एप्लास्टिक एनीमिया

(हाइपोप्लास्टिक एनीमिया)

इनके द्वाराGloria F. Gerber, MD, Johns Hopkins School of Medicine, Division of Hematology
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अप्रैल २०२४

एप्लास्टिक एनीमिया एक ऐसा विकार है, जिसमें बोन मैरो की वे कोशिकाएँ नष्ट हो जाती हैं, जो आगे चलकर परिपक्व रक्त कोशिकाएँ बनती हैं, इसके कारण लाल रक्त कोशिकाओं, सफेद रक्त कोशिकाओं और/या प्लेटलेट्स की संख्या कम हो जाती है।

जब बोन मैरो की वे कोशिकाएँ (स्टेम सेल) नष्ट हो जाती हैं या बनना बंद हो जाती हैं, जो आगे चलकर परिपक्व रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट्स में विकसित होती हैं, तो बोन मैरो काम करना बंद कर देती है। बोन मैरो के काम न करने की इसी अवस्था को एप्लास्टिक एनीमिया कहते हैं। बोन मैरो के काम न करने के कारण लाल रक्त कोशिकाओं की संख्‍या बहुत ही कम (एनीमिया), सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्‍या बहुत ही कम (ल्यूकोपीनिया) और प्लेटलेट्स की संख्‍या बहुत ही कम (थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया) हो जाती है।

एप्लास्टिक एनीमिया शब्द का उपयोग उस एनीमिया के लिए किया जाता है जिसमें ज़्यादातर या सभी प्रकार की रक्त कोशिकाएं बनना बंद हो जाती हैं। यदि केवल लाल रक्त कोशिकाओं का बनना बंद होता है, तो इस विकार को लाल रक्त कोशिकाओं का अप्लेसिया कहा जाता है।

जब एप्लास्टिक एनीमिया होने के कारण का पता नहीं चल पाता है (जिसे आइडियोपैथिक एप्लास्टिक एनीमिया कहा जाता है), तो इसका कारण एक ऑटोइम्यून विकार हो सकता है, इसमें प्रतिरक्षा तंत्र, बोन मैरो स्टेम सेल को दबा देता है।

अन्य कारणों में शामिल हैं

  • पर्वोवायरस (केवल शुद्ध लाल रक्त कोशिका एप्लेसिया का कारण बनता है), एपस्टीन बार वायरस, या साइटोमेगालोवायरस जैसे वायरस से होने वाला संक्रमण

  • विकिरण के प्रति विगोपन

  • विष (जैसे, बेंज़ीन)

  • कीमोथेरेपी एजेंट और अन्‍य दवाएँ (जैसे कि क्लोरैमफ़ेनिकोल)

  • गर्भावस्था

  • हेपेटाइटिस

एप्लास्टिक एनीमिया के लक्षण

एप्लास्टिक एनीमिया के लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं, आमतौर पर हफ्तों या महीनों में।

इस तरह के एनीमिया में थकान, कमज़ोरी और चेहरे में पीलापन आ जाता है। ल्यूकोपीनिया की वजह से संक्रमण जल्दी होता है। थ्रॉम्बोसाइटोपेनिया में चोट आसानी से लग जाती है और रक्तस्राव तेज़ी से होता है।

एप्लास्टिक एनीमिया का निदान

  • रक्त की जाँच

  • बोन मैरो की जाँच

इस तरह के एनीमिया के लक्षण वाले लोगों के ब्लड टेस्ट करवाए जाते हैं। जब ब्लड टेस्ट में यह पता चलता है कि सभी रक्त कोशिकाओं की संख्या कम हो गई है, तो बोन मैरो की जांच करवाई जाती है।

जब बोन मैरो (बोन मैरो बायोप्सी) के नमूने की माइक्रोस्कोपिक जांच में बोन मैरो कोशिकाओं के तेज़ी से कम होने का पता चलता है, तो इसे एप्लास्टिक एनीमिया माना जाता है।

एप्लास्टिक एनीमिया का इलाज

  • ट्रांसफ़्यूजन

  • स्टेम सैल ट्रांसप्लांटेशन

अगर गंभीर एप्लास्टिक एनीमिया वाले मरीज़ों का इलाज तुरंत न किया जाए तो उनकी मौत हो सकती है। लाल रक्त कोशिकाओं, प्लेटलेट, और विकास कारक कहे जाने वाले पदार्थों के ट्रांसफ़्यूजन से लाल रक्त कोशिकाओं, श्वेत रक्त कोशिकाओं और प्लेटलेट की संख्या अस्थायी रूप से बढ़ सकती है।

एप्लास्टिक एनीमिया का सामान्य उपचार स्टेम सेल ट्रांसप्लांटेशन है, क्योंकि इससे यह बीमारी ठीक हो सकती है। यदि ट्रांसप्लांटेशन संभव नहीं है, तो प्रतिरक्षा तंत्र को दबाने और बोन मैरो स्टेम सेल को फिर से बनने देने के लिए मरीज़ों को ऐन्टिथाइमोसाइट ग्लोब्युलिन और साइक्लोस्पोरिन दिया जाता है।