स्तनपान
बाहरी स्तन में चूचुक और उसके आसपास का घेरेदार हिस्सा शामिल होता है। चूचुक के सिरे में अनेक छेद होते हैं, जिससे स्तनपान के दौरान दूध उनमें से बह निकलता है। चूचुक के चारो तरफ पिग्मेंट वाला हिस्से को एरिओला कहा जाता है। यह उन ग्रंथियों से कवर होता है जिनमें से चूचुक और एरिओला की लुब्रिकेशन के लिए तेल का स्राव होता है।
महिला के स्तनों का मुख्य कार्य दूध प्रदान करना है, ताकि शिशु को पौष्टिकता मिल सके, और इस प्रक्रिया को स्तनपान कहा जाता है।
स्तन, जो मुख्य रूप से वसा युक्त ऊतक से बने होते हैं, उनमें दूग्ध-उत्पादक ग्रंथियों से युक्त होते हैं, जिन्हें लोब्यूल्स कहा जाता है। लोब्यूल्स चूचुक के साथ नलिकाओं के नेटवर्क से जुड़े रहते हैं, जिन्हें दुग्ध नलिकाएं कहा जाता है। स्तनों द्वारा पानी और रक्त की धारा से प्राप्त किए पौष्टिक तत्वों से दूध बनाया जाता है। दूध लोब्यूल्स में तब तक स्टोर रहता है, जब तक कि ऑक्सीटोसिन नामक हार्मोन लोब्यूल्स में छोटी मांसपेशियों को संकुचित होने का संकेत नहीं भेजता, और नलिकाओं से दूध को आगे की तरफ धकेलता है। इस प्रक्रिया को लेट-डाउन रिफ़्लेक्स कहते हैं, या मिल्क-इजेक्शन रिफ़्लेक्स कहा जाता है।
हालांकि, शिशुओं का जन्म प्राकृतिक सकिंग रिफ़्लेक्स के साथ होता है, लेकिन अभी भी उनको स्तनपान सीखना पड़ता है। स्तनपान के दौरान, यह महत्वपूर्ण है कि शिशु द्वारा मुंह-चूचुक की उचित प्लेसमेंट को बनाए रखा जाता है; इससे यह सुनिश्चित होता है कि शिशु को दूध की उचित मात्रा मिल रही है और स्तनपान करवाने का अनुभव सफल होगा। उचित लैच-ऑन पोजीशन इसलिए है, ताकि चूचुक को शिशु के मुंह के अंदर तक रखा जा सके, लगभग उसी जगह तक जहां पर कठोर तालु नरम तालु से मिलता है। यदि शिशु चूचुक के सिरे को चूसता है या उसके मुंह में पर्याप्त स्तन ऊतक नहीं होते हैं, तो इसके परिणामस्वरूप मां के चूचुक दुखने लगते हैं या क्रेक हो जाते हैं।