पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम

इनके द्वाराJoyce Lee, MD, MAS, University of Colorado School of Medicine
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्तू॰ २०२३ | संशोधित नव॰ २०२३

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम में डिफ़्यूज़ ऐल्वीअलर हैमरेज (फेफड़े में बार-बार या लगातार खून आना) और ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस (किडनी की सूक्ष्म रक्त शिराओं का नष्ट होना, जिसकी वजह से पीड़ित को शरीर में सूजन आ जाती है, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और पेशाब में लाल रक्त कोशिकाएँ आ जाती हैं) दोनों हो जाते हैं।

  • पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम लगभग हमेशा किसी ऑटोइम्यून विकार की वजह से होते हैं।

  • नैदानिक जांचों में यूरिनेलिसिस और कुछ प्रोटीन (एंटीबॉडीज) के लिए खून की जांचें शामिल हैं, जो बताती हैं कि शरीर स्वयं के ऊतकों के प्रति प्रतिक्रिया कर रहा है, इसके अलावा कभी-कभी फेफड़े या किडनी के ऊतक की जांच की जाती है।

  • उपचार के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स और अक्सर साइक्लोफ़ॉस्फ़ामाइड (एक कीमोथेरेपी दवा) या रिटक्सीमैब और अन्य दवाएँ आवश्यक हैं, जो शरीर के प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करती हैं।

इम्यून सिस्टम का खास काम संक्रमण से लड़ना होता है। ऐसा करने के लिए, प्रतिरक्षा प्रणाली किसी व्यक्ति में माइक्रोऑर्गेनिज़्म की पहचान बाहरी तत्व के रूप में करती है और ऐसे प्रोटीन (एंटीबॉडीज) बनाती है, जो माइक्रोऑर्गेनिज़्म से जुड़ जाते हैं, ताकि उन्हें शरीर से बाहर निकाला जा सके। ऑटोइम्यून विकारों में, शरीर, व्यक्ति के स्वयं के ऊतकों को बाहरी तत्व समझकर गलती से उनके खिलाफ प्रतिक्रिया देने लगता है। फेफड़े से संबंधी ऑटोइम्यून विकारों में, इम्यून सिस्टम फेफड़े के ऊतक पर आक्रमण करता है और उसे नष्ट कर देता है। फेफड़ों को प्रभावित करने वाले ऑटोइम्यून विकारों में शरीर के दूसरे अंगों पर भी, खासतौर से किडनी पर असर पड़ता है।

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम एक सिंड्रोम है, ना कि एक कोई विशेष विकार। कोई सिंड्रोम कई लक्षणों और दूसरी अन्य असामान्यताओं का एक समूह होता है, जो किसी व्यक्ति में एक साथ होते हैं, लेकिन वे कई अलग-अलग विकारों या अन्य सिंड्रोम की वजह से हो सकते हैं। पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम में फेफड़े संबंधी एक विकार शामिल होता है, जिसे डिफ़्यूज़ ऐल्वीअलर हैमरेज कहते हैं, इसमें फेफड़े में जाने वाली छोटी रक्त शिराएं बड़े स्तर पर नष्ट हो जाती हैं, जिसकी वजह से खून फेफड़े में मौजूद छोटे वायु थैलियों (एल्विओलाई) में जमा हो जाता है। लोगों में एक प्रकार की किडनी की समस्या भी हो जाती है, जिसका नाम ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस है, जो कि ग्लोमेरुली का एक विकार (किडनी में सूक्ष्म रक्त वाहिकाओं के समूह, जिनमें छोटे छोटे छिद्र होते हैं, जिनमें से खून फ़िल्टर होता है) है। ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस में शरीर के ऊतक में सूजन (एडिमा) आ जाती है, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है और पेशाब में लाल रक्त कोशिकाएं आ जाती हैं।

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम के कारण

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम कई विकारों की वजह से हो सकता है।

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम का सबसे सामान्य कारण है ऑटोइम्यून विकार जैसे

कम सामान्य ऑटोइम्यून कारणों में निम्न शामिल हैं

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम के लक्षण

इसके लक्षणों में ये शामिल हो सकते हैं

  • मूत्र में रक्त

  • शरीर में सूजन (एडिमा)

  • खांसी (आमतौर पर खांसी में खून आना)

  • सांस लेने में कठिनाई

  • बुखार

कभी-कभी लक्षण इतने गंभीर हो जाते हैं कि फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं (श्वसन तंत्र नाकाम हो जाता है) और लोगों को सांस लेने में गंभीर परेशानी होने लगती है और त्वचा नीली या पीली या भूरे रंग की होकर बदरंग (सायनोसिस) होने लगती है। जब फेफड़े काम करना बंद कर देते हैं, तो शरीर के ऊतकों को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाती है और व्यक्ति की मौत हो सकती है।

किडनी पर इसका असर पड़ने पर पेशाब में खून आने लगता है, लेकिन अगर खून बहुत कम मात्रा में आता है, तो हो सकता है कि वह दिखाई ना दे। किडनी पर इसका असर पड़ने पर ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। हो सकता है कि फेफड़े और किडनी से संबंधित लक्षण साथ में दिखाई ना दे।

इस बीमारी में कभी-कभी स्थिति अचानक गंभीर हो जाती है।

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम का निदान

  • रक्त और मूत्र परीक्षण

  • छाती की इमेजिंग

  • फ़्लूड वॉश आउट (ब्रोंकोएल्विओलर लैवेज) से फेफड़े में फ़्लेक्सिबल व्यूइंग ट्यूब डालना (ब्रोंकोस्कोपी)

  • कभी-कभी फेफड़े की ऊतक या किडनी का छोटा सा टुकड़ा निकालकर उसकी जांच की जाती है (बायोप्सी)

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम का निदान करने के लिए फेफड़ों में बार-बार या लगातार ब्लीडिंग (जैसा कि डिफ़्यूज़ ऐल्वीअलर हैमरेज में होता है) और किडनी की खराबी (ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस) की मौजूदगी होना आवश्यक है।

डॉक्टर किसी व्यक्ति के लक्षणों और छाती की इमेजिंग से मिलने वाले नतीजों के आधार पर डिफ़्यूज़ ऐल्वीअलर हैमरेज का निदान कर सकते हैं। अगर लक्षणों और छाती की इमेजिंग के नतीजों के आधार पर पता नहीं लग पाता है, तो (उदाहरण के लिए, अगर खांसी में खून नहीं आया हो), डॉक्टर को खून की जांच करने के लिए फेफड़े में फ़्लेक्सिबल व्यूइंग ट्यूब डालना पड़ सकती है (ब्रोंकोस्कोपी) और फ़्लूड से फेफड़ों को साफ़ करना (ब्रोंकोएल्विओलर लैवेज) पड़ सकता है।

एनीमिया की जांच करने के लिए खून में लाल कोशिकाओं का स्तर मापा जाता है।

ग्लोमेरुलोनेफ़्राइटिस का निदान लक्षणों, यूरिनेलिसिस और किडनी के खून की जांचों के आधार पर किया जाता है।

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम का निदान करने के बाद, डॉक्टर उसके कारणों का पता लगाने का प्रयास करते हैं। वे उन एंटीबॉडीज के लिए खून की जांचें करते हैं, जो व्यक्ति के खुद के ऊतक के विरुद्ध काम करती हैं (इसे ऑटोएंटीबॉडीज कहते हैं)। अगर जांच के परिणामों में कारण का पता नहीं चलता है, तो डॉक्टर को जांच के लिए फेफड़े या किडनी के ऊतक का छोटा सा हिस्सा निकालना पड़ सकता है (बायोप्सी)।

पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम का उपचार

  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड (जैसे प्रेडनिसोन)

  • कभी-कभी साइक्लोफ़ॉस्फ़ामाइड (कीमोथेरेपी की दवाई) या प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करने वाली दूसरी दवाइयाँ, जैसे कि रिटक्सीमैब

  • खून में से अवांछित एंटीबॉडीज को निकालने की प्रक्रिया (जिसे प्लाज़्मा एक्सचेंज कहते हैं)

अधिकांश लोगों में, पल्मोनरी-रीनल सिंड्रोम एक ऑटोइम्यून विकार की वजह से होता है, इसलिए इसके उपचार के लिए इम्यून सिस्टम को सप्रेस करने के लिए आमतौर पर कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (जैसे प्रेडनिसोन) की अधिक मात्रा दी जाती है। अगर व्यक्ति बहुत अधिक बीमार है, तो इम्यून सिस्टम को और सप्रेस करने के लिए अक्सर उन्हें साइक्लोफ़ॉस्फ़ामाइड भी दिया जाता है। साइक्लोफ़ॉस्फ़ामाइड की बजाय रिटक्सीमैब का उपयोग किया जा सकता है।

प्लाज़्मा एक्सचेंज—एक प्रक्रिया जिसमें रक्त में से अवांछित एंटीबॉडीज को निकाल दिया जाता है—सहायक हो सकती है।

कई लोगों को ध्यान रखने की ज़रूरत होती है, जब तक कि बीमारी की तीव्रता कम ना हो जाए। उदाहरण के लिए, लोगों को ऑक्सीजन देनी पड़ सकती है या उन्हें कुछ समय के लिए मेकैनिकल वेंटिलेटर पर रखना पड़ सकता है। ब्लड ट्रांसफ़्यूजन भी करना पड़ सकता है। अगर किडनी काम करना बंद कर देती हैं, तो किडनी डायलिसिस या किडनी ट्रांसप्लांटेशन करना पड़ सकता है।