ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया

इनके द्वाराGloria F. Gerber, MD, Johns Hopkins School of Medicine, Division of Hematology
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अप्रैल २०२४

ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया, प्रतिरक्षा प्रणाली की खराबी द्वारा वर्गीकृत विकारों का एक समूह है, जिसके कारण शरीर में अपने आप ऐसी एंटीबॉडीज़ बनने लगती हैं, जो लाल रक्त कोशिकाओं को शरीर के बाहर का पदार्थ समझ कर उन पर हमला करने लगती हैं।

  • कुछ लोगों में इसके कोई लक्षण नहीं दिखते और कुछ लोगों में थकान, साँस लेने में तकलीफ और शरीर पीला पड़ने जैसे लक्षण दिखते हैं और पीलिया या बढ़ा हुआ स्प्लीन भी हो सकता है।

  • एनीमिया का पता लगाने और ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया का कारण तय करने के लिए ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह दी जाती है।

  • इसके उपचार के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड या अन्य दवाएँ दी जाती हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाती हैं, कभी-कभी कुछ मामलों में स्प्लेनेक्टॉमी (सर्जरी करके स्प्लीन को निकालना) भी की जाती है।

(एनीमिया का विवरण भी देखें।)

ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया, विकारों का असामान्य समूह है जो किसी भी उम्र में हो सकता है। लगभग आधे मामलों में, ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया होने के कारण का पता नहीं चलता, इसे आइडियोपैथिक ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया कहते हैं। ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया, किसी अन्य विकार के कारण या किसी अन्य विकार के साथ भी हो सकता है, जैसे कि सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस (ल्यूपस) या लिम्फ़ोमा, और यह पेनिसिलिन जैसी कुछ दवाओं के उपयोग के कारण हो सकता है।

ऑटो एंटीबॉडीज़ (ऐसी एंटीबॉडीज़ जो गलती से शरीर की सेल पर ही हमला करने लगती हैं) से लाल रक्त कोशिकाएं अचानक या धीरे-धीरे नष्ट हो सकती हैं। यदि ऐसा वायरस या दवाई के कारण होता है, तो कोशिकाओं का नष्ट होना कुछ समय के बाद रुक सकता है। अन्य लोगों में, लाल रक्त कोशिकाओं का खत्म होना जारी रहता है और यह क्रोनिक रोग बन जाती है। ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया मुख्य रूप से 2 प्रकार के होते हैं:

  • वॉर्म एंटीबॉडी हीमोलिटिक एनीमिया: इसमें शरीर का तापमान सामान्य होने पर एंटीबॉडीज़ लाल रक्त कोशिकाओं से चिपक जाती हैं और उन्हें नष्ट कर देती हैं।

  • कोल्ड एंटीबॉडी हीमोलिटिक एनीमिया (कोल्ड अग्लुटिनिन डिज़ीज़): एंटीबॉडीज सामान्य शरीर के तापमान से कम तापमान पर सबसे ज़्यादा सक्रिय हो जाते हैं तथा लाल रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करते हैं।

पैरॉक्सिस्मल कोल्ड हीमोग्लोबिनुरिया (डोनेथ-लैंडस्टीनर सिंड्रोम) एक दुर्लभ प्रकार का कोल्ड एंटीबॉडी हीमोलिटिक एनीमिया है। इसमें ठंड के संपर्क में आने से लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट होने लगती हैं। शरीर का कोई छोटा हिस्सा, ठंड के संपर्क में आने पर भी लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो सकती हैं, जैसे कि ठंडा पानी पीने पर या ठंडे पानी से हाथ धोने पर। कोई एंटीबॉडी, लाल रक्त कोशिकाओं से तब चिपकती है जब शरीर का तापमान कम होता है और तापमान बढ़ने पर धमनियों और शिराओं के भीतर जाकर लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट कर देती हैं। यह अक्सर किसी वायरल बीमारी के बाद या स्वस्थ लोगों में होता है, हालांकि कुछ लोगों में यह सिफ़िलिस के साथ होता है। एनीमिया की गंभीरता और इसके बढ़ने की गति अलग-अलग होती है।

ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया के लक्षण

हो सकता है कि ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया वाले कुछ मरीज़ों में कोई लक्षण दिखाई न दे, खासकर जब लाल रक्त कोशिकाएं कम नष्ट होती हैं और धीरे-धीरे बनती हैं। दूसरे मरीज़ों में वैसे ही लक्षण दिखाई देते हैं जैसे अन्य प्रकार के एनीमिया (जैसे थकान, कमजोरी और शरीर पीला पड़ना) में होते हैं, खासतौर पर जब लाल रक्त कोशिकाएं ज़्यादा मात्रा में और तेज़ी से नष्ट होती हैं।

लाल रक्त कोशिकाओं के ज़्यादा मात्रा में या तेजी से नष्ट होने पर पीलिया (त्वचा और आंखों के सफ़ेद भाग का पीला होना), बुखार, सीने में दर्द, बेहोशी और हार्ट फेल के लक्षण (जैसे, सांस लेने में तकलीफ़) दिखाई देते हैं, यहां तक कि इससे मरीज़ की मौत भी हो सकती है। जब लाल रक्त कोशिकाओं का नष्ट होना लगातार तीन महीने या उससे अधिक समय तक बना रहता है, तो स्प्लीन बढ़ सकता है, जिसके कारण पेट फूला हुआ लगता है और कभी-कभी बेचैनी महसूस होती है।

कोल्ड एंटीबॉडी हीमोलिटिक एनीमिया से पीड़ित लोगों के हाथ और पैर नीले या भूरे दिखाई दे सकते हैं, अल्सर हो सकता है और दर्दनाक हो सकता है।

जब ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया किसी और विकार के कारण होता है, तो मरीज़ में उसी विकार के लक्षण दिखाई देते हैं, खासतौर पर लसिका ग्रंथि में सूजन या बुखार होना।

पैरॉक्सिस्मल कोल्ड हीमोग्लोबिनुरिया के मरीज़ों को पीठ और पैरों में तेज़ दर्द, सिरदर्द, उल्टी और दस्त हो सकते हैं। पेशाब गहरे भूरे रंग का हो सकता है।

ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया का निदान

  • रक्त की जाँच

ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट में एनीमिया होने का पता चलने पर, डॉक्टर उसका कारण तलाशते हैं। जब डॉक्टरों को ब्लड टेस्ट की रिपोर्ट में अपरिपक्व लाल रक्त कोशिकाएं (रेटिकुलोसाइट्स) तेज़ी से बढ़ती दिखती हैं या ब्लड स्मीयर (एक तरह का टेस्ट जिसमें रक्त की एक बूंद को स्लाइड पर फैलाकर माइक्रोस्कोप से उसकी जांच की जाती है) में रक्त के नष्ट होने के सबूत दिखते हैं, तो उन्हें लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने का संदेह होता है। इसके अलावा, ब्लड टेस्ट में लाल रक्त कोशिकाओं के नष्ट होने से बिलीरुबिन पदार्थ की मात्रा बढ़ सकती है साथ ही, हैप्टोग्लोबिन प्रोटीन की मात्रा घट सकती है, जो नष्ट हुई लाल रक्त कोशिकाओं से निकले हीमोग्लोबिन को बांधता है।

प्रयोगशाला परीक्षण

ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया की पुष्टि तब होती है, जब ब्लड टेस्ट से लाल रक्त कोशिकाओं (डायरेक्ट एंटीग्लोब्युलिन या डायरेक्ट कूम्ब्स परीक्षण) या रक्त के तरल भाग (इनडायरेक्ट एंटीग्लोब्युलिन या इनडायरेक्ट कूम्ब्स परीक्षण) से जुड़ी कुछ एंटीबॉडीज की बढ़ी हुई मात्रा का पता चलता है। कभी-कभी दूसरी जांचों से लाल रक्त कोशिकाओं को नष्ट करने वाली ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया का कारण तय करने में मदद मिलती है।

ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया का इलाज

  • ट्रांसफ़्यूजन

  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स

  • कभी-कभी स्प्लेनेक्टॉमी की जाती है

  • कंपकंपी के साथ होने वाले कोल्ड हीमोग्लोबिनुरिया में, ठंड को नज़रअंदाज़ करते हुए

  • कभी-कभी इम्यूनोसप्रेसेंट दिए जाते हैं

जब लाल रक्त कोशिकाएं बहुत ज़्यादा मात्रा में नष्ट होने लगती हैं, तो ब्लड ट्रांसफ़्यूजन की ज़रूरत होती है। "असंगत" रक्त होने की वजह से जानलेवा एनीमिया का खतरा होने पर ब्लड ट्रांसफ़्यूजन जल्द से जल्द किया जाना चाहिए। हालांकि, ट्रांसफ़्यूजन से एनीमिया के कारण का इलाज नहीं होता और यह सिर्फ़ अस्थायी राहत प्रदान करता है।

आमतौर पर वॉर्म ऑटोइम्यून हीमोलिटिक एनीमिया के इलाज के लिए प्रेडनिसोन जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉइड का इस्तेमाल सबसे ज़्यादा किया जाता है। पहले इसकी ज़्यादा खुराक दी जाती है, फिर कई हफ्तों या महीनों के बाद खुराक में धीरे-धीरे कमी की जाती है।

जब मरीज़ को कॉर्टिकोस्टेरॉइड से फ़ायदा नहीं होता है या जब कॉर्टिकोस्टेरॉइड से असहनीय दुष्प्रभाव होते हैं, तो ऐसे में अक्सर रिटक्सीमैब नाम की दवाई, अन्य इम्यूनोसप्रेसेंट दवाई दी जाती है या सर्जरी करके स्प्लीन को निकालना (स्प्लेनेक्टॉमी) ही इसका अगला उपचार होता है। कभी-कभी इन दवाओं का उपयोग पहले कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स के साथ भी किया जाता है। स्प्लीन को इसलिए निकाल दिया जाता है क्योंकि यही वो पहली जगह होती है जहां एंटीबॉडी से ढकी लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट होती हैं।

आमतौर पर बीमारी के लक्षण उत्पन्न करने वाली स्थितियों से दूर रहकर या लिम्फ़ोमा जैसे विकारों का इलाज करके ही कोल्ड हीमोलिटिक एनीमिया से बचा जा सकता है। कभी-कभी दवाइयां दी जाती हैं। गंभीर मामलों में, आक्रामक एंटीबॉडी को हटाने के लिए प्लाज़्माफ़ेरेसिस (प्लाज़्मा एक्सचेंज) का उपयोग किया जा सकता है।

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