थैलेसीमिया

(मेडिटेरेनियन एनीमिया; थैलेसीमिया मेजर और माइनर)

इनके द्वाराGloria F. Gerber, MD, Johns Hopkins School of Medicine, Division of Hematology
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अप्रैल २०२४

थैलेसीमिया वंशानुगत विकारों का एक समूह है जो हीमोग्लोबिन (लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला ऐसा प्रोटीन जो ऑक्सीजन को सभी अंगों तक पहुंचाता है) बनाने वाले अमीनो एसिड की 4 श्रृंखलाओं में से एक के निर्माण में असंतुलन होने की वजह से होता है।

  • इसके लक्षण, थैलेसीमिया के प्रकार पर निर्भर होते हैं।

  • इसमें कुछ लोगों को पीलिया हो सकता है। उन्हें पेट फूलने की परेशानी हो सकती है या बेचैनी महसूस हो सकती है।

  • इसके निदान के लिए आमतौर पर कुछ खास हीमोग्लोबिन टेस्ट करवाए जाते हैं।

  • थैलेसीमिया के हल्के लक्षणों में इलाज की ज़रूरत नहीं होती। लेकिन गंभीर थैलेसीमिया होने पर बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन की ज़रूरत पड़ सकती है।

(एनीमिया का विवरण भी देखें।)

हीमोग्लोबिन, ग्लोबीन चेन के 2 जोड़ों का बना होता है। सामान्य रूप से, वयस्कों में 1 जोड़ा अल्फ़ा चेन और 1 जोड़ा बीटा चेन होती है। कभी-कभी इनमें से एक या अधिक चेन कम हो जाती हैं। थैलेसीमिया को अमीनो एसिड चेन पर होने वाले प्रभाव के आधार पर अलग-अलग वर्ग में बांटा जाता है। इसके 2 मुख्य प्रकार हैं

  • अल्फ़ा थैलेसीमिया (इसमें अल्फ़ा ग्लोबीन चेन प्रभावित होती है)

  • बीटा थैलेसीमिया (इसमें बीटा ग्लोबीन चेन प्रभावित होती है)

अल्फ़ा-थैलेसीमिया, अफ़्रीकी या अश्वेत अमेरिकी, भूमध्यसागरीय या दक्षिण-पूर्वी एशियाई वंश के लोगों में सबसे ज़्यादा पाया जाता है। बीटा-थैलेसीमिया, भूमध्यसागरीय, मध्य-पूर्वी, दक्षिण-पूर्वी एशियाई या भारतीय वंश के लोगों में सबसे ज़्यादा पाया जाता है।

थैलेसीमिया को इसकी गंभीरता के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।

  • थैलेसीमिया माइनर: कोई लक्षण नहीं या हल्के लक्षण

  • थैलेसीमिया इंटरमीडिया: हल्के से लेकर गंभीर लक्षण

  • थैलेसीमिया मेजर: गंभीर लक्षण, जिनमें इलाज की ज़रूरत होती है

थैलेसीमिया के लक्षण

सभी प्रकार के थैलेसीमिया के लक्षण एक जैसे होते हैं, लेकिन इनकी गंभीरता अलग-अलग होती है।

अल्फ़ा-थैलेसीमिया माइनर और बीटा थैलेसीमिया माइनर में लोगों को हल्का एनीमिया होता है और कोई लक्षण नहीं दिखते।

अल्फ़ा-थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित लोगों में एनीमिया के मध्यम या गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे, थकान, सांस लेने में तकलीफ़ होना, त्वचा का पीला पड़ना और स्प्लीन का बढ़ना, जिससे उनका पेट भरा हुआ महसूस होता है और बेचैनी महसूस होती है।

बीटा-थैलेसीमिया मेजर (कभी-कभी इसे कूली एनीमिया भी कहा जाता है) से पीड़ित लोगों में एनीमिया के गंभीर लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे थकान, कमज़ोरी, सांस लेने में तकलीफ़ होना और उन्हें पीलिया भी हो सकता है, जिसमें उनकी त्वचा और आँखों का सफ़ेद हिस्सा पीला पड़ जाता है, त्वचा में अल्सर हो सकते हैं और गॉल ब्लैडर में पथरी हो सकती है। ऐसे मरीज़ों का स्प्लीन भी बढ़ सकता है। बोन मैरो के ज़्यादा सक्रिय होने के कारण हड्डियाँ (खासतौर पर चेहरे और सिर की हड्डी) मोटी और बड़ी हो सकती हैं। हाथ और पैरों की लंबी हड्डियाँ कमज़ोर हो सकती है और आसानी से टूट सकती हैं।

बीटा-थैलेसीमिया मेजर से पीड़ित बच्चों का शारीरिक विकास धीरे होता है और उनकी किशोरावस्था, सामान्य बच्चों की अपेक्षा देर से आती है। चूंकि आयरन अवशोषण बढ़ सकता है और बार-बार ब्लड ट्रांसफ़्यूजन (और भी अधिक आयरन प्रदान करने के लिए) की आवश्यकता होती है, बहुत ज़्यादा आयरन इकट्ठा हो सकता है और हृदय की मांसपेशियों में जमा हो सकता है, जिससे आखिर में आयरन ओवरलोड रोग हो सकता है, जिससे लिवर में नुकसान, हार्ट फेल और समय से पहले मृत्यु हो सकती है।

थैलेसीमिया का निदान

  • रक्त की जाँच

  • हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफ़ोरेसिस

  • बच्चे के जन्म से पहले की जाने वाली जांच

थैलेसीमिया के निदान के लिए ब्लड टेस्ट करवाए जाते हैं। इसमें डॉक्टर, माइक्रोस्कोप की मदद से ब्लड काउंट मापते हैं और ब्लड सैंपल की जांच करते हैं। लाल रक्त कोशिकाओं की विशेषताओं में असामान्यता दिखाई दे सकती है।

हीमोग्लोबिन इलैक्ट्रोफ़ोरेसिस, अन्य ब्लड टेस्ट भी किया जाता है। इलैक्ट्रोफ़ोरेसिस में, एक इलेक्ट्रिकल करंट का उपयोग करके विभिन्न प्रकार के हीमोग्लोबिन को अलग किया जाता है और इस प्रकार असामान्य हीमोग्लोबिन का पता लगाया जाता है। इलैक्ट्रोफ़ोरेसिस से रक्त की एक बूंद को जांचना भी सहायक हो सकता है, लेकिन इससे सही नतीजे नहीं मिलते, खासतौर पर अल्फ़ा-थैलेसीमिया में। इसलिए, निदान आमतौर पर आनुवंशिक परीक्षणों और वंशानुगत पैटर्न के निर्धारण पर आधारित होता है।

बच्चे के जन्म से पहले उसमें थैलेसीमिया का पता लगाने के लिए आनुवंशिक जांच की जा सकती है।

थैलेसीमिया का इलाज

  • इसके इलाज के लिए कभी-कभी ब्लड ट्रांसफ़्यूजन किया जाता है, स्प्लीन को निकाला जाता है या आयरन कीलेशन थेरेपी दी जाती है

  • स्टेम सैल ट्रांसप्लांटेशन

जिन लोगों में थैलेसीमिया के हल्के लक्षण होते हैं उन्हें उपचार की ज़रूरत नहीं होती।

जिन लोगों को अधिक गंभीर थैलेसीमिया है, उन्हें स्प्लीन (स्प्लेनेक्टॉमी) निकालने, ब्लड ट्रांसफ़्यूजन करने, या आयरन केलेशन थेरेपी करने के लिए सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है। कीलेशन थेरेपी में रक्त से आयरन की अतिरिक्त मात्रा निकाल दी जाती है। इसमें आयरन कीलेटर कही जाने वाली दवाएँ, खाने के लिए (डेफ़रसिरॉक्स या डेफ़रिप्रोन) दी जा सकती हैं या त्वचा के ज़रिए (सबक्यूटेनियस) से इन्फ़्यूज़न (डेफ़रॉक्सिमीन) किया जा सकता है या शिरा में (इंट्रावीनस) दिया जा सकता है।

बीटा-थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों को ब्लड ट्रांसफ़्यूजन से बचाने के लिए लसपेटरसेप्ट दी जा सकती है।

गंभीर थैलेसीमिया से पीड़ित कुछ लोगों में स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन करना पड़ सकता है।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी-भाषा संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।

  1. Cooley's Anemia Foundation: थैलेसीमिया का निदान और इलाज के लिए शिक्षा प्रदान करता है, साथ ही, यह थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों की सहायता भी करता है