाला यह हुक जैसा नाख़ून बगल वाली अंगुली को नुक़सान पहुँचा सकता है और यह स्थिति नाख़ून की एक साइड के दूसरी साइड से तेज़ी से बढ़ने के कारण होती है। इस विकार में नेल बेड को नुक़सान पहुँचता है जो अधिकतर बार-बार चोट लगने (जैसे ठीक से फ़िट न होने वाले जूतों) के कारण होता है, पर यह सोरियसिस आदि विकारों में भी हो सकता है। ओनिकोग्राइफोसिस बुज़ुर्गों में आम है।
नाख़ून छोटे रखने चाहिए, और अंगुलियों के बीच भेड़ की पहली ऊन लगाकर आस-पास की अंगुलियों को चोट से बचाया जा सकता है। ऐसे जूते-चप्पल या स्टॉकिंग नहीं पहनने चाहिए जो अंगुलियों पर संकरे हों।
ओनिकोटिलोमेनिया
इस विकार से ग्रस्त लोग अपने नाखूनों को कुरेदते-नोचते हैं। इसका सबसे आम प्रकटन हैबिट-टिक विरूपता है, जिसमें व्यक्ति क्यूटिकल (नाख़ून के आधार पर मौजूद त्वचा) के बीच वाले भाग को बगल वाली अंगुली से बार-बार कुरेदता या रगड़ता है। यह प्रकटन आम तौर पर अंगूठे के नाख़ून पर दिखता है और इससे नेल प्लेट का बीच वाला भाग वॉशबोर्ड जैसा हो जाता है। ओनिकोटिलोमेनिया से नाखूनों के नीचे रक्त बहना (सबअंगुअल हैमरेज), नाख़ून में संक्रमण, और यहाँ तक कि नेल प्लेट पूरी तरह अलग होना जैसी समस्याएँ भी हो सकती हैं।
सबअंगुअल हेमाटोमा
किसी चोट (आम तौर पर सीधी टक्कर, जैसे किसी हथौड़े से) के तुरंत बाद अक्सर नाख़ून के नीचे रक्त इकट्ठा हो जाता है (सबअंगुअल हेमाटोमा)। रक्त नाख़ून के एक अंश या पूरे नाख़ून के नीचे एक बैंगनी-काले धब्बे के रूप में दिखता है और इससे धमक वाला तेज़ दर्द होता है।
डॉक्टर नेल प्लेट (नाख़ून के कठोर बाग) में छोटा-सा छेद करके रक्त निकालकर दर्द से राहत दे सकते हैं। छेद करने के लिए डॉक्टर आम तौर पर नीडिल या गर्म तार (इलेक्ट्रोकॉटरी डिवाइस) का उपयोग करते हैं। इस कार्यविधि में मामूली दर्द होता है और बस कुछ सेकंड लगते हैं।
चूंकि रक्त ने नाख़ून को उसके बेड से अलग कर दिया होता है, अतः आम तौर पर कुछ सप्ताह बाद नाख़ून अलग होकर गिर जाता है, तब के सिवाय जब हेमाटोमा छोटा हो। मौजूदा नाख़ून के नीचे नया नाख़ून उगता है और पूरी तरह उग जाने पर पुराने वाले की जगह ले लेता है।
नाख़ून के नीचे ट्यूमर से भी ऐसा ही बैंगनी-काला धब्बा बन सकता है। हालांकि, यह धब्बा धीरे-धीरे बनता है न कि चोट के कुछ ही मिनटों के भीतर, और समय के साथ नाख़ून के साथ बाहर की ओर नहीं बढ़ता है (नाख़ून के नीचे का ट्यूमर अपना स्थान नहीं बदलता है)। हालांकि, छोटे हेमाटोमा पर नज़र रखनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे नाख़ून के साथ बढ़कर निकल जाएं।
सफ़ेद धब्बे
नाख़ून में छोटा सफ़ेद धब्बा बन सकता है जो आम तौर पर नाख़ून को लगी किसी मामूली चोट के चलते बनता है। धब्बे की शुरुआत चोटिल स्थान से होती है और वह नाख़ून के साथ-साथ आगे बढ़ता जाता है। हाथ के नाखूनों के सफ़ेद धब्बे आम तौर पर चिंता का विषय नहीं होते हैं।